पवित्रशास्त्र में लिखा है कि ऐसा ही होना अवश्य है

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आज दुनिया में बहुत से चर्च हैं, और उनमें से हर एक दावा करता है कि उसके पास सच्चा विश्वास है। लेकिन किसी के विश्वास का मानक परमेश्वर का वचन है। वह कभी मनुष्य का विचार नहीं हो सकता। जब हम बाइबल के वचनों को अपने विश्वास का केंद्र बनाएंगे, तब हम विश्वास के सही मार्ग पर जाकर अनन्त स्वर्ग के राज्य की ओर चल सकते हैं।

बाइबल में परमेश्वर की भविष्यवाणियां हैं, जो दिखाती हैं कि भविष्य में क्या होगा। इसलिए ध्यान से बाइबल का अध्ययन करके, हम विश्वास का सही मार्ग खोज सकते हैं। अब, आइए हम बाइबल के द्वारा इस बात की पुष्टि करें कि परमेश्वर ने अपनी उन संतानों के लिए उद्धार की प्रतिज्ञा की है जो पश्चाताप करके स्वर्गीय यरूशलेम, यानी माता परमेश्वर की बांहों में लौटती हैं, और आइए हम अपने विश्वास को मजबूत बनाएं।

बाइबल का हर एक वचन पूरा होना चाहिए

बाइबल भविष्यवाणी का वचन है जिसे नबियों ने पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर परमेश्वर की ओर से कहा(2पत 1:20–21)। परमेश्वर ने यह आज्ञा दी कि हम इस बाइबल के वचनों में कुछ भी न बढ़ाएं और उनमें से कुछ भी न घटाएं।

जो आज्ञा मैं तुम को सुनाता हूं उसमें न तो कुछ बढ़ाना, और न कुछ घटाना; तुम्हारे परमेश्वर यहोवा की जो जो आज्ञा मैं तुम्हें सुनाता हूं उन्हें तुम मानना। व्य 4:2

बाइबल की 66 पुस्तकों का हर एक वचन परमेश्वर के द्वारा दिया गया है। इसलिए हमें उसमें न तो कुछ बढ़ाना चाहिए और न ही उसमें से कुछ निकालना चाहिए। किसी व्यक्ति के दर्शनशास्त्र और विचारधारा जैसे मनुष्यों के विचारों के आधार पर बाइबल की व्याख्या नहीं की जानी चाहिए। जैसा बाइबल में है, वैसा ही यदि हम मानें और बाइबल का अध्ययन करें, तब हम उद्धार का सही मार्ग खोज सकते हैं। इसलिए बाइबल के अन्तिम अध्याय में परमेश्वर ने फिर से यह कहते हुए अपनी इच्छा पर जोर दिया कि, “यदि कोई मनुष्य बाइबल में लिखी बातों में कुछ बढ़ाए, तो परमेश्वर उस पर विपत्तियां बढ़ाएंगे, और यदि कोई इन बातों में से कुछ निकाल डाले, तो परमेश्वर उससे उसका उद्धार ले जाएंगे(प्रक 22:18–19)।”

यीशु ने हमें बाइबल की भविष्यवाणी का महत्व इस प्रकार सिखाया;

यीशु ने उससे कहा, “हे मित्र, जिस काम के लिये तू आया है, उसे कर ले।” तब उन्होंने पास आकर यीशु पर हाथ डाले और उसे पकड़ लिया। यीशु के साथियों में से एक ने हाथ बढ़ाकर अपनी तलवार खींच ली और महायाजक के दास पर चलाकर उस का कान उड़ा दिया। तब यीशु ने उससे कहा, “अपनी तलवार म्यान में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं वे सब तलवार से नष्ट किए जाएंगे। क्या तू नहीं जानता कि मैं अपने पिता से विनती कर सकता हूं, और वह स्वर्गदूतों की बारह पलटन से अधिक मेरे पास अभी उपस्थित कर देगा? परन्तु पवित्रशास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, कैसे पूरी होंगी?” मत 26:50–54

यह वह दृश्य है जहां यहूदा इस्करियोती जिसने चांदी के 30 सिक्कों में यीशु को बेच दिया था, यीशु को महायाजक के सेवकों के हाथों सौंप रहा था। उस समय, पतरस ने यीशु को बचाने के लिए तलवार निकाली और सैनिकों पर तलवार चलाई। लेकिन यीशु ने पतरस को रोका और उसे स्मरण दिलाया कि बाइबल परमेश्वर का वचन है जो निश्चय पूरा होना चाहिए।

वास्तव में यीशु के पास ऐसी शक्ति थी जिससे वह स्वर्गदूतों को बड़ी संख्या में बुलाकर उन्हें तुरन्त दूर हटा सकते थे और उस स्थिति से बच सकते थे। लेकिन यदि वह ऐसा करते, तो इस भविष्यवाणी का पूरा होना संभव नहीं होता था कि मसीह एक पापबलि के रूप में सारी मानवजाति के पापों और अपराधों को उठाएंगे और अपना बलिदान करेंगे। इसलिए यीशु ने कहा, “परन्तु पवित्रशास्त्र की वे बातें कि ऐसा ही होना अवश्य है, कैसे पूरी होंगी?” इस वचन से यीशु ने बाइबल में लिखे गए हर वचन को अवश्य पूरा करने की अपनी दृढ़ इच्छा दिखाई।

सांसारिक परिवार और स्वर्गीय परिवार

यीशु की शिक्षा के द्वारा हमें यह विश्वास हो सकता है कि बाइबल परमेश्वर का अवश्य ही पूरा किया जाने वाला सच्चा वचन है। जब हम परमेश्वर के वचनों में अपने विचारों को जोड़े बिना या उनमें से कुछ निकाले बिना उन्हें देखें, तब हम सच्चे उद्धारकर्ता और विश्वास का सही मार्ग पा सकते हैं।

बाइबल की शिक्षाओं में से जिन्हें हमें संपूर्ण मानना चाहिए, आइए हम स्वर्गीय पिता और स्वर्गीय माता के बारे में वचनों को देखें।

वे स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब की सेवा करते हैं; जैसे जब मूसा तम्बू बनाने पर था, तो उसे यह चेतावनी मिली, “देख, जो नमूना तुझे पहाड़ पर दिखाया गया था, उसके अनुसार सब कुछ बनाना।” इब्र 8:5

परमेश्वर के द्वारा दिखाए गए स्वर्गीय पवित्रस्थान के प्रतिरूप के अनुसार, मूसा ने सांसारिक पवित्रस्थान बनाया। इस वचन के द्वारा, हम समझ सकते हैं कि पृथ्वी की चीजें स्वर्ग की असली चीजों का प्रतिरूप और छाया है। परिवार की प्रणाली के साथ भी ऐसा ही है। परिवार में मूल रूप से पिता, माता और उनकी संतान होते हैं। चूंकि सांसारिक परिवार स्वर्गीय परिवार के प्रतिरूप के अनुसार बनाया गया है, इसलिए अवश्य ही स्वर्गीय परिवार में भी पिता, माता और उनकी संतान होनी चाहिए।

फिर जब कि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे और हमने उनका आदर किया, तो क्या आत्माओं के पिता के और भी अधीन न रहें जिससे हम जीवित रहें। इब्र 12:9

बाइबल हमसे कहती है कि जिस प्रकार सांसारिक परिवार में पिता है, उसी प्रकार स्वर्गीय परिवार में भी पिता होने चाहिए जिन्होंने हमारी आत्माओं को जन्म दिया है। उस शिक्षा के द्वारा जिसे यीशु ने इस पृथ्वी पर आकर स्वयं अपने चेलों को दिया था, हम इस सत्य की पुष्टि कर सकते हैं।

इसलिए तुम उनके समान न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पहले ही जानता है कि तुम्हारी क्या–क्या आवश्यकताएं हैं। अत: तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए।” मत 6:8–9

यीशु ने स्पष्ट रूप से हमें सिखाया कि हमें परमेश्वर को “हमारे पिता” कहकर बुलाना चाहिए। उन्होंने हमें दिखाया कि जैसे सांसारिक परिवार में पिता होते हैं, वैसे ही स्वर्गीय परिवार में भी हमारे पिता परमेश्वर हैं जो स्वर्ग के राज्य पर शासन करते हैं।

“पिता” इस उपाधि का प्रयोग सिर्फ उस व्यक्ति के लिए हो सकता है जिसके पास संतान हैं। जैसे सांसारिक परिवार में एक पिता के पास संतान होती हैं जो उसे “पिता” कहकर बुलाती हैं, वैसे ही स्वर्गीय परिवार में भी परमेश्वर के पास बेटे और बेटियां हैं जो उन्हें “पिता” कहकर बुलाते हैं।

“… तो मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा; और मैं तुम्हारा पिता हूंगा, और तुम मेरे बेटे और बेटियां होगे। यह सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर का वचन है।” 2कुर 6:17–18

परमेश्वर ने कहा कि वह हमारे पिता होंगे और हम उनके बेटे और बेटियां होंगे। यदि सांसारिक परिवार को देखा जाए, तो उसमें पिता और उसकी संतान हैं। और फिर उनके अलावा किसका अस्तित्व होना चाहिए? अवश्य ही माता होनी चाहिए जो संतानों को जन्म देती है। तब स्वर्गीय परिवार कैसा होगा जो वास्तविकता है?

पर ऊपर की यरूशलेम स्वतंत्र है, और वह हमारी माता है। गल 4:26

बाइबल स्पष्ट रूप से गवाही देती है कि आत्मिक परिवार में भी हमारी आत्मिक माता हैं जिन्होंने हमारी आत्माओं को जन्म दिया है। जिस तरह सांसारिक परिवार में पिता, माता और उनकी संतान होती हैं, उसी तरह स्वर्गीय परिवार में भी पिता परमेश्वर, माता परमेश्वर और उनकी संतान होती हैं।

ऐसी स्पष्ट गवाही दिए जाने के बावजूद, जिन्होंने माता परमेश्वर के बारे में नहीं सुना है, वे अपने पूर्वाग्रह या निर्धारित विचारधारा से अंधे होकर बाइबल के वचनों से इनकार करते हैं। भले ही बाइबल ने हमारी आत्मिक माता की स्पष्ट गवाही दी है, फिर भी वे माता परमेश्वर के अस्तित्व से इनकार करते या उन पर विश्वास नहीं करते। चूंकि वे परमेश्वर की इस आज्ञा का उल्लंघन करते हैं कि बाइबल के वचनों में कुछ न बढ़ाएं और उनमें से कुछ न घटाएं, इसलिए वे उद्धार नहीं पा सकते।

बाइबल परमेश्वर का संपूर्ण वचन है जिसे हमें किसी भी अन्य चीज से अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए। हमें हठपूर्वक अपने खुद के विचारों पर जोर देने के बजाय, बाइबल के वचनों के प्रति नम्र रवैया रखने की जरूरत है। सिर्फ तभी हम सत्य खोज सकते हैं।

माता परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में बाइबल का प्रमाण

पिता परमेश्वर ने बाइबल की बहुत सी जगहों में माता परमेश्वर के बारे में गवाही दी है। हम उत्पत्ति के पहले अध्याय में भी इसकी पुष्टि कर सकते हैं।

फिर परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। उत 1:26–27

सभी चीजों की सृष्टि करते समय परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं।” परमेश्वर ने “हम” इस बहुवचन शब्द के द्वारा यह सिखाया है कि सिर्फ पिता ने अकेले मानवजाति की सृष्टि नहीं की थी। तब, कितने परमेश्वर हैं?

जब मनुष्य को परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया, तब नर और नारी सृजे गए। इसलिए परमेश्वर जिन्हें “हम” के रूप में वर्णित किया गया है, दो होने चाहिए – नर स्वरूप का परमेश्वर और नारी स्वरूप का परमेश्वर। युगों से मानवजाति ने नर स्वरूप के परमेश्वर को “पिता” कहकर बुलाया है। तो फिर, नारी स्वरूप के परमेश्वर को हमें क्या कहकर बुलाना चाहिए? क्या हमें उन्हें “माता” कहकर बुलाना नहीं चाहिए?

दूसरे शब्दों में कहें, तो पुरुष और स्त्री वो जीव हैं जिन्हें पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर के हाथों के द्वारा बनाया गया है। फिर भी बहुत से लोग परमेश्वर के प्रति अपने पूर्वाग्रह को नहीं त्यागते और दावा करते हैं कि सिर्फ एक पिता परमेश्वर है। वे ऐसा अनुमान लगाते हैं कि परमेश्वर ने इस कारण “हम मनुष्य को बनाएं” कहा, क्योंकि वह स्वर्गदूतों के साथ थे। लेकिन स्वर्गदूत भी परमेश्वर के द्वारा सृजे गए थे, वे बिल्कुल भी ऐसे सृष्टिकर्ता नहीं हो सकते जिन्होंने मनुष्य को बनाया।

बाइबल में उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य तक हर शिक्षा साबित करती है कि स्वर्गीय माता का अस्तित्व है। फिर भी, लोग अपनी निजी व्याख्या और अपने व्यक्तिगत विचारों के अनुसार अलग–अलग तरीके से बाइबल की व्याख्या करने की कोशिश करते हैं। यह बाइबल में कुछ न बढ़ाने और उसमें से कुछ न निकालने की परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने का कार्य है। जब हम बाइबल के वचनों को जैसे वे लिखे हुए हैं, वैसे ही स्वीकार करें, तभी हम परमेश्वर को ग्रहण कर सकते हैं और सत्य की ओर परमेश्वर के द्वारा मार्गदर्शित होकर अनन्त स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।

नई वाचा का सत्य जो हमें परमेश्वर की संतान बनने के लिए सक्षम बनाता है

यदि कोई बच्चा एक पुरुष और एक स्त्री को “पिता” और “माता” कहकर बुलाए, तो क्या वे एक ही परिवार के बन सकते हैं? नहीं, वे नहीं बन सकते। जैसे सांसारिक परिवार के सदस्य लहू से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, वैसे ही आत्मिक परिवार के सदस्य भी लहू से जुड़े होते हैं।

अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहां चाहता है कि हम तेरे लिए फसह खाने की तैयारी करें? उसने कहा, “नगर में अमुक व्यक्ति के पास जाकर उससे कहो, ‘गुरु कहता है कि मेरा समय निकट है। मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहां पर्व मनाऊंगा’।” अत: चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी और फसह तैयार किया… जब वे खा रहे थे तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष मांगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, “तुम सब इसमें से पीओ, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिए पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है।” मत 26:17–19, 26–28

यीशु ने कहा, “मैं फसह का पर्व मनाऊंगा,” और अपने चेलों को फसह का पर्व तैयार करने की आज्ञा दी। फिर उन्होंने फसह के पवित्र भोज पर प्रतिज्ञा की कि फसह की रोटी और दाखमधु उनका पवित्र मांस और लहू है। इसलिए जो फसह की रोटी खाते हैं और दाखमधु पीते हैं, वे महज कुछ साधारण खाद्य पदार्थ नहीं लेते, बल्कि परमेश्वर के पवित्र मांस और लहू को उत्तराधिकार में प्राप्त करते हैं।

सिर्फ परमेश्वर की संतान ही जिन्होंने नई वाचा के फसह के द्वारा परमेश्वर के मांस और लहू को उत्तराधिकार में प्राप्त किया है, अपने अनन्त स्वर्गीय घर में वापस जा सकती हैं। इसलिए परमेश्वर स्वयं गवाही देते हैं कि हम उनकी संतान हैं जो स्वर्ग के राज्य में लौटेंगी।

आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं; और यदि सन्तान हैं तो वारिस भी, वरन् परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं, कि जब हम उसके साथ दु:ख उठाएं तो उसके साथ महिमा भी पाएं। क्योंकि मैं समझता हूं कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के सामने, जो हम पर प्रगट होनेवाला है, कुछ भी नहीं रोम 8:16–18

प्रेरित पौलुस ने लिखा, “आत्मा आप ही गवाही देता है कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।” परमेश्वर फसह के पर्व के द्वारा सौंपे गए अपने मांस और लहू को देखकर अपनी सन्तानों को तुरन्त पहचान लेते हैं। इसलिए पौलुस ने कुरिन्थुस में चर्च के सदस्यों को भेजे पत्र में यह लिखकर फसह के महत्व पर जोर दिया, “यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैंने तुम्हें भी पहुंचा दी है(1कुर 11:23–26)।”

भले ही वे जो फसह का पर्व नहीं मनाते, परमेश्वर से यह कहें, “हे प्रभु, मैं आपकी संतान हूं,” और भले ही वे परमेश्वर से उद्धार देने की विनती करें, फिर भी परमेश्वर उनसे कहेंगे, “मैंने तुमको कभी नहीं जाना(मत 7:21–23)।” क्योंकि उनके पास परमेश्वर का मांस और लहू नहीं है।

चर्च ऑफ गॉड जहां माता परमेश्वर निवास करती हैं

परमेश्वर के वारिसों के रूप में, हमें मसीह के साथ महिमा पाने के लिए मसीह के साथ दुख भी उठाना चाहिए। हमारे पिता और माता अपनी खोई हुई संतानों को खोजने के लिए इस पृथ्वी पर आए हैं। इसलिए हम लोगों को जिन्हें पहले बुलाया गया है, अपने खोए हुए भाइयों और बहनों को खोजने में अपना पूरा मन लगाना चाहिए, है न? लेकिन हम अपनी आंखों से नहीं पहचान सकते कि कौन हमारा भाई है और कौन हमारी बहन है। इसलिए परमेश्वर ने आज्ञा दी है कि हम सामरिया और पृथ्वी की छोर तक किसी एक भी व्यक्ति को छोड़े बिना सभी सात अरब लोगों को उद्धार के शुभ संदेश का प्रचार करें। हमें अपने खोए हुए भाइयों और बहनों को जल्दी से खोजना चाहिए ताकि हम परमेश्वर को प्रसन्न कर सकें।

परमेश्वर ने सिय्योन में जहां जीवन का पर्व, फसह का पर्व मनाया जाता है, अनन्त जीवन की आशीष प्रदान करने की प्रतिज्ञा की है(भजन 133:1–3; यश 33:20)। बाइबल ने भविष्यवाणी की है कि पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर अपनी संतानों को सिय्योन में बुलाएंगे जहां वे उद्धार प्रदान करते हैं।

आत्मा और दुल्हिन दोनों कहती हैं, “आ!” और सुननेवाला भी कहे, “आ!” जो प्यासा हो वह आए, और जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले। प्रक 22:17

यदि त्रिएक के अनुसार देखा जाए, तो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा एक ही हैं। इसलिए पवित्र आत्मा पिता परमेश्वर हैं। इसलिए हम जान सकते हैं कि जो पिता परमेश्वर की दुल्हिन हैं, वह माता परमेश्वर हैं। पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर दोनों एक साथ पुकारते हैं, “आ! जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले।”

पवित्र आत्मा और दुल्हिन से मिलने के लिए, हमें उस चर्च में जाना चाहिए जो पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर पर विश्वास करता है। बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार, उस चर्च में जहां उद्धार की गारंटी दी गई है, पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर निवास करते हैं और फसह के पर्व के द्वारा परमेश्वर के मांस और लहू को प्राप्त करने की विधि भी आयोजित होती है। यह चर्च ऑफ गॉड है जो बाइबल की इन सभी भविष्यवाणियों को पूरा करता है।

वे जो बाइबल के वचनों में कुछ न बढ़ाने और उनमें से कुछ न घटाने की परमेश्वर की आज्ञा का अनादर करते हैं और माता परमेश्वर को छोड़कर लोगों को यह कहते हुए गुमराह करते हैं कि सिर्फ एक पिता परमेश्वर है, वे बिल्कुल स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। क्योंकि स्वर्गीय माता के बिना कोई भी अनन्त जीवन नहीं पा सकता और स्वर्ग के राज्य में वापस जाने का अधिकार नहीं पा सकता। मैं आप सभी से आशा करता हूं कि आप बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार पिता परमेश्वर के साथ–साथ माता परमेश्वर पर भी विश्वास रखें, और पूरा यकीन करते हुए कि बाइबल में हर भविष्यवाणी अवश्य पूरी होगी, सभी सात अरब लोगों को उद्धार के शुभ संदेश का प्रचार करें, ताकि अनन्त स्वर्ग के राज्य में आप सभी का हार्दिक स्वागत हो सके।