सिय्योन के लोग परमेश्वर के और उनके परमेश्वरत्व के सरूप होते हैं। अपने आपको देखते हुए हम जान सकते हैं कि जब हमने विश्वास की शुरुआत की थी, हम अब उस समय से और ज्यादा परमेश्वर के सरूप हो गए हैं, क्योंकि हम लगातार परमेश्वर में आत्मिक रूप से बढ़ रहे हैं।
मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब सिय्योन के सभी लोग संपूर्ण रूप से परमेश्वर के सरूप हो जाएंगे।
अब जरा अपनी सन्तानों को ध्यान से देखिए। क्या वे आपके समान नहीं दिखते? अपने माता–पिता के बारे में सोचिए। क्या आप शारीरिक रूप–रंग और व्यक्तित्व दोनों ओर से उनके सरूप नहीं हैं? जैसा कि कहा जाता है, “खून बोलता है,” सन्तान आम तौर पर अपने माता–पिता के सरूप होती हैं।
मनुष्य परमेश्वर की इच्छा से सृजे गए थे। तब क्यों परमेश्वर ने मनुष्यों की सन्तानों को इस तरह सृजा है कि वे अपने माता–पिता के सरूप हों? क्योंकि वह हमें यह समझाना चाहते थे कि हम परमेश्वर, यानी हमारे आत्मिक पिता और माता के स्वरूप में सृजे गए थे।
फिर परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं… अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया; नर और नारी करके उसने मनुष्यों की सृष्टि की। उत 1:26–27
जैसे हमारा शारीरिक रूप–रंग हमारे माता–पिता के सरूप होता है, वैसे ही हमारा आत्मिक रूप–रंग परमेश्वर के सरूप होता है।
अभी हम परमेश्वर के समान बनने की प्रक्रिया में हैं। जब हम परमेश्वर के स्वरूप में बदल जाएंगे, इस क्षण के बारे में बाइबल इस तरह वर्णन करती है:
पर हमारा स्वदेश स्वर्ग पर है; और हम पर उद्धारकर्ता प्रभु यीशु मसीह के वहां से आने ही बाट जोह रहे हैं…। हमारी दीन–हीन देह का रूप बदलकर, अपनी महिमा की देह के अनुकूल बना देगा।फिलि 3:20–21
जैसे कि परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की है, जब इस पृथ्वी पर हमारा कार्य समाप्त हो जाएगा और जब हम एक अनन्त बदलाव के लिए तैयार होंगे, तब हमारी दीन–हीन देह परमेश्वर की महिमा की देह में बदल जाएगी।
हालांकि, यह प्रतिज्ञा सभी लोगों को नहीं दी गई है। सिर्फ परमेश्वर की सन्तान जो परमेश्वर के सरूप होती हैं, उस महिमा की देह को धारण कर सकती हैं और उस स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकती हैं जिसका उन्होंने बेचैनी से इंतजार किया था।
मत्ती के सातवें अध्याय में, हम देख सकते हैं कि कौन परमेश्वर के सरूप बन सकता है।
“जो मुझ से, हे प्रभु! हे प्रभु!’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।”मत 7:21
ऊपर का वचन दिखाता है कि सिर्फ वे जो पिता की इच्छा के अनुसार चलते हैं, परमेश्वर के सरूप हो सकते हैं और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।
हम बाइबल में लिखे परमेश्वर के नियमों और आज्ञाओं का, जैसा परमेश्वर ने हमें सिखाया है, वैसे ही पालन करने की कोशिश करते आए हैं। हम पृथ्वी की छोर तक सुसमाचार का प्रचार करने की परमेश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं। हम उत्सुकता से परमेश्वर के वचनों का पालन करते हैं और उनका पालन करने के लिए हर प्रकार के प्रयास कर रहे हैं, ताकि हम प्रेम और धीरज में बढ़ सकें और स्वर्गीय स्वभाव धारण कर सकें। परमेश्वर हम से ऐसा कहते हैं:
तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो। यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उसमें पिता का प्रेम नहीं है… संसार और उसकी अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।1यूह 2:15–17
इस संसार का धन और गौरव क्षणिक है; वे धुंध के समान हैं जो कुछ समय के लिए प्रकट होती है और बाद में गायब हो जाती है। स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए हमें परमेश्वर के सरूप होना चाहिए, और परमेश्वर के सरूप होने के लिए हमें परमेश्वर की इच्छा का पालन करना चाहिए।
यह परमेश्वर की इच्छा नहीं है कि हम उनकी आज्ञाओं का पालन करने में और सुसमाचार का प्रचार करने में हिचकिचाएं।
… वे अपनी चाल–चलन से मसीह के क्रूस के बैरी हैं। उनका अन्त विनाश है, उनका ईश्वर पेट है, वे अपनी लज्जा की बातों पर घमण्ड करते हैं और पृथ्वी की वस्तुओं पर मन लगाए रहते हैं। फिलि 3:18–19
इस संसार में बहुत से लोग शारीरिक चीजों के पीछे भागते हैं जो नष्ट हो जाएंगी; वे पद, सम्मान, धन और सत्ता के लिए मेहनत करते हैं। हालांकि, हमें अपने मन को ऐसी नाशवान वस्तुओं पर नहीं लगाना चाहिए, लेकिन स्वर्गीय वस्तुओं पर लगाना चाहिए; क्योंकि हमारी नागरिकता स्वर्ग की है।
परमेश्वर के सरूप न होकर हम कभी भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते। एक कहानी है। एक स्वर्गदूत स्वर्ग और पृथ्वी के बीच के द्वार का पहरा दे रहा था। स्वर्ग में प्रवेश करने से पहले सभी को उस स्वर्गदूत की जांच में उपस्थित होना पड़ता था; सिर्फ जो परमेश्वर के सरूप थे, वे ही दरवाजे से गुजर सकते थे।
बहुत से लोग स्वर्ग के दरवाजे पर आए, और उन्होंने डींग मारते हुए उन चीजों को दिखाया जो पृथ्वी पर उनके पास थीं। जो पृथ्वी पर राजा थे, वे रत्न जड़ित मुकुट और अपनी कमर पर सोने के कमरबन्द के साथ शाही वस्त्र पहन कर, अभिमान के साथ स्वर्गदूत के सामने खड़े हो गए। हालांकि, स्वर्गदूत ने अपना सिर हिलाकर कहा, “नहीं, तुम किसी भी रीति से परमेश्वर के सरूप नहीं हो। तुम्हारे यह रत्न जड़ित मुकुट यहां स्वर्ग में सिर्फ कचरे के समान हैं। यहां से चले जाओ!”
फिर एक लालच से भरा हुआ, मोटे गाल वाला धनी पुरुष अपनी सांसारिक संपत्ति दिखाते हुए स्वर्गदूत के सामने खड़ा रहा। “तुम्हारे पास जो कुछ भी है वह कूड़े के अलावा और कुछ नहीं है जो स्वर्ग के राज्य को प्रदूषित करता है। तुम्हारे लालच से भरे हुए गाल किसी भी तरह से परमेश्वर के सरूप नहीं हैं। तुम इस दरवाजे से नहीं गुजर सकते!” धनी पुरुष ने जिस प्रकार वह पृथ्वी पर करता था, स्वर्गदूत को भी रिश्वत देने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ न बोल सका और चला गया।
तब एक सुंदर स्त्री आत्मविश्वास के साथ स्वर्गदूत के सामने खड़ी हो गई। हालांकि, एक हताश दृष्टि से, स्वर्गदूत ने उससे कहा। “तुम बाहर से सुंदर दिखती हो क्योंकि तुमने शृंगार किया है, लेकिन अंदर से तुम्हारे पास परमेश्वर के सरूप कुछ भी नहीं है।”
उस स्त्री के चले जाने के बाद, अचानक ही भीड़ में कोलाहल होने लगा। एक प्रतिष्ठित व्यक्ति प्रशंसा और तालियों के बीच, अपनी छाती फैलाए चल रहा था। हालांकि, वह प्रतिष्ठित व्यक्ति भी स्वर्ग के दरवाजे से नहीं गुजर सका। “तुम शायद लोगों को लुभा सकते हो। लेकिन तुम स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकते, क्योंकि तुम बिल्कुल परमेश्वर के सरूप नहीं हो।”
बहुत से लोग आत्मविश्वास के साथ चले और स्वर्गदूत के सामने खड़े हुए, जैसे कि वे स्वर्ग के योग्य हैं, लेकिन वे स्वर्गदूत के द्वारा उग्रता से फटकारे गए। उन सब के चले जाने के बाद, स्वर्गदूत लगातार उनकी प्रतीक्षा करता रहा जो परमेश्वर के सरूप हों।
कुछ देर बाद, कुछ लोगों का समूह स्वर्गदूत के सामने खड़ा हुआ। वे ऐसे लोग थे जो अच्छे परिवार में से न आने पर भी और अशिक्षित और गरीब होने पर भी नम्र थे, जिन्होंने सच में परमेश्वर से प्रेम किया था और उनकी आज्ञाओं का पालन किया था।
वे परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में खुश थे; उन्होंने सांसारिक चीजों का पीछा नहीं किया, लेकिन स्वर्ग में एक सच्ची आशा रखी। वे कमजोर दिखाई देते थे, और संसार के लोगों से उनकी उपेक्षा की जाती थी, लेकिन स्वर्गदूत ने बड़ी उम्मीद के साथ उनके सामने देखा। सच में वे ही सबसे सुंदर लोग थे जो स्वर्ग में मणियों के समान चमकते। स्वर्गदूत खुशी के मारे चिल्लाया।
“अंदर आइए! आप ही वे हैं जिनका मैं सच में इंतजार कर रहा था। आप सब बातों में, परमेश्वर के क्रूस के मार्ग का पालन करने में, उनके दु:ख और दर्द में सहभागी होने में, परमेश्वर के सरूप हैं। आप सच में सुंदर हैं। आपने पिता और माता को प्रसन्न करने का निरंतर प्रयास किया है और बलिदान के द्वारा सुंदर रूप से शुद्ध हो गए हैं। आप ही वे लोग हैं जो परमेश्वर के सरूप हैं, जिन्हें स्वर्ग के दरवाजे में प्रवेश करने का अधिकार है। अंदर आइए!”
परमेश्वर उत्सुकता से चाहते हैं कि हम उनके समान बन जाएं, इसलिए वह हमें बार बार कहते हैं, “मेरी इच्छा का पालन करो! मेरी इच्छा का पालन करो!” उस उत्सुक विनती के साथ वह हमारे दिलों के द्वार पर खटखटा रहे हैं।
कुछ लोग गलत तरह से समझते हैं कि पिता की इच्छा का पालन करने से उन पर बोझ पड़ा है। हालांकि, उन्हें इस बात को याद रखना चाहिए कि परमेश्वर की इच्छा का पालन करना स्वर्ग के दरवाजे में प्रवेश करने की एकमात्र चाबी है। हमारी पीड़ाएं क्षणिक हैं; परमेश्वर हमें इसलिए पीड़ा देते हैं कि हम मसीह के समान बन जाएं। हमें इस बात का एहसास करना चाहिए कि पीड़ा उन परमेश्वर से आया एक कृपालु उपहार है, जो हम से बहुत ज्यादा प्रेम करते हैं। क्योंकि हमें सिर्फ कुछ कुछ बातों में नहीं, लेकिन सब बातों में परमेश्वर के सरूप होना चाहिए।
जो समाचार हमें दिया गया, उसका किसने विश्वास किया?… क्योंकि वह उसके सामने अंकुर के समान, और ऐसी जड़ के समान उगा जो निर्जल भूमि में फूट निकले; उसकी न तो कुछ सुन्दरता थी कि हम उसको देखते… वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था; वह दु:खी पुरुष था, रोग से उसकी जान पहिचान थी… परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं। यश 53:1–5
चाहे मसीह के स्वरूप में ऐसा कुछ भी नहीं था कि हम उसे चाहते, उन्होंने हमारी दुर्बलता को ले लिया और हमारे दु:खों को उठा लिया। पीड़ा उठाते हुए मसीह ने हमें जन्म दिया, और अब प्रचार के द्वारा हम पापों से दूषित हुए बहुत लोगों को जीवन की ओर ले आ रहे हैं।
हमें मसीह के दु:खों के मार्ग पर चलते हुए, परमेश्वर के सरूप होना चाहिए ताकि हम अपने भाइयों और बहनों की गलतियों को ढंक सकें और उनके अपराधों को क्षमा कर सकें। जब हमारे पास ऐसा बलिदान और प्रेम से भरा नज़रिया होगा, हम पूर्ण रूप से अपने पिता और माता के पुत्र और पुत्रियों के समान उनके सरूप हो सकते हैं।
हम मसीह के जीवन को स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं। परमेश्वर ने हमें सुसमाचार का प्रचार करने का एक महान कार्य सौंपा है, जिसके द्वारा हम अपने पिता के बलिदान का और अपनी माता के प्रेम का अनुसरण कर सकते हैं। इसके द्वारा परमेश्वर स्वर्ग के महिमामय मार्ग पर हमारी अगुआई कर रहे हैं।
उस नगर में सूर्य और चान्द के उजियाले की आवश्यकता नहीं, क्योंकि परमेश्वर के तेज से उस में उजियाला हो रहा है, और मेम्ना उसका दीपक है… परन्तु उसमें कोई अपवित्र वस्तु, या घृणित काम करनेवाला, या झूठ का गढ़नेवाला, किसी रीति से प्रवेश न करेगा, पर केवल वे लोग जिनके नाम मेम्ने के जीवन की पुस्तक में लिखे हैं। प्रक 21:23–27
सिर्फ वे जो पिता और माता के अनुसार निष्कलंक और निर्दोष हैं, पवित्र नगर में प्रवेश करने के लिये योग्य हैं। जरा कल्पना कीजिए कि स्वर्ग का राज्य कितना सुंदर होगा, और हम किस रीति से बदल जाएंगे! क्या हम सब जल्दी से अपनी माता के साथ अपने पिता के घर में नहीं जाना चाहते? यदि सच में हम ऐसा चाहते हैं, तो हमें मसीह के उदाहरण का पालन करना चाहिए ताकि लोग हमें परमेश्वर की सन्तान
के रूप में पहचान सकें जो परमेश्वर के सरूप हैं।
जरा उन स्वर्गदूतों के बारे में सोचिए जो स्वर्ग के खुले द्वार पर शिष्टता से हमारा स्वागत करेंगे। जब तक हम पूर्ण रूप से परमेश्वर के सरूप नहीं होते, हम उनके द्वारा निकाले जाएंगे और कठोरता से रोएंगे। हमारे पास दु:ख, प्रेमी हृदय, दिन–रात नई वाचा के सुसमाचार का प्रचार करने का अथाह उत्साह जैसे मसीह के चिन्ह होने चाहिए।
चाहे हम दीन और कमजोर हैं, हमें धन्यवाद देते हुए, परमेश्वर और उनके राज्य के लिए, और हमारे सभी भाई–बहनें, 1,44,000 के लिए प्रेम से जलता हृदय धारण करते हुए, कांटों से भरे मार्ग का खुशी से पालन करना चाहिए। आइए हम हर बात में परमेश्वर के सरूप बनें ताकि हम सभी जातियों की महिमा व आदर और परमेश्वर की ज्योति से भरे पवित्र नगर में प्रवेश कर सकें।