बाइबल उन लोगों के इतिहास को दर्ज करती है जिन्होंने अपने शब्दों के द्वारा आशीष प्राप्त की और जिन्होंने अपने शब्दों के द्वारा शाप पाया। उनके इतिहास के द्वारा, आइए हम सोचें कि हमें किस प्रकार के शब्द कहने चाहिए।
1. पतरस को स्वर्ग के राज्य की कुंजियां प्राप्त हुईं
… “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है।” यीशु ने उसको उत्तर दिया, “हे शमौन, योना के पुत्र, तू धन्य है… मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियां दूंगा : और जो कुछ तू पृथ्वी पर बांधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा।” मत 16:13-19
जब यीशु ने पूछा, “तुम मुझे क्या कहते हो?” पतरस ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया, “आप जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह हैं।” अपने विश्वास से भरे शब्दों के परिणामस्वरूप, पतरस स्वर्ग के राज्य की कुंजियों की अत्यंत बड़ी आशीष पा सका।
2. यीशु की दाहिनी ओर वाला डाकू बचाया गया था
जो कुकर्मी वहां लटकाए गए थे, उनमें से एक ने उसकी निन्दा करके कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर अपने आप को और हमें बचा!” इस पर दूसरे ने उसे डांटकर कहा, “क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता? तू भी तो वही दण्ड पा रहा है, और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपने कामों का ठीक फल पा रहे हैं; पर इसने कोई अनुचित काम नहीं किया।” तब उसने कहा, “हे यीशु, जब तू अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।” उसने उससे कहा, “मैं तुझ से सच कहता हूं कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।” लूक 23:39-43
जब यीशु क्रूस पर चढ़ाए गए थे, तब लोगों और सरदारों ने यीशु की निन्दा करके कहा, “यदि तू मसीह है, तो अपने आप को बचा।” यहां तक कि यीशु के बाईं ओर वाले डाकू ने भी उनका मजाक उड़ाते हुए कहा, “क्या तू मसीह नहीं? तो फिर हमें बचा!”
लेकिन, दाहिनी ओर वाला डाकू उनसे अलग था। उसने यीशु का बचाव करते हुए कहा कि यीशु ने जो किए थे, उनमें कुछ भी गलत नहीं है। उसने यीशु के प्रति अपना विश्वास दिखाते हुए कहा, “जब आप अपने राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना।” जब यीशु ऐसी दर्दभरी स्थिति में थे जहां वह क्रूस की पीड़ा को सहन कर रहे थे और उनकी ठठ्ठा की जा रही थी, तब दाहिनी ओर वाले डाकू के विश्वास से भरे शब्दों ने उनके मन को छू लिया और उन्हें दिलासा दिया, और यीशु ने उसे स्वर्ग में अपने साथ रहने की अनुमति दी। दाहिनी ओर वाला डाकू अपने कृपालु शब्दों के द्वारा उद्धार की आशीष प्राप्त कर सका।
3. केवल यहूदियों को ही नहीं बल्कि उनके वंशजों को भी शाप दिया गया था
जब पिलातुस ने देखा कि कुछ बन नहीं पड़ता परन्तु इसके विपरीत हुल्लड़ बढ़ता जाता है, तो उसने पानी लेकर भीड़ के सामने अपने हाथ धोए और कहा, “मैं इस धर्मी के लहू से निर्दोष हूं; तुम ही जानो।” सब लोगों ने उत्तर दिया, “इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो!” मत 27:24-25
यहूदियों ने यीशु को क्रूस पर चढ़ाने का पाप किया जो मसीह के रूप में आए थे। उन्होंने यह कहते हुए अपने ऊपर दण्ड लाया, “इसका लहू हम पर और हमारी सन्तान पर हो!” अंत में, उन्हें उनके निन्दनीय शब्दों के अनुसार दंडित किया गया। यरूशलेम को 70 ई. में नष्ट किया गया था; और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जर्मन नाजियों द्वारा 60 लाख यहूदियों का नरसंहार किया गया था। उनके निन्दनीय शब्दों के परिणामस्वरूप, केवल वे ही नहीं, बल्कि उनके वंश भी नष्ट हो गए।
4. मूसा कनान देश में प्रवेश नहीं कर सका
वहां मण्डली के लोगों के लिये पानी न मिला; इसलिये वे मूसा और हारून के विरुद्ध इकट्ठे हुए… तब यहोवा ने मूसा से कहा, उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी… तब मूसा ने उस से कहा, “हे दंगा करनेवालो, सुनो; क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा?” तब मूसा ने हाथ उठाकर लाठी चट्टान पर दो बार मारी; और उसमें से बहुत पानी फूट निकला, और मण्डली के लोग अपने पशुओं समेत पीने लगे। परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, “तुम ने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्राएलियों की दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिये तुम इस मण्डली को उस देश में पहुँचाने न पाओगे जिसे मैं ने उन्हें दिया है।” गिन 20:2-12
मूसा एक शब्द के कारण कनान देश में प्रवेश नहीं कर सका, जो उसके जीवन की एकमात्र इच्छा थी। चूंकि चट्टान पर मारकर पानी बहा देना परमेश्वर की शक्ति था, इसलिए उसे परमेश्वर को महिमा देनी चाहिए थी। लेकिन, मूसा ने ऐसा नहीं किया और कहा, “क्या हम को इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा?” मूसा उन शब्दों के कारण जो परमेश्वर की महिमा नहीं करते थे, कनान देश में प्रवेश नहीं कर सका जिसका उसने सपना देखा था।
5. दस भेदियों ने इस्राएलियों का नेतृत्व पाप करने के लिए किया
चालीस दिन के बाद वे उस देश का भेद लेकर लौट आए… “वे हम से बलवान् हैं।” और उन्होंने इस्राएलियों के सामने उस देश की जिसका भेद उन्होंने लिया था यह कहकर निन्दा भी की, “वह देश जिसका भेद लेने को हम गए थे ऐसा है, जो अपने निवासियों को निगल जाता है; और जितने पुरुष हम ने उसमें देखे वे सब के सब बड़े डील-डौल के हैं। फिर हम ने वहां नपीलों को, अर्थात् नपीली जातिवाले अनाकवंशियों को देखा; और हम अपनी दृष्टि में उनके सामने टिड्डे के समान दिखाई पड़ते थे, और ऐसे ही उनकी दृष्टि में मालूम पड़ते थे।” तब सारी मण्डली चिल्ला उठी; और रात भर वे लोग रोते ही रहे। और सब इस्राएली मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे… गिन 13:25-14:13
बारह भेदियों में से, दस भेदियों ने परमेश्वर के उस वचन पर विश्वास नहीं किया कि वह उन्हें कनान की भूमि प्रदान करेंगे, और उन्होंने यह कहते हुए बुरा समाचार फैलाया कि वे कनान की भूमि को कभी जीत नहीं पाएंगे। परिणामस्वरूप, सभी इस्राएलियों ने परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत की और वे कुड़कुड़ाए। अंत में, भेदिए जिन्होंने बुरा समाचार फैलाया और इस्राएली जिन्होंने उनसे सहमत होकर शिकायत के शब्द कहे, वे सभी जंगल में नष्ट हो गए(गिन 14:35-38)।
बाइबल का यह इतिहास दिखाता है कि शब्द कितने महत्वपूर्ण हैं। यदि आप शालीन और विश्वास से भरे शब्द कहें, तो आप हमेशा परमेश्वर की आशीष प्राप्त करेंगे। लेकिन, यदि आप विश्वासहीन और दुष्ट शब्द कहें, तो शाप और अकृपालु परिणाम होंगे। बाइबल की शिक्षाओं का स्मरण करते हुए, आइए हम हमेशा अनुग्रह और विश्वास से भरे शबद कहकर परमेश्वर से बहुतायत से आशीष प्राप्त करें।
- पुनर्विचार के लिए प्रश्न
- 1. दाहिनी ओर वाला डाकू कैसे उद्धार प्राप्त कर सका?
- 2. मूसा कनान देश में प्रवेश क्यों नहीं कर सका, जिसमें वह उत्सुकता से प्रवेश करना चाहता था?