अब तुम शुद्ध हो गए हो

2 इतिहास का 29वां अध्याय

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जब हिजकिय्याह आहाज के बाद राजा बना, उसने मन्दिर के द्वार खुलवा दिए और उनकी मरम्मत कराई, और फिर उसने याजकों और लेवियों को मन्दिर के पूर्व की दिशा में खुले आंगन में इकट्ठा किया।

“अब अपने आपको पवित्र करो, और परमेश्वर के मन्दिर को पवित्र करो, और पवित्रस्थान में से मैल निकालो।”

उनके पूर्वजों ने परमेश्वर को छोड़ा था और मन्दिर से मुख मोड़ लिया था। उनके दुष्कर्मों ने परमेश्वर का क्रोध भड़काया, और इससे विपत्तियां यहूदा और यरूशलेम पर आ पड़ीं। इसलिए राजा हिजकिय्याह जल्दीबाजी में मन्दिर को शुद्ध करने लगा।

“मैंने यह निश्चय किया है कि मैं इस्राएल के परमेश्वर से वाचा बांधूं। तब वह हम लोगों पर आगे क्रोधित नहीं होंगे। इसलिए हे मेरे पुत्रो, तुम सुस्त न हो या और अधिक समय नष्ट न करो।”

राजा के इस आदेश के अनुसार याजकों और लेवियों ने पहले महीने के पहले दिन से लेकर सोलहवें दिन तक परमेश्वर के मन्दिर में सभी अशुद्ध चीजों को बाहर निकाला। उसके बाद राजा हिजकिय्याह ने नगर के अधिकारियों को इकट्ठा किया और वह परमेश्वर के मन्दिर को गया, और फिर उसने सारे इस्राएल के लिए होमबलि और पापबलि किए जाने की आदेश दिया।

“यहूदा के लोगो, अब तुम लोग स्वयं को यहोवा को अर्पित कर चुके हो। निकट आओ, बलि और धन्यवाद की भेंट यहोवा के मन्दिर में लाओ।”

राजा का आदेश सुनने के बाद लोग परमेश्वर के लिए भेंट ले आए। बहुत लोग जो अपनी ही इच्छा से देना चाहते थे, अधिक होमबलि लाए। याजकों और लेवियों ने एक दूसरे की सहायता की और एक साथ मिलकर बलि चढ़ाने की तैयारी की। इस प्रकार यहोवा के मन्दिर में सेवा फिर आरम्भ हुई।

हम अपने पापों के कारण परमेश्वर से दूर हो गए हैं। परमेश्वर और हमारे बीच संबंध को फिर से सुधारने के लिए यह सबसे अधिक जरूरी है कि वह मन्दिर जहां परमेश्वर निवास करते हैं, शुद्ध किया जाए। हमने स्वर्ग में पाप किया, तो परमेश्वर के सामने खड़े होने के लिए सबसे पहले जो हमें करना चाहिए, वह अपने आपको शुद्ध करना है, क्योंकि हम परमेश्वर का मन्दिर हैं।

उसके बाद जो हमें करना चाहिए, वह खुशी–खुशी अपनी इच्छा से परमेश्वर के लिए भेंटें लाना है। भेंटें जिनसे परमेश्वर सबसे प्रसन्न होते हैं, वो आत्माएं हैं जो हमारे मुंह से उद्धार का समाचार सुनकर सिय्योन की ओर आती हैं (रो 12:1)। अब हम पर्वों के द्वारा पापों की क्षमा पाकर शुद्ध हो गए हैं, तो आइए हम उस कार्य में सुस्त न रहें।