स्वर्ग के शब्द और उद्धार के शब्द

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आज सिय्योन के सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ रही है, और भविष्यवाणी के अनुसार बड़ी भीड़ इकट्ठी होकर आ रही है। इसलिए उनमें से कुछ ऐसे सदस्य हैं जिन्होंने सिय्योन में शिष्टता से बोलना नहीं सीखा है और बाइबल की शिक्षाओं को नहीं समझा है, और इसलिए वे संसार के द्वारा सीखे गए रीति–रिवाज के अनुसार बोलना जारी रखते हैं। नया वर्ष 2016 आरम्भ होने से पहले आइए हम यह सोचने का समय लें कि हम कैसे स्वर्ग के शब्द और उद्धार के शब्द बोल सकते हैं।

“आनन्द” शब्द बोलने की आदत डालने से स्वर्ग का आनन्द फैल जाता है

कुछ समय पहले मुझे एक सदस्य का ईमेल पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि उसके चर्च का पुरोहित–कर्मचारी और उसकी पत्नी परमेश्वर के वचनों के अनुरूप सुन्दर विश्वास का जीवन जी रहे हैं, इसलिए वह आगे भी केवल इसी चर्च में हमेशा–हमेशा के लिए रहना चाहता है।

वह पहले जब दूसरे क्षेत्रों में था, वह अनेक चर्चों में गया था और बहुत अनुग्रह पाया था, मगर जब वह यहां आया, तो उसने देखा कि यहां चर्च के सदस्य काम करते हुए हमेशा यह बोलते हैं, “मैं आनन्दित हूं!” पुरोहित–कर्मचारी की पत्नी बर्तन धोते हुए यह ज्यादा कहती है, “मैं अब स्वर्ग में आशीषें जमा कर रही हूं। मैं बहुत–बहुत आनन्दित हूं!” चर्च में सेवा कार्य करते हुए वह इसलिए आनन्दित रहती है क्योंकि वह सोचती है कि वह स्वर्ग में आशीषें जमा कर रही है तो वह कितनी भाग्यशाली व्यक्ति है। वह अपने आसपास के लोगों से कहती रहती है, “परमेश्वर हमारे साथ हैं और हमारे लिए इस पृथ्वी पर आए और हमें नई वाचा प्रदान करके स्वर्ग जाने का मार्ग खोल दिया है, तो इससे अधिक आनन्द की बात हमारे लिए और क्या हो सकती है!”

उसने ईमेल पत्र में लिखा कि यह बात सुनकर उसका मन भावुक और आनन्दित हो गया, लेकिन एक तरफ उसे परमेश्वर के प्रति खेद का आभास हुआ।

उसने अपने मन में सोचा, ‘अह, वास्तव में मैं अब तक परमेश्वर की बहुमूल्य आशीषें पाते हुए जी रहा था, फिर भी मैंने न तो परमेश्वर को पर्याप्त धन्यवाद दिया और न ही उसके समान बहुत आनन्द महसूस किया। मैं चर्च में सिर्फ कर्तव्य भावना से काम करता था! मुझे सिर्फ इस बात से आनन्दित रहना चाहिए था कि मुझे उद्धार मिला है और परमेश्वर ने मुझे सुसमाचार का कार्य सौंपा है जिसे करने के लिए स्वर्गदूत भी तरसते हैं। लेकिन मैं परमेश्वर से मिली आशीष और आनन्द के बारे में कुछ नहीं बोला है, शायद इसलिए मैं उनका मूल्य महसूस नहीं कर सका है।’

उसके बाद उसने भी अपने आसपास के लोगों को अपने आनन्द के बारे में बोलना शुरू किया। मेरा मन यह खबर पढ़कर अत्यंत प्रसन्न था कि जो सिय्योन के अगुवे हैं, वे अपनी दिनचर्या में छोटी–मोटी बातों पर आनन्द व्यक्त करते हैं और दूसरों में ज्यादा आनन्द फैलाते हैं और इसलिए सभी सदस्य आनन्द से भरकर जी सकते हैं।

हमने उद्धार का बड़ा अनुग्रह पाया है, तो क्या हमें हर बात में धन्यवाद देना और खुश रहना नहीं चाहिए? सिय्योन में शोक और सिसकियों का अन्त हो जाता है और परमेश्वर हमारे लिए हर दिन नए सिरे से हर्ष और आनन्द रचते हैं। चूंकि सिय्योन में हर दिन खुशी और आनन्द दिया जाता है, इसलिए यदि कोई सिय्योन में रहते हुए भी आनन्द महसूस न करे, तो इसके पीछे कोई कारण अवश्य होगा। आनन्द महसूस न करना, असंतुष्ट होकर कुड़कुड़ाना – यह सब गलत विचार और बोलने की गलत आदत के कारण है जो हमारे शत्रु शैतान ने हमें स्वर्ग जाने से रोकने के लिए हमारे अन्दर डाल दिए हैं। यदि हम तिरछी नजरिया और बोलने की गलत आदत अपनाएं, तो हम परमेश्वर के अनुग्रह को महसूस नहीं करेंगे और शिकायत करेंगे।

आनन्दित लोग जो स्वर्ग की ओर उड़ते जा रहे हैं

हम आनन्दित लोग हैं जो स्वर्ग की ओर उड़ते जा रहे हैं। परमेश्वर ने हमें इस पृथ्वी पर पापों की क्षमा पाने का अवसर दिया है और वह इंतजार कर रहे हैं कि हम अपने पापों से पछताकर स्वर्ग की ओर वापस आएं।

जब लोग पहली बार हवाई जहाज में बैठकर विदेश जाते हैं, तब उनका मन बहुत रोमांचित हो उठता है। लेकिन दरअसल, हवाई जहाज में बैठते हुए कोई मजा नहीं आता। जिन्होंने हवाई यात्रा नहीं की है, वे शायद सोच सकते हैं कि हवाई यात्रा करते हुए बहुत रोचक और मजेदार बातें होंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। हवाई जहाज केवल सीटों से भरा रहता है कि हम वहां व्यायाम या कोई भी दूसरा काम नहीं कर सकते, इसलिए गंतव्य पहुंचने तक हमें बिना कुछ किए चुपचाप खाली बैठना पड़ता है। इन सब के बावजूद दूसरी दुनिया जाने की उत्सुकता और उम्मीद के कारण हमारा मन आशा और आनन्द से भर सकता है।

ऐसा ही उस समय भी हुआ जब मैं विदेश में सुसमाचार प्रचार करने के लिए अमेरिका जा रहा था। जब मैं हवाई जहाज में बैठकर जा रहा था, मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था। इसलिए भले ही मैं बहुत देर तक बैठा रहा, लेकिन मुझे थकान या कठिनाई महसूस नहीं हुई। ‘अह, आखिर परमेश्वर का सुसमाचार वहां भी फैलाया जाएगा!’ यह सोचते हुए मेरे मन में केवल खुशी और उत्सुकता ही रही। भले ही मुझे कुछ भी पता नहीं था कि वहां मेरे साथ क्या होगा, मगर जब मैंने परमेश्वर का यह वचन याद किया कि वह मेरे साथ होंगे, तब बिना कुछ किए 12 घंटे तक खाली बैठकर यात्रा करने पर भी मुझे कभी यह महसूस नहीं हुआ कि मैं इतने लंबे समय तक यात्रा कर रहा हूं।

उसी तरह हम भी पृथ्वी नामक एक विशाल हवाई जहाज में बैठकर अब स्वर्ग की ओर उड़ते जा रहे हैं। भले ही हमें इसका अनुभव नहीं होता, यह पृथ्वी एक साल तक अत्यंत तेज गति से सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है। अंतरिक्ष में उड़ते हुए यात्रा करने के दौरान हम स्वर्ग की आशा करते हैं जिसे पिता और माता ने तैयार किया है। यदि हमारे मन में स्वर्ग में राज–पदधारी याजक(1पत 2:9) बनने की ललक और उत्सुकता बनी रहे, तो हम कितने आनन्दित होंगे?

संसार के लोग कहते हैं कि जब उनकी उम्र एक साल बढ़ जाती है, तब उन्हें लगता है कि जीवन व्यर्थ है। सच्चे आनन्द को जाने बिना जो जीवन जी रहे हैं, उन्हें अपना जीवन व्यर्थ लगेगा। लेकिन हमारे साथ परमेश्वर हैं जो हमें अनन्त आनन्द देने और सिखाने के लिए स्वयं शरीर पहनकर इस पृथ्वी पर आए हैं। परमेश्वर अपनी संतानों को जिन्हें वह अपनी जान से अधिक प्रिय समझते हैं, सबसे लाभदायक और अच्छा उपहार देते हैं। कुछ लोग उसे धन्यवाद और खुशी के साथ लेते हैं, लेकिन कुछ लोग यह कहते हुए कुड़कुड़ाते हैं कि दूसरों को ज्यादा चीजें दी हैं, लेकिन क्यों मुझे इतनी कम चीजें दी हैं? अब इसी समय से आइए हम परमेश्वर की दी हुई आशीषों को हमेशा आनन्द के साथ लेने की कोशिश करें।

विपत्ति भी और आशीष भी विचारों का फल है

मुझे यकीन है कि सिय्योन के अधिकतर सदस्य आभारी और आनन्दित होते हुए विश्वास के मार्ग पर चल रहे हैं। लेकिन कभी–कभी जो आभारी और आनन्दित नहीं होते हैं, वे यह कह बैठते हैं कि परमेश्वर की इच्छा का पालन करना उन्हें मुश्किल लग रहा है।

जिस क्षण मुख से यह बात निकले, “मुश्किल लगता है,” उसी क्षण से आनन्द का द्वार बन्द हो जाता है। विपत्ति भी और आशीष भी जीभ से और शब्द से शुरू होती है, इसलिए माता हमेशा कहती हैं कि हमें हमेशा ऐसी उत्तम बात कहनी चाहिए जो दूसरों का विकास और उन्नति करती है और आशीष का कारण बनती है।

हे पृथ्वी, सुन; देख, कि मैं इस जाति पर वह विपत्ति ले आऊंगा जो उनकी कल्पनाओं का फल है, क्योंकि इन्होंने मेरे वचनों पर ध्यान नहीं लगाया, और मेरी शिक्षा को इन्होंने निकम्मी जाना है। यिर्म 6:19

विपत्ति भी विचारों का फल है, और आशीष भी विचारों का फल है। जब इस्राएली 40 सालों तक जंगल में घूमे–फिरे, परमेश्वर ने सभी को बराबर परिस्थितियों में रखा और बराबर चीजें दीं, लेकिन कुछ लोगों के मुख से धन्यवाद के शब्द निकले, और कुछ लोगों के मुख से शिकायत के शब्द निकले। यह सब उनके विचारों का फल था।

पापों के कारण नरक की ओर जा रहे लोगों के विपरीत, हम पापों की क्षमा का अनुग्रह पाकर स्वर्ग की ओर जा रहे हैं। प्रचारक अपने प्रचार के कामों के अनुसार और प्रचार में सहयोग देने वाले लोग अपने सहयोगों के अनुसार आशीष पाएंगे। यानी हर एक को अपने कामों के अनुसार आशीष दी जाएगी।

बाइबल में हमारी तुलना सुसमाचार के सैनिकों से की गई है। जिस प्रकार फौज में सिर्फ बंदूक उठाने वाले सैनिक ही नहीं होते, बल्कि भोजन बनाने वाले और सामग्रियों की आपूर्ति करने वाले प्रशासनिक सैनिक भी होते हैं, पूरे संसार में सिय्योन के सभी सदस्य अपने कार्यक्षेत्र में मेहनत से अपनी–अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं। यदि ऐसे सदस्य एकजुट रहें, तब हम आत्मिक युद्ध जीत सकेंगे।

चूंकि हमें मसीह की देह के एक अंग के तौर पर नियुक्त किया गया है, इसलिए सिय्योन में हमें दिए गए कामों में से कोई महत्वहीन काम नहीं है। ‘क्यों सिर्फ मुझे ऐसा काम करना चाहिए?’ यह सोचने के बजाय अगर हम सोचें, ‘आज भी मैं स्वर्ग में आशीषें जमा कर रहा हूं,’ तो इस विचार के फलस्वरूप हमें आशीष दी जाएगी। परमेश्वर ने सच में हमें ऐसा काम सौंपा है जो हमें आशीष और आनन्द दिलाता है, फिर भी यदि कोई इसे न जाने और लगातार शिकायत करता रहे, तो परमेश्वर उससे उसकी आशीष छीन लेंगे।

अय्यूब का विश्वास और उद्धार के शब्द

आइए हम अय्यूब के बारे में सोचें। शैतान ने अय्यूब पर मुसीबतें लाईं और इसी कारण से अय्यूब एक ही दिन में अपनी बहुत सारी सम्पत्तियों और अपनी सभी प्रिय संतानों को खोने की अत्यंत बड़ी पीड़ा से गुजरा, लेकिन उसने ऐसी अफसोसजनक स्थिति में भी यह कहा,

तब अय्यूब उठा, और बागा फाड़, सिर मुंड़ाकर भूमि पर गिरा और दण्डवत् करके कहा, “मैं अपनी मां के पेट से नंगा निकला और वहीं नंगा लौट जाऊंगा; यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया; यहोवा का नाम धन्य है। इन सब बातों में भी अय्यूब ने न तो पाप किया, और न परमेश्वर पर मूर्खता से दोष लगाया।” अय 1:20–22

अय्यूब का विश्वास इतना उत्कृष्ट था कि परमेश्वर ने शैतान के सामने उसकी प्रशंसा की। जब अय्यूब परमेश्वर पर अटल विश्वास कर रहा था और निर्दोष जीवन जी रहा था, शैतान ने तरह–तरह की मुसीबतें लाकर अय्यूब की परीक्षा ली। जब उस पर परीक्षा आ पड़ी, उसकी पत्नी ने उसे परमेश्वर के प्रति विश्वास छोड़ने को विवश किया और कहा, “यदि तुम्हारा परमेश्वर मौजूद होता, तो तुम्हारी मदद करता, लेकिन वह मदद नहीं करता। वह मौजूद नहीं है। इसलिए परमेश्वर की निन्दा करो और अपना विश्वास छोड़ो।”

लेकिन अय्यूब ने ऐसा नहीं सोचा। उसने समझाकर बताया, “हम इस पृथ्वी पर खाली हाथ आए हैं। वह जिन्होंने हमें ये सब चीजें दी हैं, वह परमेश्वर हैं जो सब कुछ के मालिक हैं। मालिक ने अपनी चीजों को थोड़ी देर के लिए अपने दास के सुपुर्द कर दिया था और फिर उन्होंने उन्हें वापस ले लिया है। तो फिर मैं इसके बारे में क्यों शिकायत करूं? परमेश्वर ने दिया और परमेश्वर ही ने लिया, परमेश्वर के नाम की प्रशंसा करो!”

लेकिन मान लीजिए यदि अय्यूब ने अपनी पत्नी की बात से उत्तेजित होकर यह कहा होता, “हां, सही बात है। मैं अब तक कितना ज्यादा परमेश्वर का वफादार बना रहा। मैं हर दिन परमेश्वर की वेदी पर अपनी भेंट लाता था और लगन से प्रार्थना करता था, लेकिन परमेश्वर मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं?” तो हम जब स्वर्ग वापस जाएंगे, वहां अय्यूब को नहीं देख सकेंगे। मगर उसने अपनी पत्नी से उत्तेजक शब्द सुनने पर भी अपनी पत्नी को समझाया। इसलिए आगे अय्यूब के परिवार को उससे कहीं अधिक आशीषें मिलीं जितनी उसके पास पहले रहीं।

तू अपनी बातों के कारण निर्दोष, और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा

दो हजार साल पहले जब यीशु पृथ्वी पर आए, उन्होंने फरीसियों के कपट और अधर्म की तरफ इशारा किया और उन्हें बुरी बातें कहने के लिए डांटा फटकारा।

हे सांप के बच्चो, तुम बुरे होकर कैसे अच्छी बातें कह सकते हो? क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है। भला मनुष्य मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है, और बुरा मनुष्य बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है। और मैं तुम से कहता हूं कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष, और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।” मत 12:34–37

हमारे मुंह से शब्द इसलिए बाहर निकल जाता है क्योंकि वह हमारे मन में भरा रहता है। व्यक्ति जो अपने मन में अच्छाई इकट्ठी करता है, वह अच्छी बातें निकालता है। और व्यक्ति जो अपने मन में बुराई इकट्ठी करता है, वह बुरी बातें निकालता है। यीशु ने कहा कि न्याय के दिन प्रत्येक व्यक्ति को अपने ही द्वारा बोले गए हर शब्द का लेखा देना चाहिए और अपनी बातों के कारण निर्दोष, और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा।

“हम परमेश्वर की बांहों में रहते हैं, तो हम बहुत आनन्दित हैं।”

“हम परमेश्वर के साथ सुसमाचार के कार्य में सहभागी बने हैं, तो हम बहुत ही आनन्दित हैं।”

“हम स्वर्ग के राज्य में वापस जाएंगे जो परमेश्वर ने तैयार किया है, तो हम सच में आनन्दित हैं।”

इस तरह हमें अपने मुंह से खुशी और धन्यवाद के शब्द लगातार कहने चाहिए। संसार के लोग स्वर्ग को नहीं जानते और उद्धार की आशा के बिना जी रहे हैं, मगर हम हर समय परमेश्वर की सेवा करते हैं और परमेश्वर की बांहों में जी रहे हैं, इसलिए हम सिय्योन के लोग बहुत ही आनन्दित और खुश हैं।

हे लड़को, आओ मेरी सुनो, मैं तुम को यहोवा का भय मानना सिखाऊंगा। वह कौन मनुष्य है जो जीवन की इच्छा रखता, और दीर्घायु चाहता है ताकि भलाई देखे? अपनी जीभ को बुराई से रोक रख, और अपने मुंह की चौकसी कर कि उससे छल की बात न निकले। बुराई को छोड़ और भलाई कर; मेल को ढूंढ़ और उसी का पीछा कर। यहोवा की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान भी उनकी दोहाई की ओर लगे रहते हैं। यहोवा बुराई करनेवालों के विमुख रहता है, ताकि उनका स्मरण पृथ्वी पर से मिटा डाले। भज 34:11–16

परमेश्वर ने कहा कि जो जीवन की इच्छा रखता और भलाई देखना चाहता है, वह अपनी जीभ को बुराई से रोके और अपने मुंह की चौकसी करे कि उससे छल की बात न निकले। बारह भेदियों की कहानी के द्वारा हम इस वचन को अच्छी तरह समझ सकते हैं।

पुराने समय में छ: लाख पुरुष क्या शत्रुओं के आक्रमण के कारण जंगल में मार डाले गए? नहीं। यह कनान देश का भेद लेकर लौट आए भेदियों के शब्दों के कारण था।

वे परमेश्वर के इस वादे को भूल गए कि परमेश्वर उन्हें कनान देश देंगे। उन्होंने लोगों में ये बातें फैलाईं कि, “वे सब के सब बड़े डील–डोल के हैं। उनके सामने हम लोगों ने अपने आपको टिड्डा अनुभव किया है। हम उनसे लड़कर विजयी नहीं हो सकेंगे।” यह सुनने के बाद सब इस्राएली दिन–रात जोर–जोर से रोए और ऊंची आवाज में शिकायत की, “परमेश्वर हम लोगों को इस जंगल में मरने के लिए क्यों ले आए?” इसके परिणाम में यहोशू और कालेब को छोड़कर बीस वर्ष के या उससे अधिक आयु के इस्राएलियों में से कोई भी कनान देश में प्रवेश नहीं कर सका। आखिरकार, गलत विचारों और गलत शब्दों के कारण छ: लाख पुरुष नष्ट किए गए।

स्वर्गीय परिवार जो स्वर्ग के शब्द और उद्धार के शब्द का इस्तेमाल करता है

जब हम विश्वास के पूर्वजों को देखें जो विश्वास के सही मार्ग पर चले, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर के साथ होने से उन्हें आनन्द मिलता था। उन्हें आनन्द महसूस होता था, इसलिए उनके मुंह से धन्यवाद निकलता था, और उन्हें आनन्द महसूस होता था, इसलिए वे मृत्यु से भी नहीं डरते थे। जैसे प्रेरित पौलुस ने कहा, वे कह सकते थे, “कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या जोखिम, या तलवार? कोई हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकेगा(रोम 8:35–39)।”

संसार में किस जगह से और किससे हमें इतनी विशाल मात्रा में आनन्द मिल सकेगा? हम सिय्योन में चाहे बर्तन धोते हों, हर एक काम आत्मिक भाई–बहनों के लिए करते हैं और यह ऐसा काम है जिसे करने का आदेश पिता और माता ने हमें दिया है और जो हमें आनन्द दिलाता है। चूंकि हम सिय्योन में जहां परमेश्वर हैं, यह काम करते हैं, इसलिए हमें और अधिक खुश और आनन्दित रहना चाहिए और यहोशू और कालेब के समान शब्द कहने चाहिए। तो ये शब्द ही स्वर्ग के शब्द और उद्धार के शब्द होते हैं जो मानव जाति को बचाएंगे।

इस पृथ्वी पर जो समय हमें दिया गया है, वह एक ऐसा समय है, जिसमें परमेश्वर स्वर्ग की ओर हमारी अगुवाई करते हैं। इस अवधि में छोटी सी तकलीफ या समस्या के कारण शिकायत करने के बजाय, हमें स्वर्ग के प्रति उत्सुकता और आनन्द महसूस करना चाहिए। हमें परमेश्वर के साथ–साथ चलते हुए आभारी महसूस करना चाहिए और जो आनन्द महसूस नहीं करते हैं उन्हें भी जागृत करना चाहिए।

दस भेदियों के गलत शब्दों ने सबको निराश किया, लेकिन यहोशू और कालेब ने जोर देकर कहा, “क्यों ऐसी मामूली–सी बात पर परेशान रहते हो? सर्वशक्तिमान परमेश्वर जिन्होंने लाल समुद्र को बांटा, हमारे साथ हैं, और उनका ईश्वर उनसे हट गया है। वे हमारी रोटी ठहरेंगे!” ये शब्द इस्राएलियों के लिए स्वर्ग के शब्द और उद्धार के शब्द थे। और भले ही लोगों ने अय्यूब को कितना भी उकसाया हो, उसने अपने आपको स्थिर बिना डगमगाए रखा और परमेश्वर को महिमा दी। उसके शब्द भी स्वर्ग के शब्द और उद्धार के शब्द थे।

कृपया हमेशा परमेश्वर का विचार करके शब्द बोलिए और परमेश्वर को अधिक महिमा और धन्यवाद दीजिए। मुझे आशा है कि नव वर्ष में सिय्योन के परिवार के सभी सदस्यों पर भरपूर आनन्द बना रहे। हमें अपने ही अन्दर आनन्द को छिपाकर नहीं रखना चाहिए, बल्कि उसे साफ–साफ प्रकट करना चाहिए। यदि हम इस पर विचार करें कि हमारे पास क्या–क्या आनन्द की बातें हैं, और उन्हें अपने मुंह से अंगीकार करें, तो हमारे विचार के फलस्वरूप, परमेश्वर जरूर हमें आशीष देंगे। कृपया सोचिए, ‘परमेश्वर हमारे साथ हैं, तो असंभव कुछ भी नहीं है,’ ‘यह उस सिय्योन का काम है जिसका परमेश्वर स्वयं मार्गदर्शन करते हैं, तो यह कितने गौरव की बात है!’ और अपने मुंह से कहिए, “हम बहुत आनन्दित हैं क्योंकि परमेश्वर हमारे साथ हैं।” और परमेश्वर को अधिक धन्यवाद दीजिए।

हम स्वर्गीय परिवार के सदस्य हैं जो पिता और माता के साथ होने से आनन्दित हैं। बहुत से लोग अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर चिंतित और बेचैन रहते हैं, लेकिन हमारे लिए अनन्त स्वर्ग का राज्य है जिसे परमेश्वर ने तैयार किया है। मुझे आशा है कि आप उस स्वर्ग की दुनिया की ओर धन्यवादी और आनन्दित मन से पूरे यत्न से दौड़ें। मैं आप सिय्योन के परिवार वालों से निवेदन करता हूं कि आप अपने सभी गलत विचारों और गलत शब्दों को छोड़ दें और स्वर्ग जाने की खुशी के साथ हमेशा स्वर्ग के शब्द और उद्धार के शब्द फैलाएं।