
मैं अपने तीन भाइयों में से दूसरा हूं। हम ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न के अलग–अलग क्षेत्र में रहते हैं और हमारे माता–पिता एडीलेड में रहते हैं जो मेलबोर्न से कार द्वारा नौ घंटे दूर है। नौकरी के कारण हम अक्सर अपने माता–पिता से मिलने नहीं जा सकते, लेकिन जब कभी हम बीमार होते या हमारे साथ कुछ होता है, तो हमारी माता उतनी लंबी दूरी की यात्रा करके तुरन्त हमारे पास आती है और हमारी देखभाल करती है।
एक दिन, मेरे बड़े भाई को सर्दी हुई और वह बहुत बीमार था। आम तौर पर ऐसा होता, तो मेरी माता तुरन्त मेरे बड़े भाई के घर गई होती, लेकिन वह भी बीमार थी और किसी दूसरी चीज की देखभाल करने में भी व्यस्त थी। देर रात को, मेरी माता ने मुझे फोन किया।
“यन उक, क्या तुम थोड़ा दलिया बनाकर अपने बड़े भाई के पास ले जा सकते हो?”
“दलिया?… ठीक है। लेकिन अब नहीं, क्योंकि मुझे कल सुबह जल्दी उठना है। कल उसे उसके पास ले जाना ठीक होगा?”
“यदि तुम अब नहीं कर सकते हो, तो मुझे लगता है कि वह भी ठीक होगा। बेटा, कृपया कल वह करना न भूलना।”
दरअसल, मुझे परेशान महसूस हुआ। यह सच था कि मुझे अगली सुबह जल्दी उठना था, लेकिन मैं बस कुछ करना नहीं चाहता था क्योंकि मैं बहुत थक गया था। मैं एक पल के लिए खुश था क्योंकि मुझे सीधे वह करने की जरूरत नहीं थी, लेकिन मेरी माता की चिंता भरी आवाज मेरे कानों में गूंज रही। मुझे अपनी माता के लिए खेद महसूस हुआ, इसलिए मैंने थकान के बावजूद दलिया बनाया और मेरे बड़े भाई के पास उसे ले गया। भले ही मैं थका हुआ था, लेकिन मुझे अधिक बेहतर महसूस हुआ। मैंने घर वापस आते समय अपनी माता को फोन किया ताकि उसे शान्ति मिल सके।
“मैंने अभी अभी उसे दलिया दिया है। उसने वह खाया और अब आराम कर रहा है, तो अधिक चिंता मत कीजिए।”
“सच में? बहुत बहुत धन्यवाद। मुझे वह करना था, लेकिन मेरे लिए वह करने के लिए बहुत धन्यवाद। तुमने बहुत मेहनत की है। जल्दी घर जाकर आराम करो।”
जब मैंने उसकी आवाज सुनी तो मेरी आंखों में आंसू उमड़ आए; मैं बता नहीं सकता कि वह कितनी आभारी थी। मैंने अनिच्छा से उसके लिए यह काम किया था लेकिन वह इससे इतनी खुश थी।
इस बात ने मुझे खुद को जांचने दिया कि क्या मैं एक पुत्र के रूप में जिसे सुसमाचार का कार्य सौंपा गया है, एलोहीम परमेश्वर से दिए गए कार्य को अच्छे से पूरा कर रहा हूं। यह शर्म की बात है कि मैंने अक्सर बहाना बनाते हुए स्वर्गीय भाइयों और बहनों को जिनकी आत्माएं बीमार थीं, जीवन का भोजन देने के मिशन को पूरा करना टाल दिया था। भले ही मैंने बहुत बार कहा था कि मैं स्वर्गीय माता को प्रसन्न करना और माता के प्रेम को अभ्यास में लाना चाहता हूं, लेकिन मैंने वह नहीं किया जिससे माता प्रसन्न होती है।
पश्चाताप की प्रार्थना चढ़ाकर मैंने संकल्प किया। भले ही मुझे थकान महसूस हो, लेकिन मैं माता को सोचते हुए जो यह सुनकर कि खोई हुई संतान खोजी गई है उज्ज्वलता से मुस्कुराएंगी, यत्न से सुसमाचार का प्रचार करूंगा। मैं अब और अधिक बहाना नहीं बनाऊंगा। मैं माता को खुशी देना चाहता हूं न कि चिंता। ऐसा करने के लिए, मैं मेहनत से उस काम करूंगा जो माता को प्रसन्न करता है।