आज ईसाई धर्म एक सबसे बड़ा धार्मिक समूह है जिसको मानने वालों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है। लेकिन मुझे कहा गया कि प्रथम चर्च के युग में ईसाइयों के ऊपर अत्यंत अत्याचार हुआ था। उन पर क्यों अत्याचार किया गया था? और वे कैसे अत्यंत अत्याचार के बीच अपना विश्वास कायम रख सके थे?

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सबसे पहले हमें जानना चाहिए कि चाहे कोई भी युग हो, क्लेश और यातनाएं हमेशा परमेश्वर के लोगों के ऊपर आते हैं जो स्वर्ग की आशा रखते हुए ईमानदार जिंदगी जीते हैं(रो 8:17)।

2,000 वर्ष पहले निहित स्वार्थ वाले यहूदी धर्म और इस्राएल पर शासन करने वाले रोम जैसी दुनिया की शक्तियों का उपयोग करके शैतान ईसाई चर्च को सताता था जो सत्य का पालन करता था। लेकिन प्रथम चर्च के लोगों ने यीशु के स्वर्गारोहण के बाद पिन्तेकुस्त के दिन उण्डेले गए पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से युक्त होकर साहसपूर्वक सुसमाचार का प्रचार करना शुरू किया। जिस तरह गन्धरस जितना ज्यादा कट जाता है वह उतना ही सुगंध बिखेरता है, उसी तरह जितना अधिक ईसाइयों पर अत्याचार तीव्र होता गया, उतना अधिक सुसमाचार मसीह की सुगंध बिखेरते हुए अन्य देशों तक जल्द ही फैलता गया।

यहूदी धर्म जिसने मसीह को क्रूस पर चढ़ाया, और पिन्तेकुस्त के दिन प्रथम चर्च पर उण्डेला गया पवित्र आत्मा

यहूदी धर्म इस्राएल का एक राष्ट्रीय धर्म था जो यहोवा को एकमात्र सच्चा परमेश्वर मानता था। 2,000 वर्ष पहले यहूदी धर्म का रीति–रिवाज और परंपरा हजार सालों से इस्राएल में अपनी जड़ पकड़ चुका था, और ईसाई धर्म एक नया धर्म था। इतना ही नहीं, लोगों की आंखों में यीशु सिर्फ एक बढ़ई की तरह दिखाई देते थे और ईसाई धर्म जो यीशु को मसीह यानी उद्धारकर्ता मानता था, बहुत बुरा और विधर्मी लगता था।

उन दिनों में धार्मिक नेता यीशु को पकड़कर रोमी राज्यपाल पीलातुस के पास ले गए, और उन्होंने चिल्लाकर कहा, “उसे क्रूस पर चढ़ा दे!” उन्होंने अपने हाथों से मसीह को मार डाला जिनका वे बड़ी उत्सुकता और उम्मीद के साथ इंतजार कर रहे थे।

यीशु की मृत्यु के बाद उनके सभी चेले तितर–बितर हो गए थे, इसलिए यहूदियों ने सोचा कि ईसाई धर्म जल्द ही गिर जाएगा। लेकिन इसके विपरीत एक दिन में तीन हजार लोगों ने यीशु के नाम से बपतिस्मा लिया, और बड़ी संख्या में याजकों ने भी नई वाचा के सत्य का पालन किया। ऐसा परिणाम इसलिए हुआ कि प्रेरितों ने पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होकर साहसपूर्वक सुसमाचार का प्रचार किया।

इस पर आश्चर्यचकित होकर यहूदी धर्म के नेताओं ने प्रेरितों को पकड़कर कोड़े मारे, हवालात में रखा और उन्हें बुलाकर सख्त चेतावनी दी कि यीशु का नाम लेकर कोई चर्चा न करें। स्तिफनुस से शुरू करके बहुत ईसाई शहीद हो गए। लेकिन यहूदियों का अत्याचार अन्य देशों में सुसमाचार तेजी से फैलाने के लिए एक प्रेरक शक्ति बन गया और तब से प्रथम चर्च का इतिहास शुरू हुआ। मगर शैतान ने भी पवित्र आत्मा के कार्य को रोकने के लिए और अधिक उग्रता से अपना कार्य शुरू कर दिया।

रोमन सम्राटों के द्वारा ईसाई धर्म का सताया जाना

रोम एक बहुदेववाद का देश था जो सूर्य देवता को सर्वोच्च देवता मानता था। वह इस्राएल सहित अनेक देशों पर शासन करता था और अपने अधीन लोगों को हर चीज में अपने आदेशों का पालन करने के लिए मजबूर करता था। ईसाई लोग भी रोम देश के आदेशों का पालन करते थे, लेकिन जब भी विश्वास की बात आती, तो वे सम्राट के आदेशों का उल्लंघन करते थे और परमेश्वर की इच्छाओं का पालन करते थे; वे अपनी परिस्थितियों के साथ कभी समझौता नहीं करते थे।

रोमन साम्राज्य में पूरे देश को एकीकृत करने के लिए अनेक देवताओं के साथ–साथ सम्राट की पूजा करने का नियम प्रचलित हुआ, लेकिन ईसाइयों ने इसका विरोध किया। इसलिए ईसाई लोग ऐसी आलोचना से नहीं बच पाए कि वे अपने देश के प्रति वफादार नहीं हैं। बेशक ईसाई धर्म एक तरह से रोमियों की आंखों का कांटा बना, और इसलिए रोमन सम्राटों ने ईसाई धर्म को उत्पीड़ित करने के लिए ईसाइयों को सताना शुरू किया।

सम्राट नीरो(54–68 ईस्वी) जो अत्याचारी महाराजा के रूप में प्रसिद्ध है, निर्दोष ईसाइयों को झूठा आरोप लगाकर मार डालता था और प्रेरितों को मारने में कोई संकोच नहीं करता था। सम्राट दोमितियन(81–96 ईस्वी) जो अपने आपको दोमिनुस एथ देउस(लेटिन भाषा में “हमारे प्रभु और भगवान”) कहते हुए पूरे देश को जबरदस्ती अपनी पूजा करवाता था, ईसाइयों को बहुत ज्यादा सताता था जो उसकी आज्ञा का पालन नहीं करते थे। सैकडों वर्षों तक ईसाइयों का सताया जाना जारी रहता था और ईसाइयों को कोई सभा चलाने या इकट्ठे होने से मना किया जाता था। दिओक्लेथिआनुस(284–305 ईस्वी)के शासनकाल के दौरान यह राजाज्ञा ईसाई धर्म के खिलाफ चार बार घोषित की गई।

1. ईसाइयों के गिरिजाघरों को गिराना और ईसाई धर्म के पवित्रशास्त्रों को जलाना और ईसाई धर्म को अंगीकार करने वाले लोगों से उसका सरकारी पद छीन लेना।
2. चर्च के पादरी और कर्मचारियों को जेल में कैद करना।
3. कैद किए गए ईसाइयों में से जो देवताओं के लिए बलिदान चढ़ाएगा वह मुक्त किया जाएगा, लेकिन वह जो इससे इनकार करेगा उसे घोर यातना दी जाएगी।
4. रोमन साम्राज्य के सभी लोगों को देवताओं के सामने दण्डवत् करने और बलिदान चढ़ाने का आदेश देना।

ईसाइयों में से जिन्होंने इस राजाज्ञा को अस्वीकार किया उन्हें घोर यातना दी गई फिर चाहे वे किसी भी उम्र या लिंग के हों। कोड़े मारे जाने के बाद उन्हें खून के प्यासे जानवरों के बीच में फेंक दिया गया और खूंटी से टांगकर जला दिया गया और उनके हाथ–पैर काटे गए। वे इस तरह बेहद भयानक और क्रूर तरीके से मारे गए। उनके शव अनदेखे पड़े रहे और दफनाने के बजाय आग या नदी में फेंक दिए गए।

रोमन साम्राज्य ने अपने शाही अधिकार से ईसाई धर्म को नष्ट करने की कोशिश की।

झूठी अफवाहें और ईसाइयों का कष्ट

ईसाइयों को रोम के अत्याचार से बचने के लिए कब्रों के तहखाने में इकट्ठा होना पड़ा, लेकिन यह हमेशा उन पर और अधिक संदेह करने का कारण बना। लोगों के बीच ईसाइयों के बारे में विभिन्न तरह की झूठी अफवाहें उड़ाई गईं जैसे कि वे अपने बच्चों को खाते हैं और वे पारिवारिक व्यभिचार करते हैं। जब पूरे रोम में झूठी अफवाहों का प्रसार हुआ, लोगों ने ईसाइयों के साथ बुरा व्यवहार किया, और जब भी दुर्घटना होती थी, तो वे ईसाइयों को दोषी ठहराते थे।

कुछ ऐसे विद्वान भी थे जो अपने सिद्धांतों से ईसाई धर्म पर हमला करते थे। सेल्सस नामक एक व्यक्ति था जो यीशु के जन्म और परमेश्वरत्व पर विश्वास नहीं करता था। वह उन दिनों के सारे सिद्धांतों, सामान्य ज्ञानों और व्यंग्यों के द्वारा, जितना हो सके ईसाई धर्म की आलोचना करता था और बाइबल के विरुद्ध अभद्र टिप्पणी करता था।

संसार के लोगों ने ईसाइयों को गलतफहमी और घृणा का शिकार बना दिया। यहां तक कि उनके करीबी पड़ोसियों का व्यवहार हिंसात्मक और क्रूर बन गया।

भले ही ईसाइयों ने गालियां सुनीं, वे बेवजह पीटे गए और उन पर पथराव किया गया, लेकिन उन्होंने उन्हें चुपचाप सहन कर लिया। उन्हें बिना किसी अपराध के गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया गया और कड़ी पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया। आखिरकार उन्हें मुकदमे के लिए राज्यपाल के सामने ले जाया गया और वहां उन्होंने सभी प्रकार की यातनाओं को सहन किया। लोगों ने उन्हें अपमानित किया और उनसे हंसी–ठट्ठा किया और अपने देवताओं की प्रशंसा की।

बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार सब्त के दिन और फसह के पर्व जैसे सत्य के बदल जाने के बाद भी, जिन्होंने सत्य से पे्रम किया और सत्य का पालन किया, उन्होंने अपने विश्वास को रखने के लिए झोपड़ियों में आराधना की और आखिरकार वे मरुभूमि में आराधना करने लगे। फिर भी बाद में ऐसी स्थिति भी न हो पाई, और बहुत से लोगों ने गुफा में अकेले संन्यासी जीवन जिया।

विश्वास जिसके संसार योग्य नहीं था

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि प्रथम चर्च का इतिहास यातनाओं का इतिहास था। वे हर प्रकार की कठिन एवं खतरनाक परिस्थितियों से घिरे रहकर उत्पीड़न और अत्याचार सहते थे, लोकिन वे क्लेश और अत्याचार को अपनी महिमा मानते हुए हर दिन जहां कहीं भी जाते थे, सुसमाचार का प्रचार करते थे। वे बाहर से ऐसे दिखाई देते थे जैसे वे हार गए हों, लेकिन आत्मिक रूप से वे हर दिन विजय का जीवन जीते थे।

जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है। जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है, क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है, और जो नहीं खाता, वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है। क्योंकि हम में से न तो कोई अपने लिये जीता है और न कोई अपने लिये मरता है। यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं; अत: हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं। क्योंकि मसीह इसी लिये मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवतों दोनों का प्रभु हो। रो 14:6–9

वे अपना मन केवल परमेश्वर की ओर लगाते थे। और वे परमेश्वर की इस प्रतिज्ञा पर विश्वास करते थे कि वह उन्हें स्वर्ग का इनाम और मुकुट देंगे। उनके मन में इस तरह की अटल आशा रहती थी, इसलिए वे निराश न होते हुए अनन्त स्वर्ग और जीवन के मुकुट की ओर दौड़ते थे।

जो दु:ख तुझ को झेलने होंगे, उन से मत डर। क्योंकि देखो, शैतान तुम में से कुछ को जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा। प्राण देने तक विश्वासी रह, तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा। प्रक 2:10

प्रथम चर्च के सदस्य सत्य के लिए अपना जीवन तक कुर्बान करने को तैयार थे। यद्यपि वे घृणा के शिकार हो गए, लेकिन परमेश्वर ने उनकी प्रशंसा की। वे आज स्वर्ग में सराहना और प्रशंसनीय बधाई पा रहे हैं और उनके लिए जीवन का मुकुट चमक रहा है।

इन्होंने विश्वास ही के द्वारा राज्य जीते; धर्म के काम किए; प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं प्राप्त कीं; सिंहों के मुंह बन्द किए; आग की ज्वाला को ठंडा किया; तलवार की धार से बच निकले; निर्बलता में बलवन्त हुए; लड़ाई में वीर निकले; विदेशियों की फौजों को मार भगाया। स्त्रियों ने अपने मरे हुओं को फिर जीवित पाया; कितने तो मार खाते खाते मर गए और छुटकारा न चाहा, इसलिये कि उत्तम पुनरुत्थान के भागी हों। कई एक ठट्ठों में उड़ाए जाने; और कोड़े खाने; वरन् बांधे जाने; और कैद में पड़ने के द्वारा परखे गए। पथराव किए गए; आरे से चीरे गए; उनकी परीक्षा की गई; तलवार से मारे गए; वे कंगाली में, और क्लेश में, और दु:ख भोगते हुए भेड़ों और बकरियों की खालें ओढ़े हुए, इधर–उधर मारे मारे फिरे; और जंगलों, और पहाड़ों, और गुफाओं में, और पृथ्वी की दरारों में भटकते फिरे। संसार उनके योग्य न था। इब्र 11:33–38

कोई भी प्रथम चर्च के सदस्यों के विश्वास को नष्ट नहीं कर सकता था, फिर चाहे वह पूरी दुनिया पर शासन करने वाले रोम देश की बड़ी शक्ति हो, या चाहे हजारों सालों से चली आ रही यहूदी धर्म की परंपरा हो, या फिर चाहे लोगों की नफरत या जलन की भावना हो। वास्तव में संसार उनके विश्वास के योग्य नहीं था।

सत्य के योद्धा जिन्हें प्रथम चर्च के सदस्यों की मानसिकता विरासत में प्राप्त हुई है

प्रथम चर्च के सदस्यों का कष्ट उन लोगों के लिए सच्चा गवाह बना है जिन्होंने आज के युग में नई वाचा को ग्रहण किया है। शैतान इस युग में भी जब मानव अधिकारों का संरक्षण और सम्मान किया जाता है और शांत एवं सुरक्षित परिस्थिति है, तरह–तरह की छलपूर्ण युक्तियां और दुष्ट उपाय बनाकर हमारे विश्वास को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। शैतान अन्तिम न्याय के दिन तक परमेश्वर और उनके लोगों का विरोध करने के लिए षड्यंत्र रचता रहेगा।

तब अजगर स्त्री पर क्रोधित हुआ, और उसकी शेष संतान से, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं, लड़ने को गया। और वह समुद्र के बालू पर जा खड़ा हुआ। प्रक 12:17

शांति के समय में नहीं, बल्कि परीक्षा के समय में ही हमारे विश्वास की मात्रा मापी जाती है। प्रथम चर्च के सदस्य मृत्यु का सामना करते हुए भी परमेश्वर पर अपना पूरा ध्यान लगाते थे और स्वर्ग के प्रति पूर्ण व अटल विश्वास रखते थे, जिससे वे एक महान आत्मिक विजय प्राप्त कर सके। चाहे हम किसी भी प्रकार की परिस्थिति या परेशानी का सामना क्यों न करें, हमें अपने विश्वास के प्रति कभी लापरवाही नहीं करनी चाहिए और अपने विश्वास को नहीं छोड़ना चाहिए। हमारी परीक्षा थोड़ी देर के लिए है, लेकिन आने वाली दुनिया अनन्त समय के लिए है। हमें और अधिक सचेत रहना चाहिए और हमें प्रथम चर्च के सदस्य जो केवल परमेश्वर और स्वर्ग की ओर देखते थे उनके अटल विश्वास को पुन: दोहराना चाहिए।

कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? जैसा लिखा है, “तेरे लिये हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होनेवाली भेड़ों के समान गिने गए हैं।” परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं। क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊंचाई, न गहराई, और न कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी। रो 8:35–39

2,000 वर्ष पहले, मसीह के प्रति प्रेरितों का प्रेम शैतान की शक्ति को तोड़कर यरूशलेम से लेकर पूरे इस्राएल और यहां तक कि अन्य देशों तक फैल गया। आज पवित्र आत्मा के युग में परमेश्वर ने अपने लोगों पर, जो एलोहीम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं और बाइबल के आधार पर सही विश्वास रखते हैं, प्रथम चर्च के पवित्र आत्मा से सात गुना अधिक शक्तिशाली पवित्र आत्मा की ज्योति चमकाई है। अब वह समय आ गया है जब हमें प्रथम चर्च के विश्वास से, जिसके संसार योग्य नहीं था, सात गुना अधिक बड़े विश्वास को संसार में दिखाना चाहिए।

आइए हम ऐसे सत्य के योद्धा बनें जो दुनिया को चकित करनेवाले महान विश्वास के साथ एलोहीम परमेश्वर का साहसपूर्वक प्रचार करेंगे। इस युग में स्वर्गीय पिता और माता के प्रति हमारा अटूट प्रेम शैतान को हरा देगा और आखिरकार यह पृथ्वी के छोर तक फैल जाएगा।