
सुबह से बरसात की आवाज बहुत अच्छी सुनाई देती है। यह मुझे उस समय की याद दिलाती है जब लंबे समय पहले मैं चर्च ऑफ गॉड के सदस्यों से मिली थी। जहां तक मुझे याद है, दुनिया के भविष्य को लेकर जिससे मुझे डर लगता था, मैंने पहले कभी किसी के साथ वैसी ईमानदार बातचीत नहीं की।
मुझे बौद्ध धर्म के मंदिर जाने का शौक था और यही मेरा विश्वास था कि यदि मैं दूसरों को कोई नुकसान न पहुंचाकर अच्छा जीवन जीऊंगी, तो मैं स्वर्गलोक जाऊंगी। बेशक मेरा जीवन तो इतना काफी अच्छा नहीं था कि मेरे हाथ में उस बात की गारंटी थी, फिर भी मैंने विश्वास किया कि मैं अपना बाकी जीवन अच्छा काम करते हुए बिताऊंगी।
समस्या मेरे पृथ्वी पर रहने की अवधि थी। जब भी मैं टीवी समाचार और डॉक्यूमेन्टरी के द्वारा दुनिया भर में हो रही विपत्तियों के बारे में सुनती थी, तो एक अच्छे व्यक्ति के रूप में जीवन जीना यह काफी नहीं लगता था। क्योंकि जब भी मैं टीवी पर अच्छे स्वभाव वाले लोगों को विपत्तियों में फंसते हुए देखती थी, तब मुझे डर लगता था कि किसी एक दिन मैं भी जरूर एक विपत्ति में फंसने से मर सकती हूं।
विपत्तियों से पैदा हुए इस डर ने परमेश्वर के प्रति मेरा भरोसा तोड़ा। मैं नहीं समझ सकी कि भले ही यह संसार उन लोगों से भरा हुआ है जो ऐसा दावा करते हैं कि वे परमेश्वर के लोग हैं, फिर भी क्यों इतनी सारी बुरी घटनाएं और दुर्घटनाएं होती रहती हैं।
उस समय भी जब मैं चर्च ऑफ गॉड के सदस्यों से बात कर रही थी, मैंने अनेक संदेहों से घिरकर उनसे पूछताछ करना शुरू कर दिया कि ऐसा क्यों होता है, वैसा क्यों होता है। लेकिन हमारी बातचीत हमेशा बाइबल की भविष्यवाणियों या उद्धार से संबंधित परमेश्वर के वचनों के साथ समाप्त होती थी।
मैं उनसे और अधिक बार मिली, और कैसे संसार चलता है और हमारी आत्माओं का सिद्धांत क्या है, यह मुझे थोड़ा–थोड़ा समझ में आने लगा और साथ ही सत्य के वचनों में दिलचस्पी होने लगी। मैंने सोचा कि मुझे उन सभी लोगों के लिए जिनसे मैं प्यार करती हूं, बाइबल का अध्ययन करना चाहिए।
सभी माताएं जब तक मातृप्रेम की सहजवृत्ति के विरुद्ध नहीं चलतीं, वे जरूर किसी भी समय और कहीं पर भी अपनी संतानों की रक्षा करना चाहती हैं। लेकिन मैं उस स्थिति में अपने बच्चे की रक्षा नहीं कर सकती थी जब वह मेरे साथ नहीं होता या मेरे नियंत्रण से बाहर की घटना घटती।
“यदि आप परमेश्वर की संतान बनें, तो परमेश्वर आपकी करीब से रक्षा करेंगे।”
इसी बात ने मेरे अन्दर लंबे समय से जमी उस अविश्वास की बर्फ को पिघला दिया, जिससे मैं उलझन में भटकती थी। मैंने अपने बेटे के साथ नया जीवन प्राप्त किया।
मैंने सोचा कि मैं अपनी धर्म से जुड़ी चिंताओं से पार पाई हूं। लेकिन मैं गलत थी। मेरा परिवार यह कहते हुए मेरे विश्वास के विरुद्ध खड़ा हुआ कि एक परिवार में दो धर्म नहीं हो सकते। मैं इतनी साहसी नहीं थी कि मैं उस स्थिति में अपना विश्वास का जीवन शुरू कर सकूं। कुछ महीनों तक भटककर मैंने सोचा,
‘मैं एक वयस्क हूं, और एक भी चीज जो मैंने सुनी थी, गलत नहीं थी!’
मैं बाइबल के द्वारा इसे स्पष्ट करना चाहती थी कि यह धर्म मेरे परिवार को नुकसान पहुंचाएगा या नहीं। दृढ़ संकल्प बनाकर मैं चर्च ऑफ गॉड गई और हर दिन बाइबल का अध्ययन किया।
सत्य का हर एक वचन स्पष्ट और साफ था। अधिक से अधिक सत्य का अध्ययन करते हुए मुझे परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास हुआ। और जब मुझे प्रचार का मिशन महसूस हुआ, तब मैं चुपचाप नहीं बैठ सकती थी।
जब मैं परमेश्वर की व्यवस्था का पालन कर रही थी और परमेश्वर के दिए हुए मिशन को पूरा कर रही थी, तो मेरे परिवार का हठपूर्ण रवैया थोड़ा–थोड़ा नरम हुआ। मेरी बड़ी बहन ने कहा कि जब से मैं चर्च ऑफ गॉड जाने लगी हूं, तब से मैं अधिक शांत दिख रही हूं। मेरी मां भी उसके साथ सहमत हुई और उन्होंने मेरे धर्म को स्वीकार किया। मेरा पति भी परमेश्वर की संतान बन गया।
जितनी अधिक आशीषें मैंने परमेश्वर से पाईं, उतनी अधिक मैं आत्मिक आशीषों के लिए उत्सुक बनी। उस बीच एक सदस्य ने जिसने लंबे समय तक विदेश में प्रचार किया था, मुझसे जो कहा था, वह मेरे कानों में रह–रहकर गूंजने लगा।
“विदेश में सच में सेवकों की कमी है। वहां रहना एक बड़ी मदद हो सकती है।”
मेरा हृदय जलने लगा। मैं उस जगह में जहां सेवकों की जरूरत थी, बहुत सारी आशीषें पाने के लिए अधिक उत्सुक हुई, इसलिए मैंने हर दिन परमेश्वर से विदेशी मिशन का द्वार खोलने के लिए प्रार्थना की। आखिरकार, परमेश्वर ने हमें ब्राजील में प्रचार करने की आशीष दी।
हम जी भर के परमेश्वर की बड़ाई करने का निश्चय करके ब्राजील गए। लेकिन वास्तविकता वैसी नहीं थी जैसा मैंने सोचा था। चूंकि ब्राजील की संस्कृति और जीवन शैली कोरिया से पूरी तरह अलग थी, कभी–कभी मुझे सब कुछ सिर्फ अपरिचित नहीं, बल्कि भयावह भी लगा। भाषा भी बेहद कठिन थी। वह मेरे लिए इतनी कठिन थी कि मैंने भाषा की रुकावट के सामने कई दिनों तक आंसू भी बहाए।
लेकिन समय जो मुश्किल से बिताया गया था, बिल्कुल व्यर्थ नहीं गया। स्वर्गीय परिवार के सदस्यों को एक–एक करके ढूंढ़ा गया और एक नया मंदिर प्रदान किया गया।
मंदिर का निर्माण शुरू हुआ, और हर एक दिन इतनी व्यस्त थी कि श्वास लेने तक की फुर्सत नहीं मिली। पुरुष वयस्क सदस्यों ने लंबे समय तक गर्मी से लड़कर निर्माण में भाग लिया, और पर्याप्त उपकरण न होने के कारण स्त्री वयस्क सदस्यों ने भी हथौड़ों से कंक्रीट की दीवारों को तोड़ा। ऐसी मुसीबत–भरी स्थिति में सभी सदस्यों ने बहुत कड़ी मेहनत की।
जब मेरी आशीषों का ढेर लग रहा था, तब मैंने परीक्षा का सामना किया। चूंकि निर्माण कार्य के पूरा होने में देरी हो रही थी, मैं शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से थक गई। एक दिन जब मैं सुबह उठी, तो अपने कमरे के बाहर एक कदम भी रखने का मन नहीं हुआ। मैं एयरकंडिशनर चालू करके और कमरे में बैठकर ठंडा तरबूज और ठंडा नूडल्स खाने की कल्पना कर बैठी।
मेरा सारा दिमाग आराम करने के बहाने ढूंढ़ने में लग गया। तब अचानक मेरे दिमाग में एक विचार कौंध गया।
‘अह, पिता और माता!’
स्वर्गीय पिता और माता ने एक दिन भी न छोड़कर इतना कष्ट भरा समय बिताया था, जिसकी मेरे कष्ट से तुलना नहीं की जा सकती। लेकिन फिर भी उन्होंने यह जाहिर नहीं होने दिया था कि उन्हें कितनी तकलीफ होती है, और फिर वे सुसमाचार के मार्ग पर चले थे।
हमें उद्धार देने के लिए पिता ने अपना बलिदान देने का इरादा किया था और आराम करने का समय नहीं लिया था और कठिन परिश्रम किया था, और माता अब भी बलिदान भरा जीवन जी रही हैं। वे सच में प्रेम की वास्तविकता हैं जिसकी हम मनुष्य नकल भी नहीं कर सकते। मेरी आंखों में से अपने आप आंसू बहने लगे। मेरे तकिए का कवर बहते आंसुओं से गीला हो गया।
जो सुसमाचार के दर्द भरे मार्ग पर चले थे, उन स्वर्गीय पिता और माता के बारे में सोचकर मुझमें नई ऊर्जा आ गई। मैंने अपने मन को शांत किया और एकदम से बिस्तर से उठ खड़ी हुई। उस दिन के बाद मैंने अपने हृदय के साथ अपने भाई–बहनों के साथ निर्माण कार्य पूरा किया, और सब सदस्यों ने पूरे जोश के साथ सुसमाचार के लिए मार्च करना शुरू किया।
जैसे ही मुझे परमेश्वर का प्रेम महसूस हुआ, सुसमाचार का कार्य पहले से कुछ अलग नजर आया। सिय्योन में लौट आई आत्माओं ने तेजी से स्वर्गीय पिता और माता के प्रेम को महसूस किया। हाल ही में मैंने एक बहन से पूछा,
“बहन, आपने कब और कैसे स्वर्गीय पिता और माता को महसूस किया?”
तब बहन ने जवाब दिया।
“मैंने एक बार आपको मेरे लिए रोते हुए देखा और मैंने इस पर ध्यान से विचार किया। मैंने सोचा, ‘वह क्यों मेरे लिए रो रही है? अब तक मेरे लिए कोई नहीं रोया।’ उस समय मैंने थोड़ा सा माता का प्रेम महसूस किया।”
आज बहन परमेश्वर की सुंदर संतान बन गई जो पूरी तरह से माता के प्रेम को समझती है।
दूसरी बहन ने स्वर्गीय पिता के प्रति ललक के साथ स्वर्ग की आशा को अपने मन में संजोए रखा। सत्य को ग्रहण करने के थोड़े समय बाद, उसने सीखा कि यीशु दूसरी बार आए थे और वह भविष्यवाणी के अनुसार स्वर्ग जा चुके हैं, तब यह सुनकर वह फूट–फूटकर रो पड़ी। उसने कहा, “यह कब हुआ? मैं उन्हें देख नहीं सकी।” वह काफी समय तक एक शब्द भी कहे बिना रोई। शोक से ऊपर उठकर उसने पिता के बलिदान के बारे में सोचते हुए अधिक गहराई से परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करना जारी रखा।
मुझे ब्राजील में आए कुछ वर्ष हुए हैं, और आजकल मैं युवा सदस्यों से बहुत प्रेरित हो जाती हूं। परमेश्वर की दी हुई विभिन्न प्रतिभाओं से वे कैंपस में या सिय्योन में बाइबल सेमिनार आयोजित करते हैं और परिवारों के लिए पार्टी का आयोजन और साथ ही नर्सिंग होम का दौरा करते हैं। वे हर महीने चार से पांच कार्यक्रम आयोजित करते हैं। यह सच में मुझे भजन संहिता के इस वचन को महसूस करने देता है कि परमेश्वर के जवान लोग भोर के गर्भ से जन्मी ओस के समान स्वेच्छाबलि बनेंगे। स्वर्ग के राज्य में बलपूर्वक प्रवेश करने का यत्न कर रहे युवा सदस्यों से मैं सुसमाचार के लिए ना बुझने वाले जोश को सीखती हूं।
भले ही मुझमें स्वर्ग जाने की आशा भरी हुई थी, लेकिन मैं स्वर्गदूत की तरह नहीं थी। ब्राजील में रहते हुए मुझे बहुत सी शिक्षाएं मिलीं। उनमें से जो मैंने प्रचार के द्वारा महसूस किया है, वह परमेश्वर की ओर से एक बहुमूल्य उपहार है जिसे किसी भी वस्तु में बदला नहीं जा सकता।
मेरे लिए सुसमाचार का प्रचार करना एकतरफा प्यार करने जैसा था। चूंकि प्रचार सुनने वाले नहीं जानते थे कि मेरे हृदय में क्या है, इसलिए वे मेरी तरफ नहीं मुस्कुराते थे या फिर मेरे साथ कभी उदासीन और कभी कठोर तरीके से व्यवहार करते थे। उनसे मुझे दुख हुआ और मैंने चुपके से बहुत आंसू भी बहाए। लेकिन मैं हार मानकर उन्हें नहीं छोड़ सकती थी, क्योंकि मैं उनसे प्रेम करती थी।
प्रेम जो मेरे पास है, वह परमेश्वर से है। वह स्वर्गीय पिता और माता का प्रेम है; वे मुझसे गहरा प्रेम करते हैं, और जब तक मुझे उस प्रेम की पहचान न हो जाए, तब तक वे मेरा धीरज से इंतजार करते हैं।
शायद आगे भी चाहे मुझे लंबे समय तक लोगों से एकतरफा प्रेम करना पड़े और चाहे वे मेरे दिल को दुखाएं, फिर भी मैं यह काम नहीं रोकूंगी। मैं इस मार्ग पर बलपूर्वक दौड़ती रहूंगी, ताकि परमेश्वर का शुद्ध और पवित्र प्रेम जिसे संसार नहीं दे सकता, सभी 7 अरब लोगों तक पहुंच सके।