यह स्वाभाविक है कि जब आप किसी से प्रेम करते हैं तो आप उसके प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं। लेकिन यदि आप उनकी भावनाओं पर विचार किए बिना अपने ही तरीके से उसके प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं, तो क्या होगा? हम कुछ ऐसा भी कर सकते हैं जिसे वे नापसंद करते हैं। क्या इसे हम सच्चा प्यार कह सकते हैं?
तो हमें परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को कैसे व्यक्त करना चाहिए? यदि हम अपने तरीके से उनके प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करते हैं, तो इसे ऐसा नहीं कहा जा सकता कि हम परमेश्वर से सच में प्रेम करते हैं। चूंकि परमेश्वर कहते हैं, “क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है(यश 55:9),” तो हमें बाइबल में वर्णित परमेश्वर के तरीके के अनुसार परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करना चाहिए।
परमेश्वर कहते हैं, “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।” आइए हम जानें कि परमेश्वर से प्रेम करने और उनकी आज्ञाओं को मानने के बीच क्या संबंध है और उनकी आज्ञाओं में शामिल परमेश्वर के प्रबंध को समझें।
2,000 साल पहले, परमेश्वर शरीर में आए और मानव जाति के लिए अनंत जीवन और उद्धार का मार्ग खोला, और उन्होंने हमें यह बताया कि हम उनसे कैसे प्रेम कर सकते हैं।
“यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे… जिस के पास मेरी आज्ञाएं हैं और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है; और जो मुझ से प्रेम रखता है उससे मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उससे प्रेम रखूंगा और अपने आप को उस पर प्रगट करूंगा।” यूह 14:15-21
ऊपर के वचनों को ध्यान में रखते हुए, हम जान सकते हैं कि परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना आत्मिक रूप से परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम को व्यक्त करने का तरीका है। एक विश्वासी जो परमेश्वर से प्रेम करता है, परमेश्वर की आज्ञाओं को बहुमूल्य मानता है और उनका पालन करता है।
प्रेरित यूहन्ना ने प्रकाशन के द्वारा अंतिम दिनों के संतों को परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हुए देखा।
पवित्र लोगों का धीरज इसी में है, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते और यीशु पर विश्वास रखते हैं। प्रक 14:12
तब अजगर(शैतान) स्त्री पर क्रोधित हुआ, और उसकी शेष सन्तान से, जो परमेश्वर की आज्ञाओं को मानते और यीशु की गवाही देने पर स्थिर हैं, लड़ने को गया। और वह समुद्र के बालू पर जा खड़ा हुआ। प्रक 12:17
परमेश्वर के पक्ष में खड़े होने वाले लोग जिनके विरुद्ध शैतान खड़ा रहता है, वे वही लोग हैं जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं। यदि परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने वाले लोग परमेश्वर से प्रेम करने वाले संत हैं, फिर उन लोगों के बारे में क्या जो परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं करते? वे अपने कार्य से साबित करते हैं कि वे परमेश्वर से प्रेम नहीं करते, है न?
यीशु ने उन लोगों को सख्ती से डांटा जो परमेश्वर से प्रेम करने का दावा करते हुए भी परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं मानते।
“… जैसा लिखा है : ‘ये लोग होठों से तो मेरा आदर करते हैं, पर उनका मन मुझ से दूर रहता है। ये व्यर्थ मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्यों की आज्ञाओं को धर्मोपदेश करके सिखाते हैं।’ क्योंकि तुम परमेश्वर की आज्ञा को टालकर मनुष्यों की रीतियों को मानते हो।” उसने उनसे कहा, “तुम अपनी परम्पराओं को मानने के लिये परमेश्वर की आज्ञा कैसी अच्छी तरह टाल देते हो!” मर 7:6-9
परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना विश्वास का कार्य है जो परमेश्वर के वचनों का सम्मान करने और उनके प्रति प्रेम करने से होता है। लेकिन चूंकि बहुत से लोगों में ऐसा विश्वास और प्रेम नहीं है, इसलिए वे अपने खुद के नियमों से चिपके रहने के लिए परमेश्वर की आज्ञाओं को आसानी से टाल देते हैं। चाहे वे कितने भी चिल्लाकर परमेश्वर से प्रेम करने का दावा क्यों न करें, परमेश्वर उन्हें स्वीकार नहीं करते, क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि मन पर रहती है।
परमेश्वर ने उनसे सत्य को समझने की आत्मिक बुद्धि छिपा दी।
… “ये लोग जो मुंह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्यों की आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं; इस कारण सुन; मैं इनके साथ अद्भुत काम वरन् अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूंगा, तब इनके बुद्धिमानों की बुद्धि नष्ट होगी, और इनके प्रवीणों की प्रवीणता जाती रहेगी।” यश 29:13-14
शारीरिक दृष्टिकोण से देखें, तो बहुत से विद्वान और बुद्धिमान लोग हैं। लेकिन, उन्हें केवल मनुष्यों के नियम सिखाए गए हैं, इसलिए परमेश्वर ने उनसे अपने वचनों को समझने की बुद्धि को छिपा दिया है। कई सारे उच्च शिक्षित धर्मशास्त्री, तथाकथित बुद्धिमान लोग परमेश्वर के नियमों को नहीं समझते, चाहे वे बाइबल का अध्ययन कितने भी क्यों न करें।
आकाश में लगलग भी अपने नियत समयों को जानता है, और पण्डुकी, सूपाबेनी, और सारस भी अपने आने का समय रखते हैं; परन्तु मेरी प्रजा यहोवा का नियम नहीं जानती। “तुम कैसे कह सकते हो कि हम बुद्धिमान हैं, और यहोवा की दी हुई व्यवस्था हमारे साथ है?… बुद्धिमान लज्जित हो गए, वे विस्मित हुए और पकड़े गए; देखो, उन्होंने यहोवा के वचन को निकम्मा जाना है, उनमें बुद्धि कहां रही?” यिर्म 8:7-9
एक प्रवासी पक्षी भी, जो केवल एक तुच्छ जीव है, अपने नियत समय को जानता है और ऋतुओं के अनुसार आता और जाता है। लेकिन लोग जो परमेश्वर के लोग होने का दावा करते हैं, परमेश्वर के नियत समय को नहीं जानते।
चूंकि जिन लोगों को मनुष्य के नियम सिखाए गए हैं उनसे ज्ञान और समझ छिपाए गए हैं, इसलिए वे बाइबल में लिखे वचनों को नहीं देख सकते और बाइबल के विपरीत सिद्धांतों पर जोर देते हैं। भले ही वे बाइबल पढ़ते हैं, वे परमेश्वर के उद्धार के प्रबंध को नहीं समझ सकते। यह कितनी खेदजनक बात है!
बाइबल उन लोगों के दुखद अंत की भविष्यवाणी करती है जिन्होंने परमेश्वर के वचन को त्याग दिया है।
… वे बलवा करनेवाले लोग और झूठ बोलनेवाले लड़के हैं जो यहोवा की शिक्षा को सुनना नहीं चाहते… “नबियों से कहते हैं, हमारे लिये ठीक नबूवत मत करो; हम से चिकनी चुपड़ी बातें बोलो, धोखा देनेवाली नबूवत करो। मार्ग से मुड़ो, पथ से हटो, और इस्राएल के पवित्र को हमारे सामने से दूर करो।” इस कारण… “कुम्हार के बर्तन के समान फूटकर ऐसा चकनाचूर होगा कि उसके टुकड़ों का एक ठीकरा भी न मिलेगा…” यश 30:8-14
2,700 साल पहले, परमेश्वर ने पहले से ही नबी यशायाह के द्वारा कहा था कि परमेश्वर पर विश्वास करने का दावा करने वाले लोग बाइबल में लिखित परमेश्वर के नियमों की अवज्ञा करेंगे और उनका विरोध करेंगे। ऊपर लिखे गए वचन बताते हैं कि जो लोग परमेश्वर के नियमों को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं वे चिकनी चुपड़ी बातें बोलते हैं, परमेश्वर के प्रेम के बारे में डींग मारते हैं, और जोर से शांति की याचना करते हैं।
यिर्मयाह की पुस्तक में यह लिखा गया है कि लोग जो असत्य से प्रेम करके सही मार्ग, अर्थात् परमेश्वर की आज्ञाओं को त्याग देते हैं, उनका अन्त विनाश है।
… फिर मैं ने सोचा, “ये लोग तो कंगाल और अबोध ही हैं; क्योंकि ये यहोवा का मार्ग और अपने परमेश्वर का नियम नहीं जानते”… इस कारण वन में से एक सिंह आकर उन्हें मार डालेगा, निर्जल देश का एक भेड़िया उनका नाश करेगा। एक चीता उनके नगरों के पास घात लगाए रहेगा, और जो कोई उनमें से निकले वह फाड़ा जाएगा; क्योंकि उनके अपराध बहुत बढ़ गए हैं और वे मुझ से बहुत ही दूर हट गए हैं। यिर्म 5:2-6
हमारी उद्धार की ओर अर्थात् अनंत स्वर्ग के राज्य में अगुवाई करने के लिए, परमेश्वर ने हमें अपनी आज्ञाओं का पालन करने दिया है। मैं सिय्योन के सदस्यों से निवेदन करता हूं कि “आज्ञा मानो,” इस वचन में शामिल परमेश्वर के प्रेम का एहसास करके, जहां कहीं परमेश्वर हमारी अगुवाई करें, उस मार्ग का पालन करें ताकि हम सभी एक साथ स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें।
चूंकि हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं, इसलिए हम उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं। “मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूं,” सैकड़ों बार या हजारों बार यह कहने से कहीं अधिक परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना परमेश्वर के प्रति प्रेम की स्पष्ट अभिव्यक्ति है।
परमेश्वर की आज्ञाएं परमेश्वर के साथ लोगों के रिश्ते को जोड़ती हैं। नई वाचा के द्वारा परमेश्वर हमारे परमेश्वर होते हैं और हम उनकी प्रजा बनते हैं(यिर्म 31:33)। जब हम उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते, तो परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता टूट जाता है। पैर धोने की विधि के दौरान कहे गए यीशु के वचनों के द्वारा, हम इसकी पुष्टि कर सकते हैं।
भोजन पर से उठकर अपने ऊपरी कपड़े उतार दिये, और अंगोछा लेकर अपनी कमर बांधी। तब बरतन में पानी भरकर चेलों के पांव धोने और जिस अंगोछे से उसकी कमर बन्धी थी उसी से पोंछने लगा। जब वह शमौन पतरस के पास आया… पतरस ने उससे कहा, “तू मेरे पांव कभी न धोने पाएगा!” यह सुनकर यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं तुझे न धोऊं, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं।” शमौन पतरस ने उससे कहा, “हे प्रभु, तो मेरे पांव ही नहीं, वरन् हाथ और सिर भी धो दे।”… यूह 13:4-10
फसह के पर्व पर पैर धोने की विधि के दौरान, यीशु ने अपने चेलों से कहा कि यदि वह उनके पैर न धोएं, तो उनके साथ उनका कुछ भी साझा नहीं। पतरस ने सोचा कि उसके गुरु द्वारा उसके पैरों को धोया जाना उचित नहीं है, और इसलिए पहले उसने यीशु को अपने पैर धोने से मना कर दिया। लेकिन यह यीशु की इच्छा नहीं थी। भले ही पैर धोने की विधि एक मामूली विधि जैसी लगती थी, लेकिन एक महत्वपूर्ण बात इस विधि पर निर्भर थी कि उनका परमेश्वर के साथ साझा हो सकता है या नहीं।
हमारे पर्व के नगर, सिय्योन में हमें बुलाने के लिए और परमेश्वर की सभी आज्ञाएं समझने देने के लिए, हम वास्तव में परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं। यदि हमने मनुष्यों के नियमों का पालन किया होता, तो हमारा परमेश्वर के साथ कोई साझा नहीं होता।
यदि कोई व्यक्ति जिसका परमेश्वर के साथ कोई साझा नहीं, ‘हे प्रभु, हे प्रभु,’ पुकारता है, तो क्या वह बचाया जा सकता है? उसे उद्धार नहीं दिया जा सकता, जिसका परमेश्वर के साथ कोई रिश्ता नहीं है। केवल वही जो पिता की इच्छा पर चलता है स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है(मत 7:21)।
हर एक चीज जो परमेश्वर ने बनाई है, भले ही वह मामूली लगती है, उसमें अनंत रहस्य और सुंदरता शामिल हैं। आइए हम, निम्नलिखित कहानी के द्वारा, हमें दिए गए परमेश्वर की आज्ञाओं के महत्व के बारे में सोचें।
एक वनस्पति विज्ञानी ने पहाड़ पर उगने वाले जंगली पौधे से एक छोटा सा फूल तोड़ा और वह माइक्रोस्कोप के द्वारा उसका निरीक्षण करने लगा। तब उसने फूल में परमेश्वर के द्वारा बनाए गए आश्चर्यजनक और रहस्यमय दृश्य को देखा। माइक्रोस्कोप के द्वारा फूल को देखते हुए, वनस्पति विज्ञानी मंत्रमुग्ध होकर एक प्रशंसात्मक बात कहता रहा, “वाह, कितना अद्भुत है!”
उसी वक्त, एक चरवाहे ने जो भेड़ों के झुंड को घर ले जा रहा था, वनस्पति विज्ञानी को देखा। उस चरवाहे ने जिज्ञासु होकर उससे पूछा कि वह इतनी गंभीरता से क्या देख रहा है। वनस्पति विज्ञानी ने चरवाहे को पास बुलाकर माइक्रोस्कोप में देखने के लिए कहा।
माइक्रोस्कोप के माध्यम से दिख रहे प्रकृति के दृश्य से चरवाहा अपनी आंखें नहीं हटा सका। वह महज एक छोटा सा जंगली फूल था जो मामूली दिखता था, लेकिन माइक्रोस्कोप के माध्यम से देखी गई उसकी नाजुक पंखुड़ियां एक उत्कृष्ट कृति थीं जिसे कोई भी चित्रकार नहीं चित्रित कर सकता था।
चरवाहे की आंखें, जो पंखुड़ियों की सुंदरता से मंत्रमुग्ध होकर माइक्रोस्कोप में सावधानी से देख रही थीं, आंसुओं से भर गई थीं।
“अगर मुझे पता होता कि यह इतना सुंदर फूल है, तो मैं इसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार नहीं करता… लापरवाही से व्यवहार नहीं करता…”
उसने उस फूल को महज एक जंगली घास समझा, और जब भी वह वहां से गुजरता था, वह लापरवाही से उसे रौंद देता था। उसने कहा कि वह सच में नहीं जानता था कि यह फूल इतना सुंदर है। फिर उस चरवाहे को अपनी अज्ञानता पर गहरा पछतावा हुआ कि वह फूल की सुंदरता को नहीं जानकर उसे रौंदता रहा था।
भले ही वह फूल बाहरी रूप से बहुत मामूली दिखता था, लेकिन जब एक वैज्ञानिक उपकरण, माइक्रोस्कोप के माध्यम से उसे देखा गया, उसमें प्रकृति की एक अकथनीय सुंदरता समाई हुई थी। जिस तरह जंगली फूलों को उन लोगों द्वारा रौंद दिया जाता है जो उनकी सुंदरता को नहीं जानते, वैसे ही परमेश्वर की आज्ञाओं को उन लोगों के द्वारा अनदेखा किया गया और त्याग दिया गया है जो उनमें शामिल परमेश्वर के रहस्यमय प्रबंध को नहीं जानते।
परमेश्वर की हर एक आज्ञा, भले ही वह मामूली लगती है, हमारे उद्धार से संबंधित है और इसमें परमेश्वर का प्रेम है जो हमारी आत्माओं के लिए चिंता करते हैं। परमेश्वर की आज्ञाओं में छिपा परमेश्वर का प्रेम और आशीष देखने के लिए हमें अपनी आत्मिक आंखें खुली रखनी चाहिए, तब हम परमेश्वर की आज्ञाओं को बहुमूल्य मानकर उनका पालन कर सकते हैं और अपने पूरे हृदय से परमेश्वर से प्रेम कर सकते हैं।
परमेश्वर की सबसे महत्वपूर्ण आज्ञाओं में से एक, नई वाचा के फसह के बारे में सोचें। भले ही यह केवल रोटी खाने और दाखमधु पीने की एक विधि लगता है, लेकिन इसमें उद्धार का रहस्य है। इसलिए मसीह ने कहा कि उन्हें फसह खाने की बड़ी लालसा थी।
तब अखमीरी रोटी के पर्व का दिन आया, जिसमें फसह का मेम्ना बलि करना आवश्यक था। यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा : “जाकर हमारे खाने के लिये फसह तैयार करो।”… उन्होंने जाकर, जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया और फसह तैयार किया। जब घड़ी आ पहुंची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा। और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी कि दु:ख भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं।”… फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिये दी जाती है : मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।” लूक 22:7-15, 19-20
फसह का उद्भव निर्गमन के समय में हुआ था; जब इस्राएली मिस्र से बाहर आए, तो वे फसह के मेम्ने के लहू के द्वारा विपत्तियों से बच गए। फसह के पर्व पर यीशु मसीह ने मानव जाति के उद्धार के लिए “नई वाचा” की घोषणा की। प्रेरितों ने यह कहकर फसह मनाने पर जोर दिया था कि “क्योंकि हमारे फसह का मेमना मसीह भी बलिदान हुआ है, इसलिए हम फसह मनाएं…”(1कुर 5:7-8, आईबीपी बाइबल)
भले ही, नई वाचा का फसह हमारे उद्धार के लिए स्थापित हुई परमेश्वर की एक व्यवस्था है, फिर भी झूठे नबी इसे अस्वीकार करते हैं। वे परमेश्वर के लोगों को फसह मनाने से रोकते हैं, जो परमेश्वर की एक आज्ञा है। हमें उन दुष्ट आत्माओं के कार्य को पहचानना चाहिए जो परमेश्वर के लोगों को परमेश्वर से प्रेम करने से रोकने के लिए, परमेश्वर के नियत समयों और व्यवस्था के बदल देने की आशा करती हैं(दान 7:25)।
शैतान की दुष्ट आत्माएं लोगों के हृदयों में गुप्त रूप से प्रवेश करके आत्मिक ज्ञान और समझ को छुपाया करती हैं। इसके परिणामस्वरूप, जीवन के सत्य को लगभग 1,600 वर्षों तक रौंदा गया, जब तक वह परमेश्वर द्वारा पुनःस्थापित न किया गया।
परमेश्वर ने हमें रोकने या नियंत्रित करने के लिए नहीं, बल्कि हमारी आत्माओं की सुरक्षा के लिए आज्ञाओं को स्थापित किया है। जब हम परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो हम परमेश्वर के प्रेम और बलिदान को महसूस कर सकते हैं जिन्होंने हमारे उद्धार के लिए सभी प्रकार के दुखों को सहन करके मृत्यु होने तक अपने आप को बलिदान किया। परमेश्वर की आज्ञाएं हमारे प्रति उनके प्रेम का एक स्पष्ट प्रमाण हैं, और जब हम उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो हम परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम व्यक्त कर सकते हैं।
स्वर्ग अत्यंत सुंदर स्थान है। परमेश्वर अपनी आज्ञाओं के माध्यम से हमें सुंदर रूप में निर्मल करते हैं जो हमेशा के लिए स्वर्ग में रहने के योग्य है। परमेश्वर से प्रेम करने वाले संतों के रूप में, आइए हम परमेश्वर के असीम प्रेम को महसूस करके उनकी आज्ञाओं का पालन करें और बहुत सी आत्माओं की उद्धार ओर अगुवाई करें।