क्यों सदस्यों को एक दूसरे की सेवा करनी चाहिए

26,005 बार देखा गया

परमेश्वर ने हमसे “सेवा करनेवाले” बनने को कहा है। हम, स्वर्गीय संतानों को परमेश्वर की शिक्षा को अभ्यास में लाकर परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहिए।

आइए हम, बाइबल के द्वारा इसका कारण देखें कि हमें एक दूसरे की सेवा क्यों करनी चाहिए।

पहला, यह इसलिए क्योंकि मसीह ने स्वयं सेवा करने का नमूना दिखाया है।

“… परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने; और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने; जैसे कि मनुष्य का पुत्र; वह इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” मत 20:26-28

पूरे ब्रह्मांड में परमेश्वर सबसे ऊंचे और परमपवित्र हैं। फिर भी, वह मनुष्य के रूप में पृथ्वी पर आए और प्राण देने तक बलिदान करके हमारी सेवा की। यह हमें सेवा करने का नमूना दिखाने के लिए था(यूह 13:15)। परमेश्वर के नमूने का पालन करके, हमें अपने सारे मन से हमारे भाइयों और बहनों की सेवा करनी चाहिए।

दूसरा, यह इसलिए क्योंकि हम मसीह में एक देह हैं।

वह धन्यवाद का कटोरा, जिस पर हम धन्यवाद करते हैं; क्या मसीह के लहू की सहभागिता नहीं? वह रोटी जिसे हम तोड़ते हैं, क्या वह मसीह की देह की सहभागिता नहीं? इसलिये कि एक ही रोटी है तो हम भी जो बहुत हैं, एक देह हैं : क्योंकि हम सब उसी एक रोटी में भागी होते हैं। 1कुर 10:16-17

यहां, रोटी जो मसीह की देह की सहभागिता है और दाखमधु जो मसीह के लहू की सहभागिता है, वह नई वाचा के फसह की रोटी और दाखमधु को दर्शाता है। हम नई वाचा के फसह के द्वारा उनके मांस और लहू को ग्रहण करके परमेश्वर के साथ एक देह बने हैं। एक दूसरे से प्रेम करना, विचारशील रहना और सेवा करना हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा है जो नई वाचा में एक देह बने हैं।

तीसरा, यह स्वर्ग में महान इनाम पाने के लिए है।

जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा। मत 18:4

… “जब कोई तुझे विवाह में बुलाए, तो मुख्य जगह में न बैठना, कहीं ऐसा न हो कि उसने तुझ से भी किसी बड़े को नेवता दिया हो, और जिसने तुझे और उसे दोनों को नेवता दिया है, आकर तुझ से कहे, ‘इसको जगह दे,’ और तब तुझे लज्जित होकर सबसे नीची जगह में बैठना पड़े। पर जब तू बुलाया जाए तो सबसे नीची जगह जा बैठ कि जब वह, जिसने तुझे नेवता दिया है आए, तो तुझ से कहे, ‘हे मित्र, आगे बढ़कर बैठ,’ तब तेरे साथ बैठनेवालों के सामने तेरी बड़ाई होगी। क्योंकि जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।” लूक 14:7-11

इस तरह, यीशु ने कहा कि जो विनम्र स्वभाव से दूसरों की सेवा करता है वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा किया जाएगा, और “सेवा करने” पर जोर दिया। यह पृथ्वी आत्मिक जेल है, जहां स्वर्ग के पापी कैद हैं। जेल में, पापी ऊंचा पद पाना और अधिकार जताना चाहते हैं। हालांकि, स्वर्ग की रीति ऐसी नहीं है। सदस्य, जो विनम्र स्वभाव से भाइयों और बहनों की सेवा करते हैं और प्रेम से उनकी देखभाल करते हैं, वे परमेश्वर से अधिक आशीष पा सकते हैं। इसलिए, हमें स्वर्गीय इनाम और आशीषों को देखते हुए भाइयों और बहनों की सेवा करनी चाहिए।

परमेश्वर ने सेवा करने का नमूना दिखाया और हमें एक दूसरे की सेवा करने को कहा। माता की शिक्षाओं में से, बारहवीं शिक्षा सेवा करने के बारे में है: “यहां तक कि परमेश्वर भी अपनी सेवा करवाने के लिए नहीं, परन्तु सेवा करने के लिए इस पृथ्वी पर आए। जब हम अपनी सेवा करवाने की चाह रखे बिना एक दूसरे की सेवा करते हैं, तब परमेश्वर प्रसन्न होंगे।” हमें स्वर्ग में बहुतायत से आशीष और इनाम पाने के लिए इस शिक्षा को याद रखना और अभ्यास में लाना चाहिए।

पुनर्विचार के लिए प्रश्न
क्यों हमें एक दूसरे की सेवा करनी चाहिए?
माता की शिक्षाओं में से बारहवीं शिक्षा क्या है?