आत्मिक मैराथन दौड़ समाप्त करने के लिए
उलानबातर, मंगोलिया से एनओड

जब मैं तीन साल की थी, मेरी मां की मृत्यु हुई, और जब मैं नौ साल की थी, मेरे पिता की मृत्यु हुई। मेरी सबसे बड़ी बहन, जो उस समय सोलह साल की थी, परिवार की मुखिया बनी, और हम अपने माता–पिता को खोने के दुख से और आर्थिक मुश्किलों से जूझते हुए जी रहे थे।
माध्यमिक पाठशाला में प्रवेश करने के बाद मैंने दौड़ना सीखा और एक मैराथनर के रूप में राष्ट्रीय टीम की सदस्य बन गई। दुर्भाग्य से माइनस 40 डिग्री की कड़ी ठंड में प्रशिक्षण के दौरान मेरे टखने में चोट लगी, और मुझे मैराथनर होना छोड़ना पड़ा।
चूंकि माता–पिता की अनुपस्थिति और खिलाड़ी के कठोर संघर्ष का मुकाबला करते हुए मैं बड़ी हुई, मैं घमण्डी थी और खुद पर गर्व महसूस करती थी कि मैंने अपनी ही शक्ति से सफलता प्राप्त की है। और मैं सोचती थी कि ईसाई धर्म उन कमजोर लोगों के लिए एक धर्म है जो खुद पर विश्वास नहीं करते। लेकिन परमेश्वर ने मेरी एक दोस्त के द्वारा मुझे सुसमाचार सुनने की अनुमति दी।
मैं संयोग से अपनी पुरानी स्कूल की दोस्त से मिली, और मैंने उससे सत्य के वचन सुने और नया जीवन प्राप्त किया। वह 8 अगस्त 2008 का दिन था जब बीजिंग ओलंपिक शुरू हुआ। मैं 4 वर्षों से बीजिंग ओलंपिक देखने को बहुत उत्सुक थी, मगर मैंने उस दिन को ओलंपिक खेलों को देखते हुए नहीं, लेकिन बाइबल का अध्ययन करते हुए बिताया। जिस दिन ओलंपिक शुरू हुआ, उस दिन परमेश्वर ने मुझे अपनी आत्मिक मैराथन दौड़ शुरू करने दी। उस दिन से मैंने हर दिन वचन का अध्ययन किया।
जब मेरा विश्वास तेजी से बढ़ रहा था, तब मेरा वह वीजा मंजूर हो गया, जिसका आवेदन मैंने दो साल पहले चेक गणराज्य में नौकरी करने के लिए किया था। मैं अच्छी तरह से जानती थी कि चेक गणराज्य में जाना व्यर्थ है, लेकिन मेरी सबसे बड़ी बहन ने, जिसने बहुत छोटी उम्र से ही अपने छोटे भाई–बहनों की देखभाल करने के लिए कड़ी मेहनत की थी, आंखों से आंसू बहाते हुए मुझसे विनती की, और मैं उसकी विनती को नकार नहीं सकी। ठीक योना की तरह जो परमेश्वर से दूर भागने के लिए जहाज से तर्शीश गया, मैं सुसमाचार को पीछे छोड़कर ट्रैन से चेक गणराज्य की ओर रवाना हुई।
चेक गणराज्य पहुंचने के कुछ ही समय बाद, जिस कारखाने में मैं काम करती थी उसका दिवाला निकल गया, और मुझे दूसरे शहर जाना पड़ा। वहां, मैं कुछ लोगों के साथ किराए के कमरे में रही जो सांसारिक खुशी के नशे में थे। जब भी आराधना का दिन आया, मैंने अकेले एक कमरे में आराधना की जहां दूसरे लोग मुझे ढूंढ़ नहीं सकते थे। मैंने ठीक उस दानिय्येल की तरह बहुत व्याकुल होकर प्रार्थना की जिसने यरूशलेम की ओर प्रार्थना की थी। मेरा वीजा समाप्त हुआ और मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी। मैंने हर दिन सत्य की पुस्तकें और बाइबल पढ़ी और फोन पर मेरी दोस्त से सिय्योन की सुगंध सुनी। मैंने प्रार्थना की कि मैं जल्द से जल्द मंगोलिया वापस जा सकूं।
कुछ महीनों तक मुझे कोई नौकरी नहीं मिली और इतना ही नहीं, मुझे एक बड़ी सर्जरी करनी पड़ी। मेरे पास जितना पैसा था, सब खत्म हुआ। किराए के कमरे के लोग जो मुझे नापसंद करते थे, मुझ पर हंसे। लेकिन मैंने हर दिन सोने से पहले आंसुओं के साथ प्रार्थना की। परमेश्वर के अनुग्रह से सर्जरी सफल हुई, लेकिन मैं निराश हुई क्योंकि मेरे पास मंगोलिया वापस जाने का कोई मार्ग नहीं था। मैंने सिय्योन के सभी सदस्यों को इतना ज्यादा याद किया कि एक दिन मैंने अपना सारा सामान पैक किया और रेलवे स्टेशन पर पूरे दिन फूट–फूटकर रोई।
एक दिन, मैंने अविश्वसनीय खुशी का समाचार सुना कि चेक गणराज्य की सरकार ने योजना बनाई कि चेक में रहने वाले विदेशी जो पैसे न होने के कारण अपने देश वापस नहीं जा सकते, उनमें से कुछ को उनके निज देशों में भेजा जाए।
चूंकि जिस शहर में मैं रहती थी वहां कोई पुलिस–स्टेशन नहीं था, तो मैं दूसरे शहर में गई। मेरे पास न तो पैसे थे और न ही मैं वहां लोगों के साथ बात कर सकती थी, लेकिन उलझनभरी प्रक्रियाओं से गुजरकर और परमेश्वर से बहुत प्रार्थना करके मैं आखिरकार पुलिस–स्टेशन पहुंची। लेकिन उन्होंने मुझे अगले दिन आने को कहा क्योंकि उस दिन वह विभाग बंद था जो वीजा मामलों से संबंधित कार्य करता था। लेकिन मैं उसे अगले दिन तक टाल नहीं सकती थी, तो मैंने आंसुओं के साथ विनती की। आखिर में मैं 2009 में फसह के पर्व के लगभग एक महीने पहले मंगोलिया वापस आ सकी।
जिस दिन मैं मंगोलिया पहुंची, मैंने अपने शरीर पर दो–तीन जगह चिकोटी काट कर देखा कि मैं सपना तो नहीं देख रही थी; मैं विश्वास नहीं कर सकती थी कि आखिरकार मैं अपने निज देश में वापस आई। मेरी दोस्त हवाई अड्डे पर मुझसे मिलने के लिए आई। वह और मैं एक साथ सिय्योन गई। सिय्योन में भाइयों और बहनों ने “वी लव यू” चिल्लाते हुए मेरा स्वागत किया। मैं सिसक उठी। ऐसा लगा कि पिछले दिनों का सारा अकेलापन और दुख आंसुओं में पिघल गया।
मंगोलिया वापस आने के बाद जब मैंने पहली आराधना मनाई, तब मुझे ऐसा लगा जैसे मैं स्वर्ग में थी। वे भाई और बहनें भी जिनमें मैं चेक गणराज्य में जाने से पहले सिर्फ गलतियां ढूंढ़ती थी, मुझे मनोहर और सुंदर दिखने लगे। व्यर्थ गंवाए समय की भरपाई करने के लिए मैंने अपनी पूरी शक्ति से सुसमाचार का प्रचार किया।
जैसे ही मैंने मुश्किलों और परीक्षाओं पर जय पाई, परमेश्वर ने मुझे आश्चर्यजनक आशीष दी; मेरी परिस्थिति ऐसी हो गई जिसमें मैं सिर्फ प्रचार पर ध्यान केंद्रित कर सकी, और मुझे सुसमाचार का एक बहुमूल्य कर्तव्य दिया गया। 2010 में विदेशी मुलाकाती दल के सदस्य के रूप में कोरिया का दौरा करने के बाद, परमेश्वर ने फल उत्पन्न करने की आशीष भी मुझ पर बहुतायत से उंडेल दी।
मैंने चेक गणराज्य में बहुत मुश्किलों का अनुभव किया, लेकिन मैंने महसूस किया कि वह सब मुझ जैसे घमण्डी सन्तान के लिए, जिसमें बहुत चीजों की कमी थी, परमेश्वर का प्रेम था। मुझे जो दुख और कठिनाई हुई, वह सब परमेश्वर की इच्छा से था; उनकी इच्छा यह थी कि जैसे योना ने परमेश्वर से दूर भागने के बाद मछली के अंदर पश्चाताप किया, ठीक वैसे ही मैं भले ही पहले एक ठंडे स्वभाव वाली थी जो प्रेम करना नहीं जानती थी, प्रेममय स्वभाव में बदल जाऊं और पश्चाताप करूं। मेरे लिए हर चीज की योजना बनाने के लिए और मुझे परीक्षाओं एवं कठिनाइयों से उबरने की शक्ति देने के लिए मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूं।
मैराथनर 42.195 किमी की मैराथन दौड़ पूरी करने के लिए खुद को बहुत प्रशिक्षित करते हैं। जब मैं खिलाड़ी थी, मैं मैराथन दौड़ की तैयारी करने के लिए हर दिन कम से कम 25 किमी दौड़ती थी। 25 किमी की दूरी ऐसी है, जिसमें एक व्यक्ति को 25,000 बार से भी ज्यादा बार अपने हाथों को झुलाना और पैरों को ऊपर उठाना चाहिए। मंगोलिया के अत्यंत ठंडे मौसम में दौड़ते हुए, मेरा पूरा शरीर अक्सर सुन्न या निर्जीव पड़ जाता था, और कभी–कभी जैकेट के धातु का जिपर मेरी ठोड़ी पर चिपककर जम गया। जब भी मेरा शरीर अपनी आखिरी हद तक पहुंच जाता था, मैं बहुत थक जाती थी और बहुत बार दौड़ना छोड़ने का फैसला लेती थी। मेरे जूते मेरे पैरों से ज्यादा बड़े होने के कारण कभी मेरे पांवों में छाले पड़ते थे और कभी–कभी तो मेरे जूते मेरे पैरों से छोटे होने के कारण पैरों के नाखून बाहर निकलकर मेरे सफेद जूते लाल हो जाते थे। हालांकि‚ जो धीरज धरकर कठिन प्रशिक्षणों को पार करते हैं, वे अधिक सामथ्र्य और इच्छाशक्ति पा सकते हैं।
2000 में जब ओलंपिक के लिए खिलाड़ियों को चुना गया, तब मैंने घमण्डी होकर सोचा कि मैं हमेशा की तरह राष्ट्रीय टीम में चुना जाऊंगा। मैं घमण्ड से भरकर प्रशिक्षण में आलसी थी, और ऐसे महत्वपूर्ण खेल में जिसमें यह तय किया जाना था कि मैं ओलंपिक में भाग लूंगी या नहीं, मुझे बुरा परिणाम मिला। अपने घमण्डी मन, अपनी कमजोर तैयारियों और अपनी गलत मानसिकता के कारण मैंने मौका खोया, और मुझे अपने किए पर पछतावा हुआ।
उस समय की असफलता के द्वारा, परमेश्वर ने मुझे बहुमूल्य अनुभव और एहसास दिला दिया। विश्वास का जीवन एक आत्मिक मैराथन दौड़ है जो हम परमेश्वर को लक्ष्य के रूप में रखकर स्वर्ग के राज्य की ओर दौड़ते हैं। कठिनाइयां और दुख जिनका मैंने अनुभव किया, वे परमेश्वर के प्रेम और बलिदान को महसूस करके आत्मिक मैराथन दौड़ की तैयारी करने के लिए एक प्रशिक्षण–प्रक्रिया थी। यदि मुझे सिर्फ एक चिकना मार्ग दिया गया होता, तो मैं निश्चय ही आत्मिक मैराथन दौड़ में भी महत्वपूर्ण मौका खो देती।
जब आप मैराथन दौड़ में थकने के कारण हांफते हैं, तब आप शायद उसे छोड़ने के लिए सोच सकते हैं। हालांकि, जब कभी आपको ऐसा लगे, तो आपको खुद को काबू में रखना चाहिए और अंतिम रेखा तक पहुंचने तक दौड़ना चाहिए। अगर आप खुद को दौड़ने से रोकें, तो आपके शरीर में लकवा पड़ेगा और आप फिर से दौड़ नहीं सकते। इसके कारण बहुत से खिलाड़ी अंतिम रेखा बिल्कुल अपने सामने होने के बावजूद बीच में ही अपनी दौड़ छोड़ देते हैं। लेकिन वह आनन्द जो आप सभी कठिनाइयों का धीरज के साथ सामना करके अंतिम रेखा को पार करने के बाद महसूस करते हैं, उसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती।
आत्मिक मैराथन दौड़ भी ऐसी ही है। हम परीक्षाओं और समस्याओं का सामना कर सकते हैं जिन्हें हमारे लिए पार कर लेना मुश्किल है। लेकिन अगर हम धीरज के साथ उन्हें पार करें, तो स्वर्ग के राज्य की अंतिम रेखा बहुत नजदीक हो जाएगी। मैं सच्चे मन से आशा करती हूं कि मैं दीपक और पर्याप्त तेल तैयार करूंगी, और माता की शिक्षाओं का पालन करके पूरे यत्न से दौड़ूंगी, ताकि मैं अपनी आत्मिक मैराथन दौड़ को पूरा कर सकूं।