पाप की मज़दूरी मृत्यु है

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बाइबल कहती है कि मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, क्योंकि सब ने पाप किया।(रो 5:12) इस पर जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हैं, उन्हें बुरा लगता है और वे कभी–कभी झींकते हुए बोलते हैं कि ‘चर्च में लोगों को क्यों पापी कहा जाता है?’ लेकिन दरअसल, सब मनुष्य मूल रूप से पापी हैं।

हम परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, और हम उस परमेश्वर के अनुग्रह के लिए धन्यवाद देते हुए स्तुति चढ़ाते हैं जिसने हम पापियों को मृत्यु से बचाया। परन्तु आइए हम अपने आप से प्रश्न पूछें– “इस बात में हां–हां करते हुए भी कि मैं पापी हूं, क्या मैं अपने पाप को पूरी तरह से जानता हूं? और क्या यह न जानते हुए भी मैं पछता रहा हूं?”

आइए हम क़ीमती समय लें कि हमारे पाप कितने बड़े हैं, और उस परमेश्वर का अनुग्रह कितना बड़ा है जिसने ऐसे बड़े पाप को मुक्त भाव से क्षमा किया है।

स्वर्ग की सन्तान जो पापी बनी

यीशु 2 हज़ार वर्ष पहले इस धरती पर आया, और उसने सब से पहले यह कहकर सुसमाचार का प्रचार किया कि ‘मन फिराओ!’(मत 4:17) बाइबल सिखाती है कि हम इस धरती पर पैदा होने से पहले, स्वर्ग में स्वर्गदूत थे। तब स्वर्ग में कौन सी घटना हुई थी, जिसके कारण मनुष्यों का उद्धार देने के लिए इस धरती पर आए मसीह ने सब से पहले हम से मन फिराने को कहा?

आइए हम स्वर्ग की दुनिया का पता लगाएं, जहां हम पहले रहते थे, और परमेश्वर जिसने हमें छुटकारा दिया, उसकी इच्छा को ढूंढ़ें।

“यहोवा ने मुझे अपने कार्य के आरम्भ में वरन् अपने प्राचीन काल के कार्यों से भी पहले उत्पन्न किया। मैं तो सनातन से अर्थात् आदि से वरन् पृथ्वी के आरम्भिक काल से ठहराई गई हूं। जब न तो गहरे सागर थे, न जल से भरे सोते थे, तब ही मैं उत्पन्न हुई। पर्वत और और पहाड़ियों के स्थिर किए जाने से पूर्व, मैं उत्पन्न की गई, जब उसने पृथ्वी और मैदानों को नहीं बनाया था, न ही जगत की धूल के प्रथम कण बनाए गए थे। … जब उसने पृथ्वी की नींव के चिह्न लगाए, तब मैं एक कुशल कारीगर जैसी उसके साथ थी। प्रतिदिन मैं मग्न रहती, और सदा उसके सम्मुख आनन्द मनाती थी। मैं इस जगत् से अर्थात् उसकी पृथ्वी से प्रसन्न थी, तथा मेरा आनन्द मानव जाति में था।” नीत 8:22–31

यहां पर, ‘मैं’ इस्राएल का तीसरा राजा सुलैमान है। उसने अपने नीतिवचन में लिखा कि वह पृथ्वी के बनने से पहले उत्पन्न हो चुका था, जिससे हम जान सकते हैं कि वह पहले स्वर्गदूतों की दुनिया, यानी परमेश्वर के राज्य में रहता था।

केवल सुलैमान नहीं, पर इस संसार में पैदा हुए सभी मनुष्य पहले स्वर्गदूत थे जो प्रतिदिन खुशी से भरे स्वर्ग में रहते थे। ऐसे स्वर्गदूत क्यों इस धरती पर आकर परिश्रमी जीवन बिता रहे हैं? ऐसा परिणाम निकलने में अवश्य ही स्पष्ट कारण होगा। जब हम मसीह के उस वचन को देखते हैं जिसने ‘मन फिराओ!’ पुकार कर हमें स्वर्ग की याद दिलाने के लिए कहा, तब हम अनुमान लगा सकेंगे कि हमने स्वर्ग के राज्य में कुछ पाप किए हैं जिसे पछताने की जरूरत है।

“यदि हम कहें कि हम में पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं, और हम में सत्य नहीं है। यदि हम अपने पापों को मान लें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है। यदि हम कहें कि हमने पाप नहीं किया तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं।” 1यूह 1:8–10

परमेश्वर धर्मी लोगों से, जिनमें पाप नहीं है, पछताने को नहीं कहता। हम सब स्वर्ग में पाप करके इस धरती पर निकाल दिए गए हैं। तब हमें पता करना चाहिए कि हमने स्वर्ग में क्या पाप किया था जिसके दण्ड से हम इस धरती पर निकाल दिए गए हैं। आइए हम हमारे पाप के प्रकार और गंभीरता के बारे में जांच करें।

स्वर्ग में किए गए पाप

बेबीलोन के राजा और सूर के राजा के पिछली दुनिया के जीवन के बारे में बाइबल बताती है। सुलैमान या दूसरे लोगों की तरह जो इस धरती पर जन्मे थे, वे भी स्वर्गदूत थे जो स्वर्ग में उमंग भरा और महिमामय जीवन जीते थे।

“तू बेबीलोन के राजा पर ताना मारकर कहेगा,।।हे भोर के तारे, हे उषाकाल के पुत्र, तू आकाश से कैसे नीचे गिरा! तू जिसने जाति जाति को निर्बल बना दिया अब कैसे काटकर भूमि पर गिरा दिया गया है! परन्तु तू ने अपने मन में कहा था,‘ मैं आकाश पर चढ़ूंगा, मैं परमेश्वर के तारों से भी ऊपर अपना सिंहासन स्थापित करूंगा, मैं दूर उत्तर दिशा के छोर पर सभा के पर्वत पर विराजूंगा। मैं बादलों से भी ऊंचे स्थान पर चढूंगा, मैं सर्वोच्च परमेश्वर के तुल्य बनूंगा।’ फिर भी तू अधोलोक में, हां, उस गड्ढे की सतह तक उतारा जाएगा।” यश 14:4, 12–15

“ … “हे मनुष्य के सन्तान, सूर के राजा के विषय में विलापगीत आरम्भ कर और उस से कह कि प्रभु यहोवा यों कहता है … तू परमेश्वर के उद्यान अदन में था। तेरे वस्त्र हर प्रकार के बहुमूल्य माणिक्य अर्थात् लालमणि … मरकत और लाल से जडे. थे ये सब सोने के कलापूर्ण खांचों और घरों में जड़े हुए थे। जिस दिन तू सृजा गया, उसी दिन वे तैयार किए गए। तू सुरक्षा प्रदान करनेवाला अभिषिक्त करूब था … अपने सृजे जाने के दिन से लेकर जब तक कि तुझ में कुटिलता न पाई गई। तू अपने आचरण में निर्दोष रहा। तू व्यापार की बहुतायत के कारण भीतर ही भीतर उपद्रव से भर कर पाप करने लगा, इसलिए मैंने तुझे अपवित्र जानकर परमेश्वर के पर्वत पर से गिरा दिया, और हे सुरक्षा प्रदान करने वाले करूब, मैंने तुझे अग्निमय पत्थरों के मध्य से नाश किया। अपनी सुन्दरता के कारण तेरा मन फूल उठा, वैभव के कारण तेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई। मैंने तुझे भूमि पर फेंक दिया, मैंने तुझे राजाओं के सामने रखा कि वे तुझे देखें।” यहेज 28:11–17

यहां पर हम देख सकते हैं कि वे अहंकारी स्वर्गदूतों ने, जिन्होंने परमेश्वर के तारों से भी ऊपर अपना सिंहासन स्थापित करने और परमेश्वर का विरोध करने की योजना बनाई, पाप करके दण्ड पाया। बेबीलोन के राजा और सूर के राजा के पिछले जीवन के द्वारा, परमेश्वर सूचित करता है कि हम स्वर्ग में कितना बड़ा पाप करके इस धरती पर आए हैं।

“देखो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं कि उद्धार न कर सके, न ही उसका कान ऐसा बहरा है कि सुन न सके। परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ही ने तुम्हें तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुख तुमसे छिप गया है जिस से वह नहीं सुनता…। ” यश 59:1–3

हम अभिमानी और विद्रोही लोगों ने स्वर्ग में परमेश्वर से बड़ा विश्वासघात किया, जिससे हम इस धरती पर गिरा दिए गए, और हम इस धरती पर दुख, शोक और मृत्यु से घिरा हुआ जीवन जी रहे हैं। यह हमारे अत्यन्त बड़े पाप के कारण है जो हम ने स्वर्ग में किया। आइए हम जांच करें कि हमारे किए गए पाप का भार कितना है।

पाप की मज़दूरी मृत्यु है

हमारी दृष्टि से लगता है कि हम इस धरती पर पूरी आज़ादी से जी रहे हैं, लेकिन यदि हम आत्मिक दुनिया की दृष्टि से देखें, तो हम पापी, यानी क़ैदी हैं जो समय और स्थान की सीमा में बंधे हुए हैं और जिन्हें सदा के लिए मरने की सज़ा मिली है।

“क्योंकि पाप की मज़दूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है।” रो 6:23

संसार में जीते हुए, हम कभी न कभी यातायात कानून का उल्लंघन करते हैं, और ऐसी स्थिति में भी आते हैं जिसमें पाप करने के लिए मजबूर होते हैं। लेकिन साधारण पाप से मृत्यु–दंड की सज़ा नहीं मिलती। हमारे पाप की मज़दूरी मृत्यु है, जिससे हम जान सकते हैं कि हम इतने बड़े पापी हैं कि हमारे द्वारा किए गए पापों की कीमत मृत्यु के अलावा किसी से भी नहीं चुकायी जाती।

हम आत्मिक कै.दी हैं जो स्वर्ग में अत्यन्त बड़ा पाप करके धरती पर आए, फिर भी हम इसे भूल कर जी रहे हैं। इसलिए मसीह ने हमें कहा कि हम पश्चात्ताप करें और नम्र बन कर दूसरों की सेवा करें, जिसका अर्थ है कि हमें महसूस करना है कि हम पापी हैं।

एक बार मृत्यु–दंड पाए कैदियों की कहानी पर बना वृत्तचित्र(डॉक्यूमेंट्री) फिल्म प्रसारित की गई। जब से कैदियों को मृत्यु–दंड की सज़ा मिली, उन्हें नहीं पता है कि वे कब मर जाएंगे, उससे वे ज़्यादा मानसिक तनाव और बड़े डर से जूझते रहते हैं। सुबह को आंखें खोलते ही, उन पर अधिक तनाव हावी होने लगता है, क्योंकि हो सकता है कि आज ही मरने का दिन हो। यहां तक कि वे अपना नाम सुनने से भी अधिक डर जाते हैं। चाहे मुलाकात पर अपना नाम बुलाया जाता हो। हाज़िरी देने के बाद रात को जब वे सोने के लिए लेटते हैं, तब उन्हें यह सोच कर शांति महसूस होती है कि ‘आज मेरा मरने का दिन नहीं है’। वे इस प्रकार रोज़–रोज़ मृत्यु के डर से जीते हैं।

प्रत्येक कैदी ऐसा कहता है कि यदि मेरा पाप क्षमा हो जाए तो जो बुरा काम मैंने किया था, उस पाप का ऋण मैं बिल्कुल समाज के लिए जीवन भर चुकाऊंगा। अगर किसी कैदी को यह कहा जाए कि यदि तुम पूरा जीवन लोगों की सेवा करते हुए जीओगे, तो तुम्हारे सब पाप क्षमा किए जाएंगे, तब कैदी अवश्य ही ऐसा ही करेगा, और यदि उसे यह कहा जाए कि दूसरे कैदियों को पाप से पछताने के लिए कहो, तब भी स्वीकार कर लेगा। यह काम करने में चाहे उसे गाली बकी जाती हो, चाहे वह थप्पड़ खाता हो, तो भी वह इन सब को झेलेगा। क्योंकि उसकी जान मरते मरते बची और उसकी ज़िन्दगी उधार मिली है, तो क्या वह सब कुछ नहीं कर सकेगा?

अपने स्वाभिमान की रक्षा करने और दूसरे से ऊंचे पद पर बैठने का मन तब आता है जब हम नहीं जानते कि हम असलियत में कौन हैं। पिता और माता ने हम पापियों को जो मृत्यु का इन्तज़ार कर रहे थे, बचाने के लिए ऐसी शिक्षा दी है कि नम्र बनो, दूसरों की सेवा करो, दूसरों की देखभाल करो। हमने परमेश्वर के असीमित प्रेम से पापों की क्षमा पाई है, तो हमें उस वचन का आज्ञापालन करने का दायित्व है।

परमेश्वर जिसने मृत्यु–दंड के पाप का प्रायश्चित किया है उसका अनुग्रह

स्वर्ग में भी व्यवस्था है। उस व्यवस्था का उल्लंघन न करके पापों का प्रायश्चित करने के लिए, पिता और माता पापबलि के रूप में हमारे बजाय बलिदान हुए। हमारे पापों की कीमत केवल मृत्यु–दंड की सज़ा से चुकायी जाती है। इसलिए स्वर्गीय पिता और माता ने सब दुखों को झेल कर स्वयं पापों की सज़ा ले ली जो हमें लेनी थी।

“हमारे सन्देश का किसने विश्वास किया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रकट हुआ? … निश्चय उसने हमारी पीड़ाओं को आप सह लिया और हमारे दुखों को उठा लिया। फिर भी हमने उसे परमेश्वर का मारा–कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा। परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण बेधा गया, वह हमारे अधर्म के कामों के लिए कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिए उस पर ताड़ना पड़ी, उसके कोड़े खाने से हम चंगे हुए। हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे, हम में से प्रत्येक ने अपना अपना मार्ग लिया, परन्तु यहोवा ने हम सब के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया।” यश 53:1–6

हमारा पापों से छुड़ाया जाना मुफ्त में नहीं हुआ है। रिहा होने के बाद ही, हम अपनी मृत्यु की जगह पर मृत्यु पाए पिता को देखते हैं और अपनी जगह कठोर दुख सह रही माता को पाते हैं। इस तरह से पिता और माता ने हम सब के अधर्म का बोझ खुद पर लाद लिया, जिससे हम बचाए गए हैं।

परमेश्वर ने हमें अपनी मृत्यु का स्मरण करवाने के लिए फसह का नियम स्थापित किया, और फसह के द्वारा अपना मांस खिलाया और अपना लहू पिलाया।

“यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुमसे सच सच कहता हूँ, जब तक तुम मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ और उसका लहू न पियो, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसका है, और मैं अन्तिम दिन में उसे जिला उठाऊँगा। मेरा मांस तो सच्चा भोजन है और मेरा लहू सच्ची पीने की वस्तु है। … इसी प्रकार वह भी जो मुझे खाता है मेरे कारण जीवित रहेगा।” यूह 6:53–57

“ … तब यीशु की आज्ञा के अनुसार चेलों ने फसह की तैयारी की … जब वे भोजन कर रहे थे, यीशु ने रोटी ली और आशिष मांगकर तोड़ी और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” फिर उसने प्याला लेकर धन्यवाद दिया और उन्हें देते हुए कहा, “तुम सब इसमें से पियो, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है जो बहुत लोगों के निमित्त पापों की क्षमा के लिए बहाया जाने को है।” मत 26:17–19, 26–28

जिसने मृत्यु–दंड पाए हम कैदियों को बचाने के लिए अपनी देह प्रदान की है, उस परमेश्वर का प्रेम फसह के पर्व में छिपा है और इसमें परमेश्वर का यह निवेदन भी समाया हुआ है कि उसका प्रेम कभी न भूलें और पापों में कभी उलझे न रहें।

कैदी जिनका मरना बहुत निकट है, उनके लिए पापों की क्षमा के समाचार से ज़्यादा खुशी की बात नहीं होगी। हम फसह के अवसर पर केवल इससे खुश रहते हैं कि हमने रोटी और दाखमधु लेकर अनन्त जीवन पाया है। वास्तव में हम पूरे बह्माण्ड में सब से बुरे बच्चे होंगे क्योंकि हमने पिता और माता का मांस खाकर और लहू पीकर जीवन पाया है। फिर भी पिता और माता सिर्फ़ इससे संतुष्ट रहते हैं कि सन्तान ने पाप को पछताया है और पाप में फंस न गई है।(यश 53: 10–11 संदर्भ)

जब कभी हम फसह की रोटी खाते हैं, तब हमें यह सोचना चाहिए कि परमेश्वर ने हमें बचाने के लिए अपना पवित्र मांस तोड़ कर खिलाया है। और जब कभी हम फसह का दाखमधु पीते हैं, तब हमें यह सोच कर धन्यवाद देना चाहिए कि हमारे पाप इतने बड़े घातक थे कि इस लहू के बिना क्षमा नहीं किए जाते। जो फसह पर ऐसा विचार करते हैं, वे ही सचमुच नई वाचा के सत्य को सीख चुके हैं।

नई वाचा के सच्चे अर्थ को समझने के द्वारा प्रायश्चित का जीवन

अब से आइए हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीएं। ‘दूसरों की सेवा करो’, ‘दीन बनो’, ‘मेहनत से प्रचार करो’, इन वचनों के पीछे कारण होते हैं।

मृत्यु–दंड पाए कैदी पापों की क्षमा पाने के लिए सब कुछ कर सकेगा। उस समय की तुलना में जब वह सिर्फ़ मरने का इन्तज़ार करता था, कड़ी मेहनत और मुश्किल काम करने का समय उसके लिए बहुत ही आनन्दित होगा। हम उसके समान पापी हैं जिन्हें आंसू बहाते हुए माफ़ी मांगनी चाहिए।

संसार में ऐसे विश्वासी भी हैं जो मुंह से पापी होने का दावा करते हुए भी यह न जान कर पाप करते रहते हैं कि उन्होंने किस तरह के पाप किए हैं। सिय्योन के सदस्यों को उनसे अलग होना है। हम धर्मी नहीं हैं। हम तो स्वर्ग में कुछ भलाई करके धरती पर नहीं गिरा दिए गए हैं। हमें ज़्यादा से ज़्यादा पछताना चाहिए और ज़्यादा से ज़्यादा माफ़ी मांगते हुए पाप का प्रायश्चित करने का जीवन जीना चाहिए।

जब पौलुस ने मसीह को सोचा जो पापियों के बजाय मृत्यु–दंड के स्थान पर था, उसे महसूस हुआ कि संसार में कोई भी उसे परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकेगा।

“ … कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या सताव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार? … क्योंकि मुझे पूर्ण निश्चय है कि न मृत्यु न जीवन, न स्वर्गदूत न प्रधानताएं, न वर्तमान न भविष्य, न शक्तियां, न ऊंचाई न गहराई, और न कोई सृजी हुई वस्तु हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु यीशु मसीह में है, अलग कर सकेगी।” रो 8:31–39

पौलुस ने रोज़–रोज़ खुद को पीट कर परमेश्वर के वचन के अधीन किया, और यदि वह जीवित है, तो प्रभु के लिए जीवित होने का और यदि वह मरता है, तो प्रभु के लिए मरने का संकल्प करके, हर प्रकार का जोखिम उठाते हुए सुसमाचार का प्रचार करता था। वह परमेश्वर के अनमोल प्रेम का एहसास करके लगातार खुश होकर धन्यवाद करता था। और उसने भाइयों को भी उत्साहित किया कि सर्वदा आनन्दित रहो, निरन्तर प्रार्थना करो, प्रत्येक परिस्थिति में धन्यवाद दो।

कृपया याद रखिए कि हमारे पापों के लिए न्यायोचित दंड केवल मृत्यु था। परमेश्वर की सब से बड़ी इच्छा यह है कि हम जो परमेश्वर के गहरे से गहरे प्रेम से पापों की क्षमा पा चुके हैं, परमेश्वर के प्रेम को महसूस करके संसार के सारे लोगों को भी पापों की क्षमा का मार्ग बता दें, ताकि वे भी पाप से पछताकर स्वर्ग में जा सकें। यही कारण है कि हम नई वाचा को सुनाते हैं। यदि हमने नई वाचा को पूरी तरह से समझा है, तो समर्पण के भाव से प्रेम का अभ्यास करने के द्वारा पिता और माता को प्रसन्न करना चाहिए।

एक लाख चवालीस हज़ार जो पृथ्वी पर से मोल लिए गए हैं, वे अपने विचार के लिए जिद्द या हठ नहीं करते, लेकिन जहां कहीं भी मेमना जाता है वहां वे पालन करते हैं।(प्रक 14:1–5) अंधे विश्वास से पालन करना नहीं है, पर क्योंकि उन्हें यह मालूम पड़ा कि वे ऐसे पापी हैं जिनके घोर पापों की कीमत सिर्फ़ मृत्यु से चुकायी जाती है। इसी कारण वे परमेश्वर के लिए जिसने उन्हें पाप क्षमा करके जीवन दिलाया है, सब कुछ कर सकते हैं।

आइए हम महसूस करें कि हमारे पाप कितने भारी थे, और उन पिछले दिनों की हमेशा याद करें जब हम कैदी थे जो मृत्यु का इन्तज़ार करते थे, और सम्पूर्ण पश्चात्ताप करते हुए परमेश्वर के हर वचन का पालन करें। आशा है कि आप संसार में सारे लोगों को उद्धार का शुभ समाचार सुनाएं और मानव के उद्धारकर्ता परमेश्वर के महान कार्य में सहभागी होकर स्वर्ग की सन्तान बनें।