परीक्षा लेने वाला पत्थर

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संसार में ऐसा कोई नहीं जिसने संसार में जन्म लेकर, जीवन में परीक्षा एक बार भी नहीं दी। प्राचीन काल के लोगों के अलावा, सब को परीक्षा का अनुभव है। परीक्षा के माध्यम के बिना आदमी आज से और संपन्न जीवन नहीं जी सकता। चाहे एक परीक्षा पास की हो, तो भी और उन्नत जीवन की आशा के लिए उसे दूसरी परीक्षा का सामना करना पड़ता है और उसे पास करने की कोशिश करता है।

उसी तरह से परमेश्वर के अनन्त स्वर्ग के राज्य में स्वर्गीय पिता और माता के साथ सनातनकाल तक महिमा और सदा का जीवन पाने के लिए हमें भी अवश्य ही आत्मिक परीक्षा देनी पड़ती है। तब हमें आत्मिक परीक्षाओं को पास करके विजय पाना चाहिए। जो परीक्षाओं के समय में कठिनाई को पार करता है उस पर परमेश्वर की सभी आशीषें उंडेली जाती हैं।

नींव के लिए पत्थर और परखा हुआ पत्थर

परमेश्वर ने कहा कि वह सिय्योन में एक पत्थर रखेगा और उसे परखने का पत्थर और नींव के लिए पत्थर बनाएगा।

“इसलिए प्रभु यहोवा यों कहता है, “देखो, मैं सिय्योन में एक पत्थर, एक परखा हुआ पत्थर, हां, नींव के लिए एक बहुमूल्य कोने का पत्थर, दृढ़ता से रखने पर हूं, जो कोई उस पर विश्वास करेगा वह न डगमगाएगा।” यश 28:16

जैसा इमारत का निर्माण होते समय नींव न होने से इमारत गिर जाती है, वैसा ही सिय्योन, इस पत्थर के बिना दृढ़ नहीं हो सकता। हमारे विश्वास के दृढ़ होने के लिए भी यदि हम पत्थर के द्वारा ली जाती परीक्षा को पास नहीं करते तब हमारे विश्वास की नींव नहीं डाली जाती है, जिससे हम न तो अनन्त स्वर्ग के राज्य जा सकते हैं और न ही उद्धार एंव अनन्त जीवन पा सकते हैं।

यशायाह नबी ने भविष्यवाणी की कि जब परमेश्वर धरती पर आए तब वह स्वयं परखने वाले पत्थर की भूमिका निभाएगा, जिसके द्वारा बहुतेरे लोग ठोकर खाएंगे तथा गिरकर टूट जाएंगे, यहां तक कि वे फ़न्दे में फंस कर पकड़े जाएंगे।

“तू सेनाओं के यहोवा को ही पवित्र मानना। वही तेरे भय का कारण हो और तू उसी का भय मानना। तब वह तेरा पवित्रस्थान बन जाएगा। परन्तु इस्राएल के दोनों घरानों के लिए वह ठोकर का पत्थर और ठेस की चट्टान तथा यरूशलेम के निवासियों के लिए जाल और फ़न्दा होगा। और बहुत से लोग उस से ठोकर खाएंगे तथा गिरकर टूट जाएंगे, यहां तक कि वे फ़न्दे में फंस कर पकड़े जाएंगे।” यश 8:13-15

परमेश्वर परखने वाले पत्थर के रूप में आता है, इसलिए वह ऐसा नहीं आता कि हर कोई उसे आसानी से पहचान कर समझ सके। 2 हज़ार वर्ष पहले यहूदियों के लिए यीशु परखने वाला था। वे मसीह को, जिसकी बांट वे जोहते आए थे, ग्रहण नहीं कर पाए पर परखने वाले पत्थर, यीशु के द्वारा ठोकर खाकर गिर गए। उनकी आंखों में यीशु सिर्फ बढ़ई का पुत्र था। परिणामस्वरूप यीशु के सुसमाचार के जीवनकाल में केवल 120 व्यक्ति अन्त तक यीशु के पीछे चले।(प्रे 1:6-15 संदर्भ) 4 या 5 हज़ार लोगों ने यीशु के द्वारा किए गए आश्चर्यकर्मों को देखा और जीवन के वचन को सुना, फिर भी सभी चले गए थे।

जब बहुतेरे लोग परखने वाले पत्थर के द्वारा ठोकर खाकर यीशु से दूर जा रहे थे, यीशु ने चिंचित होकर चेलों से पूछा, ‘क्या तुम भी चले जाना चाहते हो?’, इस पर पतरस ने जो आत्मिक रूप में श्रेष्ठ चेला था, उत्तर दिया, ‘प्रभु, हम किसके पास जाएं? अनन्त जीवन की बातें तो तेरे पास हैं। हमने विश्वास किया है, और जान लिया है कि परमेश्वर का पवित्र जन तू ही है।’ (यूह 6:66-69)

यद्यपि उनकी संख्या थोड़ी थी फिर भी उन्होंने परीक्षा को पास किया था। पतरस के जैसा किसी ने यीशु को पहचाना, यूहन्ना और याकूब के जैसा किसी ने यीशु को बहुमूल्य समझा, तथा प्रेरित पौलुस के जैसा किसी ने कहा कि यीशु मूल रूप से परमेश्वर है। इस तरह से जिन्होंने सभी परीक्षाओं को पास किया उनसे यीशु ने वादा किया कि वह इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करने का और स्वर्ग में परमेश्वर की मेज़ पर खाने और पीने का आदरणीय व विशेष अधिकार देगा।

सब से बड़ी समस्या जिसे मानव को समाधान देना है

परीक्षा में कभी कभी ऐसी समस्या आती है, जिसकी हम कल्पना भी नहीं करते। यदि एक उच्च स्तर के कर्मचारी चुनने की परीक्षा हो तब परीक्षा में समस्या और अधिक मुश्किल होती है। जब हमें संदिग्ध और अस्पष्ट समस्या दी जाती है तब हम अटकल ­ पच्चू तरीके से उत्तर देते हैं। लेकिन हम स्वर्ग के राज्य में जाने के लिए परीक्षा में ऐसा करके कभी नहीं जा सकते। हमें ठीक उत्तर देना चाहिए।

“वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे न पहचाना। वह अपनों के पास आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उसने उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात् उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास करते हैं।” यूह 1:10–12

परमेश्वर हमारे सामने अति मुश्किल परीक्षा होकर प्रकट हुआ, ताकि संसार में उसके लोग भी उसे न पहचान सकें। जैसे कि परमेश्वर ने वादा कि जो परमेश्वर को सही तरह से पहचान कर विश्वास करते हैं उन्हें परमेश्वर की सन्तान होने का अधिकार देगा, इसलिए यह परीक्षा बिल्कुल आसान नहीं हो सकती।

यदि हम सर्वशक्तिमान रूप में परमेश्वर के इस धरती पर आने की उम्मीद करते हैं, तब परमेश्वर से कभी नहीं मिल सकते हैं और परीक्षा का उत्तर नहीं जान सकते। मनुष्य की उम्मीद के जैसा यदि परमेश्वर बिजलियों और गर्जन की गड़गड़ाहाट के साथ या रहस्यमय ढंग से आए तब वह परीक्षा देने वाला पत्थर नहीं हो सकता, क्योंकि सब लोग उत्तर जानेंगे कि वह परमेश्वर है।

बाइबल ने भविष्यवाणी की कि परमेश्वर परीक्षा लेने वाले पत्थर के रूप में आएगा, इसलिए वह स्वर्गदूत से निचले और कमजोर मनुष्य रूप में प्रकट होगा। इससे यीशु, नासरत का बढ़ई, यूसुफ का पुत्र होकर, इस धरती पर आया। अगर वह महिमामय ज्योति में, सब प्रकट करके आया होता तब उसे दुख उठाना जरूरी नहीं हुआ होता। वह गुप्त रूप से इस धरती पर आया था, इसलिए हमारे जैसी स्थिति और जीवन में दुख उठाते हुए हर प्रकार की पीड़ाओं को स्वयं सह लिया, जो मनुष्य पाते हैं। इस्करियोती यहूदा भी गड़बड़ा गया होगा। उसने सोचा कि मसीह के पास ज्यादा सामर्थ्य है लेकिन जब लोगों ने उसे पकड़वाया तब वैसे ही पकड़वाया गया, जब लोगों ने उपहास और अत्याचार किया तब उसने वैसे ही उपहास और अत्याचार पाया, जब लोगों ने उसे क्रूस पर लटकाया तब वैसे ही लटकाया गया। जब यहूदा ने शारीरिक आंखों से यीशु को देखा, यीशु दूसरे व्यक्ति से और खास नहीं बल्कि बिल्कुल साधारण था। अंत: इस्करियोती यहूदा ने परीक्षा करने वाले पत्थर से ठोकर खाकर गिर गया।

परमेश्वर उनके लिए, जिन्होंने परीक्षा को पास किया, बहुमूल्य है परन्तु उनके लिए, जिन्होंने विश्वास नहीं किया, ठोकर का पत्थर या ठेस की चट्टान है।

“अब उस जीवित पत्थर के पास आकर जिसे मनुष्यों ने तो ठुकरा दिया था, परन्तु जो परमेश्वर की दृष्टि में चुना हुआ और मूल्यवान है,…“देखो, मैं सिय्योन में एक चुना हुआ पत्थर, अर्थात् कोने का एक बहुमूल्य पत्थर, स्थापित करता हूं,…अत: तुम विश्वासियों के लिए यह पत्थर बहुमूल्य है, परन्तु अविश्वासियों के लिए: “जिस पत्थर को राजमिस्त्रियों ने ठुकरा दिया था, वही कोने का पत्थर बन गया,” और, “ठेस लगने का पत्थर तथा ठोकर खाने की चट्टान,”…” 1 पत 2:4-8

जो मसीह को, जो नींव के लिए पत्थर है, ग्रहण नहीं करते हैं वे, चाहे लंबे समय तक विश्वास करते हो, तब भी सच्चा विश्वास मन में नहीं रख सकते। तब हमारे विश्वास का उद्देश्य, आत्मा का उद्धार और स्वर्ग, नहीं पाएंगे और परमेश्वर द्वारा उण्डेली जाती, किसी आशीष को भी नहीं ले सकेंगे।

मसीह मानव जाति के लिए परीक्षा है जो परमेश्वर देता है और सब से बड़ी समस्या है जिसे मानव को समाधान करना है। आज हम कैसे इस परीक्षा का समाधान करेंगे?

परमेश्वर का रहस्य, मसीह

परमेश्वर को जाने बिना विश्वास करना बेकार है। चाहे वह पूरी मेहनत से प्रात:काल प्रार्थना या रात भर पूजा करता है, और हर प्रकार की सेवा या प्रचार का फल ज्यादा पैदा करता है, तब भी यदि परमेश्वर को नहीं जानता, तब सभी कार्य के फल सड़ जाकर बेकार हो जाते हैं। इसलिए होशे नबी ने कहा, ‘यहोवा के ज्ञान को यत्न से ढूंढ़ें।’(हो 6:3) यद्यपि परमेश्वर खुद के पद को छिपाकर आए तो भी हमें बाइबल की भविष्यवाणी के द्वारा यत्न से यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि परमेश्वर कहां है और कौन है, तथा हमसे कौन सा वादा किया है और कौन सी आशीष देता है।

प्रेरित पौलुस ने साक्षी दी कि मसीह युगों और पीढ़ियों से गुप्त रहा रहस्य है।(कुल 1:26–27) बाइबल की 66 पुस्तकें इस तथ्य का बहुत सारा संकेत देती हैं कि मसीह परमेश्वर में पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर है।

प्रकाशितवाक्य 22:17 में लिखा गया कि पवित्र आत्मा और दुल्हिन जीवन का जल देते हैं। इस दुल्हिन के बारे में, जो पवित्र आत्मा के साथ जीवन का जल देती है, कोई व्याख्या करता है, कि दुल्हिन चर्च या संत है, लेकिन हम, संत, सिर्फ जीवन ले सकते हैं न कि हम दे सकते। हम परमेश्वर का दूतकार्य तो कर सकते हैं लेकिन हम में जीवन देने की योग्यता बिल्कुल नहीं है। इसका अर्थ है कि जीवन देने वाली दुल्हिन परमेश्वर है।

“परन्तु ऊपर की यरूशलेम स्वतन्त्र है, और वह हमारी माता है।” गल 4:26

हमें सिर्फ पिता परमेश्वर को समझना भी मुश्किल लगता है, लेकिन परमेश्वर ने हम से माता परमेश्वर के बारे में परीक्षा ली है। और परमेश्वर ने इस परीक्षा का उत्तर देने के लिए सिय्योन में हमारी अगुवाई की है, और जगत के पहले से छिपे हुए रहस्य, ऐलोहीम परमेश्वर के बारे में ज्ञान दिया है।

अब परीक्षण की अवधि है जिसमें हमें परमेश्वर को, जो परखने वाला पत्थर है, ग्रहण करना है। परीक्षा के समय उत्तर नहीं दिखाया जाता है परन्तु परीक्षा के अन्त में उत्तर सब को दिखाया जाता है। अवश्य ही परमेश्वर हम सब को दिखाएगा कि वह महिमा में स्वर्ग का आत्मिक वस्त्र पहन कर बदल जाएगा।

2 हज़ार वर्ष पहले यीशु पतरस, यूहन्ना और याकूब को लेकर पर्वत पर चढ़ गया। जब पर्वत के आसपास में उज्ज्वल बादल ने उन्हें छा लिया, यीशु का दिव्य रूपान्तर हुआ। उसी समय तक यीशु उनके जैसा साधारण मनुष्य रूप में था, और सूखी भूमि से निकली जड़ के समान यीशु में न रूप था, न सौंदर्य कि हम उसे देखते, न ही उसका स्वरूप ऐसा था कि हम उसको चाहते। परन्तु पर्वत पर यीशु का रूपलेख वैसा नहीं था।

भविष्य में परमेश्वर हमें भी ऐसा दिव्य रूप दिखाएगा। जैसे कि प्रेरित यूहन्ना ने देखा कि ‘उसकी आंखें आग की ज्वाला के सदृश थीं और उसके पैर ऐसे चमकदार पीतल के समान थे, जो भट्ठी में तपाकर चमकाया गया हो। उसकी वाणी महाजलनाद जैसी थी।’, परमेश्वर अपना वास्तव का रूप हमें पूरा दिखाएगा।(प्रक 1:9-16)

धन्य है वह जो मेरे कारण ठोकर खाने से बचा रहता है

परमेश्वर ने अपने रहस्य को जगत के पहले से आज तक छिपाके रखा। इसलिए बपतिस्मा देने वाले यूहन्ना ने भी, जो एलिय्याह के कार्य से यीशु का मार्ग सुधारने आया, यीशु को न पहचाना और मन में ऐसा सन्देह हुआ कि शायद वह मसीह नहीं होगा।

“जब बन्दीगृह में यूहन्ना ने मसीह के कार्यों की चर्चा सुनी तो अपने चेलों को उसके पास यह पूछने भेजा, “क्या आनेवाला तू ही है, या हम किसी और की प्रतीक्षा करें?” यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, “…और धन्य है वह जो मेरे कारण ठोकर खाने से बचा रहता है।” ” मत 11:1-6

इस तरह परमेश्वर पूरी रीति से अपनी महिमा की ज्योति को छिपाकर इस धरती पर आया। न तो

शान ­ शौक़त में, न ही शोर मचाते हुए, शान्तिपूर्वक हमारे पास आया। इसलिए बहुत से लोगों को यीशु की सभी शारीरिक जीवन शैली परखाई थी। ऐसे यीशु पर जिन्होंने पथराव किया वे फरीसी, शास्त्री और सब धार्मिक अगुवे बिल्कुल परीक्षा पास नहीं कर सके। यीशु को, जिसकी नौकरी बढ़ई थी, कौन संसार में सारी वस्तुओं को सृजने वाला सृष्टिकर्ता सरलता से सोच सका?

सुलैमान ने साक्षी दी कि वह धरती पर पैदा होने से पहले स्वर्ग में था।(नीत 8:22 ­ 31) इसका अर्थ है कि वह इस धरती पर आने से पहले आत्मिक प्राणी था। ऐसा सुलैमान भी जो सिर्फ परमेश्वर की सृष्टि ही है, शरीर में इस पृथ्वी पर मनुष्य होकर आया था। तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर वैसा ही शरीर में मनुष्य होकर नहीं आ सकता है? हमें ऐसा स्थिर विचार छोड़ना चाहिए कि हम मनुष्य होकर आ सकते हैं लेकिन परमेश्वर मनुष्य होकर नहीं आ सकता।

“तू ने थोड़े ही समय के लिए उसे स्वर्गदूतों से कम किया। तू ने उस पर महिमा और आदर का मुकुट रखा, और अपने हाथों के कामों पर उसे अधिकार दिया है। तू ने सब कुछ उसकी अधीनता में उसके पैरों के नीचे कर दिया है… अत: जिस प्रकार बच्चे मांस और लहू में सहभागी हैं, तो वह आप भी उसी प्रकार उनमें सहभागी हो गया, कि मृत्यु के द्वारा उसको जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली है, अर्थात् शैतान को, शक्तिहीन कर दे, और उन्हें छुड़ा ले जो मृत्यु के भय से जीवन भर दासत्व में पड़े थे।” इब्र 2:7–15

बाइबल कहती है कि परमेश्वर स्वर्गदूतों से निचले रूप में आएगा। परमेश्वर की आशीष में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए, उसने स्वयं परखने वाला पत्थर, जाल एंव फ़न्दा होकर मानव को एक जरूरी परीक्षा ली है। यदि हम इस परीक्षा को पास कर लें तब अपने विश्वास को दृढ़ कर सकेंगे।

यदि अभी तक आपका विश्वास ऐसे स्तर पर हो कि परमेश्वर को पूर्णत: ग्रहण न करके मात्र परमेश्वर की व्यवस्था को मान रहे हैं, तब इस पर फिर से ध्यान देना चाहिए कि परमेश्वर ने आज्ञा दी कि सब्त का दिन मनाओ, इसलिए हम सब्त का दिन मना रहे हैं, और परमेश्वर ने आज्ञा दी कि फसह का पर्व मनाओ, इसलिए हम फसह का पर्व मना रहे हैं। फसह का पर्व, यदि जिसे मनाने की आज्ञा परमेश्वर ने न दी, तो क्या लाभ है? और सब्त का दिन, यदि जिसे मनाने की आज्ञा परमेश्वर ने न दी, तो क्या फ़ायदा है? ये सब परमेश्वर के यह आज्ञा देने से पहले कोई फ़ायदा नहीं था कि ‘सदा की विधि ठहरकर पर्व माना जाए।’ परमेश्वर की व्यवस्था बहुमूल्य है, क्योंकि व्यवस्था उद्धारकर्ता, परमेश्वर, की ओर हमारा मार्गदर्शन करती है।

यीशु ने कहा कि वह धरती पर खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने आया है। वह आश्चर्यकर्म दिखाने नहीं परन्तु हमें उद्धार देने आया।

इस वचन को, “धन्य है वह जो मेरे कारण ठोकर खाने से बचा रहता है”, अपने मन ही मन में रखें, और हमें इस युग का उद्धारकर्ता परमेश्वर, पवित्र आत्मा और दुल्हिन, को सही तरह से ग्रहण करें। आइए हम दाऊद के नाम से आए पिता परमेश्वर और नई यरूशलेम माता परमेश्वर को ग्रहण करें ताकि जहां कहीं भी वे जाते हैं वहीं हम भी जा सकें।

हमारे लिए परमेश्वर वैसा न होना चाहिए, जो परखने वाला पत्थर है। यदि आपके लिए अब भी परमेश्वर परखने वाला पत्थर हो तब जल्दी से परीक्षा जीत जाएं। आशा है कि बाइबल के द्वारा सभी परीक्षा के उत्तरों को पाकर, परमेश्वर आपके लिए विश्वास की नींव के लिए बहुमूल्य पत्थर हो जाए। और हम उत्सुकता से आशा करते हैं, कि सिय्योन के सब परिवार, परमेश्वर का सही तरह से आदर करें, कि पिता और माता परमेश्वर से बहुत सारी आशीष पाएं।