ये मेरी व्यवस्था पर चलेंगे कि नहीं

निर्ग 16:1–31

21,680 बार देखा गया

मिस्र से बाहर निकलने के बाद, इस्राएलियों की सारी मण्डली भोजन समाप्त होने पर मूसा और हारून के विरुद्ध कुड़कुड़ाने लगी।

“यह हमारे लिए अच्छा होता कि परमेश्वर ने हम लोगों को मिस्र में मार डाला होता। मिस्र में हम लोगों के पास खाने को बहुत था। हम लोगों के पास वह सारा भोजन था जिसकी हमें आवश्यकता थी। किन्तु अब तुम हमें मरुभूमि में ले आए हो। हम सभी यहां भूख से मर जाएंगे।”

तब परमेश्वर ने मूसा से कहा,

“मैं आकाश से भोजन गिराऊंगा। वह भोजन तुम लोगों के खाने के लिए होगा। हर एक दिन लोग बाहर जाएंगे और उस दिन खाने की जरूरत के लिए भोजन इकट्ठा करेंगे, इससे मैं उनकी परीक्षा करूंगा कि ये मेरी व्यवस्था पर चलेंगे कि नहीं।”

उस रात बटेरें आकर सारी छावनी पर बैठ गईं, और अगले दिन भोर को छावनी के चारों ओर ओस पड़ी। और जब ओस सूख गई, तब कुछ धनिया के समान श्वेत भोजन जमीन पर दिखाई दिया। इस्राएल के लोगों ने उस भोजन का नाम मन्ना रखा।

“परमेश्वर ने यह आज्ञा दी है: ‘तुम लोगों में से हर व्यक्ति उतना इकट्ठा करे जितना उसे आवश्यक है। कोई इसमें से कुछ सबेरे तक न रख छोड़े।’ ”

किन्तु उनमें से कुछ ने मूसा की बात न मानी; इसलिए जब उन्होंने उसमें से कुछ सबेरे तक रख छोड़ा, तब उसमें कीड़े पड़ गए और वह दुर्गन्ध देने लगा।

छठवें दिन सभी लोगों ने दुगना भोजन इकट्ठा किया।

“कल परमेश्वर के आराम का पवित्र दिन सब्त है। इसमें से जितना बचे उसे सबेरे के लिए रख छोड़ो।”

इसलिए उन्होंने मूसा की आज्ञा के अनुसार अगले दिन सबेरे तक बाकी भोजन बचाया, और कोई भोजन खराब नहीं हुआ और इसमें कहीं कोई कीड़े नहीं पड़े।

“आज उसी को खाओ, क्योंकि आज सब्त का दिन है; इसलिए आज तुमको वह मैदान में न मिलेगा।”

फिर भी, कुछ लोगों ने मूसा की बात नहीं मानी और वे सातवें दिन भी थोड़ा भोजन बटोरने के लिए बाहर गए, किन्तु वे वहां जरा सा भी भोजन नहीं पा सके।

तब परमेश्वर ने उन लोगों को डांटा जिन्होंने व्यवस्था का पालन नहीं किया और कहा,

“तुम लोग मेरी आज्ञाओं और व्यवस्था को कब तक नहीं मानोगे?”

भले ही इस्राएली बहुत चिल्लाए और कुड़कुड़ाए, लेकिन परमेश्वर ने उन्हें हर दिन भोजन दिया ताकि कोई भूखा न रहे। ऐसा होने पर भी, लोगों ने परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया और अगले दिन तक मन्ना रख छोड़ा, या फिर वे सब्त के दिन भी उसे बटोरने के लिए बाहर मैदान में गए।

चूंकि हम अब विश्वास के जंगल में चल रहे हैं, हमारे लिए यह इतिहास एक सबक है जिससे हमें सीखना चाहिए। यदि आप संकट में या मुश्किल स्थिति में हैं, तो परमेश्वर के वचन को मानने के लिए यत्न से मेहनत कीजिए। हम परमेश्वर की आज्ञाओं और व्यवस्थाओं का पालन करते हैं या नहीं, इसे जानने के लिए हमें जांचा–परखा जाता है। यदि हम उस परीक्षा पर जय पाएं, तब परमेश्वर आखिरकार भरपूर आशीष की ओर हमारी अगुवाई करेंगे।