कहीं ऐसी आत्मा न हो जो न सुनने के कारण विश्वास न कर सकती

इनचान, कोरिया से इ गांग ही

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“क्या आपने माता परमेश्वर के बारे में सुना है?”

“नहीं। मेरे चर्च में किसी ने भी मुझे बाइबल नहीं सिखाया। मैं बाइबल के वचनों को सीखना चाहती हूं।”

हर कोई जिससे हम मिलते हैं कहता है कि उन्होंने कभी स्वर्गीय माता के बारे में नहीं सुना। सांता क्रूज लगुना प्रांत की राजधानी है, जहां हम फिलीपींस की राजधानी, मनीला से गाड़ी से लगभग तीन घंटे तक पहाड़ के घुमावदार सड़कों से गुजरते हुए पहुंच सकते हैं। वहां, हम इतने सारे लोगों से मिले जिन्होंने परमेश्वर के वचनों पर कान लगाया। हम सात जन, सात अरब लोगों को प्रचार करने के आंदोलन में योगदान देने के लिए फिलीपींस में उड़ आए। यहां, हमें सात रातों व आठ दिनों तक जी भर के सुसमाचार का प्रचार करने का मौका देने के लिए हमने परमेश्वर को बार–बार धन्यवाद की प्रार्थनाएं चढ़ाईं।

पहले, लोगों से बात करना आसान नहीं था क्योंकि फिलीपींस की भाषा बोलना तो दूर, मुझे अच्छे से अंग्रेजी नहीं आती थी। इसलिए आत्मविश्वास न होने के कारण मैं अपना मुंह आसानी से नहीं खोल सकी। मैंने लोगों से कुछ अभिवादन करने के शब्द कहे, और अपने चेहरे पर एक मुस्कान रखते हुए मैं बस फिलीपींस के भाइयों और बहनों के पास खड़ी रही थी। भाइयों और बहनों ने, जो हमारी मदद करने के लिए क्यूजन सिटी से आए, गाड़ियों से निकलने वाले भारी धुएं में अपने नाक और मुंह को रूमाल से ढककर और अपने चेहरे से पानी की तरह बहते पसीने को तौलिए से पोंछकर, मेहनत से सत्य का प्रचार किया।

पहले दिन का प्रचार समाप्त करने के बाद, इस पर पछतावा करते हुए कि मुझे बेहतर करना चाहिए था, मैं आवास में वापस आ गई। यह सोचते हुए कि कैसे मैं अपने डर को निकाल फेंक सकूं और अंग्रेजी भाषा में कमजोर होने पर भी प्रचार कर सकूं, मुझे एक उपदेश याद आया जो मैंने कोरिया में सुना था।

“जो आग्रहपूर्वक प्रार्थना करते हैं वे परमेश्वर से आशीष प्राप्त कर सकते हैं। याकूब और हन्ना की तरह परमेश्वर से आशीष मांगिए।”

याकूब ने अपनी जांघ की नस के चढ़ जाने के दर्द को सहन करते हुए परमेश्वर के साथ मल्लयुद्ध करके आशीषों को प्राप्त किया। हन्ना ने अपने पुत्र शमुएल को उत्पन्न करने तक बिलख बिलखकर रोते हुए प्रार्थना की। हमें किसी चीज को पूरा करने के लिए उत्सुक और अंतहीन प्रार्थनाओं की जरूरत है जो परमेश्वर को भी स्पर्श करती है। लेकिन मैंने सिर्फ फिलीपींस के भाइयों और बहनों पर निर्भर रहने की कोशिश की और अपने पूरे मन से परमेश्वर पर निर्भर नहीं रही। उसी रात, मैंने अपने बर्ताव का पश्चाताप किया और उत्सुकता से परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर से एक आत्मा को कम से कम सत्य के एक वाक्य का प्रचार करने के लिए साहस मांगा।

प्रार्थना की शक्ति सचमें अद्भुत थी। आश्चर्यजनक रूप से, अगले दिन से मेरा मुंह खुलने लगा। मैंने एक नए जन्मे बच्चे की तरह हाथ के इशारों और चेहरे के हाव–भाव का प्रयोग करके बात की, लेकिन पहले दिन की तुलना में यह एक बड़ा सुधार था। मेरी भाषा बोलने की क्षमता कमजोर होने के बावजूद, जब लोगों ने सुना कि हम बाइबल में लिखे गए एक महत्वपूर्ण संदेश को बताने के लिए कोरिया से उड़कर आए तब वे वचन सुनने के लिए रुक गए। एक कॉलेज के छात्र जिसने कॉलेज जाने के रास्ते में संक्षेप में बाइबल का अध्ययन किया, ने कक्षा समाप्त होने के बाद फिर से आकर नए जीवन की प्रतिज्ञा प्राप्त की; एक भाई ने सत्य ग्रहण करने के बाद एक घंटे से भी कम समय में अपने सहकर्मी का नेतृत्व किया; एक बहन ने स्वर्गीय माता के सत्य को सुनने के बाद थम्स–अप का इशारा करके “पर्फेक्ट” कहते हुए माता की संतान के रूप में फिर से जन्म लिया; और एक भाई काम के बाद रात को 10 बजे के बाद हाऊस चर्च में आया और वचन का अध्ययन करने के बाद दारोगा के समान “रात को उसी घड़ी” परमेश्वर की संतान बना(प्रे 16:29–33)। “आओ और जीवन का जल पाओ,” आत्मा और दुल्हिन की यह आवाज सुनकर तितर बितर हुए स्वर्गीय परिवार वाले परमेश्वर की बांहों में आए मानो वे उसी का इंतजार ही कर रहे थे। यह देखकर मैं फिर एक बार महसूस कर सकी कि सत्य हर जगह समझा जा सकता है।

बहुत से लोग सत्य का अध्ययन करने आए, इसलिए हमने हाउस चर्च में अधिक टेबल और कुर्सियों को तैयार किया, लेकिन बाद में वह भी काफी नहीं था; कुछ लोगों को सीढ़ियों पर बैठकर ही वचन का अध्ययन करना पड़ा। सब्त के दिन पर जिसका हम इंतजार कर रहे थे, हाउस चर्च इतना भर गया था कि पैर रखने की भी जगह नहीं थी। एक छोटी सी जगह में इकट्ठा होकर सदस्यों को असुविधाजनक लगा होगा, फिर भी सब मुस्कुरा रहे थे। नए भाई और बहनें खुश थे कि वे सच्चे परमेश्वर में आत्मा और सच्चाई से आराधना कर सके। और हाउस चर्च के नेता जो अब तक चुपके से हाउस चर्च की देखभाल करने के लिए प्रयास कर रहे थे, उन्होंने यह कहते हुए अपनी खुशी को व्यक्त किया कि एक ही समय में इतने सारे भाइयों और बहनों के साथ आराधना मनाना पहली बार थी।

सांता क्रूज में रहते समय, हमने लोगों को हमसे यह कहते सुना, “कोरिया से यहां आने के लिए धन्यवाद।” लेकिन हम ही उनके प्रति और अधिक आभारी थे। हम वहां के सिय्योन की थोड़ा सा भी मदद करने के लिए वहां गए थे, लेकिन वास्तव में हमने अधिक मदद प्राप्त की। भाई और बहनें हर चीज के लिए बहुत उत्साहित थे—चाहे वह सिय्योन की देखभाल करना हो, दूसरे के प्रति विचारशील रहना हो या प्रचार करना हो। वे पूरे दिन प्रचार करके थके होंगे, लेकिन वे प्रचार के बाद भोजन तैयार करने के लिए सीधे रसोई घर में गए। और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी न होने पर भी उन्होंने हमारे लिए नाश्ता भी तैयार किया। हर दिन जारी रहे गर्म मौसम के बावजूद, उन्होंने यह कहते हुए भाइयों और बहनों को प्रोत्साहित किया, “आइए हम एक साथ स्वर्ग जाएं जहां गर्मी नहीं है,” और उन्होंने हमेशा आसपास देखा था क्योंकि उन्होंने एक दूसरे के लिए कुछ करना चाहा। साथ ही, चूंकि मैं अनाड़ी थी, तो वे मुझे पंखा और छाता ले जाने को कहना भी नहीं भूले।

सुसमाचार का प्रचार करते समय, वे बहुत दृढ़ और निडर थे। मैं नहीं जानती थी कि उनकी शक्ति कहां से आई, लेकिन जब कभी वे सत्य में दिलचस्प दिखने वाले से मिला, तब उन्होंने अपने पूरे हृदय से सत्य का प्रचार किया, चाहे दो या तीन घंटे लगते हो; उन्होंने 100% समर्पण को कार्य में लाया जिसका मैंने हमेशा अपने मन में सपना देखा था।

भाइयों और बहनों के साथ बिना आराम किए प्रचार करते हुए, मुझे पिता और माता का अंतहीन बलिदान और जलते हुए हृदय को चाहे वह एक लाखवां भाग हो, महसूस हुआ। एक दिन, कच्ची सड़क पर चलते हुए मेरे पैरों में बहुत दर्द हुआ। तब अचानक से मेरी आंखें आंसू से भर गई। यह इसलिए नहीं कि मेरे पैरों में दर्द हुआ, लेकिन इसलिए कि मुझे खुद पर शर्म आई और परमेश्वर के प्रति खेद महसूस हुआ। मैंने पहले कभी इसका गहराई से नहीं एहसास किया कि पिता को पत्थर तोड़ने का कठिन काम करते हुए और प्रचार करते हुए कितना दर्दनाक महसूस हुआ होगा, और माता को कितना दुख हुआ होगा जो अपनी संतानों को खिलाने के लिए अपने सिर पर आलू की भारी बोरी को उठाकर लंबी दूरी पर चलीं। आठ दिनों तक हमने फिलीपींस में अपने स्वर्गीय परिवार वालों को खोजने के लिए बिताए, उसका हर क्षण एहसास का, पश्चाताप का, और आशीष का मौका था और बहुत सी चीजें सीखने का मौका था जिसकी मुझे जरूरत थी।

पहले मैं अक्सर ऐसे कमजोर विचार से पीछे हटती थी, ‘परमेश्वर ने कहा कि जो हमें सामथ्र्य देता है उसमें हम सब कुछ कर सकते हैं। लेकिन क्या मैं सचमें सब कुछ कर सकती हूं? मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है जो मैं अच्छे से कर सकती हूं।’

लेकिन अब मैं बदल गई हूं। मुझे यकीन है कि अब से कुछ भी असंभव नहीं है क्योंकि परमेश्वर मेरे साथ चलते हैं जो हमसे बहुत अधिक प्रेम करते हैं और हमारे लिए पीड़ा और बलिदान सहन करने से पीछे नहीं रहते, और दुनिया भर में भाई और बहनें भी जो पिता और माता के सदृश्य हैं, एकसाथ काम कर रहे हैं।

मैं पहले ही से फिलीपींस के भाइयों और बहनों को याद करती हूं। हमने एक दूसरे से वादा किया कि “स्वर्ग में फिर से जरूर मिलेंगे।” मैं आग्रहपूर्वक प्रार्थना करती हूं कि हमारा वादा बिना चूके सच हो जाएगा। यह सच होने के लिए पहले मुझे प्रयास करना चाहिए। सांता क्रूज में हर रात को अपने सूजे हुए पैरों की मालिश करते हुए, मैंने सोचा कि यदि मैं स्वर्गीय माता–पिता के बलिदान के मार्ग पर चल सकूं और दुनिया भर में बिखरे हुए सभी स्वर्गीय परिवार के सदस्यों को खोज सकूं, तो हर दिन मेरे पैरों में दर्द होने पर भी मुझे कोई परेशानी नहीं होगी।

परमेश्वर ने मुझे अवसर की भूमि, फिलीपींस में जाने की अनुमति दी, ताकि मैं भोर की ओस के समान एक युवा वयस्क जो सुसमाचार के कार्य में खुद को स्वेच्छा से समर्पित करती है, बन सकूं। इस अपरिपक्व संतान को सुसमाचार का मिशन सौंपने के लिए और मुझे बदलने का और बढ़ने का समय प्रदान करने के लिए मैं सचमें परमेश्वर को धन्यवाद देती हूं। परमेश्वर के बारे में सोचकर जो हमेशा मेरी आत्मा को प्रोत्साहित करते हैं, मैं अपनी स्थितियों में अपनी पूरी शक्ति और मन के साथ सुसमाचार का कार्य करूंगी, ताकि सुसमाचार का प्रचार पूरी दुनिया में किया जाए और कहीं ऐसी आत्मा न हो जो न सुनने के कारण एलोहीम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करती।