माता मेरी छोटी सी प्रार्थना को भी सुनती हैं
ओसान, कोरिया से किम ग्यंग सुक

यह तब की बात है जब मेरे पहले बच्चे के जन्म को करीब पांच महीने बीत चुके थे। जब मैं सोने के लिए लेटी, तब अचानक एक विचार मेरे मन में आया और उससे मैं इतनी व्यथित हुई कि मुझे नींद भी नहीं आई।
‘मेरे मरने के बाद क्या होगा?’
न जाने क्यों अचानक यह विचार मेरे मन में आया। मुझे यह जानने की तीव्र इच्छा हुई कि मृत्यु के बाद मेरे जीवन के साथ क्या होगा। मैं शायद इसलिए मृत्यु से बचने को आतुर हो गई कि मैं अभी–अभी एक मां बनी थी जिसे अपने बच्चे के जीवन की रक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए थी। उस समय के दौरान मैं चर्च ऑफ गॉड के कुछ लोगों से मिली। वास्तव में चर्च ऑफ गॉड से मेरी जान पहचान तब हुई जब मेरा पहला बच्चा मेरे गर्भ में था। चर्च के सदस्यों से जिनसे मैं उस दिन मिली थी, सब्त के बारे में सुनकर बहुत हैरान हो गई। लेकिन चूंकि मेरी बड़ी बहन बड़ी श्रद्धा से बौद्ध धर्म को मानती थी, इसलिए मुझे उनसे मिलना बंद करना पड़ा और मुझे सत्य का और अधिक अध्ययन करने का मौका नहीं मिल सका।
मैं अपने पहले बच्चे को जन्म देने के बाद फिर से चर्च ऑफ गॉड के सदस्यों से मिली। उन्होंने मुझे बताया कि बाइबल में क्रिसमस नहीं है। यह सुनकर मुझे झटका लगा। मैं इस तथ्य को बाइबल के द्वारा और अधिक जानना चाहती थी, इसलिए मैंने करीब एक महीने तक लगभग हर रोज उनके साथ परमेश्वर के वचन पढ़े। उस आत्मा के सिद्धांत के साथ–साथ जिसको लेकर मैं हमेशा जिज्ञासु थी, नई वाचा और स्वर्गीय माता के अस्तित्व के बारे में मैं बाइबल के द्वारा पुष्टि कर सकी।
परमेश्वर की सन्तान के रूप में नया जन्म लेने के बाद तुरन्त मैंने सब्त का दिन मनाया। सब्त के दिन का पालन करते हुए मुझे एहसास हुआ कि चूंकि बाइबल कहती है कि परमेश्वर ने इस दिन को पवित्र किया है, मेरी आत्मा सब्त के दिन शुद्ध हो जाती है। परमेश्वर की आज्ञा का न पालन करने का मेरे पास कोई कारण नहीं था। जितना ज्यादा मैंने आराधना में भाग लिया, उतना ज्यादा मुझे विश्वास हुआ कि इस संसार के बहुत से ईश्वरों में से परमेश्वर सच्चे और सबसे महान हैं।
जब मैं विश्वास में स्थिर हो गई, तब मेरी बड़ी बहन सहित मेरे पूरे परिवार वालों ने गंभीरता से मेरा विरोध करना शुरू कर दिया। वे चर्च को पंसद नहीं करते थे और इन सबसे ऊपर उन्होंने चर्च ऑफ गॉड के बारे में कुछ गलत खबरें सुनी थीं। हालांकि मैं हमारे चर्च के बारे में उनकी गलत धारणा को सुधारने का प्रयास करती थी, लेकिन उनकी धारणा आसानी से नहीं बदली जा सकती थी। परमेश्वर से उनके मन को खोलने के लिए प्रार्थना करने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा चारा नहीं था।
कई महीने बीत गए, लेकिन उनके रवैये में बदलाव नहीं आया। जैसे–जैसे फसह का पर्व नजदीक आ रहा था, मेरा हृदय जल रहा था। मैंने हिम्मत बांधकर अपनी मां से कहा,
“मां, यदि आप फसह का पर्व मनाएंगी, तो परमेश्वर आपकी रक्षा करेंगे। मैं चाहती हूं कि आप इसे मेरे साथ मनाएं।”
तब उन्होंने कहा, “ठीक है, मैं मनाऊंगी।” वह उसी वक्त सिय्योन में आईं और उद्धार के चिन्ह को प्राप्त किया। तब उन्होंने सब्त का दिन और साथ ही फसह का पर्व मनाया। यह सब अचानक हो गया, इसलिए मैं हैरान हो गई।
बाद में मुझे पता चला कि यह सब संयोग से नहीं हुआ। मेरी मां के सत्य को ग्रहण करने से पहले, मेरी मौसी ने मुझसे अपने प्रोटेस्टैंट चर्च के पादरी से मिलने का आग्रह किया। मेरी मौसी ने अपने पादरी और मेरी मीटिंग फिक्स करवाई, और मैं उससे दो बार मिली। पहली बार मैं अकेली थी, और दूसरी बार मैं सिय्योन के कुछ सदस्यों के साथ थी और हमने एक साथ मिलकर बड़े साहस के साथ उसे बताया कि सब्त का दिन और फसह का पर्व सत्य है। उस समय शायद मेरी मां हमारा प्रचार सुनकर हैरान हो गई होंगी।
मेरी मां लगातार मेरे आचरणों को बड़े ध्यान से देख रही थीं। मुझे लगता है कि उन्होंने उस समय इसलिए फसह का पर्व मनाने का निर्णय लिया क्योंकि उनकी चिंताओं के विपरीत मैं गलत मार्ग पर नहीं जा रही थी और जो मैं कह रही थी, वह सब बाइबल पर आधारित था।
मैंने प्रार्थना की कि वह स्वर्गीय सन्तान बनने के बाद सिय्योन में लगातार आती रहें। लेकिन एक दिन अनपेक्षित रूप से मेरी मां पर एक सख्त मुसीबत पड़ी। अचानक उनका स्वास्थ्य खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, और वहां उन्हें पता चला कि उन्हें टर्मिनल कैंसर है।
हालांकि यह एक निराशाजनक स्थिति थी, लेकिन वह निराशा में नहीं डूब गईं और परमेश्वर पर निर्भर रहीं। जैसे ही उन्हें एहसास हुआ कि उनके जीवन का सार केवल स्वर्ग की अनन्त दुनिया में ही पाया जा सकता है, वह अपने कीमोथेरेपी उपचार के दौरान भी लगातार सिय्योन में आती रहीं और परमेश्वर को किए अपने वादे को पूरा किया।
उनके बचने की केवल 20 प्रतिशत ही उम्मीद थी और उनके पूरी तरह से ठीक हो जाने की संभावना लगभग शून्य थी। लेकिन जब उनका कीमोथेरेपी उपचार शुरू हुए 7 हफ्ते बीत गए, कुछ अद्भुत घटना घटी। डाक्टर भी एकदम हैरान हो गया। उनके शरीर से ट्यूमर पूरी तरह खत्म हो गया। दरअसल, हालांकि उनका आपरेशन करवाए जाए और आधे साल से ज्यादा समय तक उनका इलाज करवाए जाए, फिर भी उनके ठीक होने की ठोस गांरटी नहीं थी। मगर वह थोड़े ही समय में बिना आपरेशन के पूरी तरह से ठीक हो गईं। तब परमेश्वर पर उनका विश्वास और मजबूत हो गया, और वह किसी भी चीज से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा को मानने लगीं।
इसने मुझे अपनी पुरानी प्रार्थना की याद दिला दी। जब भी मैं अपनी मां के लिए प्रार्थना करती थी, मैं ईमानदारी से परमेश्वर से प्रार्थना करती थी कि वह परमेश्वर की आज्ञाओं को बहुमूल्य मानते हुए स्वर्ग जाएं।
छोटे विश्वास के साथ सिर्फ एक बार की गई मेरी प्रार्थना को भी परमेश्वर ने अनदेखा किए बिना सुना और मेरी प्रार्थना का जवाब दिया। परमेश्वर की सहायता का अनुभव करने के बाद, मैं और अधिक उत्सुकता से प्रार्थना करने लगी कि मेरा पति भी स्वर्गीय परिवार का सदस्य बने। लेकिन मेरे पति को हमारे चर्च से संतोष नहीं था और परिवार का मुखिया होने के नाते हर दिन काम में व्यस्त था, इसलिए मेरे लिए उसे परमेश्वर के वचन का प्रचार करना आसान नहीं था।
तब एक अनपेक्षित घटना के कारण वह सिय्योन में आया। जब वह अचानक उण्डुक–शोथ का आपरेशन कराने के लिए अस्पताल में दाखिल हुआ था, उस समय सिय्योन के कुछ सदस्य उससे मिलने के लिए आए और उनकी मदद से उसे अस्पताल से छूट्टी मिल गई। वह उनसे बहुत प्रेरित हुआ और अपना अभार प्रकट करने के लिए सिय्योन में आया। उसने बाइबल पढ़ी और नया जीवन प्राप्त किया।
एक कहावत है, “दस वर्ष एक युग होता है।” यह बदलाव मेरी बड़ी बहन में भी आया जो ऐसी दिखती थी कि वह अपना मन न खोलने वाली है। चाहे उसने मेरे साथ कैसा भी बुरा बर्ताव किया, फिर भी मैं उसे ईमानदारी से बचाना चाहती थी। उसने शायद मेरे मन को पढ़ लिया होगा। मेरे प्रति उसका व्यवहार बहुत अधिक बदल गया।
एक दिन काफी लंबे समय के बाद मुझे उसके साथ बात करने का मौका मिला। उस समय मेरी बहन ने अतीत में मेरे धर्म को बहाना बनाकर मेरे साथ बुरा बर्ताव करने के लिए माफी मांगी। हम रोईं और हमने अपने मन से सारे बोझ उतार दिए।
उसने अकेला और पीड़ा भरा जीवन जिया था। मैं उसके लिए क्या करूं, इसके बारे में चाहे मैं कितनी बार सोचूं, वह जिसकी उसे आवश्यकता थी, सिर्फ माता का प्रेम था। जब मैं बार–बार सोच रही थी कि उसे माता का प्रेम महसूस करवाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए, ठीक उसी समय के आसपास “हमारी माता” लेखन और तस्वीर प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। मैंने उसे उस प्रदर्शनी में आने का आमंत्रण दिया।
मैं बस यह देखकर भी बहुत भावुक हो गई कि मेरी बहन चर्च में आई है, लेकिन जब मैंने उसमें प्रदर्शनी देखने के बाद आए बदलाव को देखा तो मैं अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाई। वह बहुत प्रफुल्लित और खुश दिख रही थी। प्रदर्शनी हॉल के अंतिम कक्ष में उसने मातृत्व की जड़ समझाने वाले लेख को पढ़ा और उसने स्वर्गीय माता के अस्तित्व के बारे में बाइबल की गवाहियों को कई बार देखने और जांचने के बाद अपना मन बदल दिया।
तीन दिन बाद मेरी बहन ने मुझे फोन किया और कहा,
“मैं तुम्हारे परमेश्वर पर विश्वास करना चाहती हूं।”
मुझे अपने ही कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था, इसलिए मैंने उससे बार–बार पूछा कि क्या वह सच बोल रही है, तो उसने हर बार मुझे एक जैसा जवाब दिया कि वह परमेश्वर पर विश्वास करेगी। आखिरकार वह परमेश्वर के पास आई और पापों की क्षमा की आशीष को प्राप्त किया।
उन दिनों में वह मुश्किल घड़ी से गुजर रही थी और वह विषाद–रोग से पीड़ित थी और निराश थी। जब उसने देखा कि मैं परमेश्वर पर विश्वास करते हुए हिम्मत के साथ छोटी–बड़ी परेशानियों को पार कर रही हूं, तब वह अपने मन में सोचने लगी, ‘क्या यह विश्वास की शक्ति है? शायद मुझे भी परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए।’ ठीक उसी वक्त उसे प्रदर्शनी में बुलाया गया तो उसे बहुत खुशी हुई। इस प्रदर्शनी के द्वारा हमारे चर्च के प्रति उसकी प्रतिकूल पूर्वधारणा पूरी तरह मिट गई।
उसने परमेश्वर को स्वीकार किया, और कुछ समय बाद मेरा जीजा भी प्रदर्शनी में आया और एक स्वर्गीय परिवार का सदस्य बन गया। मैंने सुना कि जब वह पहली बार हमारे चर्च में आया, वह इससे हैरान हुआ कि मैं सिय्योन के भाई–बहनों के साथ रहकर बहुत प्रसन्न दिख रही थी, और इसलिए उसने मेरी बहन से कहा, “मुझे यकीन है कि तुम भी यदि वहां जाती रहोगी तो अपनी बहन के समान प्रसन्न हो जाओगी।” और वह हमेशा मेरी बहन को हमारे चर्च जाने के लिए कहता रहा। मैं कल्पना कर सकती हूं कि वह कितना प्रभावित हुआ होगा।
मेरी बहन पहले सख्त स्वभाव वाली के रूप में जानी जाती थी, लेकिन वह आज पूरी तरह से बदल गई है। अब वह ऐसी महिला बन गई जो हर किसी को पसंद होती है, और वह आराम से सिय्योन आती है। उसका बोलने का तरीका और व्यक्तित्व इतना नम्र बन गया है कि उसके आसपास के लोग भी उसे बड़ी मुश्किल से ही पहचान पाते हैं। उसमें आया बदलाव ही हर किसी के लिए सिय्योन की सुगंध है। अब वह स्वर्गीय परिवार के सदस्यों की सेवा करने का मौका ढूंढ़ने में बहुत व्यस्त है और वह यत्नपूर्वक परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करती है।
परमेश्वर की सन्तान के योग्य बनते हुए वह सुसमाचार का प्रचार करने में भी बहुत जोशीली है। उसने खुद दस सालों से भी अधिक समय तक सत्य को स्वीकार करने से हठपूर्वक इनकार किया था, इसलिए उसे इस बात का पूरा यकिन है कि चूंकि उसने भी सत्य ग्रहण किया है, इसलिए चाहे कोई कितना भी जिद्दी क्यों न हो, फिर भी वह परमेश्वर का पुत्र या पुत्री बन सकता है।
मैं और मेरी बहन ने आत्मा बचाने के लिए निश्चय किया। हमने अपनी मौसी को जिन्होंने मेरी बहन के साथ सत्य को अस्वीकार किया था, सिय्योन में आने का आमंत्रण दिया। “हमारी माता” लेखन और तस्वीर प्रदर्शनी को देखने के बाद उन्होंने चर्च ऑफ गॉड को अलग नजरिए से देखना शुरू किया। उनके बदले हुए व्यवहार को देखते हुए मेरी बहन मुझसे भी ज्यादा भावुक हो उठी। जैसे ही मौसी ने चर्च में अपना पहला कदम रखा, फूट–फूट कर रोते हुए मेरी बहन ने मुझसे कहा,
“क्या तुमने भी ऐसा महसूस किया था जब तुम मुझे पहली बार सिय्योन में लाई थी?”
मुझे लगा कि उसने अपनी मौसी के लिए बहुत बेचैन होकर प्रार्थना की थी। अपनी बहन को पछतावे के बाद एक सुसमाचार की सेविका के रूप में नया जन्म लेते हुए देखकर, मैंने एहसास किया कि परमेश्वर ने इस बार भी मेरी प्रार्थना को सुन लिया है।
‘कृपया मेरी बहन को प्रेरित पौलुस के समान एक सुसमाचार की अच्छी सेविका बनने में सहायता कीजिए।’
उस समय सिर्फ परमेश्वर ने जिन्होंने मेरी प्रार्थना सुनी थी, अवश्य ही यह जाना होगा कि एक आत्मा परमेश्वर की ओर लौटने वाली है।
जब मैं छोटी थी, मैंने एक बार अपनी मां को बाजार में खो दिया था। वह उस समय लाल रंग की जैकट पहने हुई थीं। तो मैंने केवल लाल रंग की जैकट देखते हुए उनको ढूंढ़ने की कोशिश की थी। लेकिन मेरी मां कहीं भी नहीं दिख रही थी। उसी समय किसी ने मेरा नाम ऊंची आवाज में पुकारा था।
“किम ग्यंग सुक! तुम वहां क्या कर रही हो? जल्दी मेरे पास आओ!”
वह मेरी बहन थी जिसने उस दिन मुझे खोजकर मां से मिलवाया था। मैंने सोचा कि मैंने आत्मिक माता की ओर उसकी अगुवाई करते हुए उसके प्रति अपना कर्ज चुका दिया।
जिस दिन मेरी बहन ने एक स्वर्गीय परिवार के सदस्य के रूप में नया जन्म लिया, उस दिन उसने मेरे साथ अतीत में किए दुर्व्यवहार के लिए माफी मांगी। उसने मुझे गले लगाया और मुझसे कहा,
“तुम कैसे मेरी उम्मीद छोड़े बिना मेरे लिए प्रार्थना कर सकी?”
चूंकि मैं भी एक मनुष्य हूं, इसलिए जब मेरी बहन के साथ मेरी गंभीर लड़ाई हुई थी, तब मेरे मन में हार मानने का ख्याल आया था। लेकिन मैं अपने परिवार वालों के प्रति उम्मीद छोड़े बिना उन्हें लगातार परमेश्वर की इच्छा बिना थके बता सकी क्योंकि जितना अधिक मैंने प्रचार किया, उतना मेरा विश्वास अधिक मजबूत होता गया, लेकिन इससे भी बड़ा कारण था, वह बेशक “माता” था।
स्वर्गीय माता ने मेरी सभी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि वह अवश्य ही मेरी आत्मा की चिंता करती हैं। जब भी माता मेरी पल भर की छोटी सी प्रार्थना का उत्तर देती थीं, तब मुझे ऐसा महसूस होता था कि वह मुझे प्रोत्साहन भरा संदेश भेज रही हैं, “मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं और तुम्हें देख रही हूं।” हर पल माता मेरे कारण चिंतित होती थीं और जब कभी मैं कठिन दौर से गुजरती थी, माता मुझसे अधिक व्याकुल रहती थीं। माता के बारे में सोचते हुए, मैं सुसमाचार का प्रचार करने से नहीं रुक सकती थी फिर चाहे मैं कितनी भी बड़ी मुश्किल और परीक्षा में फंस जाऊं।
माता का प्रेम आगे भी सर्वदा एक–सा रहेगा। मैं अपने दिन–प्रतिदिन के जीवन में उनके प्रेम को गहराई से महसूस करती हूं। चूंकि मैंने परमेश्वर से अत्यधिक आशीषें पाई हैं, मैं हमेशा आभारी रहूंगी और परमेश्वर के कार्य के लिए अपने आपको खुशी–खुशी समर्पित करूंगी। माता हमेशा काम करती हैं, और मैं भी काम करती हूं।