सुसमाचार पर गवाही देने की सेवा पूरा करने के लिए

प्रेरितों का 20वां अध्याय

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प्रेरित पौलुस कुरिन्थुस, इफिसुस, मकिदुनिया, यूनान, त्रोआस, अस्सुस और मितुलेने से होकर मिलेतुस तक पहुंचा। पौलुस ने विभिन्न क्षेत्रों में सुसमाचार का प्रचार किया। जहां कहीं भी वह गया, वहां उसने निन्दकों के द्वारा बहुत सी धमकियों और अत्याचारों का सामना किया। उसने कई बार मृत्यु के आसपास का अनुभव किया।

अब एशिया माइनर को छोड़कर यरूशलेम जाने का समय आ गया। वह नहीं जानता था कि यरूशलेम में कितनी अधिक परीक्षाएं उसका इंतजार कर रही हैं।

पौलुस इफिसुस से आए प्राचीनों से कहता है,

“पवित्र आत्मा यह कहते हुए मुझे सचेत करता रहता है कि बंदीगृह और क्लेश मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। किन्तु मेरे लिए मेरे प्राणों का कोई मूल्य नहीं है। मैं तो बस अपनी दौड़ को और उस सेवा को पूरा करना चाहता हूं जो मैंने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिए प्रभु यीशु से पाई है।”

यह कह चुकने के बाद वह घुटनों के बल झुका और उसने प्रार्थना की। हर कोई फूट–फूटकर रो पड़ा, और सब ने उसे विदा किया।

पौलुस ने पांच बार उन्तालीस उन्तालीस कोड़े खाए, तीन बार बेंतें खाईं और एक रात–दिन समुद्र में काटा। वह परिश्रम और कष्ट से पीड़ित रहा, बार–बार पूरी रात जागता रहा, भूखा–प्यासा रहा और बिना कपड़ों के ठण्ड में ठिठुरता रहा। पौलुस के लिए पीड़ा सुसमाचार के कार्य का दूसरा नाम था। फिर भी, वह न तो रुका और न ही पीछे हटा। क्योंकि उसने दृढ़ता से विश्वास किया कि इस दुखमय मार्ग के अन्त में अनन्त स्वर्ग की आशीषें और धर्म का मुकुट उसका इंतजार कर रहा है(2कुर 11:23–28; 2तीम 4:7–8)।

सुसमाचार का मार्ग जिस पर हम अब चल रहे हैं, वह मार्ग है जिस पर 2,000 वर्ष पहले प्रेरित पौलुस चलता था, और उससे पहले उसी मार्ग पर यीशु भी स्वयं चले थे। चाहे हम बहुत कठिन और पीड़ापूर्ण समय में रहें, फिर भी आइए हम यह न भूलें कि जब हम क्षणिक परीक्षाओं पर जय पाएं और अपने मिशन को पूरा करें, तब जरूर अनन्त स्वर्ग का राज्य हमारे सामने फैलेगा।