पिता की सबसे चिंताशील बच्ची

चिंजु, कोरिया से हा जंग ओ

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मैं चार बेटियों में से तीसरी बड़ी बेटी हूं। कोरिया में एक पुराना चुटकुला है, “तीसरी बड़ी बेटियां इतनी सुंदर होती हैं कि पुरुष उन्हें बिना देखे ही अपनी पत्नियों के रूप में लेने को तैयार हैं।” लेकिन, मैं अपने पिता की सबसे अधिक चिंताशील संतान थी। जब मैं छोटी थी, मुझे पोलियो के कारण तेज बुखार हुआ था। मैं बच गई थी, लेकिन मैं अपनी कमर से नीचे के हिस्से को लकवा होने के खतरे में पड़ी थी। अपने माता-पिता के कारण, जिन्होंने किसी भी तरह मुझे ठीक करने के लिए अपने खेत को भी बेच दिए, मैं लंगड़ाते हुए भी चल सकी।

मेरे पिता को मुझ पर तरस आया, इसलिए उन्होंने एक बार भी शारीरिक दंड दिए बिना मुझे मूल्यवान समझकर मेरा पालन-पोषण किया। लेकिन, किशोरावस्था से गुजरते समय मैं निराशात्मक हो गई, मैंने अपने माता-पिता को दोषी ठहराया, जिन्होंने मेरे लिए सबकुछ किया था, और उनसे कहा कि मैं स्कूल जाना छोड़ दूंगी। मेरे पिता ने मुझे समझाते हुए कहा कि मुझे अपने भविष्य के लिए कम से कम स्कूल से स्नातक होना चाहिए। लेकिन जब कभी उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की, मुझे गंभीर आक्रोश महसूस हुआ।

“आपने क्यों मुझे जीवित किया? मेरे जीवन में सब कुछ बहुत असुविधाजनक है! क्या आपको लगता है कि पढ़ाई मेरे जीवन को बेहतर बना देगी? मुझे इस तरह क्यों जीना चाहिए? मैं मर जाऊंगी!”

उस दिन, मेरे पिता ने पहली बार मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारा। उन्हें इतना खेद हुआ कि वह मुझसे नजर मिलाए बिना ही पीछे मुड़कर बाहर निकल गए। किसी सहारे के बिना उन्होंने अपना दुख छुपाया। फिर एक दिन, अप्रत्याशित घटित हुआ। जब वह नौकरी की तलाश में जेजू द्वीप में जाने वाली एक नाव पर था, तब उन्हें अचानक गंभीर उल्टी हुई कि उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। मेरी मां और सबसे बड़ी बहन ने सुना कि क्या हुआ है, और वे तुरंत वहां चली गईं। मेरे पिता ऑक्सीजन मास्क की मदद से मुश्किल से सांस ले रहे थे और आखिरी बार मेरी मां और मेरी सबसे बड़ी बहन को देखने के बाद वह गुजर गए। हमें बताया गया कि उन्हें लिवर कैंसर था। उन्होंने इस दुनिया को अचानक छोड़ दिया, जिसका अर्थ है कि उन्हें गंभीर दर्द हुआ होगा। मैं नहीं जानती कि इतनी बड़ी पीड़ा के बावजूद वह जेजू द्वीप कैसे जा सके। परिवार के मुखिया के रूप में उनकी जिम्मेदारी कितनी भारी रही होगी!

मुझे उनके अंतिम क्षण में उनके साथ होने का अवसर नहीं मिला। मैं अंतिम संस्कार के दौरान तीन दिनों तक जागी रही। मेरा दुःख अकथनीय था और यह मेरे दिल को चुभ रहा था। मैं विलाप करती रही और आंसू बहाती रही। मैंने न तो उनसे माफी मांगी और न ही उन्हें धन्यवाद दिया। मैंने सुना है कि वह अंतिम क्षण तक भी यह कहते हुए मेरे बारे में चिंतित थे, “मैं अपनी तीसरी बेटी को छोड़कर कैसे जाऊं!”

मेरे पिता को हमेशा इस बात की चिंता थी कि मुझे नौकरी नहीं मिलेगी और मेरी शादी नहीं हो पाएगी। उनकी चिंता के बावजूद, मैंने एक अच्छे व्यक्ति से शादी की और मेरा एक बच्चा भी है। मैं स्वर्गीय माता-पिता से भी मिली हूं, और स्वर्ग जाने की आशा और वहां पिता से फिर मिलने की आशा से भरी हूं। मुझे नहीं पता कि क्या वह मुझे सुन सकते हैं या नहीं, लेकिन मैं वास्तव में उन्हें यह संदेश देना चाहती हूं:

“पिता! मुझे खुशी है कि आप मेरे पिता थे। मुझे अब भी आपकी याद आती है। हम स्वर्ग के राज्य में दोबारा मिलेंगे जहां कोई दर्द या मृत्यु नहीं है।”