छोटे कार्यों की महान सामर्थ्य

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जब लंबी सर्दियों के बाद वसंत आता है, बहुत लोग संकल्प बनाते हैं और नई चुनौती देते हैं, जैसे वे भी शीतनिद्रा से जाग उठे हों। विश्वविद्यालय के छात्र अपने सपनों को पूरा करने के लिए विदेशी भाषा सीखते हैं या लाईसेंस पाने के लिए पढ़ाई करते हैं, और कर्मचारी जो अपने तंग कार्यक्रम में व्यस्त रहते हैं, आत्म–उन्नति के लिए कुछ समय निकालते हैं।

चाहे उनका संकल्प दो–तीन दिनों से अधिक टिका न रहे, लेकिन यह बात ही अपने आपमें बहुत अर्थपूर्ण है कि उन्होंने एक योजना बनाई और उसके लिए प्रयास किए। क्योंकि अक्सर लोग यह नहीं जानते कि उन्हें क्या करना है, और चाहे ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें वे करना चाहते हैं, फिर भी उन्हें कैसे और कहां से शुरू करना है, इसे नहीं जानते।

‘जेनरेशन मेबी’ अनिश्चितता के समुद्र में आवारा फिर रहा है

‘मेरा सपना क्या है? क्या ऐसा कुछ है जो मैं सच में करना चाहता हूं? मैं अपने जीवन के लिए अब क्या करना चाहता हूं?’

ऐसा कहा जाता है कि लोगों के पास कम से कम एक चीज ऐसी होती है जो वे अच्छे से कर सकते हैं और जिसे करना उन्हें पसंद होता है, लेकिन बहुत से लोग इस बात को न जानते हुए कि वे किस काम को अच्छे से कर सकते हैं और उन्हें क्या करना पसंद है, डर और चिंता के साये में रहते हैं। वे स्वयं की तुलना उनसे करते हैं जो अधिक व्यस्त और फलप्रद जीवन जीते हैं, और शर्मिंदा होकर आहें भरते हैं। वे यह सोचते हुए अपने आप में भरोसा खो बैठते हैं कि, ‘क्यों मैं बिल्कुल बेकार हो गया हूं और क्यों मैं ऐसा हूं?’

ओलिवर जेगिस नामक एक ऑस्ट्रियाई पत्रकार ऐसी सोच रखनेवाले आज के लोगों को “जेनरेशन मेबी1” कहते हैं। उन्हें ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे स्वयं पर या उस काम पर जो वे कर रहे हैं, विश्वास किए बिना सभी प्रश्नों के उत्तर में “शायद” कहते हैं।

1. ओलिवर जेगिस यह समझाते हैं कि जेनरेशन मेबी उन युवा वयस्कों को दर्शाता है “जो इस सोच से मोहित हैं कि उन्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, चाहे उनके पास अच्छी शिक्षा हो, दूसरों के साथ अच्छे संबंध हों, विभिन्न भाषाओं को बोलने की क्षमता हो और एक वैश्विक दृष्टिकोण हो।”

बहुत से टीवी कार्यक्रम कहते हैं कि कुछ भी असंभव नहीं है, और आत्मविकास के विषय पर लिखी गई बहुत सी किताबें चीख–चीख कर कहती हैं कि, “तुम वह कर सकते हो!” उसके बावजूद भी क्यों लोग कहते हैं, “शायद?”

निर्णय लेने में और कार्य करने में बाधक बनने वाले कारणों में से एक यह है, समाज में तेजी से होनेवाला बदलाव। डिजिटल क्रांति ने जो इंटरनेट के फैलाव के साथ शुरू हुई, ग्लोबल विलेज को कुछ ही दशकों में एक ऑनलाइन की दुनिया बना दिया है। इसने नौकरी में बड़ी विभिन्नता पैदा की है, लेकिन नौकरी की स्थिरता में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आई है। ऐसी परिस्थिति में जहां उनका भविष्य अनिश्चित है, उनके लिए यह जानना मुश्किल है कि उन्हें क्या करना चाहिए और वे क्या करना चाहते हैं, और इसी वजह से वे निर्णय लेने में और निर्णय पर अमल करने में देरी करते हैं। यह एक प्रकार की हिचकिचाहट है।

मनोरंजन जिसका फैलाव हमारी कल्पनाओं से भी काफी बड़ा हो गया है, लोगों को हिचकिचाने के लिए और भी ज्यादा उकसाता है। जब आप रोमांचक खेल या वास्तविक लगने वाले इंटरनेट गेम्स पर ध्यान लगाएं, तो आप शायद अपनी चिंताओं को कुछ समय तक भूल सकते हैं। आप मूवी या ड्रामा फाइलों को अपने कंप्यूटर में सेव करके रख सकते हैं और समय मिलने पर उन्हें देख सकते हैं; वे इतने सारे हैं कि चाहे आप अपने पूरे जीवन भर उन्हें देखें तो भी वे समाप्त नहीं होंगे। ऐसा ही आप म्यूजिक फाइल के साथ भी कर सकते हैं। टीवी पर सैकड़ों चैनल चौबीस घंटे दर्शकों का इंतजार करते हैं। उस संस्कृति में जहां उत्तेजक वीडियो गेम्स बनाए जाते हैं, लोग स्वाभाविक रूप से अपनी चिंताओं को भूलते जाते हैं और कार्य करने में विलंब करते हैं।

अंदरूनी बेड़ियां जो कार्यों को बांध लेती हैं

मान लीजिए कि आपने बाहरी पर्यावरण के प्रलोभन को जीत लिया और अब आप जो चाहते हैं वह करना तय किया। फिर भी चाहे आपने अपना मन बना लिया है, सब कुछ आपकी इच्छा के अनुसार नहीं होगा। जिस क्षण से आप पहला कदम उठाते हैं, उसी क्षण से उन गलतियों को लेकर जो आप कभी भी और कहीं भी कर सकते हैं, आपके दिलो–दिमाग में बेचैनी रहने लगती है, और आप नाकाम होने के डर का सामना करते हैं।

हम कह सकते हैं कि बहुत तेजी से बदलने वाले समाज और विविध प्रकार के मनोरंजन जैसे बाहरी परिवेशों ने जेनरेशन मेबी को जन्म दिया है, और फिर चिंता और डर जैसी उनकी अंदरूनी भावनाएं बेड़िया बनकर उनका पीछा करती हैं। किसी को भी यह पसंद नहीं होगा कि वह गलती करे या नाकाम हो जाए। गलतियों और नाकामियों को लेकर जो हमारे मन में अस्पष्ट–सा डर है, वह हमारी कल्पना से भी बहुत ज्यादा है। जब आप किसी व्यक्ति को अनजाने में की गई अपनी किसी गलती के कारण आई परेशानी के बारे में बात करते सुनते हैं, तो आप सोच सकते हैं कि, ‘ठीक है, वह कोई बड़ी बात नहीं है!’ लेकिन जब वह बात आपके साथ होती है, तब वह बिल्कुल अलग बात होती है। यदि आपका मित्र आपसे कहे कि उसे औसत से भी कम अंक मिले हैं, तो आप कहेंगे कि, “ठीक है, ऐसा तो हो सकता है,” लेकिन यदि वह आपके साथ हो, तो आप यह सोचते हुए निराश हो जाएंगे कि, ‘मुझे शर्म आती है। कैसे मैं अपने दोस्तों को अपना मुंह दिखाऊंगा?’

अमेरिका के बाबसन कॉलेज के रॉबर्ट रॉन्स्टाद ने एमबीए स्नातक छात्रों का अध्ययन किया और पाया कि उनमें से केवल 10 प्रतिशत ही सफल हो पाए। उनके कार्यों ने उनकी सफलता और असफलता को तय किया था। जो सफल हुए थे उन्होंने अपने व्यवसाय को वास्तविकता बनाया था, जबकि बाकी 90 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे इंतजार कर रहे हैं।

यह केवल किसी विख्यात स्कूल के उन 90 प्रतिशत प्रतिभाशाली लोगों की बात नहीं है। जैसे कि जेनरेशन मेबी शब्द सूचित करता है, ज्यादातर लोग एक उचित और अच्छी परिस्थिति बनाए जाने का इंतजार करते हैं और वे यह कहते हुए काम करना टाल देते हैं कि जब एक ऐसा उचित समय आएगा जिसमें अच्छे परिणाम की गारंटी हो, उस समय वे उस काम के लिए चुनौती देंगे। इस प्रकार के विचार के कारण परिस्थिति बेहतर बन जाने के बाद भी वे यह बहाना बताते हैं कि, “मेरे पास अभी समय नहीं है। अभी उचित समय नहीं है।” वे जानबूझकर अनगिनत मौकों को खो देते हैं।

आप इन सब बाधाओं से कैसे जीत सकते हैं और कार्य कर सकते हैं?

दो मानसिकताएं जो कार्य की शुरुआत में होनी चाहिए

तुरन्त कार्य करने के लिए आपके पास दो मानसिकताएं होनी चाहिए। पहले, आपको यह सोचना चाहिए कि गलतियां और असफलता कोई डाकू नहीं हैं जिनसे आप कभी मिलना नहीं चाहते, लेकिन वे आपके पड़ोसी हैं जिनसे आप कभी–कभी मिलते हैं। और दूसरा, आपको अपनी वर्तमान परिस्थिति को सबसे उत्तम परिस्थिति समझना चाहिए जहां आपको हिचकिचाने की जरूरत बिल्कुल नहीं होती।

जैसे कि अल फ्रेंकन नामक एक लेखक और राजनीतिज्ञ ने कहा है कि, “गलतियां मानव जीवन का एक हिस्सा ही है। जीवन के बहुमूल्य सबक मुश्किल मार्ग से ही मिलते हैं,” आप गलतियां करते हुए बढ़ते हैं और सुधरते हैं। असफलता के साथ भी वैसा ही है। निस्संदेह असफलता एक बुरा अनुभव है, लेकिन कभी–कभी जो आपने पाया वह उससे अधिक होता है जो आपने खोया है। असफलता खेद के प्रति सहनशीलता के अनुभव प्रदान करती है और उन अनुभवों के आधार पर आपको एक सही दिशा में जाने के लिए सहायता करती है।

जब आप गलतियों और असफलताओं को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें, तो वे सब विकास और प्रगति की प्रक्रिया बन जाते हैं। लेकिन यदि आप आसानी से हार मान लें या फिर शुरुआत ही न करें, तो वे सच में असफलता बन जाते हैं। जे के रोलिंग उस “हैरी पॉटर” श्रृंखला की लेखिका है जो विश्व इतिहास में सबसे तेजी से और सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब बन गई है, लेकिन उसे प्रकाशित किए जाने से पहले, उसे प्रकाशन कंपनियों के द्वारा 12 बार नकारा गया था। लेकिन अब कोई भी उसे ऐसी लेखिका की तरह याद नहीं करता जो 12 बार असफल हुई थी। यदि उसने 7 या 8 बार असफल होने के बाद हार मान ली होती, तो वह सच में एक असफल लेखिका बन गई होती।

आपको गलतियों–चूकों को नम्रता–पूर्वक स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए और सबसे उचित परिस्थितियों में ही नहीं, बल्कि जिस परिस्थिति में आप हैं वहां से शुरुआत करना ही सबसे अच्छा रास्ता है। चाहे फिलहाल प्रतिकूल और अपर्याप्त परिस्थिति के कारण खराब परिणाम हो सकता है, लेकिन यदि एक बार आप शुरुआत करें, तो आपको दूसरे रास्ते या अनपेक्षित सौभाग्य मिल सकेंगे। महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि आप कोशिश ही न करें, तो आप परिणाम कभी नहीं जान पाएंगे। यदि आप स्वयं हार न मान लें, तो सुअवसर के द्वार हमेशा खुले हैं।

यदि एक बार आप कुछ करने की ठान लें, तो मामूली से मामूली बात से शुरुआत कीजिए। ऐसी छोटी चीजों को भी अमल में लाइए जिनके बारे में आप सोच सकते हैं कि, ‘ऐसी छोटी चीज से कैसे मदद मिल सकती है?’ छोटी चीजें करने के लिए आपको कुछ बाहरी सहारा ढूंढ़ना जरूरी नहीं है, और आपके मन में ज्यादा अंदरूनी कष्ट और डर भी उत्पन्न नहीं होगा। यदि आप सिर्फ बहादुरी से कोई बड़ा उद्देश्य बना दें, तो आप वास्तविकता से ज्यादा दूर होने के कारण बहुत जल्दी थक जाएंगे।

आइए हम एक उदाहरण लें। यदि आप किसी विदेशी भाषा को अच्छे से बोलना चाहते हैं, तो यह अच्छा होगा कि ‘मैं एक वर्ष बीतने के पहले ही बिल्कुल स्थानीय निवासी की तरह बोल सकने के लिए मेहनत से अभ्यास करूंगा,’ ऐसा सोचते हुए बड़े और अस्पष्ट उद्देश्य बनाने के बदले ‘एक दिन में पांच शब्द या एक वाक्य याद करूंगा,’ ऐसा सोचते हुए छोटी योजनाएं बनाएं और उन्हें तुरन्त ही अमल में लाएं। यदि आप अपनी छोटी योजनाओं को अमल में लाने के आदी हो जाते हैं और पढ़ाई का समय और मात्रा बढ़ाते हैं, तो आप और भी अच्छे ढंग से विदेशी भाषा को बोल सकते हैं।

यदि आप थोड़े से आलस्य को छोड़ दें, ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें आप किसी बड़े फैसले या किसी शक्तिशाली प्रेरणा के बिना भी कर सकते हैं। यदि आप ऐसी चीजों को दोहराएं जो फिलहाल तुच्छ प्रतीत होती हैं, तो हो सकता है कि आगे आपको कल्पना से भी कोई बड़ा उपहार मिल जाए। उसके विपरीत, चाहे आप किसी चीज को प्राप्त करने के लिए बहुत उत्सुक हों, लेकिन यदि आप उसके लिए कोई छोटा सा भी कार्य न करें, तो कुछ भी नहीं होगा। हमारे जीवन को बड़े विचारों के द्वारा नहीं, लेकिन छोटे कार्यों के द्वारा बदला जा सकता है।

सुसमाचार का सपना और आशा छोटे कार्य और अभ्यास के द्वारा पूरा होगा

“राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।”(मत 24:14) इस भविष्यवाणी के अनुसार नई वाचा का सुसमाचार तेजी से फैल रहा है। सात अरब लोगों को प्रचार करने के मिशन के चलते, पूरे संसार में सिय्योन में आ रहे सदस्यों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है। इस समय में एलोहिस्ट जो भविष्यवाणी के केंद्र पर खड़े हैं, इस भविष्यवाणी की पूर्ति के लिए अर्थपूर्ण कार्य करते हुए, किसी भी प्रकार के अफसोस के बिना जीना चाहते हैं।

चाहे आप उसे करने के लिए इच्छुक हों, लेकिन हो सकता है कि आप यह न जानते हों कि क्या करना है या कहां से शुरू करना है या कैसे शुरू करना है। महत्वपूर्ण बात यह है कि उसके बारे में सोचते रहने और चिंता करते रहने के बजाय बेहतर होगा कि आप छोटी चीजों से शुरुआत करें। यदि आपके पास सुसमाचार का कार्य करने के लिए आत्मविश्वास और हिम्मत की कमी है, तो ऐसे कार्य कीजिए जो उन कमियों को पूरा कर सकें। चूंकि परमेश्वर ने कहा है कि, “विश्वास सुनने से आता है,” प्रतिदिन सत्य के वचन सुनें और बाइबल को पढ़ें। चूंकि परमेश्वर ने कहा है कि, “जो कुछ तुम चाहो वह मांगो, और वह तुम्हारे लिए हो जाएगा,” प्रतिदिन एक समय नियुक्त करके एक ही बात मांग लीजिए।

चूंकि यह उपाय कुछ खास नहीं, पर बहुत साधारण और अनुमानित है, इसलिए आप यह सुनकर निराश हो सकते हैं और आप सोच सकते हैं कि, ‘ऐसी छोटी बातों से क्या बदलाव आएगा?’ लेकिन यदि आप उसे दोहराते रहें, तो आप निश्चय ही बदलाव देखेंगे। इन सबसे बढ़कर, परमेश्वर छोटे प्रयासों और ईमानदारी को बड़ा मानते हैं और आपको महान आशीषें देते हैं।

पतरस और यूहन्ना जो मछुए थे, चुंगी लेनेवाला मत्ती और एक कट्टरपंथी शमौन! वे सभी चेले और प्रेरित थे जिन्होंने 2,000 साल पहले यीशु का पालन किया था और नई वाचा के सुसमाचार का प्रचार किया था। उन सब में जो बात एक समान थी, वह यह थी कि उन सभी के पास कोई विशेष क्षमता या ज्ञान नहीं था। उन सभी ने केवल “मेरे पीछे हो ले” परमेश्वर के इन शब्दों का पालन किया था। उनके द्वारा ही सुसमाचार पूरे इस्राएल, कुरिन्थुस, गलातिया, फिलिप्पी और रोम तक फैल गया था।

“जो थोड़े से थोड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है: और जो थोड़े से थोड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है।” लूक 16:10

जो हमें चाहिए, वह छोटे–छोटे प्रयास और कार्य हैं। छोटे–छोटे कार्यों को दोहराते हुए और विश्वास में बढ़ते हुए हमें जल्द ही उठ खड़े होने की और आगे बढ़ने की शक्ति मिलेगी, और ऐसे कार्य करने की कोशिश करते हुए जिनके लिए और अधिक हिम्मत और विश्वास चाहिए, हम स्वयं को सुसमाचार के कार्य की अंतिम रेखा की ओर आगे दौड़ते हुए पाएंगे। शायद कुछ चूकें और गलतियां भी हो सकती हैं और कभी–कभी लक्ष्य तक पहुंचने तक नकारात्मक विचार और भावनाएं हमारे मन को हिला सकती हैं। लेकिन हमें यह मान लेना चाहिए कि गलतियां और असफलता एक प्रक्रिया है जो जरूर हो सकती है, और चाहे चिंता और भय हमारा पीछा करें, पर हमें छोटे–छोटे कार्यों से शुरुआत करनी चाहिए। जब हम ऐसा करेंगे, तो हम परमेश्वर में कल्पना से भी कहीं अधिक अद्भुत परिणाम प्राप्त कर सकेंगे। इतना ही नहीं, हम उस भविष्यवाणी के युग में जी रहे हैं जब सुसमाचार का कार्य समाप्त होने पर है। क्या होगा यदि हमारे छोटे से प्रयास भविष्यवाणी के धारा–प्रवाह से मिल जाएंगे? ऐसी आश्चर्यजनक चीजें घटित होंगी जिनके विषय में केवल सोचकर भी हमारा दिल प्रसन्नता के मारे उछल पड़ेगा।

“चाहे तेरा भाग पहले छोटा ही रहा हो, परन्तु अन्त में तेरी बहुत बढ़ती होती।” अय 8:7

संदर्भ
ओलिवर जेगिस, जेनरेशन मेबी: एक नए युग का आरंभ संकेत(अंगे्रजी में Generation Maybe: the Signature of an Epoch) हाफमैन्स एण्ड टोल्केमिट, 2014
स्टीफन गाइज, कैसे एक अपूर्ण मनुष्य बन सकते हैं: आत्मस्वीकृति, निर्भय जीवन और पूर्णतावाद से आजाद होने का नया ढंग(अंगे्रजी में How to Be an Imperfectionist: The New Way to Self-Acceptance, Fearless Living, and Freedom from Perfectionism) सिलेक्टिव एंटरटेनमेंट, एलएलसी, 2015
किम मिन टे, मैंने केवल एक बार कोशिश की थी(कोरियाई में 나는 고작 한 번 해봤을 뿐이다) विज्डम हाउस, 2016
वाडा हिडेकी, कैसे रचनात्मक ढंग से चिंता करें(जापानी में 惱み方の作法) डिस्कवर 21, इंगक, 2012