प्रेम को पुनर्स्थापित करने का अवसर

सियोल, कोरिया से सिन से ही

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“क्या परमेश्वर नीचे आ रहे हैं?”

जब मैं एक बच्ची थी, तब सूरज की रोशनी को देखकर जो भूरे बादलों से उभरकर सीधे जमीन पर चमकती थी, मैं अपने मन में बात करती थी। भले ही मुझे किसी ने नहीं सिखाया, लेकिन मैं आश्वस्त थी कि परमेश्वर निश्चित रूप से अस्तित्व में हैं। इसलिए जब मैं प्राथमिक विद्यालय में थी, तो मैं एक प्रोटेस्टैंट चर्च जाती थी। विश्वविद्यालय का छात्र बनने के बाद, मैं अपने धार्मिक जीवन में उत्सुक थी; मैं प्रचार करने के लिए सड़क पर गिटार भी बजाती थी।

हालांकि, जैसे–जैसे समय बीतता गया, उपदेश जो मंडराते बादल की तरह थे, बिल्कुल भी दिल को नहीं छूते थे। जब कभी भी मैं चर्च के लिए कुछ करती थी, मैं अन्त में खाली महसूस करती थी। जब मैंने चर्च के सदस्यों के लौकिक जीवन को देखा, और जब यह देखा कि चर्च कितना गलत कर रहा है, तब मैंने चर्च जाना बंद कर दिया। मैंने चर्च न जाने का निर्णय किया और सिर्फ दिल में परमेश्वर पर विश्वास रखा।

अपने पहले बच्चे को जन्म देने के करीब एक महीने बाद, एक बच्चे की माता जो ऊपर की मंजिल पर रहती थी, हमेशा यह कहते हुए मेरे लिए भोजन तैयार करती थी कि, बच्चे की देखभाल करते समय भोजन तैयार करना आसान नहीं है। उस समय, मुझे ठीक से प्रसवोत्तर देखभाल नहीं मिल सकी क्योंकि मेरी मां बहुत व्यस्त थी। इसलिए मैं बहुत प्रेरित हो गई। व्यक्तिगत रूप से, मुझे किसी को जरा सी भी तकलीफ देना पसंद नहीं था, लेकिन मुझे उसके साथ सहज महसूस हुआ। इसे ध्यान में रखे बिना कि उसे परेशानी होगी, मैं अक्सर उसके घर जाती थी जैसे मैं अपने ही घर जाती थी और उससे बातें करती थी।

उस समय, मैंने उससे पहली बार सब्त का दिन और फसह का पर्व जैसे बाइबल के वचनों को सुना। बाइबल की भविष्यवाणियां जैसे लिखी गई थीं वैसे ही पूरी हुईं, यह अद्भुत और दिलचस्प था। चर्च ऑफ गॉड जिसे मैंने उसके द्वारा जाना, दूसरे चर्चों से अलग था। चर्च के सभी सदस्य देखने में अच्छे लग रहे थे। सबसे बढ़कर, यह देखकर मैं प्रसन्न हुई कि वे सिर्फ बाइबल के वचनों का पालन करते हैं। खुशी से, मैंने नए जीवन की आशीष को ग्रहण किया, और परमेश्वर की व्यवस्थाओं का पालन करते हुए, दिन प्रतिदिन धीरे धीरे मुझे परमेश्वर की इच्छा महसूस हुई। अपने मन से पिता और माता परमेश्वर को महसूस करने के लिए मैं खुश थी।

मैं ईमानदारी से आशा करती थी कि मेरा पति भी इस खुशी को महसूस करे। लेकिन, यह केवल मेरी इच्छा थी। मेरा पति पहले से ही मेरे चर्च में जाने से नाराज था, और उसने अपने सहकर्मी से चर्च ऑफ गॉड के बारे में कुछ गलत जानकारी सुनी थी, इसलिए वह गंभीरता से मेरे विश्वास का विरोध करता था। मैं दुखी महसूस करती थी, क्योंकि भले ही वह दयालु और हार्दिक रहता था, लेकिन जब भी मैं उससे चर्च के बारे में बात करती थी, वह पागल हो जाता था।

मेरे और मेरे पति के बीच झगड़े जारी रहते हुए कई साल बीत गए। एक दिन, ऐसी बात घटित हुई कि मेरे पति को किसी चीज के लिए मुझसे क्षमा याचना करना पड़ा। शायद मुझे सांत्वना देने के लिए, उसने कहा कि वह चर्च जाएगा। तब उसने नए जीवन की आशीष प्राप्त की। यह पहले से ही आश्चर्य की बात थी कि मेरा पति जो कुछ वर्षों तक मेरे विश्वास के विरुद्ध था, अपनी ही इच्छा से चर्च आया। और फिर वह परमेश्वर की संतान बन गया! यद्यपि मैंने इसे अपनी आंखों से देखा, मैं विश्वास नहीं कर सकी।

हालांकि, मेरा पति एक साल से ज्यादा समय तक सिय्योन नहीं आता था। जब मैंने उससे आराधना रखने के लिए कहा, उसने आवाज बढ़ाकर कहा, “मैं इतना व्यस्त हूं। मैं कैसे जा सकता हूं?” और उसके बाद जब उसने कुछ निराश करने वाली बात कही, तब मैं अपने गुस्से पर काबू नहीं पा सकी और संकीर्ण मन से खुद से कहा, ‘मैं उसे फिर कभी प्रचार नहीं करूंगी!’

मैं जानती थी कि मुझे माता के मन के साथ प्रचार करना चाहिए, लेकिन केवल मेरे पति के लिए यह शिक्षा कार्य में लाना मुश्किल था। अगर यह दूसरे सदस्य के लिए होता, तो मैं अपने मन को शांत करती। लेकिन मैं अकारण ही अपने पति को घमंड से बात करती थी। यह इसलिए था कि जबसे हमने डेटिंग शुरू की, मुझे उसके प्रति एक निश्चित विचार था कि उसे मेरी देखभाल करनी है और मुझ से प्यार करना है। इसके अलावा, मैं इस विचार से अधिक निराश थी कि मेरा पति मेरी परवाह नहीं करता भले ही मैं गृहकार्यों में अच्छी हूं और किफायती तरीके से बच्चों को बड़ा करती हूं।

जब मैंने महसूस किया कि मैं गलत थी, मैंने उस पर निराश होना बंद किया। ऐसी स्थिति में भी जहां मैं उसे सख्त नजर से जवाब दे सकती थी, मैंने अपने आपको शांत किया और उसके पक्ष में खड़े होकर उसे समझने की कोशिश की। वह परमेश्वर को पूरी तरह से नहीं जानता था; इसलिए उसके लिए परमेश्वर की व्यवस्था का पालन करने से ज्यादा जरूरी कड़ी मेहनत करके परिवार की देखभाल करना था। जो बात मैंने उसे उसके साथ आशीष पाने की इच्छा से कही, वह उसे अधिक कठिन लगी होगी। अगर वह परमेश्वर की आशीष में काम करता, तो वह और भी खुशी से परिवार को समर्थन दे सकता था। मैं पछताई कि मैंने सिर्फ भावावेश में आकर उसके साथ व्यवहार किया, और उसके प्रति खेद महसूस किया।

जैसे मैं ईमानदारी से उसे समझने लगी, वह बदलने लगा। उसने कहा कि वह सिय्योन जाएगा और बाइबल का अध्ययन करेगा। तब तक मुश्किल था, जब तक वह सिय्योन में नहीं आया। हालांकि, जब वह आया और बाइबल का अध्ययन किया, तब वह जब भी सत्य पढ़ता था, आश्चर्यचकित होता था।

मेरा पति बचपन से कैथोलिक चर्च जाया करता था। उसने कहा कि वह कुंवारी मरियम की मूर्ति से डरता था। और जब वह अपने दोस्त के साथ प्रोटेस्टैंट चर्च गया, तब वह क्रूस को देखकर भयभीत हुआ। ‘क्या मैं परमेश्वर की संतान नहीं हूं? क्यों परमेश्वर के ये प्रतीक मुझे डराते हैं?’ जैसे इन चीजों के कारण उसे असुखद लगने लगा, वह फिर कभी चर्च नहीं जा सका। जब उसने सीखा कि क्रूस या कुंवारी मरियम की मूर्ति की पूजा करना मूर्तिपूजा है, तब उसे बहुत राहत महसूस हुई, और उसने कहा कि उसे अपने संदेहों का जवाब मिल गया।

जैसे उसे एक एक करके सवालों का जवाब मिला, तो वह और अधिक बार सिय्योन में जाने लगा। मैं आराधना के समय उसके साथ सिय्योन जाने से प्रसन्न होती थी और धन्यवाद देती थी कि उसका विश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। एक दिन, सब्त के दिन की आराधना के बाद, उसने मुझसे माफी भी मांगी, “मुझे माफ कर दो, मैंने अभी तक तुम्हें गलत समझा।” मेरे सारे दर्द और घाव जो उस समय तक थे, बर्फ के पिघलने की तरह गायब हुए।

एक बार उसे माता परमेश्वर के सत्य को समझने में मुश्किल था, पर वह थोड़े समय के लिए था। वह स्पष्ट रूप से सत्य समझने के लिए बाइबल और सत्य की पुस्तकों के साथ सुबह तक संघर्ष करता था। उसके तीसरे दिन, उसने आंखों में आत्मविश्वास के साथ कहा,

“स्वर्गीय माता सच्ची परमेश्वर हैं!”

उसके बाद, मेरा पति यह कहते हुए सक्रिय रूप से सिय्योन के हर कार्य में भाग लेता था, कि वह माता से क्षमा मांगते हुए जीवन जीएगा जैसे कि पतरस ने यीशु को तीन बार नकारने के बाद पश्चाताप का जीवन जिया। उसने गायक दल में भाग लिया, और आत्माओं को बचाने के लिए महान कार्य किया।

पहले, वह अपने माता–पिता के पास गया। मेरी सास 40 वर्ष से कैथोलिक ईसाई थी। मैंने कभी उन्हें प्रचार करने के बारे में नहीं सोचा, लेकिन मेरा पति उनके पास जाया करता था जब भी उसे समय मिलता था और बिना हिचकिचाहट के उन्हें वचन का प्रचार करता था। मैं भी प्रोत्साहित हुई, और उसके साथ सास की अगुवाई करने में पूरा मन लगाया। शुरू में उसने खिन्न होकर रूखापन दिखाया, लेकिन कुछ समय के बाद उसने स्वेच्छा से यह कहते हुए नए जीवन की आशीष प्राप्त की, “अगर आपको यह इतना चाहिए…” यह सचमुच एक सपने जैसा था। उस दिन, मेरे पति ने कहा कि उसने समझा कि पहले क्यों मैंने सिय्योन में उसकी अगुवाई करने की बहुत कोशिश की थी। उसने कहा कि वह अपनी मां को इसलिए प्रचार करता था क्योंकि वह उनसे इतना प्रेम करता था कि वह उन्हें सबसे उत्तम वस्तु देना चाहता था।

इन शब्दों को सुनने के बाद, मेरे मन में एक व्यक्ति याद आया: वह मेरे पिता थे। भले ही मेरे पति ने पूरे मन और आत्मा से अपनी मां को प्रचार किया, लेकिन अपने पिता के साथ मैंने ऐसा नहीं किया। वह इसलिए था क्योंकि मैं उनके प्रति खेद महसूस करने के बजाय, नाराजगी महसूस करती थी, जिन्होंने मेरी माता को जब वह जवान थी, बहुत कठिन समय दिया था। शायद मैं उस समय मन में उन्हें दोषी समझती थी। ऐसे मन के साथ प्रचार करने के कारण, जब मैंने उन्हें प्रचार किया, तब उन्होंने कठोरता से सत्य से इन्कार किया, जबकि मेरी माता और बहनों ने ईमानदारी से उसे ग्रहण किया।

दो बच्चों को बड़ा करते हुए, मैंने महसूस किया कि घर के मुखिया के रूप में मेरे पिता ने कितनी परेशानी और अकेला महसूस किया होगा। यह उस समय था जब उन्होंने अपना स्वास्थ्य खोया था। आखिर जब मैंने उन्हें समझा, मैं चुप नहीं रह सकी। मैंने प्रार्थना की कि देर होने से पहले मेरे पिता अनन्त जीवन की प्रतिज्ञा को प्राप्त करें, और मैं उन्हें देखने गई।

“पिता, आइए हम स्वर्ग साथ चलें।”

ये वो शब्द थे जो मैंने एक शब्द भी न बदलते हुए कई वर्षाें से उनसे कहे थे। हालांकि, मैं कभी उस दिन की तरह शोकाकुल नहीं थी।

जब शब्द “ठीक है” उनके मुंह से निकला, मैं जोर से रोने लगी। सब कुछ हो सकता था अगर मैं पेपर का पन्ना पलटने की तरह अपना मन बदलती। मुझे अपने मन से सब नफरत और नाराजगी को दूर करके सिर्फ उनसे प्रेम करने की जरूरत थी। क्यों मैंने इस चीज को लंबे समय से असंभव समझा? उस दिन जब मेरे पिता ने नया जीवन पाया, मेरे पिता बच्चे की तरह मुस्कुराए, और मैं रोई क्योंकि मैं बहुत धन्यवादी थी।

परिवार वालों की सिय्योन की ओर अगुवाई होते देखकर, मैं चाहे थोड़ा ही हो, यह समझ सकी कि परमेश्वर किस प्रकार का प्रेम चाहते हैं। मैं संकीर्ण सोच की थी; मैं सोचती थी कि मेरे परिवार के सदस्यों को मेरे स्वभाव को समझना चाहिए क्योंकि वे मेरे परिवार के हैं और वे मुझ से प्रेम करते हैं। मैंने पहले उन्हें समझने और स्वीकार करने की कोशिश नहीं की। मैं सिर्फ परिवार के कर्तव्य पर जोर देती थी; जब वे मेरे मानक तक नहीं पहुंचते थे, मैं निराश महसूस करती थी और परेशान होती थी। प्रेम दूसरों को समझना और दूसरों के बारे में विचार करना है। हालांकि, भले ही मैंने सोचा कि मैं परमेश्वर के वचनों का पालन करती हूं, लेकिन मैंने सबसे बड़ी चीज खो दी।

अभी, मैं समझ सकी कि क्यों परमेश्वर की संतान को प्रचार करना चाहिए। लंबे समय के लिए, मैं परिवार का अर्थ भूल गई थी जो प्रेम के नाम में एक होता है। सुसमाचार प्रेम को पुनस्र्थापित करने की प्रक्रिया है। अगर मैं सुसमाचार का प्रचार न करती, तो अभी भी मैं ऐसा सोचती कि मैं परमेश्वर की इच्छा का पालन सही तरह से कर रही हूं।

भले ही मुझे इसके लिए लंबा समय लगा, मैं खुश हूं क्योंकि अंत में मैंने महसूस किया। मैं स्वर्गीय परिवार के सदस्यों को, जिनकी मुझे खोजकर देखभाल करनी है, प्रेम के साथ परमेश्वर की आवाज देने जा रही हूं। मैं हृदय की गहराई से परमेश्वर को धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने इस संतान को, जिसमें अभी भी बहुत सारी कमियां हैं, सुसमाचार के द्वारा प्रेम करने का मौका दिया है।

जब तक मैं अपने स्वर्गीय घर नहीं जाती, तब तक मैं सुसमाचार को फैलाना चाहती हूं और बिना आराम किए प्रेम देना चाहती हूं। परमेश्वर इस कमजोर संतान से प्रेम करते हैं! मैं भी स्वर्गीय पिता और स्वर्गीय माता, आप से प्रेम करती हूं!