मेरे देश में मिला एक नया सपना

सोंगनाम, कोरिया से इ मिन ग्यु

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जब मैं माध्यमिक स्कूल में प्रवेश करने वाला था, मेरे परिवार की परिस्थिति एकाएक बहुत ही खराब हो गई, और मुझे अपने परिवार को छोड़कर अमेरिका में रहने वाली चाची के पास रहने जाना पड़ा; अनपेक्षित ढंग से मुझे अपने प्रेमी परिवार को छोड़कर जाना पड़ा।

सौभाग्य से अपने देश की विपरीत दिशा में जीवन उतना बुरा नहीं था। स्कूल में मेरी उम्र के कोरियाई छात्र बहुत से थे, और मैं जल्दी से अमेरिकी छात्रों का भी दोस्त बन गया। मेरे अमेरिका आने के थोड़े ही समय बाद, मेरी दादी जो मेरे लिए चिंता करती रहती थी, अमेरिका में आ गई और मुझे अकेला या परदेशी जैसा महसूस नहीं होता था।

लेकिन फिर भी मैं कोरिया को याद करता था। कुछ सालों के गुजरने के बाद कोरिया की अपेक्षा मुझे अमेरिका में अपना जीवन जीने की आदत हो चुकी थी, लेकिन मेरा मन तो कोरिया में था। यदि मैं अमेरिका में रहा होता, तो मैंने कालेज से स्नातक की उपाधि ली होती और एक नौकरी ली होती और एक संतुलित जीवन जिया होता। फिर भी, चाहे मैं कितना भी ज्यादा सोचता था, जगह जहां मुझे रहना चाहिए, वह कोरिया ही था। आज मुझे लगता है कि मेरी कोरिया में स्वर्गीय माता से मिलने की यात्रा तब से शुरू हुई थी।

चाहे कोरिया में मेरे लिए कुछ भी तैयार नहीं था और मुझे शून्य से शुरुआत करनी थी, फिर भी मैं कोरिया के प्लेन में बैठ गया। मुझे लगा कि आखिरकार मैं उस जगह वापस जा रहा हूं जहां मुझे होना चाहिए। मुझे कोई डर नहीं लग रहा था। बल्कि मुझे हल्का महसूस हो रहा था। ऐसी बहुत सी चीजें थीं जो मैं कोरिया में करना चाहता था, और मेरा एक सपना था जो मैं पूरा करना चाहता था।

अपने सपने को पूरा करने के लिए, मुझे विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए तैयारी करनी थी, इसलिए मैं अपने माता–पिता के घर से थोड़ी दूरी पर एक जगह में रहने लगा। भले ही मुझे कोरिया को छोड़े हुए बहुत साल गुजर गए थे, लेकिन कुछ भी मुश्किल नहीं लग रहा था, क्योंकि मैं इन नए अनुभवों को लेकर बहुत उत्तेजित था या फिर मैं जानता था कि यह सब कुछ मेरे सपनों को पूरा करने की प्रक्रियाएं हैं। अपने नए दोस्तों के साथ यहां वहां घूमना भी अच्छा था।

तभी एक दिन रास्ते पर चलते हुए, मैंने चर्च ऑफ गॉड के सदस्यों से माता परमेश्वर के बारे में सुना। मैं बचपन से ही अपनी दादी के साथ एक प्रोटेस्टैंट चर्च में जाया करता था, लेकिन मैंने पहले कभी भी माता परमेश्वर के बारे में नहीं सुना था। विरोध की भावना के साथ, मैंने उनसे कहा, “यदि आप मुझे बाइबल के द्वारा माता परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में बताएंगे तो मैं विश्वास करूंगा।” तब उन्होंने सच में मुझे बाइबल से माता परमेश्वर के बारे में बताया। हैरान होकर मैंने और ज्यादा बार बाइबल का अध्ययन किया, और चर्च ऑफ गॉड में अपना विश्वास का नया जीवन शुरू किया।

उस समय मेरे घर से चर्च बहुत दूर था, लेकिन एक भाई नियमित रूप से वहां आता था और मुझे बाइबल सिखाता था। उसने जितना भी प्रयास किया, मेरा विश्वास उतना ही बड़ा हुआ। जब मैंने परमेश्वर को महसूस किया और आत्मिक दुनिया के नियमों को समझा, तो मेरे अस्पष्ट विचार स्पष्ट बनने लगे, और मेरी सोच और व्यवहार बदल गए। मैंने उन सारी आदतों को बन्द कर दिया जो मेरे स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं थी, और मैंने चाहे कुछ भी हो, परमेश्वर के नियमों का पालन करने का संकल्प लिया। वास्तव में सत्य को ग्रहण करने से पहले, मुझे लगता था कि मेरे पास विश्वास है, लेकिन मुझे सच में पता नहीं था कि मैं परमेश्वर से प्रेम करता हूं या नहीं, और कि क्यों मुझे आराधना करनी चाहिए। लेकिन मैं चर्च ऑफ गॉड की शिक्षाओं से बदल रहा था।

उसी समय के दौरान, एक अनपेक्षित घटना हुई। चूंकि मेरे पिता की तबियत अच्छी नहीं रहती थी, मुझे अपने माता–पिता के साथ रहने जाना पड़ा। स्कूल में छुट्टियों के लिए आवेदन पत्र भरने के समय, मेरा मन बहुत भारी हो गया, क्योंकि एक ओर मुझे अपने पिता की चिंता थी और दूसरी ओर मुझे अपने सपने को भूला देना था। मुझे लगा कि अब चर्च में जाना भी मुश्किल होगा क्योंकि मुझे पता नहीं है कि मेरे माता–पिता जिस शहर में रहते हैं, उस शहर में चर्च कहां है।

आश्चर्यजनक रूप से चर्च ऑफ गॉड मेरे माता–पिता के घर के बिल्कुल सामने, सड़क के उस पार ही था। मैं बहुत कृतज्ञ था, और मैंने सोचा कि इसमें भी परमेश्वर की कुछ इच्छा है।

मेरे पिता की देखभाल करते हुए, जब कभी भी मेरे पास समय होता था, मैं सिय्योन में जाता था। मेरा विश्वास का जीवन जो एक अनपेक्षित ढंग से आगे बढ़ रहा था, पहले से भी ज्यादा जोश से भरा था। अब मैं उपदेशों को पहले से ज्यादा अच्छे से समझ सकता था। यहां तक कि जब मैं स्वयं वचनों का अध्ययन करता था, तो वचन जो मैंने पहले पढ़े थे, मुझे नया बोध देते थे।

बहुत सी शिक्षाओं में से मैं इस बात से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ कि परमेश्वर अपनी खोई सन्तानों के खोजे जाने पर सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं। इसलिए मैं भाइयों और बहनों के साथ प्रचार करने निकल पड़ा। मैंने सोचा कि जैसे मैंने किया था वैसे ही सब लोग माता परमेश्वर को स्वीकार करेंगे क्योंकि बाइबल की शिक्षाएं स्पष्ट हैं, लेकिन वास्तविकता बहुत ही अलग थी। बहुत ही थोड़े लोगों ने हमारी बात को सुना, और बहुत से लोग हमारे चर्च के बारे में गलत सोच रखते थे। सुसमाचार का प्रचार करना आसान नहीं था।

फिर भी मैं बाहर जाकर प्रचार करने से नहीं रुक सका, क्योंकि अपने खोए हुए स्वर्गीय परिवार के सदस्यों को ढूंढ़ना मेरा आनन्द है और स्वर्गीय माता की प्रसन्नता है जो सभी मानवजाति का उद्धार करना चाहती हैं।

मैं अपने परिवार को छोड़ देना नहीं चाहता था। मैं सच में चाहता था कि मेरी माता उद्धार पाएं। मुझे थोड़ी बहुत हिचकिचाहट हुई क्योंकि मेरी माता को चर्च में थोड़ी सी भी रुचि नहीं थी, और मुझे अपने परिवार को प्रचार करने में तकलीफ हो रही थी। लेकिन मैं वचन को अपने अंदर नहीं रख सकता था। मैंने हिम्मत बांधी। शुरुआत में मेरी माता को वह अजीब लगा क्योंकि वह उनके लिए असामान्य था, लेकिन कुछ दिनों तक बाइबल का अध्ययन करने के बाद उन्होंने खुशी के साथ सत्य को ग्रहण किया।

मेरी माता से प्रोत्साहन लेकर, मैंने अपने रिश्तेदारों को भी प्रचार किया। जितना ज्यादा मैंने प्रचार किया, उतना ही ज्यादा आत्मविश्वास मेरे अंदर आता गया। मेरी चाची, दादी और चाचा ने, जो दूसरे चर्चों को लेकर हमेशा संदेह करते थे, एक के बाद एक नया जीवन प्राप्त किया। कुछ समय के बीत जाने पर मेरे पिता भी परमेश्वर की सन्तान बने।

शुरुआत में मैंने सोचा भी नहीं था कि मुझे इतनी ज्यादा आशीषें मिलेंगी। मैं ऐसा ही सोचता था कि अपने परिवार की अगुआई करना मुश्किल होगा, और तिरस्कृत किए जाने के अनुभव के कारण मैं पीछे हट जाता था। लेकिन परमेश्वर ने मेरा एक आज्ञापालन का कार्य याद किया और मेरे लिए सभी द्वार खोल दिए।

अगर मैं बीते हुए दिनों को याद करता हूं, तो मेरे साथ जो कुछ भी हुआ, वह सब अद्भुत था: घर की याद आने के कारण कोरिया आना, कोरिया में एक प्रेम के दूत से मिलना जिसने मुझे स्वर्गीय माता के विषय में प्रचार किया, मेरे माता–पिता के घर के सामने, ठीक सड़क के उस पार सिय्योन का होना… यह सब बातें जो संयोग से हुई लगती हैं, मेरे लिए परमेश्वर की योजना थी।

मैंने परमेश्वर से बहुत महान अनुग्रह पाया है, लेकिन मुझे बुरा लगता है क्योंकि मैंने सच में कुछ भी नहीं किया है, खासकर मैंने अपने दोस्तों की सत्य की ओर अगुआई नहीं की है। अच्छे कार्यों के द्वारा उनका विश्वास जीतने के बाद यदि मैंने उन्हें सुसमाचार का प्रचार किया होता और परमेश्वर की महिमा उन पर चमकाई होती, तो परिणाम कुछ अलग ही होता।

पिछले दिनों में मुझमें क्या कमियां थीं, उन्हें देखकर मैं अपने विश्वास और कार्यों में आगे बढ़ना चाहता हूं। इस तरह से मैं बहुत सी आत्माओं को माता की ओर ले आना चाहता हूं। ऐसा करने के लिए, मुझे अच्छे कार्य करने चाहिए और भाइयों और बहनों के साथ एक मन होना चाहिए। मुझे प्रचार करने का ज्यादा अनुभव नहीं है, लेकिन मुझे पता है कि सुसमाचार का कार्य मैं अपनी सामर्थ्य से नहीं कर सकता। क्योंकि जब मैंने दूसरों को प्रोत्साहन दिया और दूसरों के साथ एकता में जुड़ गया, तो मुझे अच्छा परिणाम मिला।

कहा जाता है कि, “प्रचार करना बलिदान है,” लेकिन मैंने प्रचार करते समय कभी भी नहीं सोचा था कि “मैं बलिदान कर रहा हूं।” चूंकि बाइबल में लिखा गया है कि जिन्हें परमेश्वर ने योग्य ठहराया है केवल उन्हें ही सुसमाचार सौंप दिया है, मैं परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं कि मुझे सुसमाचार का प्रचार करने के लिए योग्य समझा।

अब, मेरा एक नया सपना है कि मैं अपने सभी स्वर्गीय परिवार वालों को खोज लूं। मुझे विश्वास है कि परमेश्वर ने इसी कारण से मुझे यहां बुलाया है।

स्वर्गीय माता का एक दिन 25 घंटों का होता है; हमारे कारण उनके पास सोने या आराम करने का भी समय नहीं होता। मैं माता के उदाहरण का पालन करूंगा और एक स्वस्थ विश्वास के साथ सुसमाचार के लिए मेहनत से कार्य करूंगा। मुझे लगता है कि पूरे संसार के लोगों को प्रचार करने के मिशन की यही शुरुआत है।