
मेरे दादा–दादी ने जो धर्म प्रचारक थे, मेरा पालन पोषण किया, और मैं उनके करीब रही। तो स्वाभाविक रूप से मेरा जीवन परमेश्वर के प्रति विश्वास से भरा था। यीशु मसीह मेरे जीवन के हीरो थे, और मैंने सोचा था कि उनके बिना मैं कुछ नहीं कर सकती। हर छोटी चीज या समस्या से बचने के लिए जब मैंने अपने उद्धारकर्ता यीशु से प्रार्थना की, तब उन्होंने हमेशा मेरी प्रार्थना का जवाब दिया।
मैं दिन को स्कूल में मेहनत से पढ़ाई करती थी, और जब मैं वापस घर आती थी, मैं घर के कामों में मेरी दादी की सहायता करती थी। और रात को मैं यत्न से पढ़ाई करती थी। मेरे हर प्रयास के लिए परमेश्वर ने मेरी अधिक मदद की, जिससे मैं स्कूल में उच्च अंक पाती थी। परमेश्वर ने मुझे गाना गाना, खेल, लेखन आदि जैसी चीजों को अच्छे से करने की प्रतिभाएं भी दीं।
इसलिए मैंने उनमें बहुत से पुरस्कार पाए। स्कूल से स्नातक होने के बाद जिस भी कंपनी के लिए मैं आवेदन करती थी, मैं आसानी से पास हो जाती थी। उसके बाद, मैंने मसीह पर विश्वास करने वाले युवा वयस्कों के साथ कुछ अर्थपूर्ण काम करने का मन बनाया; हमने जरूरतमंद पड़ोसियों का दौरा किया, उन्हें परमेश्वर के वचन बताए, और उनकी सहायता करने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करके दान इकट्ठा किया। फिर मेरी शादी हुई, और मैं जयपुर चली गई, जो राजस्थान राज्य की राजधानी है। वहां मैंने बाईस सालों तक विभिन्न जगहों पर भारत के पब्लिक स्कूलों में अंग्रेजी शिक्षिका के रूप में काम किया।
हर समय मैं नीतिवचन और नैतिक शिक्षाओं के साथ अपना लेक्चर शुरू करती थी। इस तरह मैंने परमेश्वर की महिमा प्रदर्शित करने की बहुत कोशिश की, जिससे मुझे मंत्री की ओर से सर्वोत्तम शिक्षिका के रूप में पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
एक दिन, अचानक मेरे मन में एक विचार आया।
‘परमेश्वर हमेशा मुझे आशीष देते हैं और मेरी प्रार्थनाएं सुनते हैं, लेकिन मैं परमेश्वर के लिए बहुत कम समय देती हूं।’
मैं हमेशा अपने मन में मत्ती 28:19 के वचनों को याद रखती थी, “तुम जाओ, सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ, और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” तो मैंने परमेश्वर के लिए पूरे समय काम करने का फैसला किया और अपना सब काम छोड़कर परमेश्वर के काम में कूद पड़ी और उसे ईमानदारी से शुरू किया। मैं सचमुच बहुत खुश थी कि मैं मसीह के प्रेम और बलिदान को बता सकती हूं।
हालांकि, जैसे–जैसे समय बीतता गया, मेरा मन बोझिल होता गया। मैं लोगों को चर्च में ऊंचा पद लेने के लिए झगड़े, टकराव और विरोध करते हुए देखती थी। मैं चर्च के सांसारिक और राजनीतिक माहौल को महसूस करके सच में दुखी थी। मैंने दुख में डूबकर परमेश्वर से प्रार्थना की,
‘ओह परमेश्वर! आपकी आराधना करने की जगह ऐसी नहीं होनी चाहिए। कृपया मेरी मदद कीजिए और उस चर्च में मेरी अगुवाई कीजिए जो सत्य में आपकी उपासना करता है।’
परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना का जवाब दिया और अपने स्वर्गदूतों को मेरे घर में भेजा।
जब मैं चर्च से वापस आई, मेरा बेटा दो पुरुषों से बातें कर रहा था। मेरे बेटे ने आश्चर्यचकित होकर मुझ से कहा,
“मां, मैंने यह पहले कभी नहीं सुना। वचन जो ये लोग बता रहे हैं, बहुत अद्भुत है।”
कपड़ों को बदले बिना, मैंने सीधे मेहमानों का अभिवादन किया और उनके प्रचार को सुना। परमेश्वर की आज्ञाएं, सिय्योन और माता परमेश्वर जैसे उनके सत्य के वचनों पर मैं हैरान रह गई। जितना अधिक मैंने वचनों को सुना, जल्दी से जल्दी जानने की इच्छा उतनी अधिक तीव्र हुई। मगर दूसरी ओर, मैंने खुद को दोषी और शर्मिंदा महसूस किया कि मैंने पहले कभी परमेश्वर की आज्ञाओं को नहीं मनाया। जब मैंने स्वर्गीय माता के बारे में सुना, तब मैं सचमुच स्तंभित हो गई, क्योंकि इससे पहले पृथ्वी पर किसी ने भी मुझे उनके बारे में नहीं बताया था।
तब से मैं बाइबल के वचनों का अध्ययन करती रही और सत्य के प्रति अधिक से अधिक आश्वस्त हो गई। आखिरकार पंद्रह दिन में मेरा बपतिस्मा हुआ। परमेश्वर के पर्वों का नगर सिय्योन वह जगह थी जिसे मैं सचमुच परमेश्वर की उपासना करने के लिए तलाश रही थी।
सत्य को ग्रहण करने के बाद, मैंने सुसमाचार का प्रचार करने के लिए दूसरे सदस्यों का पालन किया। लोगों ने पहले हमारा स्वागत किया, लेकिन बाद में जब हम वचन बताने पर थे, तब दरवाजा बंद किया। उन्होंने कहा, “तुम भोजन करने या कुछ बात करने फिर से यहां आ सकते हो। लेकिन मुझे प्रचार मत करो।” मैं उन्हें बाइबल के सत्य को ठुकराते देखकर चकित हो गई।
“मैं अपने चर्च को नहीं छोड़ सकता। मुझे यहां पर गाड़ा जाना चाहिए, और मेरे बच्चों की शादी यहां होगी।”
मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि जहां उनका शरीर मरने के बाद गाड़ा जाएगा उससे अधिक महत्वपूर्ण अनन्त जीवन है, लेकिन वे सुनना नहीं चाहते थे। चाहे हमने कितनी मेहनत से उन्हें प्रचार किया हो, उन्हें सत्य को ठुकराते देखकर मैं सच में दुखी थी।
वचनों का प्रचार करते हुए हमें कभी–कभी लोगों से धमकियां मिलीं, लेकिन हम इसके लिए आभारी थे कि कम से कम उन्होंने पिता और माता के बारे में सुना। इससे अधिक धन्यवाद की बात यह थी कि ऐसे लोगों में से हमने स्वर्गीय परिवार के सदस्य ढूंढ़ लिए हैं।
अभी, मेरा बेटा और मेरी बड़ी बेटी सुसमाचार के सेवकों के रूप में काम कर रहे हैं, और मेरे पति और मैं एक हाउस चर्च की देखभाल कर रहे हैं। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती थी कि मेरा घर परमेश्वर का निवासस्थान बन जाए। परमेश्वर ने उस प्रार्थना का भी जवाब दिया। इन दिनों, मैं आग्रहपूर्वक प्रार्थना करती हूं कि मेरी दूसरी बेटी जल्दी सिय्योन में लौट आए।
मैं अब बहुत खुश हूं, क्योंकि मैं परमेश्वर के निवासस्थान में रहते हुए सच्चे परमेश्वर की उपासना और स्तुति कर सकती हूं। मैं ईमानदारी से पिता और माता को मुझे पापों की क्षमा, अनन्त जीवन और स्वर्ग की आशा देने के लिए धन्यवाद देती हूं। एलोहीम परमेश्वर जो मेरी सारी ईमानदार प्रार्थनाएं सुनते हैं और उनका जवाब देते हैं, सच में मेरे परमेश्वर हैं। मैं आशा करती हूं कि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के समय तक सिय्योन में निवास करते हुए मैं सुसमाचार का प्रचार कर सकूं।