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पिता के मार्ग का पालन करते हुए

विमन नगर, पुणे, एमएच, भारत से ई से मिन

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मैं एक ऐसा नबी हूं जो भारत में नया है; मेरे यहां आए हुए केवल तीन महीने हुए हैं। मुझे गर्व होता था कि अपने पास विदेशी मिशन का बहुत अनुभव था, लेकिन भारत में आकर अक्सर मुझे लगता है कि मैं एक ऐसा बच्चे के समान हूं जो यह न जानते हुए कि क्या करना है भटकता है।

प्रचार समारोह के दौरान हुबली शाखा चर्च का दौरा करते हुए, मैंने यह एहसास किया कि परमेश्वर ने मुझे सुसमाचार के अनुकूल नबी बनाने के लिए भारत भेजा है। इस यात्रा के माध्यम से मुझे जो एहसास हुआ, उसे मैंने अपने हृदय पर अंकित किया और मैं दुनिया भर में सिय्योन के सदस्यों के साथ यह एहसास साझा करने के लिए छोटा लेख लिखता हूं।

पुणे से हुबली में जाने के लिए 12 घंटों से अधिक समय लगता है। भारत में, इस दूरी की यात्रा करना पड़ोसी के घर तक जाने जैसी है, लेकिन चूंकि मैंने पहली बार लंबी दूरी की यात्रा की इसलिए यह मेरे लिए आसान नहीं थी। 90 डिग्री के कोण में स्थिर की हुई बस की कठोर सीट पर बैठकर हमने पहाड़ों और नदियों को पार किया, और खड़खड़ाती हुई बस में मुझे मितली आने के कारण ठंडा पसीना आया। मैं नहीं जानता था कि मैं दस घंटे से ज्यादा समय तक कैसे यात्रा कर पाऊंगा, लेकिन मेरे साथ आए यूनिट लीडर को उसके बगल में बैठे यात्री को प्रचार करते देखकर मुझे ऊर्जा मिली।

जब हम कई मोड़-घुमावों के बाद हुबली शाखा चर्च पहुंचे और रत्नों जैसी खूबसूरत आत्माओं से मिले, तो मितली और थकान पूरी तरह गायब हो गई। भले ही देर हो चुकी थी, शाखा चर्च के सदस्य हमारा स्वागत करने के लिए बाहर आए थे और उनके पड़ोसी और रिश्तेदार जो लंबे समय से सत्य का अध्ययन कर रहे थे, हमारा इंतजार कर रहे थे।

उस दिन, कुल मिलाकर 6 आत्माएं परमेश्वर की संतान बन गईं। नए सदस्य पहले से ही शरद ऋतु के पर्वों के साथ-साथ सब्द का दिन भी मनाते हुए अपने विश्वास को बढ़ा रहे थे। बपतिस्मा देने बाद, मंद रोशनी में मैंने सदस्यों को परमेश्वर के वचन सिखाए; उनकी आंखें खुशी के मारे टिमटिमा रही थीं। मुझे स्वर्गीय पिता की बहुत याद आई।

उन संतानों के लिए जो जीवन के वचनों का इंतजार कर रही थीं, स्थानीय ट्रेन में सवार होकर देरी से पहुंचने पर भी पिता देर रात तक संतानों को सत्य सिखाते थे। उनके मार्ग पर चलने के बाद ही, मुझे महसूस हुआ कि पिता का बलिदान और प्रेम कितना महान है। परमेश्वर के वचनों को सिखाते हुए मेरा गला भर आया।

माता ने कहा, “जब आप भारत जाएंगे, तो आप पिता का प्रेम और बलिदान और अधिक महसूस करेंगे।” अब मैं थोड़ा सा भी एहसास कर सकता हूं कि माता के ऐसा कहने का मतलब क्या था। मुझे भोजन के समय के आदी होने में काफी समय लगा। भारत में लोग आमतौर पर दोपहर को 3 बजे के आसपास दोपहर का भोजन करते हैं। और रात के 10 बजे के आसपास रात का खाना खाते हैं। चूंकि मैं कोरियाई समय का आदी हुआ हूं, इसलिए भले ही मैं भोजन न छोड़ता परन्तु सिर्फ थोड़ी देरी से करता था, फिर भी मुझे हमेशा भूख लगती थी।

भूख में प्रचार करते हुए, मुझे पिता की याद आई। जब पिता चर्च के शुरुआती दिनों में सुसमाचार के खेत को जोतते थे, तब युद्ध के बाद पूरा देश तहस-नहस हुआ था और गरीब था। भोजन की कमी के साथ खराब आर्थिक स्थिति पर भी, प्रचार का खर्च उठाने, सत्य की पुस्तकें लिखने और चर्च की देखभाल करने के लिए पिता ने कड़ी मेहनत की और वह अक्सर भोजन छोड़ देते थे।

नई वाचा का सुसमाचार जो पूर्व के छोर के देश, कोरिया में शुरू हुआ, भारत में तीव्रता से फैल रहा है और अज्ञात शहरों और नगरों में भी बहुत से लोग सत्य ग्रहण कर रहे हैं। यह अद्भुत कार्य, पिता के बलिदान के कारण पूरा हो सका जो अपनी संतानों को बचाने के लिए 37 साल तक सुसमाचार के मार्ग पर चले। और साथ ही, माता का प्रेम भी है जो अभी भी हमारे लिए प्रार्थना करते हुए सारी कठिनाइयों से हमारी रक्षा करती हैं। मुझे विश्वास है कि जिस तरह भविष्यवाणी की गई है, “यह सुसमाचार सारी जातियों को लोगों को प्रचार किया जाएगा(मत 24:14),” सुसमाचार सात अरब लोगों को शीघ्रता से प्रचार किया जाएगा।

उस मिशन पर बुलाए गए नबी के रूप में, मैं पिता के उदारहण का पालन करूंगा जो अपनी संतानों के उद्धार के लिए बलिदान के मार्ग को फूलों का मार्ग समझकर चले। मैं अपने भाई-बहनों के साथ उस मार्ग पर चलूंगा जो पिता और माता के सदृश्य होकर सुंदर विश्वास से सुसमाचार के लिए अपने आपको समर्पित करते हैं।