आपके वचन के अनुसार

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जैसे परमेश्वर ने कहा, “तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखना”, सिय्योन के सदस्य सब्त का दिन मनाते हैं। और जैसे परमेश्वर ने कहा, “आराधना के समय, स्त्री ओढ़नी से अपना सिर ढांके”, स्त्री सदस्य ओढ़नी ओढ़ती हैं। इस तरह, परमेश्वर के वचन के अनुसार किए जाते सभी कर्म ही, परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता है।

एक सच्चा मसीही जीवन जीने वाला वही है जो हर एक काम परमेश्वर के द्वारा दिए वचन के अनुसार करता है। परमेश्वर ने इसलिए यह कहा है कि बाइबल के वचन में कुछ न बढ़ाओ और उनमें से कुछ न निकालो, क्योंकि बाइबल में उद्धार पाने के लिए सारी सामग्रियां हैं।

आइए हम यह मन में ज़्यादा गहराई से लगाएं कि यदि हम उसी मार्ग पर चलेंगे, जो परमेश्वर ने बताया है, तब हम आखिर में अनन्त जीवन, उद्धार, स्वर्ग और वह परमेश्वर देखेंगे, जो हमारा हार्दिक स्वागत करता है। इस पाठ के द्वारा आइए हम परमेश्वर के वचन के अनुसार आज्ञाकारी होने वालों की आशीषों के बारे में सोचने का समय लें।

वह बीज जो राजा ने दिया

पुराने समय एक देश में एक चतुर राजा राज्य करता था। राजा यह जानना चाहता था कि उसकी प्रजाओं का चरित्र नैतिकता के तौर पर कितना खरा होता है, और वे कितनी अच्छी तरह से राजा की आज्ञा का पालन करती हैं। एक दिन राजा ने प्रजाओं के प्रत्येक घर में एक–एक बीज दिया, और कहा कि अगले साल इसी समय जो इस बीज से सबसे खूबसूरत फूल खिलाएगा, उसे बड़ा इनाम दिया जाएगा।

एक साल बीत गया, और राजा ने अपनी प्रजाओं को निर्देश दिया कि वह फूल ले आएं जो उन्होंने उपजाया था। प्रजाएं लाल, पीला, आदि जैसे भिन्न रंग के खिले हुए फूलों के गमलों के साथ रास्ते पर निकलीं, और वे राजा के जुलूस के सामने अपने फूल का दिखावा करने के लिए लड़ रहे थे। सभी लोग गर्व कर रहे थे कि उनके ईमानदारी से देखभाल करने से बढ़िया–बढ़िया फूल खिले हैं। जब राजा उनकी मेहनत की प्रशंसा करते हुए जा रहा था, उसने एक लड़के को खाली हाथ रहकर फूट–फूट कर रोते पाया। राजा ने उस लड़के को पूछा, “तुम क्यों रो रहे हो?”, लड़के ने उत्तर दिया, “मैं बहुत बार मेहनत करके इसकी देखभाल करता था, पर अजीब तरह से केवल मेरे बीज से अंकुर न निकला और फूल भी न खिला, मुझे इसे देखकर लगा कि मैं इस देश में सबसे बेवकूफ हूं”

जब राजा ने यह सुना, उसने उस लड़के का सिर सहलाया और बोला, “वह व्यक्ति जिसे मैं ढूंढ़ता था, यह लड़का है।” वास्तव में राजा ने प्रजाओं को जितने भी बीज दिए, सभी पानी में उबाले हुए और पहले से ही मरे हुए बीज थे। बीज तो बाहर से ठीक–ठीक दिखाई देता था, लेकिन उसमें से फूल खिलने की कोई संभावना ही नहीं रह गई थी। राजा उस प्रजा को ढूंढ़ना चाहता था जो राजा के निर्देश पर आज्ञाकारी रहती थी और जो ईमानदारी से पालन करती थी, चाहे राजा उसे न देखता हो। ईमानदार प्रजा सिर्फ़ एक ही थी, पर इससे राजा को बहुत ही खुशी और सन्तोष हुआ। राजा ने उस लड़के को बड़ा इनाम दिया।

हम भी परमेश्वर के वचन का पालन कर रहे हैं। इस कहानी में लड़के के समान, हमें जैसा परमेश्वर ने कहा, वैसा ही पालन करना चाहिए। राजा ने बीज दिया, और प्रजाओं ने तरह–तरह की देखभाल से बीज उगाने की कोशिश की, लेकिन बीज नहीं उगा। इस पर उन्होंने भ्रष्ट विचार किया कि किसी अन्य बीज को लगाए। ऐसे विचार से सत्य बदल जाता है और अनन्त जीवन की ओर जाने का द्वार बन्द किया जाता है। मसीहियों के लिए परमेश्वर के वचन के अनुसार करने का ईमानदार मन बहुत आवश्यक है। राजा ने ईमानदार प्रजा को ढूंढ़ने की इच्छा से, जानबूझकर उबले हुए बीज को प्रत्येक घर में दिया।

जब लोगों ने राजा की खुशामद करने के लिए ग़लत तरीक़े से फूल खिलाया, तब राजा को पता चला कि वे राजा के वचन पर सच्चे मन से आज्ञाकरी नहीं रहते। लड़का तो उसी तरह कर सका होता जैसे अन्य लोगों ने अन्य बीज लगाया था। वह अपने गमले में फूल न खिलते देखकर कितना निराश और उदास हुआ होगा, जबकि दूसरे सभी लोगों के गमले में तरह–तरह के फूल खिलते थे। फिर भी उसने उनकी तरह अन्य बीज नहीं ढूंढ़ा और राजा के वचन के अनुसार केवल उस बीज की, जिसे राजा ने दिया, देखभाल की। ऐसे ईमानदार मन वाले को राजा ढूंढ़ता था।

हम क्यों बाइबल के वचन के अनुसार चलते हैं? क्योंकि परमेश्वर ने हमें ऐसा करने को कहा है। परमेश्वर हमारी बुद्धि या कौशल देखना नहीं चाहता। क्योंकि परमेश्वर सारी सामथ्र्य और सारा ज्ञान रखता है और वह हमारी चीज़ से कोई काम नहीं लेता। परमेश्वर केवल उसी व्यक्ति को ढूंढ़ता है जो ईमानदारी एंव सच्चे दिल से उसकी इच्छा पर आज्ञाकारी रहता है। ऐसा व्यक्ति ही स्वर्ग जाने के लायक है।

मसीह जो परमेश्वर के वचन पर सम्पूर्ण रूप से आज्ञाकारी रहा

यीशु ने दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी, जिससे वह सिद्ध बना। स्वर्ग के सिद्ध मनुष्य बनने के लिए, जो सद्गुण हमें अवश्य ही सीखना है, वह आज्ञाकारिता है।

“पुत्र होने पर भी उसने दुख सह सह कर आज्ञा पालन करना सीखा। वह सिद्ध ठहराया जाकर उन सब के लिए जो उसकी आज्ञा पालन करते हैं अनन्त उद्धार का स्रोत बन गया, और परमेश्वर की ओर से मलिकिसिदक की रीति पर महायाजक नियुक्त किया गया।” इब्र 5:8–10

आज्ञाकारिता के बिना, सिद्धता प्राप्त नहीं है। यीशु इतना आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु भी सह ली, इससे वह सिद्ध हो सका। यीशु की ऐसी सम्पूर्ण आज्ञाकारिता से यह परिणाम निकला कि जो यीशु के आज्ञाकारी होते थे, वे परमेश्वर की इच्छा पर चल सकते थे। इस तरह, यदि हम परमेश्वर की इच्छा के आज्ञाकारी होंगे और उसकी इच्छा को दूसरों को सुनाएंगे, तब वे जो हमसे सुनेंगे, परमेश्वर की इच्छा पर पूरी तरह से चल सकेंगे और उद्धार पाएंगे। बाइबल कहती है कि मसीह आज्ञाकारिता से अनन्त उद्धार का स्रोत बन गया। उद्धार की शर्त आज्ञाकारिता है।

“अपने में वही स्वभाव रखो जो मसीह यीशु में था, जिसने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी परमेश्वर के समान होने को अपने अधिकार में रखने की वस्तु न समझा। उसने अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया कि दास का स्वरूप धारण कर मनुष्य की समानता में हो गया। इस प्रकार मनुष्य के रूप में प्रकट होकर स्वयं को दीन किया और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु वरन् क्रूस की मृत्यु भी सह ली। इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान् भी किया और उसको वह नाम प्रदान किया जो सब नामों में श्रेष्ठ है, कि यीशु के नाम पर प्रत्येक घुटना टिके … और परमेश्वर पिता की महिमा के लिए प्रत्येक जीभ अंगीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु है। … जिस प्रकार तुम सदैव आज्ञा पालन करते आए हो … मेरी अनुपस्थिति में डरते और कांपते हुए अपने उद्धार का काम पूरा करते जाओ।” फिलि 2:5–12

जैसे कि प्रजाओं ने राजा के द्वारा दिए गए बीज से नहीं, पर किसी अन्य बीज से बहुत ही सुन्दर फूल खिलाया, फिर भी उन्हें इनाम नहीं मिला, उसी तरह से यदि हम परमेश्वर के वचन के आज्ञाकारी न बनें और परमेश्वर के वचन से अपने कौशल या योग्यता को ज़्यादा बेहतरीन मानते हुए काम करें, तो हम कभी इनाम नहीं पा सकेंगे, चाहे हमने सफल काम किया हो। हमें उस लड़के की तरह बनना है, जो अपने गमले में पहले के उबले बीज को रखता था। परमेश्वर अपने वचन को ध्यान में रखते हुए पालन करने वाले को ढूंढ़ रहा है। परमेश्वर मसीह के जैसे पूरी तरह से आज्ञापालन करने वालों को अति महान करेगा।

यदि किसी सदस्य को अब तक विश्वास नहीं हो, और वह परीक्षा में बहुत बार पड़ता हो, और परमेश्वर के काम करने में काफी आलसी हो, तो उसे पहले सोचना चाहिए कि क्या वह परमेश्वर की इच्छा पर आज्ञाकारी है या नहीं। जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर अच्छी तरह आज्ञाकारी होता है, उसके साथ कभी ऐसा नहीं होता, जैसे वह परीक्षा में पड़ता है या तेज़ विश्वास नहीं ले सकता। जब आपको धीरे–धीरे सांसारिक मन आए और परमेश्वर के अनन्त राज्य जाने की आशा न हो, तब यह जानिए कि आपके मन में एक तरफ़ आज्ञा न मानने की सोच है। हम तो डरते और कांपते मन से आज्ञापालन करने के द्वारा अपने उद्धार को पूरा करेंगे।

सर्वोच्च परमेश्वर ने शरीर की पोशाक पहन कर आज्ञापालन करने का उदाहरण दिखाया। वह यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु भी सह ली, जिसके द्वारा उसने उद्धार पूरा करने का उदाहरण हमें पहले दिखाया। मैं उत्सुकता से निवेदन करता हूं कि आप भी अपने मसीही जीवन में इस तरह आज्ञाकारी रहे।

“तेरे कहने से मैं जाल डालूंगा।”

जो यीशु ने 2 हज़ार वर्ष पहले इस धरती पर आकर किए, उन कर्मों को देखते हुए, आइए हम जांच करें कि आज हमें क्या करना चाहिए।

“ … वह(यीशु) उनमें से एक नाव पर चढ़ गया जो शमौन की थी … जब उसने उपदेश देना समाप्त किया तो शमौन से कहा, “नाव को गहरे पानी में ले चल और मछली पकड़ने के लिए अपने जाल डालो।” शमौन ने उत्तर दिया, “हे स्वामी, हमने सारी रात बड़ा परिश्रम किया पर कुछ भी हाथ न लगाऌ फिर भी तेरे कहने से मैं जाल डालूंगा।” जब उन्होंने ऐसा किया तो बड़ी संख्या में मछलियां घेर लाए और उनके जाल फटने लगे … उन्होंने आकर दोनों नावों को यहां तक भर दिया कि वे डूबने लगीं। पर जब शमौन पतरस ने यह देखा तो वह यीशु के पैरों पर यह कहते हुए गिर पड़ा, “हे प्रभु, मेरे पास से जा क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूं!” क्योंकि इतनी मछलियों को घेर लाने के कारण उसे और उसके साथियों को आश्चर्य हुआ। इसी प्रकार जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना भी जो शमौन के साझीदार थे आश्चर्यचकित हुए। यीशु ने शमौन से कहा, “मत डर। अब से तू मनुष्यों को पकड़ा करेगा।” जब वे अपनी नावों को किनारे पर लाए तो सब कुछ वहीं छोड़कर उसके पीछे चल पड़े।” लूक 5:1–11

पतरस ने शरीर में आए परमेश्वर के वचन को प्रिय माना और इसका पालन किया। अत: उसे अनुग्रहमय परिणाम मिला। यह परमेश्वर का वचन था कि ‘नाव को गहरे पानी में ले चल और मछली पकड़ने के लिए अपने जाल डालो’। उस समय बाइबल में केवल पुराना नियम था। इसलिए यह वचन पुराने नियम में नहीं था, फिर भी जो वचन यीशु ने स्वयं दिया, उस पर पतरस ने भरोसा रखा। उसने वैसा ही किया जैसा यीशु ने कहा। इससे वह बहुत अच्छा परिणाम पा सका।

जरा कल्पना करें कि तब क्या होता जब परमेश्वर शरीर में आया और पतरस को जाल डालने को कहा, लेकिन पतरस ने अपने ज्ञान व अनुभव का दिखावा करके पालन नहीं किया होता। पतरस अनुभवी मछुआ था, और यीशु बढ़ई का काम करता था। शारीरिक तौर पर देखें, तो पतरस यीशु से मछली पकड़ने के काम का ज़्यादा अभ्यस्त था। इसके बावजूद, यीशु ने पतरस को, जो सारी रात मछली न पकड़ पाया था, कहा कि ‘गहरे पानी में जाकर मछली पकड़ने के लिए अपने जाल डाल’। वह उस वचन पर बिल्कुल आज्ञाकारी हुआ था और उसने गहरे पानी में जाकर जाल डाला। तब मछलियों का झुण्ड आ गया। वह इतनी बड़ी संख्या में मछलियां घेर लाया कि उसके जाल फटने लगे।

पिछले दिनों की यह घटना आज हमें क्या शिक्षा देती है? 2 हज़ार वर्ष पहले जो हुआ था, वह आज भी घटेगा। एलोहीम परमेश्वर ने भी शरीर की पोशाक पहनी और वे हमारे साथ हैं। हम कभी–कभी केवल बाइबल के वचन पर भरोसा करते हैं और उनके वचन पर आसानी से ध्यान नहीं देते।

वे हमारे जैसे शरीर पहने हुए हैं। इसी कारण लोगों को ग़लतफ़हमी होती है कि वे असमर्थ हैं। यदि उन्होंने शरीर न पहना होता और आत्मा में, अदृश्य रूप में भयानक व प्रतापी आवाज़ से लोगों को ऐसा कहे कि ‘अपने जाल डाल’, तो हर किसी को लगेगा कि यह परमेश्वर का कार्य है, और उसे सुनेंगे और बिना हिचके ऐसा ही करेंगे, क्योंकि उनकी आवाज़ अत्यन्त रहस्यमय व अद्भुत है। वही सर्व–सामर्थी परमेश्वर शरीर में आकर हमें कहते हैं। परमेश्वर शरीर में हो, या आत्मा में हो, उसकी आवाज़ तो एक ही है – एक परमेश्वर का वचन है।

यदि हम परमेश्वर के वचन पर आज्ञाकारी न रहें, तो हमें कुछ भी न मिलेगा। आज्ञा का उल्लंघन करने का परिणाम है, विश्वास को त्याग देना। पतरस, यूहन्ना, याकूब, आदि लोगों ने जीवन भर अपने अनुभव व कौशल से जितनी मछलियां पकड़ी थीं, उनसे भी बहुत ही ज़्यादा मछलियां वे एक ही बार में पकड़ सके। एक ही बार आज्ञापालन करने के द्वारा उन सभी को ऐसा प्रेरित किया गया कि मसीह का पीछा करने का निश्चय करें।

आज्ञाकारिता बहुमूल्य और सुन्दर गुण है। आज्ञाकारिता के बिना हमारा विश्वास व्यर्थ है। हम इसलिए अच्छी तरह आज्ञाकारी नहीं रहते, क्योंकि हम अपने विचार को परमेश्वर के विचार से आगे रखते हैं। आइए हम इसका कारण यशायाह ग्रंथ से ढूंढ़ें कि हमें क्यों अपने विचार को छोड़कर परमेश्वर के वचन का आज्ञाकारी होना है।

“जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो। दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच–विचार छोड़कर यहोवा की ओर फिरे, और वह उस पर दया करेगा, हां, हमारे परमेश्वर की ओर, क्योंकि वह पूरी रीति से क्षमा करेगा। यहोवा कहता है, “मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं हैं, न ही तुम्हारे मार्ग और मेरे मार्ग एक जैसे हैं। क्योंकि मेरे और तुम्हारे मार्गों में और मेरे और तुम्हारे सोच–विचारों में आकाश और पृथ्वी का अन्तर है … उसी प्रकार मेरे मुंह से निकलनेवाला वचन होगा। वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, वरन् मेरी इच्छा पूरी करेगा और जिस काम के लिए मैंने उसको भेजा है उसे पूरा करके ही लौटेगा।” यश 55:6–11

परमेश्वर हमारे निकट है। परमेश्वर के वचन का आज्ञाकारी न होने के कारण, जो बड़ा अवसर हमें दिया गया है, हमें उसे खोने न देना चाहिए। हम इसलिए आज्ञाकारी नहीं हो पाते क्योंकि हम अपने विचार, अनुभव और बुद्धि पर भरोसा करते हैं।

जब परमेश्वर हमें कोई वचन कहता है, तब हम पतरस के जैसे अपने विचार को त्याग कर और न हिचक कर उसके अनुसार करेंगे। कल्पना करें कि तब क्या होता यदि पतरस ने यीशु के कहते ही जाल न डाला होता, लेकिन कुछ दिनों के बाद गहरे पानी में जाकर जाल डाला होता। क्या वह उतनी ज़्यादा मछलियां पकड़ सकता? उसी समय ही जब यीशु ने वचन कहा था, जाल डालकर मछली पकड़ने का ठीक समय था। परमेश्वर के कोई वचन कहने पर यदि हम उसे करने में हिचक दिखाएं, तो यह आज्ञा–उल्लंघन करने के बराबर है।

जैसा परमेश्वर ने कहा, हमें तुरन्त वैसा ही करना चाहिए। यदि किसी ने उस परमेश्वर के बारे में सत्य महसूस किया है जो शरीर में आया है, लेकिन उस परमेश्वर के वचन पर तुरन्त आज्ञाकारी न रहे, तो वह स्वयं दिखाता है कि वह परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता।

आत्मा का उद्धार आज्ञाकारिता से पूरा होता है

कोई कहता है कि आज्ञाकारिता तो किसी के आधीन दब कर रहने की आदत लोगों में डालती है। मगर ऐसा नहीं है। परमेश्वर ने हमें आज्ञाकारी होने को कहा है। यह हमें अनन्त स्वतंत्रता व उद्धार और आत्मिक भलाई देने के लिए है। परमेश्वर ने हमें बंधन में रखकर नियंत्रित करने के लिए यह नहीं कहा। परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए स्वर्ग में अपनी महिमा को भी छोड़ा। उसने एक असहाय और गरीब पापी का रूप तक धरा। तो कैसे ऐसे प्रेम का परमेश्वर हमसे इस इच्छा से आज्ञाकारिता मांगेगा कि हमें दबाकर अपने अधीन करे?

आत्मिक रूप में मनुष्य अंधा है। क्योंकि हम नहीं जानते कि दिन भर में क्या होगा। हम तो अपने भविष्य को नहीं जानते। मगर परमेश्वर सब कुछ जानता है। उसने अनन्तकाल से हमें जाना है, और वह अनन्त दुनिया में हमें ले जाने के लिए हर बार वचन कहता है और शिक्षा देता है।

कल्पना करें, खुली आंखों वाला व्यक्ति एक अंधे को मार्ग दिखा रहा है। जब वह अंधे को कहेगा कि नीचे सीढ़ी है, तो हर कदम पर सावधान रहना!, तो अंधे को उसके वचन के अनुसार सावधानी से उतरना चाहिए। लेकिन क्या होगा जब वह इसे चौरस भूमि सोचकर चले? उसे पांव फिसल कर गिरने पर चोट लगेगी। यदि उससे कहेगा कि आगे नाला है, ज़ोर से कूदो!, तो उसे ज़ोर से कूद कर नाले को पार करना चाहिए। इस तरह हम आत्मिक अंधे हैं। हमें तो नहीं पता कि हमारे आगे क्या बाधाएं हैं। केवल परमेश्वर ही अनन्त जीवन व उद्धार की ओर जाने का मार्ग बताता है। जो कोई परमेश्वर का वचन न सुनेगा, वह भी अवश्य ही गिर कर घायल हो जाएगा।

परमेश्वर हमें स्वर्ग, अपने स्वदेश की ओर ले जाता है। इसलिए वह हमें सूचना देता है कि हमारे आगे क्या खतरा है और सिखाता है कि हम इस खतरे से कैसे बचेंगे। कुछ और नहीं बस यही है। हमारी आज़ादी को दबाने के लिए हमसे आज्ञाकारिता मांगता ही नहीं। हम उसके प्रेम के प्रति आभारी होते हुए, परमेश्वर के वचन पर दृढ़ विश्वास करेंगे और आज्ञाकारी रहेंगे, ताकि हम स्वर्ग वापस जा सकें।

“ … अत: जिस प्रकार एक ही अपराध का प्रतिफल सब मनुष्यों के लिए दण्ड की आज्ञा हुआ, उसी प्रकार धार्मिकता के एक ही कार्य का प्रतिफल सब मनुष्यों के लिए धर्मी ठहराया जाना हुआ। जैसे एक मनुष्य के आज्ञा–उल्लंघन से अनेक पापी ठहराए गए, वैसे ही एक मनुष्य की आज्ञाकारिता से अनेक मनुष्य धर्मी ठहराए जाएंगे।” रो 5:17–19

आदम, एक मनुष्य, के आज्ञा न मानने से सभी लोग पाप के बंधन में गुलाम हुए थे, लेकिन यीशु मसीह ने, जो अन्तिम आदम को दर्शाता है, मरने तक आज्ञा मानने से ऐसा मार्ग खोल दिया कि बहुत से लोग धर्मी होकर उद्धार पा सकें। इस तरह हर एक मनुष्य की आज्ञाकारिता संसार में बहुत से लोगों को बचाने का कारक बन सकती है। एक तरफ़ एक व्यक्ति की आज्ञाकारिता से बहुत से लोग बचाए जा सकते हैं, तो दूसरी तरफ़ एक व्यक्ति के आज्ञा–उल्लंघन से बहुत से लोग घायल हो सकते हैं। आप किस तरफ़ लोगों को ले जाएंगे?

हमें सोचना चाहिए कि हम प्रत्येक व्यक्ति विश्वास के कितने महत्वपूर्ण बीज है। हम सभी को आज्ञाकारिता से परमेश्वर के मार्ग पर चलना चाहिए। एक व्यक्ति के आज्ञा–उल्लंघन से वैसा परिणाम आएगा जैसा आदम के आज्ञा–उल्लंघन से आया, तो एक व्यक्ति की आज्ञाकारिता से वैसा परिणाम आएगा जैसा यीशु मसीह की आज्ञाकारिता से आया।

जब परमेश्वर शरीर पहनकर इस धरती पर आया, बहुत से लोग आज्ञाकारी होने से बहुत सी आशीषें पाते थे, जैसे कि अंधे ने उसके वचन का अच्छी तरह पालन करने से आंखें खोलीं। एलोहीम परमेश्वर, जो पवित्र आत्मा और दुल्हिन के रूप में आए हैं, जो भी कहते हैं, वे सब उद्धार के मार्ग हैं। जो भी वचन परमेश्वर हमारे साथ होते हुए कहते हैं, उस पर हम हर समय आज्ञाकारी होंगे, और परमेश्वर के संग चलेंगे।

परमेश्वर का वचन किसी पूर्व–धारणा से भी ऊंचा है

कल्पना करें कि परमेश्वर ने हमसे कहे कि ‘अब से चौथे दिन को पवित्र मानने के लिए याद करो’, तो परमेश्वर के सच्चे लोगों को अब तक सातवें दिन को मानने की आदत है, फिर भी हठी रहने के बजाय, अवश्य ही परमेश्वर के इस वचन का पालन करना है, सोचिए कि क्या चौथे दिन को पवित्र मानना नहीं चाहिए?

प्रेरित पतरस ने तो अच्छी तरह आज्ञापालन करने से आशीष पाई, लेकिन ऐसे पतरस ने भी थोड़ी देर ग़लतफ़हमी में होकर अपने विचार से हठ किया। मगर उसने परमेश्वर से अपनी ग़लती को सुधार लिया और परमेश्वर की इच्छा को महसूस किया।

“ … पतरस … वह बेसुध हो गया। और उसने देखा कि आकाश खुल गया है और बड़ी चादर जैसी कोई वस्तु चारों कोनों से लटकती हुई भूमि पर उतर रही है, जिसमें सब प्रकार के चौपाए और पृथ्वी के रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्षी थे। उसे एक आवाज़ सुनाई दी, “पतरस उठ! मार और खा!” परन्तु पतरस ने कहा, “नहीं प्रभु, कदापि नहीं, क्योंकि मैंने कभी कोई अपवित्र और अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है।” फिर दूसरी बार उसे एक आवाज़ सुनाई दी, “जिसे परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अपवित्र मत कह।” तीन बार ऐसा ही हुआ, तब वह वस्तु तुरन्त आकाश में उठा ली गई।” प्रे 10:9–16

पुराने नियम के समय में शुद्ध पशु और अशुद्ध पशु में फ़र्क. था, और केवल शुद्ध पशु का मांस खाने का नियम था।(लैव अध्याय 11) उस समय पतरस को अशुद्ध पशु का मांस खाने की आदत बिल्कुल नहीं थी। लेकिन परमेश्वर ने उससे कहा कि अब से अशुद्ध पशु का मांस खाओ। उसे कई दस वर्षों से बनी अपनी आदत को बदलना पड़ा।

इस पर पतरस ने कहा कि ‘मैं कभी अशुद्ध वस्तु नहीं खा सकता हूं’, और अपने विचार से हठ किया। परमेश्वर ने भले ही कहा कि ‘मैंने इसे शुद्ध ठहराया है, तो तुम खा सकोगे’, फिर भी पतरस केवल उस वचन पर हठी रहा जो पिछले दिनों में परमेश्वर ने कहा था। वास्तव में परमेश्वर ने पतरस को अशुद्ध व शुद्ध पशु के द्वारा यह शिक्षा दी थी, कि उसे सुसमाचार सिर्फ़ यहूदियों को नहीं, पर गै.रयहूदियों को भी सुनाना चाहिए। क्योंकि शुद्ध पशु यहूदियों को संकेत करते थे, और अशुद्ध पशु ग़ैरयहूदियों को संकेत करते थे। जैसे अशुद्ध पशु पवित्र हो गए, वैसे ही ग़ैरयहूदी भी पवित्र हो गए, इसलिए ग़ैरयहूदी भी जीवन के सुसमाचार को सुनने का अवसर पा सके।

जब हम ऊपर के वचन को देखते हैं, तो हमें महसूस होता है कि हमें परमेश्वर के सामने अपने विचार का दावा करने के बजाय, आज्ञाकारी होकर परमेश्वर की इच्छा का पालन करना जरूरी है। जिसने शुद्ध पशु और अशुद्ध पशु के बीच फ़र्क. किया, वह परमेश्वर था। और जिसने शुद्ध पशु और अशुद्ध पशु के बीच फ़र्क. मिटा दिया, वह भी परमेश्वर था। व्यवस्था देने वाला तो परमेश्वर था। कल्पना करें कि उस समय परमेश्वर ने हमें भी व्यवस्था दी होती कि अब से अशुद्ध पशु खाओ। क्या हमें इसका पालन करना नहीं चाहिए? व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने के लिए हमारी शिक्षक है।(गल 3:24) व्यवस्था बस एक छोटा रास्ता है जिससे हम परमेश्वर को पहचान सकते हैं। जो व्यवस्था से भी ऊंचा है, वह परमेश्वर का वचन है।

चाहे परमेश्वर ने स्वयं वचन कहा था, तो भी पतरस ने अपने विचार का दावा किया था, लेकिन बाद में पतरस ने तुरन्त परमेश्वर की इच्छा को महसूस किया, और वचन पर आज्ञाकारी रहकर कुरनेलियुस को, जो ग़ैरयहूदी था, सुसमाचार सुनाया।(प्रे 10:17–48) उसने सब प्रेरितों के साथ नए नियम में खाने के नियम को निश्चित किया, और लोगों के सामने इस तरह घोषणा की कि मूर्तियों के बलि किए हुओं को, और लहू को, और गला घोंटे हुओं के मांस को छोड़कर सब कुछ खा सकते हैं।(प्रे 15:7–29)

आइए हम इसे याद रखें कि परमेश्वर के और मनुष्य के विचारों में आकाश और पृथ्वी का अन्तर है, और केवल परमेश्वर की इच्छा का पालन करें। यह बहुत साधारण सी बात थी कि गहरे पानी में जाकर जाल डालो। लेकिन पतरस इसे मानकर अनुग्रहमय और अच्छा परिणाम पा सका।

मैं निवेदन करता हूं कि आप सभी आज्ञाकारी मन से पवित्र आत्मा और दुल्हिन, एलोहीम परमेश्वर की, जो हमारे आगे हमारी अगुवाई कर रहे हैं, इच्छा का पालन करें। पिता और माता ने हमें यह आज्ञा दी कि हमें यह सुसमाचार सामरिया में और पृथ्वी के छोर तक सुनाना है और हम उनके गवाह हों। लोग पिता के युग में यहोवा परमेश्वर के, और पुत्र के युग में यीशु मसीह के गवाह हुए थे। मैं आशा करता हूं कि आप इस युग में एलोहीम परमेश्वर की साक्षी देने वाले गवाह बनें और पूरे संसार के लोगों को उद्धार की ओर लाएं। सिय्योन के सदस्यो! आइए हम आज्ञाकारिता से सिद्ध होकर अनन्त स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करें।