सबसे बहुमूल्य कार्य, सबसे विशेष आशीषें

ऑस्टिन टाउन, भारत से छवे सु ह्यन

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अन्य कोरियाई पिताओं की तरह, मैं भोर में तारों को देखते हुए काम पर जाता था और देर रात को फिर से तारों को देखते हुए घर वापस आता था। ऐसे दिनों की शृंखला में मेरी जिन्दगी गुजर रही थी। उस समय मैं नहीं जानता था कि बहुत दूर के तारों से जड़ी हुई वह दुनिया क्या है और वे तारे किसके लिए चमक रहे हैं। मैंने एक परिवार का मुखिया होने के नाते किसी से सहायता मांगे बिना सिर्फ अपने परिवार को एक आरामदायक जीवन देने का लक्ष्य रखा था। इस लक्ष्य के साथ, मैं पूरे साल एक भी छुट्टी लिए बिना कड़ी मेहनत करता था।

अपनी पत्नी से सत्य के वचन सुनने के बाद मेरे मन में यह विचार उठा कि यह जीवन जो मैं जी रहा हूं, शायद सब कुछ नहीं है। दरअसल शुरू में जब मैंने सत्य सुना था, मैं विश्वास नहीं कर सका था, क्योंकि चाहे कैथोलिक चर्च में मेरा विश्वास मजबूत नहीं था, लेकिन जो मेरी पत्नी ने मुझे प्रचार किया था, वह कुछ ऐसा था जिसे मैंने कैथोलिक चर्च में 30 सालों तक जाने के दौरान कभी नहीं सुना था।

ऐसा लग रहा था कि उसकी बड़ी बहन भी उसके चर्च में बाइबल का अध्ययन कर रही थी। हर रोज उसकी बड़ी बहन मुझे वह चीज बताती थी जिसे उसने उस दिन पढ़ा था, और वह मुझसे मेरे विचार पूछती थी। एक या दो घंटों तक बाइबल और परमेश्वर के बारे में कहानियां सुनने और उसके साथ बातचीत करने के दौरान, जिस प्रकार कपड़ा थोड़ी थोड़ी बूंदों के द्वारा गिला होता है, मैं भी सत्य के द्वारा प्रेरित हुआ।

कुछ महीनों के बाद मेरी पत्नी ने चमकती हुई आंखों के साथ मुझ से कहा, “अभी हम परमेश्वर के पर्व मना रहे हैं। परमेश्वर पर्वों के दौरान अधिक आशीष देते हैं।”

अगले दिन, काम पर जाने से पहले मैं भोर की आराधना के लिए अपनी पत्नी के साथ चर्च गया। मैं यह देखते हुए हैरान हुआ कि भोर होने के बावजूद बहुत लोग आराधना रख रहे हैं, और मैं उनकी नम्रता देखकर एक बार फिर हैरान हुआ। उस दिन, मैंने चर्च ऑफ गॉड में आनन्द के साथ परमेश्वर की सन्तान बनने की आशीष को प्राप्त किया। मैंने अपने मन में शांति को महसूस किया क्योंकि जो मुझे बहुत पहले कर लेना चाहिए था, आखिरकार मैंने वह कर लिया था। सुबह की हवा जिसमें मैं हर रोज सांस लिया करता था, उस दिन अलग लग रही थी, शायद इसलिए कि मेरी आत्मा ने नया जन्म लिया था।

मैं चाहता था कि मैं उस शांतिमय एहसास को बरकरार रखूं, लेकिन बपतिस्मा के बाद मैं कई महीनों तक व्यस्त होने के कारण चर्च नहीं जा सका। हालांकि कड़ी मेहनत करने के बावजूद चीजें वैसी नहीं गुजरीं जैसा मैं चाहता था, और मुझे अपने कारोबार को बंद करना पड़ा। ऐसे में मुझे यह चिंता सता रही थी कि मैं अब कैसे अपनी रोजी-रोटी चलाऊं। जितना मैं भविष्य को लेकर चिंतित था, मेरी पत्नी भी उतनी चिंतित रही होगी, लेकिन उसने अपनी चिंता को व्यक्त नहीं किया। इसके बजाय उसने मुझे यह कहते हुए दिलासा दिया कि, “सब कुछ परमेश्वर की इच्छा के अनुसार हो जाएगा।”

मैंने अपने परिवार के साथ उस साल का अंतिम सब्त और नए साल का पहला सब्त मनाया था, और मैंने एहसास किया कि जैसा मेरी पत्नी ने मुझे बताया, उन सब चीजों में, जिनका मैंने अनुभव किया था, परमेश्वर की इच्छा मौजूद थी। जब मैं सत्य और झूठ में भेद कर सका, अदृश्य आत्मिक दुनिया की आशीषें कितनी महान हैं, यह समझ पाने में मैं सक्षम हो सका। जैसा परमेश्वर ने कहा, “ज्ञान की कमी के कारण मेरी प्रजा नष्ट हो रही है,” मैं एक अज्ञानी आत्मा थी जो परमेश्वर के ज्ञान की कमी के कारण कभी स्वर्ग नहीं जा सकती थी, लेकिन परमेश्वर ने मुझे मुफ्त में बचाया। कैसे मैं परमेश्वर को धन्यवाद दिए बिना रह सकता हूं?

जब मुझे आनन्द और आश्चर्य के साथ आराधना मनाते हुए करीब एक महीना बीत गया, लगातार वचन पढ़ने के दौरान एक बात मेरे मन की गहराई में उतर आई। वह यह था कि परमेश्वर बहुत उत्सुकता से किसी को ढूंढ़ रहे हैं। यह एहसास करते हुए कि वह परमेश्वर की सन्तान है जो मेरी तरह स्वर्ग से खो गई है, मैंने प्रचार करने के बारे में गंभीरता से सोचा।

पहले, मैं यह न जानते हुए कि मैं कहां से आया हूं और मैं कहां जा रहा हूं, काम से हर दिन परेशान हुआ करता था। हालांकि, किसी के मेरे परिवार को प्रचार करने के कारण, मैं स्वर्ग की आशा रखने में सक्षम हो पाया और सिय्योन में शांति को महसूस कर सका। सच में सत्य को स्वीकार करने के बाद मेरा जीवन आनंद और सुख-शांति से भरपूर था। जब कभी मैं अपने लिए तैयार किए गए अनंत स्वर्ग के राज्य के बारे में सोचता था, तो मैं संसार में किसी भी चीज से ईर्ष्या नहीं करता था। मैं एक ऐसा सुसमाचार का सेवक बनना चाहता था जो दूसरों के साथ वो आशीषें और अनुग्रह बांटते हुए परमेश्वर को प्रसन्न कर सकता था।

चूंकि वह कुछ ऐसा नहीं था जिसे सिर्फ मन में ठान लेने से ही पूरा किया जा सकता था, इसलिए मैंने साहस जुटाया और सुसमाचार के कार्य में भाग लिया। लेकिन मेरे पास वापस जो आया, वह सिर्फ फटकारा जाना और खण्डन होना था। ऐसा भी हो सकता था कि मैं निराशा महसूस करते हुए हार मान जाऊं, लेकिन परमेश्वर ने मुझे एक अविस्मरणीय फल उत्पन्न करने दिया, मानो परमेश्वर ने चाहा कि वह मुझे सामर्थ्य दें।

मैं एक व्यक्ति को प्रचार करने पर था जो मेरे ही कार्यक्षेत्र में सामान्य कारोबार करता था, लेकिन एक दिन, वह खुद मेरे पास बाइबल ले आया और मुझसे एक सवाल पूछा। उसने मुझे बताया कि उसके बेटे ने जो अपने दोस्त के चर्च में गया था, उससे पूछा कि, “पापा, लोग परमेश्वर को पिता कहकर बुलाते हैं, तो माता कहां है?” फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या बाइबल माता परमेश्वर के बारे में वर्णन करती है। उस क्षण मेरा हृदय का जोर से धड़कना शुरू हो गया। ‘सत्य को ढूंढ़ती हुई आत्मा हमेशा मेरे आसपास है!’

मुझे यकीन हुआ कि वह एक स्वर्गीय परिवार का सदस्य है जिसे मैं बेसब्री से ढूंढ़ रहा था। उसने सिय्योन में आकर वचन पढ़े और सत्य को स्वीकार किया। और कुछ दिनों के बाद, उसने अपने बेटे की भी परमेश्वर की ओर अगुवाई की, जिसने उससे माता परमेश्वर के बारे में पूछा था। फिर उसने सत्य के प्रति स्थिर विश्वास के साथ बुद्धिमानी से अपने परिवार के विरोध को पार करते हुए अपने विश्वास को मजबूत किया।

सुसमाचार का मिशन जो परमेश्वर ने हमें सौंपा है, वह सच में हमारे उद्धार के लिए ही है। यह सच था। मैंने सुसमाचार का कार्य परमेश्वर के लिए शुरू किया था, लेकिन सुसमाचार के कार्य के द्वारा मुझे बहुत सी चीजों का बहुमूल्य बोध हुआ। वास्तव में सुसमाचार का प्रचार करने से पहले मैं जानता था कि सिय्योन में भाई-बहनें एक परिवार के सदस्य हैं जिन्होंने स्वर्गीय पिता और माता के मांस और लहू को पाया है, और अपने खोए हुए भाई-बहनों को ढूंढ़ना एक सुखद काम है। लेकिन इस तरह सिर्फ मेरे दिमाग में मौजूद हुए ज्ञान ने तभी आखिरकार मेरे दिल को प्रेरित किया जब मैंने वचन का प्रचार करना शुरू किया और फल उत्पन्न किया। जब मैंने खुद परमेश्वर के उस बलिदान का अनुभव किया, जो मनुष्य की वाणी से नहीं कहा जा सकता, और जब मैंने पूरी तरह जाना कि हर एक आत्मा उन भाई-बहनों के प्रयास से ढूंढ़ी गई है जो परमेश्वर के उदाहरण का पालन करते हैं, तब मैं एहसास कर पाया कि मेरे बगल में भाई-बहनें कितने बहुमूल्य हैं।

कुछ साल पहले दिए गए “दस तोड़ों” के मिशन ने मुझे सुसमाचार के कार्य को देखने का एक नया नजरिया दिया। शुरुआत में मैं यह सोचते हुए चिंता में था कि, ‘मैं जो बहुत मायनों में कमजोर हूं, कैसे दस आत्माओं की सत्य की ओर अगुवाई कर सकूंगा?’ लेकिन समय बीतने पर जिन भाइयों और बहनों ने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया था उनके बारे में अक्सर सुनते हुए, मैंने एहसास किया कि मैं गलत था। मेरे और उनके बीच में निश्चित फर्क था। भले ही मैं बिल्कुल उनकी तरह सुसमाचार के लिए कार्य कर रहा था, लेकिन मैं कई व्यर्थ चीजों पर चिपका हुआ था या स्वर्गीय आशीषों और बेमतलब की चीजों के बीच में फंसकर हिचकिचा रहा था, लेकिन उस दौरान वे अपनी आशा को सिर्फ स्वर्ग के राज्य में रखते हुए अपने मिशन को उठाने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास कर रहे थे। क्योंकि उनकी मानसिकता और व्यवहार मुझे से बिल्कुल अलग था, उनका परिणाम भी अलग ही था।

मैंने इस पर पश्चाताप किया कि मैंने अपने समय को व्यर्थ बर्बाद किया था, और फिर अपने सुस्त मन को जगाकर दृढ़ संकल्प किया कि मनुष्य को जीवन एक बार ही मिलता है, तो मैं अपना बाकी जीवन सिर्फ सुसमाचार प्रचार करते हुए जीऊंगा। जब मैंने व्यर्थ लालच को अपने मन से निकाला और बड़े विश्वास के साथ नया जन्म पाने की कोशिश की, तब परमेश्वर ने मेरे परिवार की एक जगह की ओर अगुवाई की जहां परमेश्वर की महान आशीषें हमारा इंतजार रही थीं। वह भारत था जहां करीब 1,600 भाषाएं, करोड़ों भगवान और 1.2 अरब लोग रहते हैं।

कई बार मैंने निराशा महसूस की क्योंकि लोग अलग-अलग भाषा बोलते थे और अपने-अपने धर्म में मजबूत विश्वास होने के कारण सत्य को अस्वीकार करते थे। उन लोगों को देखते हुए जो सत्य को समझ नहीं पाते थे, मैं बहुत दुखी और व्याकुल होकर कई बार आंसू बहाता था। एक बार मेरा सब परिवार डेंगू बुखार के कारण बीमार पड़ गया। हालांकि, जो कुछ भी हुआ, मैंने हमेशा उसके लिए धन्यवाद दिया, क्योंकि जिस पथ पर पिता और माता चले, उस पर चलने के दौरान, मैं थोड़ा बहुत एहसास कर पाया कि हमारे कारण स्वर्गीय पिता और माता का मन कितना टूटा होगा, और वे हम से कितना प्रेम करते हैं। अभी भी, जब कभी मैं पिता और माता के बारे में सोचता हूं जो पूरे संसार में अपनी सन्तानों के लिए अपने आप को बलिदान करते हुए सुसमाचार के कार्य का नेतृत्व कर रहे हैं, तब जो मैं कह सकता हूं, वह सिर्फ “धन्यवाद” है।

जैसे-जैसे साल गुजरने लगे, मैं अपने हृदय की गहराई में अधिक-से-अधिक एहसास कर पाया कि परमेश्वर के साथ चलना और उनके उदाहरणों का पालन करना सबसे खुशी का कार्य और सबसे बहुमूल्य कार्य है। एक-एक सुसमाचार का तोड़ा जोड़ने से मिलनेवाला आनन्द वो आशीषें हैं जिन्हें मैं संसार में किसी भी चीज से नहीं पा सकता हूं। मैं क्या हूं कि परमेश्वर मुझे इतना बड़ा अनुग्रह देते हैं?

अब आशावान 2015 का उदय हो चुका है। पिता बड़ी बेस्रबी से उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब वह अपनी सन्तानों से दुबारा मिलेंगे, और माता एक और अधिक आत्मा ढूंढ़ने के लिए दिन-रात उत्सुकता से प्रार्थना कर रही हैं। मैं प्रार्थना करता हूं कि पिता और माता की यह आशा इस साल पूरी हो जाए। वह दिन और अधिक जल्दी आने के लिए, मैं अपने आप को उन चीजों से भर दूंगा जिनकी मुझमें कमी है, और जो मैं गलत कर रहा हूं उसे सही करूंगा, और अपने पूरे हृदय के साथ सुसमाचार का प्रचार करूंगा।

कल भी और आज भी मैं हर दिन पिता और माता को याद करता हूं। मैं पूरी दुनिया के स्वर्गीय परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिलकर पिता और माता को नववर्ष का अभिवादन करता हूं।

“पिता और माता, हम आपको धन्यवाद देते हैं और आपसे प्रेम करते हैं!”