बुरी आदतें और अच्छी आदतें

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लोग कहते हैं कि आदत एक दूसरा स्वभाव है। सभी के पास अपना–अपना विशिष्ट स्वभाव है और उसका उन पर भारी प्रभाव होता है क्योंकि उसके बार–बार दोहराए जाने से वह उनकी आदत बन जाती है।

हम सभी के पास अच्छी और बुरी आदतें हैं। अच्छी आदतें हमारे विश्वास के जीवन के लिए उपयोगी हैं, लेकिन बुरी आदतें सुसमाचार के कार्य के लिए बाधाएं हैं। इसलिए परमेश्वर ने हमें सिखाया है कि हमें अपनी बुरी आदतों को छोड़कर उन्हें अच्छी आदतों में बदलना चाहिए ताकि हम फिर से जन्म लेकर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें। बाइबल के द्वारा, आइए हम अच्छी और बुरी आदतों के बारे में सोचें और फिर से जन्म लेने के लिए अपनी सभी बुरी आदतों को छोड़ें।

परमेश्वर के वचन न मानने की आदत

3,500 वर्ष पहले, इस्राएली मिस्र से निकले और कनान की ओर चले। उनमें से ऐसे लोग थे जिनके पास कुड़कुड़ाने की आदत थी। जैसे–जैसे जंगल की यात्रा लंबी होने लगी, वे भूखे–प्यासे रहने लगे और बहुत थकने लगे। इस कारण वे परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाते रहे और दूसरे लोग भी उनके साथ सहमत हुए। परमेश्वर ने उन्हें पर्याप्त पानी और भोजन दिया था, फिर भी उन्होंने यह कहते हुए कुड़कुड़ाना जारी रखा कि वे एक ही भोजन से थक गए हैं। आखिरकार, जंगल की उनकी 40 वर्ष की यात्रा के दौरान, अधिकांश इस्राएली जंगल में गिर गए।

उनके साथ हुई घटनाओं के द्वारा, परमेश्वर स्पष्ट रूप से हमें दिखाते हैं कि हमारे पास किस प्रकार की आदत होनी चाहिए, क्योंकि हम भी आत्मिक कनान में प्रवेश करने के लिए विश्वास के जंगल में चल रहे हैं।

तेरे सुख के समय मैं ने तुझ को चिताया था, परन्तु तू ने कहा, ‘मैं तेरी न सुनूंगी।’ युवावस्था ही से तेरी चाल ऐसी है कि तू मेरी बात नहीं सुनती। यिर्म 22:21

भले ही परमेश्वर की सुरक्षा में वे सकुशल थे, फिर भी उन्होंने परमेश्वर से कहा कि वे परमेश्वर की बात नहीं सुनेंगे। इस पर परमेश्वर ने कहा कि युवावस्था ही से उन्हें ऐसी आदत पड़ गई कि वे परमेश्वर की बात न सुनते। क्या ऐसे लोग परमेश्वर का अनुग्रह और दया पा सकते हैं? वे परमेश्वर की आशीष कभी नहीं पा सकते।

आत्मिक दृष्टिकोण से, यह पृथ्वी एक जेल है जहां स्वर्ग के पापी इकट्ठे होकर रहते हैं। यदि कोई जो चाहता है वह जी भरकर करने और जो कुछ चाहता है वह सब पाने की कोशिश करे, तो यह पछताने का रवैया नहीं है जिसे जेल में रहनेवाले पापियों के पास होना चाहिए। यदि हम परिस्थिति के हमारे लिए अनुकूल न होने के कारण कुड़कुड़ाने और शिकायत करने की आदत न छोड़ें, तब हम अपने स्वर्गीय घर में नहीं जा सकते ।

आइए हम अपने आप में झांककर देखें कि कहीं हमने ऐसा सोचते हुए कि ‘यह करना ठीक होगा,’ ‘दूसरे ने भी यह किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ,’ परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी होकर सिर्फ बहाना बनाने की कोशिश तो नहीं की है? जब हम कुछ गलत करें, तब हम पहले खुद को दोषी महसूस करते हैं। लेकिन यदि हम गलती करते रहें और वह आदत बनें, तो हम गलती करने में नहीं हिचकिचाएंगे और अपने पाप को पहचानने में नाकाम होंगे। हमें परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाने की और परमेश्वर की आज्ञा न मानने की आदत तुरन्त छोड़नी चाहिए।

परमेश्वर को तुच्छ जानने की आदत और परमेश्वर का भय मानने की आदत

परस्पर विपरीत व्यक्तियों के द्वारा जो एक ही युग में रहे थे, बाइबल हमें स्पष्ट रूप से दिखाती है कि हमारे विश्वास के जीवन में हमारी आदतें कितनी महत्वपूर्ण हैं।

एली के पुत्र तो लुच्चे थे; उन्होंने यहोवा को न पहिचाना। याजकों की रीति लोगों के साथ यह थी, कि जब कोई मनुष्य मेलबलि चढ़ाता था तब याजक का सेवक मांस पकाने के समय एक तीन नोकवाला कांटा हाथ में लिये हुए आकर उसे कड़ाही, या हंडी, या हंडे, या तसले के भीतर डालता था; और जितना मांस कांटे में लग जाता था उतना याजक आप ले लेता था। ऐसा ही वे शीलो में सारे इस्राएलियों से किया करते थे जो वहां आते थे। और चर्बी जलाने से पहले भी याजक का सेवक आकर मेलबलि चढ़ानेवाले से कहता था, “भूनने के लिये याजक को मांस दे; वह तुझ से पका हुआ नहीं, कच्चा ही मांस लेगा।” और जब कोई उससे कहता, “निश्चय चर्बी अभी जलाई जाएगी, तब जितना तेरा जी चाहे उतना ले लेना,” तब वह कहता था, “नहीं, अभी दे; नहीं तो मैं छीन लूंगा।” इसलिये उन जवानों का पाप यहोवा की दृष्टि में बहुत भारी हुआ; क्योंकि वे मनुष्य यहोवा की भेंट का तिरस्कार करते थे। 1शम 2:12–17

एली जो इस्राएल का न्यायी था, उसके होप्नी और पीनहास नामक दो पुत्र थे। भले ही वे याजक के परिवार के थे, लेकिन वे बदमाश थे जो परमेश्वर को तुच्छ समझते थे। उन्होंने परमेश्वर के बलिदान की विधियों की उपेक्षा की और इतना दुष्ट कार्य किया कि उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के मेलबलियों को परमेश्वर को चढ़ाने से पहले अपनी मनमानी से लिया।

चूंकि वे दुष्ट कार्य करते रहे, परमेश्वर ने उन्हें दण्ड देने का फैसला किया। ठीक जैसे परमेश्वर ने कहा, युद्ध में उनकी दयनीय मृत्यु हुई। जब एली ने यह खबर सुनी, तब वह अपनी कुर्सी से पीछे गिर पड़ा और उसकी गर्दन टूट गई। इससे वह मर गया(1शम 2:27–36; 4:11–18)।

परमेश्वर के वचनों की उपेक्षा करते हुए होप्नी और पीनहास बड़े हुए थे। अंत में परमेश्वर को तुच्छ समझना और दुष्ट कार्य करना उनकी आदत बन गई, जिससे परमेश्वर के क्रोध को भड़काया गया। इसके विपरीत, शमूएल ने बचपन से ही हमेशा परमेश्वर का भय मानते हुए भक्तिमय जीवन जिया।

परन्तु शमूएल जो बालक था सनी का एपोद पहिने हुए यहोवा के सामने सेवा टहल किया करता था। 1शम 2:18

आदत जिसे शमूएल ने बचपन से अपनाया था, वह होप्नी और पीनहास की दुष्ट आदत से पूरी तरह अलग थी। जब शमूएल बड़ा हो रहा था, उसने हमेशा परमेश्वर की सेवा करने और परमेश्वर के नियम का आदर करने की अच्छी आदत को विकसित किया। उसने इस्राएल के न्यायी के रूप में एली की जगह ली, और परमेश्वर ने उसे शाऊल और दाऊद का इस्राएल के राजा के रूप में अभिषेक करने का मिशन सौंपा। जबकि होप्नी और पीनहास को नष्ट किया गया क्योंकि उनके पास परमेश्वर को तुच्छ जानने की दुष्ट आदत थी, शमूएल को हमेशा परमेश्वर के साथ जीवन जीने की आशीष दी गई क्योंकि उसके पास परमेश्वर का भय मानने की अच्छी आदत थी।

शाऊल के पास आज्ञा न मानने की आदत थी

एक प्रतिनिधिक व्यक्ति जिसने परमेश्वर के वचन को न मानने की आदत के कारण अपने ऊपर विनाश लाया था, वह इस्राएल का पहला राजा शाऊल था। उसके सिंहासन पर बैठने से पहले, उसने खुद को छोटा समझकर नम्र किया था। लेकिन राजा बनने के बाद, वह घमण्डी बना और उसे परमेश्वर के वचन से ज्यादा लोगों के शब्दों को महत्व देने की बुरी आदत हो गई।

इसलिये अब तू जाकर अमालेकियों को मार, और जो कुछ उनका है उसे बिना कोमलता किए नष्ट कर; क्या पुरुष, क्या स्त्री, क्या बच्चा, क्या दूधपीता, क्या गाय–बैल, क्या भेड़–बकरी, क्या ऊंट, क्या गदहा, सब को मार डाल… और उनके राजा अगाग को जीवित पकड़ा, और उसकी सब प्रजा को तलवार से नष्ट कर डाला। परन्तु अगाग पर, और अच्छी से अच्छी भेड़–बकरियों, गाय–बैलों, मोटे पशुओं, और मेम्नों, और जो कुछ अच्छा था, उन पर शाऊल और उसकी प्रजा ने कोमलता की, और उन्हें नष्ट करना न चाहा; परन्तु जो कुछ तुच्छ और निकम्मा था उसका उन्होंने सत्यानाश किया। तब यहोवा का यह वचन शमूएल के पास पहुंचा, “मैं शाऊल को राजा बना के पछताता हूं; क्योंकि उसने मेरे पीछे चलना छोड़ दिया, और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया।” तब शमूएल का क्रोध भड़का; और वह रात भर यहोवा की दोहाई देता रहा… 1शम 15:3–13

परमेश्वर ने शाऊल को आज्ञा दी, “अमालेकियों को मार, और जो कुछ उनका है उसे बिना कोमलता किए नष्ट कर।” शुरू में ऐसा लगा कि शाऊल आमलेकियों को मार रहा था, लेकिन बाद में उसने परमेश्वर की आज्ञा का पूरी तरह पालन नहीं किया; उसने उनके राजा अगाग को जीवित पकड़ा, और अच्छी से अच्छी भेड़–बकरियों, गाय–बैलों, मोटे पशुओं और मेम्नों, और जो कुछ अच्छा था उसे नष्ट नहीं किया, परन्तु जो कुछ तुच्छ और निकम्मा था उसका सत्यानाश किया।

परमेश्वर शाऊल को राजा बनाकर पछताए, और उसे उसकी अवज्ञा के लिए शमूएल के द्वारा दोषी ठहराया गया। शाऊल ने यह कहते हुए बहाना बनाया कि उसने अच्छी से अच्छी भेड़ बकरियों और गाय–बैलों को परमेश्वर को बलि चढ़ाने के लिए रख छोड़ा। इसके लिए उसे शमूएल के द्वारा गंभीरता से फटकारा गया।

शमूएल ने कहा, “क्या यहोवा होमबलियों और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने से, और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। देख, बलवा करना और भावी कहनेवालों से पूछना एक ही समान पाप है, और हठ करना मूरतों और गृहदेवताओं की पूजा के तुल्य है। तू ने जो यहोवा की बात को तुच्छ जाना, इसलिये उसने तुझे राजा होने के लिये तुच्छ जाना है।” 1शम 15:22–23

पहले, शाऊल के पास परमेश्वर के प्रति शुद्ध विश्वास था। लेकिन चूंकि उसे बड़ा अधिकार दिया गया, वह आलसी होकर सोचने लगा कि उसे परमेश्वर की मदद की और अधिक जरूरत नहीं है। वह धीरे–धीरे परमेश्वर के वचन का उल्लंघन करने का आदी हो गया और यहां तक कि उसे डर भी नहीं लगा।

यों शाऊल उस विश्वासघात के कारण मर गया, जो उसने यहोवा से किया था; क्योंकि उसने यहोवा का वचन टाल दिया था, फिर उसने भूतसिद्धि करनेवाली से पूछकर सम्मति ली थी। उसने यहोवा से न पूछा था, इसलिये यहोवा ने उसे मारकर राज्य को यिशै के पुत्र दाऊद को दे दिया। 1इत 10:13–14

शाऊल के आज्ञा का उल्लंघन करने के परिणामस्वरूप परमेश्वर का अनुग्रह उसमें से हट गया। उसने पलिश्तियों के विरुद्ध युद्ध में अपने सभी बेटों को खोया, और उसने भी युद्ध में दयनीय अन्त का सामना किया। उसकी परमेश्वर के वचन का न मानने की आदत के कारण यह सब दुर्भाग्य शुरू हुआ।

उन लोगों की आदत जो परमेश्वर के साथ हैं

दाऊद जिसका शमूएल के द्वारा इस्राएल के दूसरे राजा के रूप में अभिषेक हुआ था, उसके पास परमेश्वर को हमेशा अपने मन के केंद्र में रखने की अच्छी आदत थी। इसलिए उसे परमेश्वर के मन के अनुरूप मनुष्य के रूप में स्वीकार किया गया।

यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी। भज 23:1

सिर्फ इस वचन के द्वारा ही हम परमेश्वर के प्रति दाऊद के हृदय को देख सकते हैं। चूंकि उसने पूरी तरह से महसूस किया कि यदि परमेश्वर उसके साथ न हों तो वह कुछ नहीं है, इसलिए उसने अपने जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान दिया। और उसके पास हर चीज में परमेश्वर को पहले स्थान पर रखने की आदत थी, क्योंकि उसने यह जाना कि जाति का उत्थान और पतन भी सिर्फ परमेश्वर पर निर्भर है।

बाइबल में दाऊद का हृदय साफ–साफ दिखाया गया है जिसने किसी भी दूसरी चीज से अधिक परमेश्वर से प्रेम किया। जब उसने वाचा के सन्दूक को ओबेदेदोम के घर से दाऊदपुर में लाया, तब उसने अपनी गरिमा–प्रतिष्ठा की परवाह किए बिना एक बच्चे की तरह पूरे तन–मन से नाचते हुए आनन्द किया(2शम 6:12–15)। उसने इस पर शोक व्यक्त किया कि वह देवदारु के महल में रहता है जबकि परमेश्वर का सन्दूक तम्बू में रहता है, और उसने परमेश्वर के लिए मंदिर का निर्माण करने की योजना भी बनाई। इससे परमेश्वर प्रसन्न हुए और परमेश्वर ने उसे आशीष दी कि मंदिर का निर्माण उसके बेटे सुलैमान के द्वारा पूरा होगा, और उन्होंने उससे यह प्रतिज्ञा की कि “जहां कहीं तू आया गया, वहां वहां मैं तेरे संग रहा… फिर मैं तेरे नाम को पृथ्वी पर के बड़े बड़े लोगों के नामों के समान महान कर दूंगा(2शम 7:1–17)।”

अब आइए हम देखें कि बाइबल उनके बारे में क्या कहती है जो अंतिम दिनों में बचाए जाएंगे।

ये वे हैं जो स्त्रियों के साथ अशुद्ध नहीं हुए, पर कुंवारे हैं: ये वे ही हैं कि जहां कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं: ये तो परमेश्वर के निमित्त पहले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं। प्रक 14:4

हमें इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि कौन सी आदतें परमेश्वर के लोगों के पास हैं जो परमेश्वर और मेम्ने के पहले फलों के रूप में पृथ्वी पर से छुड़ाए जाएंगे। वे जहां कहीं परमेश्वर उन्हें ले जाते हैं, वहां आभारी होकर उनका पालन करते हैं, फिर चाहे वह पथरीला मार्ग हो या कंटीला मार्ग हो, या दुख–भरा मार्ग हो या चिलचिलाती धूप–भरा मार्ग। यह संपूर्ण आज्ञाकारिता परमेश्वर के प्रति 100 प्रतिशत विश्वास और भरोसे पर आधारित है। परमेश्वर के पवित्र लोगों के रूप में हमारे अन्दर और अधिक विश्वास और आज्ञाकारिता होनी चाहिए और हमें आनन्द के साथ परमेश्वर के वचनों का पालन करने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए।

स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए हमें फिर से जन्म लेना चाहिए

आइए हम उस बाइबल के वचनों के द्वारा देखें, जिसे परमेश्वर ने हमें सबसे मौलिक मार्गदर्शक के रूप में दिया है, कि हमारे पास कौन सी अच्छी आदतें होनी चाहिए।

यदि कोई और ही प्रकार का उपदेश देता है और खरी बातों को, अर्थात् हमारे प्रभु यीशु मसीह की बातों को और उस उपदेश को नहीं मानता, जो भक्ति के अनुसार है, तो वह अभिमानी हो गया, और कुछ नहीं जानता; वरन् उसे विवाद और शब्दों पर तर्क करने का रोग है, जिससे डाह, और झगड़े, और निन्दा की बातें, और बुरे–बुरे सन्देह, और उन मनुष्यों में व्यर्थ रगड़े–झगड़े उत्पन्न होते हैं जिनकी बुद्धि बिगड़ गई है, और वे सत्य से विहीन हो गए हैं, जो समझते हैं कि भक्ति कमाई का द्वार है… 1तीम 6:3–8

परमेश्वर के उपदेश को न मानने का मतलब है, परमेश्वर के वचनों को पूरी तरह से न मानना। जो परमेश्वर के वचनों पर ध्यान नहीं देते, वे अभिमानी हो जाते हैं और विवाद करना पसंद करते हैं, और उनके दुष्ट विचार धीरे–धीरे उनकी आत्माओं पर हावी हो जाते हैं और अन्त में वे सत्य से दूर हो जाते हैं। चूंकि वे परमेश्वर के वचनों पर ध्यान न देने के आदी हो जाते हैं, वे अपने जीवन में दुर्भाग्यपूर्ण चीजों का सामना करते हैं और अन्त में परमेश्वर को छोड़ देते हैं।

इसलिए हमें हर दिन परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हुए अपने भीतर झांककर देखना चाहिए। अब से आइए हम यह देखने के लिए खुद को जांचें कि हमारे पास परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाली आदतें हैं या नहीं। यदि हमारे पास कुछ बुरी आदतें हैं, तो हमें परमेश्वर के संतान के रूप में उन सभी को निकालना चाहिए और खुद को परमेश्वर के पवित्र वचनों से भरना चाहिए।

इसलिए यीशु ने कहा कि जब तक हम नए सिरे से न जन्में तब तक हम परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकते(यूह 3:3)। दूसरे शब्दों में, जब तक हम अपनी पुरानी बुरी आदतों को न छोड़ें और उन्हें अच्छी आदतों में न बदलें जो स्वर्ग के लोगों के पास होनी चाहिए, तब तक हम स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकते।

वरन् प्रेम में सच्चाई से चलते हुए… कि तुम पिछले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो। और अपने मन के आत्मिक स्वभाव में नये बनते जाओ, और नये मनुष्यत्व को पहिन लो जो परमेश्वर के अनुरूप सत्य की धार्मिकता और पवित्रता में सृजा गया है… क्रोध तो करो, पर पाप मत करो; सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे, और न शैतान को अवसर दो। चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; वरन् भले काम करने में अपने हाथों से परिश्रम करे, इसलिये कि जिसे प्रयोजन हो उसे देने को उसके पास कुछ हो। कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही निकले जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उससे सुननेवालों पर अनुग्रह हो। परमेश्वर के पवित्र आत्मा को शोकित मत करो, जिस से तुम पर छुटकारे के दिन के लिये छाप दी गई है। सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा, सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए। एक दूसरे पर कृपालु और करुणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो। इसलिये प्रिय, बालकों के समान परमेश्वर का अनुकरण करो। इफ 4:15–5:1

बाइबल हमें प्रेम में सच्चाई से चलना सिखाती है और हमसे आग्रह करती है कि हम अपने पिछले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को, यानी अपनी पुरानी बुरी आदतों को उतार डालें और परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार नए मनुष्यत्व को पहन लें। बाइबल हमें यह भी समझाते हुए कि हमारे पास किस तरह की अच्छी आदतें होनी चाहिए, परमेश्वर का अनुकरण करने को कहती है जो हमारे लिए संपूर्ण उदाहरण हैं। हमें इस शिक्षा को अपने मन में रखते हुए लगातार उसे अभ्यास में लाना चाहिए ताकि हम अपनी अच्छी आदतें बना सकें।

भले ही शाऊल, होप्नी और पीनहास परमेश्वर के द्वारा चुने गए थे, लेकिन वे अपनी बुरी आदतों के आदी हो चुके थे, जिसके कारण वे परमेश्वर से दूर हो गए। आइए हम यह देखने के लिए हमेशा खुद पर विचार करें कि हमारे पास कोई बुरी आदत है, और जहां कहीं परमेश्वर जाएं वहां उनका पालन करने की अच्छी आदत को अपने आप में विकसित करें। मैं आग्रहपूर्वक सिय्योन के लोगों से कहता हूं कि ऐसा सुंदर जीवन जीएं और स्वर्ग के राज्य की ओर आगे बढ़ें।