आइए हम अपना एकमात्र जीवन सुसमाचार के लिए जीएं

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इन दिनों सिय्योन के सदस्य उन दूरवर्ती देशों में भी, जहां सुसमाचार अभी तक नहीं पहुंचा था, बड़ी मेहनत से प्रचार कर रहे हैं। वे एक बार बीतने पर वापस न लौटने वाले समयों में सच में अर्थपूर्ण जीवन जी रहे हैं। विभिन्न प्रकार की मुश्किल परिस्थितियों में भी, वे बहुत सी आत्माओं को पिता और माता की बांहों में ले आते हैं। ऐसा करते हुए वे अपनी हृदयस्पर्शी अनुभूतियों और सुंदर कामों के द्वारा “नए प्रेरितों के काम” लिख रहे हैं, जो कोई भी लेखक नहीं लिख सकता।

निस्संदेह, सिय्योन के सदस्य भी विदेश में प्रचार कर रहे सदस्यों के लिए एक मन होकर भोर को प्रार्थना करते हुए विदेश प्रचार मिशन में सहभागी हो रहे हैं। मैं विश्वास करता हूं कि यह भी उस सुसमाचार के कार्य में सहभागी होने का अनुग्रहपूर्ण तरीका है, जो पिता और माता पूरा कर रहे हैं।

जब हम बाइबल के पात्रों को देखते हैं, तो उनमें से कुछ ने सुसमाचार के लिए जीवन जीने के कारण अनन्त जीवन का आशीर्वाद पाया, जबकि दूसरे अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने के कारण अनन्त नाश में पहुंचे। दाऊद और प्रेरित पतरस और पौलुस जैसे विश्वास के पूर्वज थे जिन्होंने हमारे लिए विश्वासी जीवन का एक सुंदर उदाहरण छोड़ा, जबकि यहूदा इस्करियोती और देमास जैसे मूर्ख लोग भी थे; यहूदा इस्करियोती ने एक क्षण गलत निर्णय लेने के कारण अपना पूरा जीवन बर्बाद कर दिया, और देमास ने संसार से प्रेम किया और सत्य का त्याग कर दिया।

बीता हुआ कल कभी वापस लौटकर नहीं आता, और आज का दिन भी ऐसा ही है। आइए हम उन विश्वास के पूर्वजों के बारे में सोचें जिन्होंने सुसमाचार के लिए एक प्रशंसनीय जीवन जिया था, और सोचें कि हम अपने जीवन को और अधिक अर्थपूर्ण तरीके से कैसे जी सकते हैं।

प्रेरित पौलुस जिसने सुसमाचार में अफसोस रहित जीवन जिया

प्रेरित पौलुस ने अन्तर्ज्ञान से यह जान लिया था कि उसका संसार से विदा लेने का समय आ गया है। इसलिए जब उसने तीमुथियुस को पत्र लिखा, तो उसने कहा कि उसे गर्व है कि उसने खेद और लज्जा रहित एक मूल्यवान और अर्थपूर्ण जीवन जिया है।

क्योंकि अब मैं अर्घ के समान उंडेला जाता हूं, और मेरे कूच का समय आ पहुंचा है। मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूं, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा, और मुझे ही नहीं वरन् उन सब को भी जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं। 2तीम 4:6–8

जब कभी मैं इन वचनों को पढ़ता हूं, मुझे उस पौलुस के जीवन से ईष्र्या होती है, जो पूरे विश्वास के साथ ऐसा कह सका कि उसे कोई भी अफसोस नहीं है क्योंकि यदि वह जीवित था तो वह प्रभु के लिए जीवित था, और यदि वह मरे तो वह प्रभु के लिए मरेगा। मैं आशा करता हूं कि हम सब भी ऐसा ही प्रशंसनीय जीवन जीएं जो इतनी सुंदरता से लिखा जा सके।

हमारे पास केवल एक जीवन ही होता है। चूंकि हम अपना जीवन दो बार नहीं जी सकते, इसलिए हमें अपना समय परमेश्वर और स्वर्ग के अनन्त राज्य के लिए और ज्यादा अर्थपूर्ण तरीके से व्यतीत करना चाहिए। आइए हम प्रेरित पौलुस की बात सुनें, जिसने बिना किसी अफसोस के मन भर धर्म के मार्ग पर दौड़ते हुए अंत तक अपना विश्वास कायम रखा।

परमेश्वर और मसीह यीशु को गवाह करके, जो जीवतों और मरे हुओं का न्याय करेगा, और उसके प्रगट होने और राज्य की सुधि दिलाकर मैं तुझे आदेश देता हूं कि तू वचन का प्रचार कर, समय और असमय तैयार रह, सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना दे और डांट और समझा… पर तू सब बातों में सावधान रह, दु:ख उठा, सुसमाचार प्रचार का काम कर, और अपनी सेवा को पूरा कर। 2तीम 4:1–5

पौलुस ने सलाह दी है कि हमें वचन का प्रचार करने का अर्थपूर्ण कार्य करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए। एक बार बीत गए समय को हम वापस नहीं मोड़ सकते, इसलिए हमारे पास ऐसा विचार नहीं होना चाहिए कि, ‘मैं अपने मन की पूरी संतुष्टि तक सांसारिक कार्य करना चाहता हूं और जब मेरे जीवन में कुछ शान्ति आ जाएगी, तब मैं सुसमाचार का कार्य करूंगा।’ हमारा जीवन ऐसी व्यर्थ चीजों पर व्यय करने के लिए बहुत ही छोटा है। आइए हम ऐसा जीवन जीने के लिए पूरी कोशिश करें कि जब हम अपने जीवन के प्रत्येक क्षण के बारे में सोचें, तो हमें परमेश्वर के सामने शर्मिंदा न होना पड़े।

जब हम इस पृथ्वी पर अपना जीवन समाप्त करके परमेश्वर के सामने खड़े रहेंगे, यदि हम उस समय पौलुस के समान ऐसा कहना चाहते हैं कि हम बिना किसी अफसोस के विश्वास के मार्ग पर चले हैं, तो हमें अब से इस संसार के सदृश नहीं बनना चाहिए, लेकिन परमेश्वर की सन्तान के रूप में केवल इसके बारे में सोचना चाहिए कि परमेश्वर की इच्छा क्या है, और हर समय परमेश्वर के वचनों का पालन करने के लिए उत्सुक रहना चाहिए।

इसलिये हे भाइयो, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर विनती करता हूं कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ। यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। इस संसार के सदृश न बनो; परन्तु तुम्हारे मन के नए हो जाने से तुम्हारा चाल–चलन भी बदलता जाए, जिससे तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्छा अनुभव से मालूम करते रहो… रो 12:1–3

इस संसार के लोगों के समान सांसारिक चीजों का पीछा करके, हम परमेश्वर के सामने एक अफसोस रहित जीवन नहीं जी सकते। यदि हम सांसारिक चीजों का पीछा करते हुए अपना जीवन जीएं, तो हम उस मनुष्य के समान बन जाते हैं जो प्यास लगने पर समुद्र का पानी पीता है; समुद्र के पानी से उसकी प्यास और भी ज्यादा बढ़ जाती है।

उसी तरह से, हमारी शारीरिक इच्छाएं जितनी ज्यादा पूरी होती हैं, उतनी ही हमें ज्यादा प्यास लगती है।

हालांकि, यदि हम उस जीवन के जल में से एक बार पी लें, जो परमेश्वर हमें देते हैं, तो हम फिर अनन्तकाल तक प्यासे न होंगे। इस जीवन के जल के द्वारा, हमारे सिय्योन के सदस्य आनन्द और खुशी का अनुभव करते हैं, और वे इसे महसूस करते हैं कि इस आनन्द और खुशी की संसार में किसी अन्य चीज से तुलना नहीं की जा सकती। मैं आशा करता हूं कि हमारे युग में जी रहे सभी लोग इस आनन्द और खुशी का एक साथ अनुभव करें।

आइए हम सब अपना एकमात्र जीवन परमेश्वर के राज्य के अनन्त सुसमाचार के लिए जीने के लिए योजना बनाएं, ताकि हमारा जीवन भी प्रशंसनीय बन सके। हमें ऐसे विचारों को अपने मन से निकाल फेंकना चाहिए कि, “जब मेरी परिस्थिति अच्छी हो जाएगी, तब मैं यह करूंगा,” या “मैं कल से शुरू करूंगा।” केवल वे लोग जिनके पास “अभी इसी समय” शुरुआत करने की इच्छा है, इस कार्य को कर सकते हैं और अपने जीवन को सुंदर बना सकते हैं।

यहोशू का मिशन और उससे जुड़ा सबक

बाइबल में उन पूर्वजों के जीवन और उनके कार्यों के बारे में बहुत से लेख हैं, जो परमेश्वर के अनुग्रह से विश्वास के प्रशंसनीय और सुंदर मार्ग पर चले थे। उन में से एक यहोशू था, जिसने परमेश्वर की इच्छा के अनुसार अपने पूरे हृदय और आत्मा से अपना मिशन पूरा किया था।

मूसा की मृत्यु के बाद यहोशू इस्राएल का नेता बना था। जब वह प्रतिज्ञा किए हुए कनान देश में आया जिसमें दूध और मधु की धाराएं बहती थीं, तो उसने कनानी लोगों से युद्ध किया ताकि वह कनान की भूमि को जीतकर उसे इस्राएल के गोत्रों को दे सके। आइए हम यरीहो के पतन के इतिहास पर दृष्टि करें, जिससे परमेश्वर की अगुआई में कनान को पराजित करने की शुरुआत हुई थी।

यरीहो के सब फाटक इस्राएलियों के डर के मारे लगातार बन्द रहे, और कोई बाहर भीतर आने जाने नहीं पाता था। फिर यहोवा ने यहोशू से कहा, “सुन, मैं यरीहो को उसके राजा और शूरवीरों समेत तेरे वश में कर देता हूं। इसलिए तुम में जितने योद्धा हैं नगर को घेर लें, और उस नगर के चारों ओर एक बार घूम आएं। और छ: दिन तक ऐसा ही किया करना… सातवें दिन तुम नगर के चारों ओर सात बार घूमना, और याजक भी नरसिंगे फूंकते चलें। और जब वे मेढ़ों के सींगों के नरसिंगे देर तक फूंकते रहें, तब सब लोग नरसिंगे का शब्द सुनते ही बड़ी ध्वनि से जयजयकार करें; तब नगर की शहरपनाह नेव से गिर जाएगी”… और यहोशू ने लोगों को आज्ञा दी, “जब तक मैं तुम्हें जयजयकार करने की आज्ञा न दूं, तब तक जयजयकार न करो, और न तुम्हारा कोई शब्द सुनने में आए, न कोई बात तुम्हारे मुंह से निकलने पाए; आज्ञा पाते ही जयजयकार करना।”… फिर सातवें दिन वे बड़े तड़के उठकर उसी रीति से नगर के चारों ओर सात बार घूम आए; केवल उसी दिन वे सात बार घूमे। तब सातवीं बार जब याजक नरसिंगे फूंकते थे, तब यहोशू ने लोगों से कहा, “जयजयकार करो; क्योंकि यहोवा ने यह नगर तुम्हें दे दिया है।” यहो 6:1–16

यरीहो के दृढ़ नगर को पराजित करने की परमेश्वर की युद्ध–योजना यह थी कि जब उन्हें “जयजयकार करो” कहा जाए तो वे सब एक साथ जयजयकार करें। परमेश्वर के वचन का पालन करके, इस्राएलियों ने अपनी आंखों के सामने यरीहो नगर के गिरने का आश्चर्यकर्म देखा, और उन्होंने विजय प्राप्त की।(यहो 6:20)

भविष्यवाणी की दृष्टि से देखा जाए तो अब हम सब वैसी ही परिस्थिति में हैं। जयजयकार जिसे इस्राएलियों ने यरीहो के गिरने के ठीक पहले किया, वह संसार के सभी क्षेत्रों में भेजे गए सिय्योन के लोगों के उस जयजयकार के समान है, जो वे आत्मिक बेबीलोन के गिरने से पहले बहुत सी आत्माओं की पश्चाताप की ओर अगुआई करने के लिए लगाते हैं। नई वाचा के सत्य का प्रचार करनेवाले सदस्यों का यह जुलूस पूरे संसार की ओर जारी रहेगा, ताकि पूरे विश्व में एक भी ऐसा देश बाकी न रहे जहां सुसमाचार का प्रचार न किया गया हो।

हमारा मार्ग हर समय आसान नहीं होता। जिस प्रकार यरीहो के लोगों ने इस्राएलियों से भयभीत होकर नगर के फाटक बन्द कर दिए थे, आत्मिक दुनिया में शैतान हर मुमकिन कोशिशों के द्वारा सत्य में बाधा पहुंचाने का प्रयत्न करेगा क्योंकि वह डरता है कि परमेश्वर की महिमा की ज्योति पूरे संसार में चमकेगी।

हालांकि, जिस तरह से तटबंध के टूट जाने से पानी को बहने से रोकना नामुमकिन है, जीवन का जल अब पूरे संसार में निरंतर बह रहा है। चूंकि सदस्य अपने एकमात्र जीवन को सुसमाचार के लिए जीने के संकल्प के साथ सुसमाचार के कार्य में सहभागी हो रहे हैं, इसलिए वे भी जिनके पास कमजोर विश्वास था, द्रवित हो गए हैं और जाग उठे हैं, और अब वे सब एक साथ एक आवाज में जयजयकार कर रहे हैं। आइए हम यहोशू के दिनों के इतिहास के द्वारा इस युग के सुसमाचार के कार्य की स्थिति को देखें, ताकि हम अपने जीवन में सौंपे गए कार्यों को पूरा कर सकें।

यहोशू जिसने अंत तक परमेश्वर की इच्छा का पालन किया

यरीहो को जीतने के बाद भी, यहोशू ने परमेश्वर की इच्छा का पालन करना जारी रखा; उसने कनान से बहुत से परदेशी लोगों को निकाल बाहर किया और जीती हुई भूमि को इस्राएल के गोत्रों के अनुसार बांट दिया। पृथ्वी पर अपने कार्यों को समाप्त करने के बाद यहोशू को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था, इसलिए उसने अंत में इस्राएलियों को सिखाया कि वे कभी भी परमेश्वर को न छोड़ें।

इसके बहुत दिनों के बाद, जब यहोवा ने इस्राएलियों को उनके चारों ओर के शत्रुओं से विश्राम दिया, और यहोशू बूढ़ा और बहुत आयु का हो गया, तब यहोशू सब इस्राएलियों को, अर्थात् पुरनियों, मुख्य पुरुषों, न्यायियों, और सरदारों को बुलवाकर कहने लगा, “मैं तो अब बूढ़ा और बहुत आयु का हो गया हूं… तुम अपने परमेश्वर यहोवा के वचन के अनुसार उनके देश के अधिकारी हो जाओगे। इसलिये बहुत हियाव बांधकर, जो कुछ मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखा है उसके पूरा करने में चौकसी करना, उस से न तो दाहिने मुड़ना और न बाएं… न इनके देवताओं के नामों की चर्चा करना, और न उनकी शपथ खिलाना, और न उनकी उपासना करना, और न उनको दण्डवत् करना… इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम रखने की पूरी चौकसी करना।” यहो 23:1–11

“इसलिये अब यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा खराई और सच्चाई से करो; और जिन देवताओं की सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार और मिस्र में करते थे, उन्हें दूर करके यहोवा की सेवा करो… परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूंगा।” तब लोगों ने उत्तर दिया, “यहोवा को त्यागकर दूसरे देवताओं की सेवा करनी हम से दूर रहे; क्योंकि हमारा परमेश्वर यहोवा वही है जो हम को और हमारे पुरखाओं को दासत्व के घर, अर्थात् मिस्र देश से निकाल ले आया, और हमारे देखते देखते बड़े बड़े आश्चर्यकर्म किए, और जिस मार्ग पर और जितनी जातियों के मध्य में से हम चले आते थे उनसे हमारी रक्षा की… इसलिये हम भी यहोवा की सेवा करेंगे, क्योंकि हमारा परमेश्वर वही है।” यहो 24:14–18

यहोशू ने घोषित किया कि वह अपनी अंतिम घड़ी तक केवल यहोवा की सेवा करेगा। वह अपने पूरे जीवनकाल में परमेश्वर के साथ चला था। और इस्राएलियों के लिए छोड़ी गई अपनी वसीयत में उसने विनती की कि वे व्यर्थ और अर्थहीन मूर्तियों की पूजा करते हुए और सांसारिक धन या कीर्ति का पीछा करते हुए मूर्खता से अनन्त चीजों को खो न दें, लेकिन परमेश्वर के द्वारा दिए गए अपने जीवन को अर्थपूर्ण रूप से जीएं। हमेशा परमेश्वर के साथ चलते हुए, उसने सच में एक अफसोस रहित विश्वास का जीवन जिया था।

केवल यहोशू ही नहीं था जिसने ऐसा विश्वासमय जीवन जिया था। प्रेरित पौलुस ने केवल परमेश्वर के लिए जीकर अन्त में परमेश्वर की अनन्त बांहों में आराम करने के दृढ़ संकल्प के साथ सुसमाचार के कार्य के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। और गिदोन के योद्धाओं, और दानिय्येल और उसके तीन मित्र, शद्रक, मेशक और अबेदनगो ने भी वैसा ही किया था। उनके अलावा, प्रथम चर्च के संत अपने विश्वास की रक्षा करने के लिए मृत्यु से भी नहीं डरे और किसी धमकी के सामने घुटने नहीं टेके। उन सब ने सच में एक अर्थपूर्ण और इनाम पाने लायक जीवन जिया था।

आइए हम कठिनाइयों पर विजय पाएं और बिना किसी अफसोस के सुसमाचार के लिए जीवन जीएं

जीवन केवल एक बार दिया जाता है। यहूदा इस्करियोती ने, जिसने अपने जीवन में गलत कदम उठाया और टेढ़े मार्ग का पालन किया, अंत में अपरिवर्तनीय और अनन्त विनाश पाया। यदि उसे एक और जीवन दिया गया होता, तो उसने वैसी ही गलती फिर से न दोहराई होती। हालांकि, उसके लिए कोई भी मौका नहीं था।

पतरस और पौलुस समेत सभी प्रेरित कठिनाइयों और कष्टों के बीच से होकर सुसमाचार के मार्ग पर चले, और उन्होंने यीशु के शब्दों का पालन किया कि, “तुम्हें मेरे योग्य बनने के लिए अपना क्रूस लेकर मेरे पीछे चलना होगा,” और परिणामस्वरूप, मृत्यु के समय भी उन्हें जीवन में कोई भी अफसोस नहीं था। उन्हें पूरा भरोसा था कि अब स्वर्ग में उनके लिए धर्म का मुकुट तैयार किया गया है क्योंकि उन्होंने अंत तक अपनी दौड़ पूरी कर ली और अच्छी कुश्ती लड़ते हुए बहुत सी आत्माओं को प्रायश्चित्त की ओर और परमेश्वर की बांहों की ओर ले आए। इसलिए बहुत से जोखिमों से गुजरने पर भी, उन्होंने कहा कि उन्होंने एक अफसोस रहित जीवन जिया है।

पांच बार मैं ने यहूदियों के हाथ से उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए। तीन बार मैं ने बेंतें खाईं; एक बार मुझ पर पथराव किया गया; तीन बार जहाज, जिन पर मैं चढ़ा था, टूट गए; एक रात–दिन मैं ने समुद्र में काटा। मैं बार बार यात्राओं में; नदियों के जोखिमों में; डाकुओं के जोखिमों में; अपने जातिवालों से जोखिमों में; अन्यजातियों से जोखिमों में; नगरों के जोखिमों में; जंगल के जोखिमों में; समुद्र के जोखिमों में; झूठे भाइयों के बीच जोखिमों में रहा। परिश्रम और कष्ट में; बार बार जागते रहने में; भूख–प्यास में; बार बार उपवास करने में; जाड़े में; उघाड़े रहने में… यदि घमण्ड करना अवश्य है, तो मैं अपनी निर्बलता की बातों पर घमण्ड करूंगा। 2कुर 11:24–30

जैसा कि प्रेरित पौलुस ने खुद कहा, उसके जीवन में बहुत से जोखिमों और कठिनाइयों की शृंखला थी। बार बार आने वाली कठिनाइयों के बावजूद वह अंत तक परमेश्वर के साथ चलता रहा, इसलिए अपने जीवन के अंतिम क्षणों में वह मुस्करा सका।

अपने एकमात्र जीवन में, पौलुस ने स्वर्ग की अनन्त महिमा की ओर आगे बढ़ने का एक अनुग्रहपूर्ण निर्णय लिया था और उत्सुकता से उस उद्देश्य की ओर दौड़ा। पौलुस और बहुत से विश्वास के पूर्वजों की तरह, हमें भी एक अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहिए, ताकि जब हम स्वर्ग में जाएं तो हमें कोई अफसोस न रहे। ऐसा होने के लिए, आइए हम आग्रह के साथ प्रार्थना करें और कड़ी मेहनत करें।

परमेश्वर ने हमें एक बहुमूल्य और अच्छा मार्ग दिया है, जिसे हम जीवन में एक बार मिलने वाला मौका कह सकते हैं। चाहे हमने अपना विश्वास का पहला कदम इस बात को पूरी तरह से समझे बिना ही लिया था, लेकिन यह मार्ग जिस पर आज हम चल रहे हैं, स्वर्ग के राज्य का मार्ग है, अनन्त जीवन और उद्धार का मार्ग है, और वह महिमामय भविष्य का मार्ग है।

यदि हम अपना एकमात्र जीवन पूरी तरह से एलोहीम परमेश्वर की महिमा के लिए जीएं और पूरे संसार में यरूशलेम की महिमा की घोषणा करते हुए परमेश्वर की कृपा में अपना जीवन समाप्त करें, इससे ज्यादा इनाम पाने योग्य बात और कोई नहीं हो सकती। पिता और माता ने हमें मौका दिया है कि हम अपने पड़ोसियों से शुरुआत करके, संसार के सभी लोगों को सत्य के द्वारा जगाएं और उन्हें उद्धार की ओर ले आएं। मैं आप सब सिय्योन के लोगों से उत्सुकता से विनती करता हूं कि स्वर्ग के राज्य के महिमामय भविष्य के बारे में सोचते हुए अपने मनों को नया रूप दीजिए और अपना एकमात्र जीवन केवल सुसमाचार के लिए व्यतीत कीजिए।