मार्था नामक एक स्त्री ने यीशु को अपने घर में आमंत्रित किया।
यीशु वचन सिखाने लगे, तब मार्था की बहन मरियम प्रभु के चरणों में बैठकर, जो कुछ वह कह रहे थे उसे सुन रही थी। मार्था को उनकी सेवा करने के लिए बहुत कुछ तैयारी करनी थी, और उसका मन व्यस्त हो गया। इसलिए वह यीशु के पास आकर कहने लगी।
“हे प्रभु, क्या आपको कुछ भी चिन्ता नहीं कि मेरी बहन ने मुझे सेवा करने के लिए अकेली ही छोड़ दिया है? उससे कह दीजिए कि वह मेरी सहायता करे।”
तब यीशु ने कहा।
“हे मार्था, तू बहुत सी बातों के लिए चिंतित और व्याकुल रहती है। लेकिन बस एक ही बात आवश्यक है। मरियम ने उसी उत्तम भाग को चुन लिया है, वह उससे नहीं छीना जाएगा।”
मार्था अपने घर में आए यीशु की सेवा करने के लिए व्यस्त थी। लेकिन वह एक बात भूल गई थी कि उद्धारकर्ता के वचन को सुनना किसी दूसरे काम से अति महत्वपूर्ण है।
अपनी सोच के अनुसार परमेश्वर के लिए कुछ करना यह भी ठीक है। लेकिन सबसे पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि जो परमेश्वर चाहते हैं उसको पहले सीखकर उसका पालन करें। यदि हम किसी भी स्थिति में ऐसे रवैये पर अटल रहें, तब हमारे पास चिंतित और व्याकुल होने का समय नहीं होगा। लेकिन हमारे पास केवल परमेश्वर के साथ रहने से मिलने वाली खुशी का समय ही होगा।