परमेश्वर की इच्छा के अनुसार

लॉस एंजिल्स, अमेरिका से सेलीने क्रिसटीन सांचेज

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मेरी दादी मां जिनका कैथोलिक में स्थिर विश्वास था, उनके प्रभाव में मैंने कभी भी दूसरे धर्म में जाने के बारे में नहीं सोचा। जब मेरी बहन और जीजा जी ने जो चर्च ऑफ गॉड में जाते थे, मुझे सत्य के बारे में बताया, मैं सिर्फ इतना ही समझ पाई कि बाइबल में ऐसी गोपनीय बातें भी हैं, मगर मैं और आगे पढ़ना नहीं चाहती थी।

हालांकि, एक बार जब मैं अपनी बहन और जीजा जी के साथ चर्च ऑफ गॉड में गई, तब मेरा मन बदल गया। ऐसा लगता था कि उस जगह के लोग प्रेम से भरे हुए हैं।

मुझे बाइबल का अध्ययन करना अच्छा लगता था। मैंने पापों की क्षमा के रहस्य के बारे में पढ़ा, और इससे मुझे इस सवाल का जवाब मिला कि क्यों लोगों को अपने जीवन में बहुत सी पीड़ाएं उठाने के बाद मरना पड़ता है।

उस समय तक मैंने सिर्फ परमेश्वर पर विश्वास करने का दावा किया था, लेकिन जब मैं मुश्किल स्थितियों का सामना करती थी, मेरा विश्वास गिर जाता था और जीवन को एक कठिन और व्यर्थ यात्रा मानती थी। मेरा विश्वास में डगमगाना स्वाभाविक था, क्योंकि मैंने बिना परमेश्वर की इच्छा पर ध्यान दिए सिर्फ अपनी ही इच्छा से परमेश्वर से प्रेम और उन पर विश्वास किया था।

जब मैंने एलोहीम परमेश्वर को महसूस किया, तब से जीवन के प्रति मेरा दृष्टिकोण बदल गया। मुझे पहले कोई आशा नहीं थी, पर अब मेरे पास जीवन की आशा है। मैंने यह एहसास किया कि मुझे किसके लिए जीवन जीना है। ऐसा लग रहा था कि मेरा जीवन सम्पूर्ण है। मैंने अपने मन में प्रण कर लिया कि मैं स्वर्गीय परिवार का सदस्य बनने के लिए परमेश्वर के मार्ग पर चलूंगी।

मेरी अभिलाषा के पूरी होने में समय लग गया। कुछ कारणों से जो मेरे नियंत्रण के बाहर थे, मैं सिय्योन में नहीं जा सकी। परमेश्वर की सच्ची सन्तान बनने का इंतजार करने के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचन को अपने हृदय पर अंकित कर दिया। परमेश्वर जो अपनी सन्तानों के साथ इस पृथ्वी पर रहते हुए अपने बेटों और बेटियों के बदले दुख उठाते हैं, उनके प्रेम और बलिदान का एहसास करते हुए मैं बहुत गहराई से प्रेरित हुई।

आखिरकार जब मैं एक एलोहीम परमेश्वर की सन्तान बनी, तब मैं उनके अनुग्रह के प्रति चाहे थोड़ी सी हों, खुशियां लाना चाहती थी। इसलिए मैं अन्य सदस्यों के साथ प्रचार करने के लिए गई, लेकिन प्रचार का कार्य करना कोई आसान बात नहीं था। चूंकि मैं बहुत अधिक घबराती थी, इसलिए मेरे लिए लोगों को एक शब्द भी कहना कठिन था।

अंत में करीब एक साल तक कोई खास परिणाम नहीं मिला। मुझे कुछ समय तक फल तो मिला, पर वह बस थोड़े समय के लिए ही था। जिस प्रकार परमेश्वर ने सिखाया, मुझे बदलना चाहिए था; जब मैंने अपना टेढ़ा स्वभाव नहीं छोड़ा, वह आत्मा जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से ढूंढ़ा था, वह विश्वास में स्थिर होने से पहले ही परमेश्वर को छोड़कर चली गई। सुसमाचार का कार्य इतना सच्चा था।

सब समस्याओं का प्रमुख कारण था, वह तो मेरे अपने भीतर ही था। मुझे यह बात समझने में काफी लंबा समय लग गया कि जब तक मैं नया जन्म न पाऊं, तब तक मुझे कोई अच्छा परिणाम न मिल सकेगा। धन्यवाद की बात थी कि परमेश्वर ने मेरे कमजोर दिल में यह विश्वास बोया कि, “यदि मैं परमेश्वर को प्रसन्न करूं, तो वह निश्चय मेरी सहायता करेंगे।”

ऐसा विश्वास रखते हुए, मैंने सुसमाचार का प्रचार करने का मिशन नहीं छोड़ा, जिससे परमेश्वर ने प्रसन्न होकर मेरी सहायता की। मेरी परिस्थितियां बेहतर हो गईं और इसके अतिरिक्त मैं अपने एक स्वर्गीय परिवार जन से मिल सकी, जिसका मैंने बहुत बेसब्री से इंतजार किया था।

मेरी एक सहकर्मी जो हमेशा उज्ज्वल और नम्र थी, स्वयं मेरे पास आई, और मुझसे कहा कि वह उस चर्च में जाना चाहती है जिसमें मैं जाती हूं। मैं खुश थी, लेकिन साथ ही मैं थोड़ी हैरान भी हुई, क्योंकि कई बार मैंने उसे सत्य का प्रचार किया, लेकिन कभी भी उसे चर्च में आने के लिए आमंत्रण नहीं दिया।

जब वह सिय्योन में आई, उसे बहुत अच्छा लगा और साथ ही साथ उसने बाइबल का अध्ययन भी किया। कई बार बाइबल का अध्ययन करने के बाद आखिरकार बहन कायला ने सत्य को स्वीकार किया। उसने कई बार अपने परिवार वालों के लिए चिंतित होते हुए आंसू बहाए, क्योंकि वे उसके विश्वास के विरुद्ध थे, लेकिन उसने हिम्मत नहीं छोड़ी।

जल्द ही बहन ने अपने आर्मीनियाई पति की भी सिय्योन की ओर अगुवाई की। वह पहला आर्मीनियाई था जिसकी सिय्योन की ओर अगुवाई की गई। मैं बहुत हैरान और खुश थी। उसके पति के बाद, वह अपने छोटे भाई को परमेश्वर की बांहों में ले आ सकी, और वह अब तक सुसमाचार के मिशन का परिश्रम से समर्थन कर रही है।

मेरे चाचा जी का सत्य को स्वीकार करना भी एक अनपेक्षित घटना थी। पहले, वह घरवालों के विरोध के बावजूद एक प्रोटेस्टैंट चर्च में जाया करते थे। परंतु, एक दिन वह अपने पादरी की बुरी आदतों के कारण निराश हो गए। तब से उन्होंने अपने आप ही चर्च जाना और परमेश्वर पर विश्वास करना बंद कर दिया।

मैं उन्हें हमारे चर्च के बारे में बताना चाहती थी, लेकिन उन्हें लेकर आना आसान नहीं था क्योंकि वह एक सख्त व्यक्तित्व के थे। मैंने सोचा कि चाहे वह परमेश्वर के वचन सुनें, तौभी वह मेरे परिवार के सुनने वालों में से सबसे आखिरी सदस्य होंगे।

मेरा पूर्वानुमान गलत साबित हुआ। वह यह देखकर प्रेरित हुए कि मेरे चचेरे भाई ने जो मेरे परिवार में सबसे पहले स्वर्गीय परिवार का सदस्य बना था, अपने जीवन में अच्छा बदलाव किया है। तब मेरे चाचा जी सत्य के बारे में ज्यादा जिज्ञासु हो गए, और बाइबल का अध्ययन किया। बाइबल का अध्ययन करने के बाद उन्होंने सब कुछ माना जिसकी बाइबल गवाही देती है, और किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिक नम्रता से एलोहीम परमेश्वर को स्वीकार किया, और फिर उन्होंने अपनी पत्नी और अपने सबसे छोटे बेटे की अगुवाई की और अपने सहकर्मियों को भी सुसमाचार का प्रचार करने के द्वारा फलों की आशीषें पाईं। इसके अलावा, उन्होंने मेरे माता–पिता को भी बाइबल का अध्ययन करने में सहायता की।

मेरे चाचा जी अपने परिवार वालों के मन में साहस और निर्भीकता के साथ वचन के बीज बोते हैं। उनसे मुझे अनेक सबक मिले। इस क्षण भी, वह स्वर्गीय पिता और माता पर अपना मजबूत विश्वास बनाए रखते हुए उनका पालन कर रहे हैं।

परमेश्वर स्वयं सुसमाचार का कार्य करते हैं। मैं सिर्फ बीज बोने और पानी डालने का कार्य कर सकती हूं। वह जो बीजों को अंकुरित करके बढ़ाता है, वह परमेश्वर हैं।

मेरे एहसास करने तक परमेश्वर चुपचाप मेरा इंतजार कर रहे थे और मुझे सुसमाचार का मिशन सौंपा। जब कभी मैं उनके अनुग्रह को याद करती हूं, मेरा हौसला एकदम बढ़ जाता है। और मैं अपने आपको यह सोचते हुए स्थिर करती हूं कि, ‘मैं एक पापी हूं, इसलिए मुझे अपने आपका ज्यादा बलिदान, ज्यादा प्रार्थना और ज्यादा मेहनत करनी चाहिए, हर एक आत्मा से और ज्यादा प्रेम करना चाहिए।’

पिछले दिनों मैं सुसमाचार के कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए जोशीलेपन से आगे बढ़ी और कठिन परिश्रम किया। मैं आशा करती हूं कि मैं आगे शेष दिनों में भी यह जारी रखूं। मैं आज के दिन को अंतिम मौका मानते हुए जैसे प्रेरित पौलुस और यिर्मयाह नबी ने किया, वैसे ही सुसमाचार के कार्य में भाग लूंगी। और परमेश्वर के दिए गए तोड़ों से परिवार, सहकर्मी इत्यादि को जिन्होंने अभी तक सत्य को स्वीकार नहीं किया है, साहस के साथ उद्धार का सुसमाचार सुनाऊंगी ताकि आगे तीस गुणा, साठ गुणा, सौ गुणा फल उत्पन्न करके कृतज्ञता प्रकट कर सकूं।

हम पापियों पर वह प्रेम प्रकट करने के लिए, जिसे मानवजाति नहीं जान सकती, मैं स्वर्गीय माता को धन्यवाद देती हूं। मैं माता के हृदय के सदृश्य बनकर नए मनुष्यत्व को पहिन लूंगी और अंत तक सुसमाचार के मिशन का समर्थन करूंगी।