अब हमें सहनशीलता और क्षमा की आवश्यकता है

दूसरों की गलतियों को ढंकना और उन्हें क्षमा करना केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि अंत में हमारे लिए अच्छा है।

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कोरिया के पुराने दिनों में शास्त्री, जिन्हें सन्बी कहा जाता था, कभी–कभार ही क्रोधित होते थे और दूसरों को माफ करना और सहनशीलता से पेश आना इसे वे नैतिक सद्गुण समझते थे। सड़कों पर खड़े होकर चिल्लाना और क्रोध या झगड़ा करना ऐसा असभ्य व्यवहार माना जाता था जो केवल निचली श्रेणी के लोग करते थे। लेकिन अब दुनिया बदल गई है और बड़ी आवाज से चिल्लाने वालों को मुखिया समझा जाता है।

इस संसार में हम अन्य लोगों के साथ रहते हैं। चूंकि हम प्रतिदिन अलग–अलग लोगों से मिलते हैं, इसलिए एक–दूसरे की भावना को ठेस पहुंचाना एक आम बात है। अजीब बात यह है कि हम दूसरों के साथ किया गया गलत बर्ताव बहुत आसानी से भूल जाते हैं, लेकिन दूसरों ने हमारे साथ जो गलत बर्ताव किया उसे लंबे समय तक याद रखते हैं। कभी–कभी हम तो किसी दिन उससे बदला लेने का भी विचार करते हैं। लेकिन हमारा क्रोध आखिरकार हमें स्वयं के विनाश की ओर ले जाता है। अंग्रेजी भाषा के ‘अन्ग्एर(क्रोध)’ शब्द में यदि हम एक अक्षर जोड़ दें, तो वह ‘डान्ग्एर(खतरा)’ बन जाता है। जैसे एक माचिस की तीली पूरे पहाड़ को आग लगा सकती है, वैसे ही क्रोध भी बहुत खतरनाक है क्योंकि वह भी सब कुछ नष्ट कर सकता है।

जैसे–जैसे समय बीतता जाता है, लोग और ज्यादा असहनशील होते जाते हैं और यहां तक कि अपने परिवार के सदस्यों को ऐसी चोटें पहुंचाते हैं जो कभी ठीक नहीं हो सकतीं, और अपने पूरे जीवन को तबाह कर देते हैं। चूंकि अब लोग गुस्से में अपना आपा बहुत जल्दी खो देते हैं, दुनिया बहुत ज्यादा खतरनाक हो गई है। ऐसी परिस्थिति में हमें सहनशीलता, क्षमा, उदारता और दरियादिली की आवश्यकता है, और ये हमारे परिवार से शुरू होने चाहिए।

“ऐसा तो होता है!” VS “ऐसा कैसे हो सकता है?”

बहुत से लोग बड़ी बातों के बदले छोटी बातों के लिए क्रोधित हो जाते हैं। वे बहुत से लोगों का खून करनेवाले किसी अपराधी से भी ज्यादा बस में सफर करते समय अपने पांव पर गलती से पांव रखनेवाले पर गुस्सा करते हैं। उन्हें जनता की मेहनत की कमाई से भरे हुए टैक्स चोरी करने वाले किसी सरकारी कर्मचारी को क्षमा करने से अपनी किसी चीज को तोड़नेवाले व्यक्ति को क्षमा करने में ज्यादा तकलीफ होती है। कभी–कभी हम उग्र होकर अपनी आंखों को बड़ा करते हैं और क्रोधित होकर अपना चेहरा लाल कर देते हैं, लेकिन यदि हम ऐसी स्थिति से बाहर निकलें, तो अधिकतर मामलों में हमें पता होगा कि वह कोई बड़ी बात नहीं है। जब हम दूसरों पर क्रोध करें, तब हमें एक बार क्रोधित होने की वजह का पता लगाना चाहिए। हमें सोचना चाहिए, ‘क्या मैं इसलिए क्रोधित हूं कि दूसरे ने मुझे परेशान किया? या फिर इसलिए कि मुझमें धीरज और सहनशीलता की कमी है?’ हमें स्वयं को जांचते हुए सोचना चाहिए कि कहीं हम तो अपने पूर्वनिर्धारित विचारों के कारण दूसरों की बातों को समझ या स्वीकार नहीं कर रहे हैं।

यदि आप छोटी–छोटी बातों में अपनी ऊर्जा को खर्च करना नहीं चाहते, तो आपको बड़ा मन रखना चाहिए। यह उतना आसान नहीं होगा। यदि आप किसी दूसरे को नहीं समझ सकते, तो सोचिए कि, ‘ऐसा तो होता है!’ और अपना बड़ा मन दिखाइए। यदि आप सोचें, ‘ऐसा कैसे हो सकता है?’ तो उससे केवल आपको क्रोध ही आएगा और आप समस्या का कोई समाधान नहीं पा सकेंगे।

मगर इसका अर्थ यह नहीं होता कि आपको चाहे कुछ भी हो, उसे समझना और स्वीकार करना चाहिए। मान लीजिए कि आपका बेटा रुखाई से पेश आता है या किसी सार्वजनिक जगह पर भागदौड करके दूसरों को परेशान कर रहा है। इस स्थिति में अपने बेटे के पक्ष में खड़े रहना ओर सोचना कि, “ऐसा तो होता है,” सही नहीं है। यदि आपकी सहनशीलता से दूसरों का भला होता हो और दूसरों का ख्याल रखने से उन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हो, तो उदार मन के साथ दूसरों की गलती को हंसकर भूल जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए, आपका पति या पत्नी आपको चिढ़ दिला रही है। यदि आप सोचें कि, ‘आखिर वह ऐसा कैसे कर सकता है?’ या ‘वह मुझे क्या समझती है?’ तो आप एक–दूसरे से लड़ पड़ेंगे। लेकिन यदि आप यह सोचते हुए उसे समझें कि, ‘आज शायद दिन भर में उसके साथ कुछ हुआ होगा। ऐसा तो होता है। मुझे थोड़ा और धीरज रखना और उससे प्रेम से पेश आना चाहिए,’ तो कोई समस्या नहीं होगी। जिस क्षण से आप ‘ऐसा कैसे हो सकता है?’ सोचना छोड़कर ‘ऐसा तो होता है,’ सोचने लगेंगे, आपका क्रोध शांत हो जाएगा और आपके मन में उदारता उत्पन्न होगी।

सहनशीलता और दरियादिली प्रेम से उत्पन्न होती है

एक लड़का था जो कार्टूनिस्ट बनना चाहता था। जब कभी उसे जेब खर्ची मिलती, वह कोमिक पुस्तक की दुकान पर जाता था। एक दिन उसे दुकान में एक नई कोमिक पुस्तक मिली। उसे वह बहुत पसंद आई, और उसने पुस्तक में से एक पन्ना फाड़कर अपने पास रख लिया और चुपके से उसे घर ले गया। उसके बाद, अपराध–भाव के कारण वह दुकान में और न जा पाया, इसलिए उसने अपने फाड़े हुए पन्ने को देखकर एक ही चीज को बार–बार चित्रित किया। कुछ समय बीत गया, और उसने फिर से उस कोमिक पुस्तक की दुकान में जाना शुरू किया। लगता था कि दुकान के मालिक को उसके बारे में उस समय तक कुछ भी पता नहीं था। जब मालिक ने उसका अभिवादन किया, तो उसकी चिंता चली गई और वह और भी दबंग बन गया। इसलिए उसने कोमिक पुस्तकों में से बहुत से पन्नों को फाड़ना शुरू कर दिया। पर, जैसे कि कहा जाता है कि, “घड़ा अगर बार–बार कुएं पर जाएगा तो आखिरकार टूट जाएगा,” आखिरकार मालिक ने उसे पकड़ लिया। वह इतना डर गया कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना है। आश्चर्यजनक रूप से मालिक ने उस पर गुस्सा नहीं किया। उसके बदले, उसने उसके सिर को सहलाकर कहा, “तुम भविष्य में एक कार्टूनिस्ट बनोगे, है न?” मालिक की सहनशीलता ने उसे कोरियाई कार्टून में एक माहिर बनने में सहायता की। उसका नाम ली ह्यनसे है।

जब कोई आपको हानि पहुंचाए या आपका भरोसा तोड़े, तो उसे क्षमा करना आसान नहीं होता। किसी ने कहा है, “आप जितना ज्यादा प्रेम करते हैं उतना ही आप क्षमा कर सकते हैं।” लेकिन ऐसे कुछ लोग हैं जिन्हें आप प्रेम करने के बावजूद आसानी से क्षमा नहीं कर सकते। वे आपके परिवार के सदस्य हैं। आप अक्सर अपने परिवार के सदस्यों के प्रति असहनशील बनते हैं जबकि दूसरे लोगों के प्रति उदार बनते हैं, और कभी–कभी तो आप उनकी छोटी गलतियों को भी बर्दाश्त नहीं करते और संतुष्ट होने तक उन्हें उनकी गलती दिखाते हैं। और ऐसा ज्यादातर तब होता है जब आप अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते हैं। परन्तु आपको उनकी गलतियों या कमियों पर अति प्रतिक्रिया न दिखानी चाहिए। उन्हें गलत काम करने या फिर उस काम के प्रति असावधानी बरतने के लिए बार–बार डांटने के बदले, आपको उन्हें प्रेम से सिखाना चाहिए ताकि वे समस्या का समाधान ढूंढ़ सकें।

जरा सोचिए कि यदि आप अपने परिवार के सदस्यों के प्रति सहनशीलता नहीं दिखा सकते, तो ऐसे कौन लोग होंगे जिनके प्रति आप सच्ची सहनशीलता दिखा सकते हैं? एक बार स्वयं को जांचिए कि कहीं आप अपने परिवार के सदस्यों के साथ काम करते समय किसी भी अन्य समय से अधिक अप्रसन्नता व्यक्त नहीं करते, और जितना आप उनसे प्रेम करते हैं, उतना ही उनके प्रति उदार बनिए। यदि आप उनके प्रति उदार बनने का संकल्प करते हैं, तो बिना किसी शर्त के और बदले में उनसे कुछ लेने की आशा रखे बिना ऐसा कीजिए। सही क्या है और गलत क्या है, उसके लिए बहस करने में समय न गंवाइए, लेकिन उनके मनों में कोई चोट पहुंचाने से पहले उन्हें सह लीजिए।

क्यों हमें एक–दूसरे को क्षमा करना चाहिए?

विलियम शेक्सपियर ने कहा है, “दूसरों की गलतियों के प्रति उदार बनो। याद रखो कि जो गलती आज उन्होंने की है वह तुम कल कर चुके हो।” कोई भी संपूर्ण नहीं है; हर कोई गलती, भूल, या त्रुटि कर सकते हैं। चूंकि हम सब असंपूर्ण हैं और हमारा जीवन बहुत अस्थिर है, हमें निरंतर क्षमा करना और क्षमा पाना चाहिए।

आइए हम उनके बारे में सोचें जिन्होंने हमें क्षमा किया है और हमारी छोटी एवं बड़ी गलतियों को ढंक दिया है। वे हमारे परिवार के सदस्य, मित्र, शिक्षक और सहकर्मियों सहित हमारे आसपास के लोग हैं। सबसे बढ़कर, हमारे माता–पिता ने हमें सबसे ज्यादा क्षमा किया है। हमने अपने बचपन से लेकर अब बड़े हो जाने तक अपने माता–पिता के विरुद्ध अनगिनत गलतियां की हैं। फिर भी, उन्होंने हमारी अनगिनत गलतियों के लिए क्षमा किया है। उन्होंने हमें सब कुछ दिया है, लेकिन फिर भी वे हमें और ज्यादा न दे पाने के कारण खेदित होते हैं। हमने अपने माता–पिता से इतना महान प्रेम पाया है, इसलिए ऐसी एक भी गलती नहीं है जिसे हम क्षमा नहीं कर सकते।

बाइबल हम में से हर एक की तुलना उस व्यक्ति से करती है जिस पर दस हजार तोड़ों का कर्ज था। इसे चुकाने के लिए किसी साधारण मजदूर को 1,60,000 सालों तक काम करना चाहिए। दूसरे शब्दों में, चाहे हम कितना भी श्रम कर लें, लेकिन हमारे लिए उस कर्ज को चुकाना नामुमकिन है। परमेश्वर ने हमारे पाप के ऐसे ही बड़े कर्ज को क्षमा किया है। इसलिए, हमें भी दूसरों को क्षमा करना चाहिए। जब पतरस ने यीशु से पूछा, “यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं, क्या सात बार तक?” तो यीशु ने कहा, “मैं तुझ से यह नहीं कहता कि सात बार तक वरन् सात बार के सत्तर गुने तक।”

क्षमा करने का अर्थ वह वापस देना है जो हम पहले पा चुके हैं। हमारे पास यह अधिकार ही नहीं है कि हम किसी का न्याय करते हुए कहें कि वह सही है या गलत, और उसकी गलती को प्रकट करें। सबसे अच्छा कार्य जो हम कर सकते हैं, वह यह है, एक दूसरे को स्वीकार करना और क्षमा करना।

हो सकता है कि कभी आप अपने परिवार के सदस्यों से द्वेष करते होंगे, आप उनसे बहुत नाराज और क्रोधित हो जाते होंगे, और यहां तक सोचते होंगे कि यदि वे आपका परिवार नहीं होते, तो आप उनसे मुंह मोड़ लेते। वास्तव में कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपने परिवार के सदस्यों से मुंह मोड़ कर अजनबियों के समान रहते हैं। परन्तु यदि आप नफरत, क्रोध और नाराजगी से दूर रहना चाहते हैं, और अपने परिवार के सदस्यों की ओर पहले हाथ आगे बढ़ाकर उनसे संबंधों को सुधारने की कोई संभावना है, तो उनके प्रति अपनी उदारता दिखाइए।

कहा जाता है, “किसी से नफरत करना और नाराज होना किसी विषैले सांप से काटे जाने जैसा है।” यदि आपको कोई विषैला सांप डंस ले, तो सबसे पहला काम जो आप करेंगे, वह यह होगा, विष को पूरे शरीर में फैलने से पहले निकाल डालना। आपका पहला विचार सांप से बदला लेने के लिए उसका पीछा करना कभी नहीं होगा। किसी के प्रति सहनशीलता और क्षमा दिखाना हमारे मन में से विष को निकालने के समान है; और यह हमारे लिए सबसे उत्तम चुनाव है।