जापान के सबसे दक्षिणी भाग तक

ओसाका, जापान से ओह सुंग ग्वन

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जापान एक लंबा द्वीप देश है, जिसमें चार मुख्य द्वीप हैं और उनके आसपास अनगिनत द्वीप फैले हुए हैं। चार सबसे बड़े द्वीपों में से द्वीप जो जापान के दक्षिणी भाग में स्थित है, वह क्यूशू है। यदि आप क्यूशू से विमान के द्वारा दक्षिण की ओर लगभग दो घंटे का सफर करें, तो ओकिनावा नामक एक छोटा द्वीप है । वहां अब एक डीकनेस एक हाउस चर्च चला रही हैं और कुछ भाई–बहनें अपना विश्वास रख रहे हैं।

ओकिनावा में हाउस चर्च को स्थापित किए हुए ज्यादा समय हुआ है, लेकिन अफसोस की बात थी कि वहां बहुत सदस्य नहीं थे क्योंकि बहुत सी आत्माएं जिन्होंने सत्य ग्रहण किया था, बहुत सी अलग–अलग परीक्षाओं और प्रलोभनों पर जय पाने में नाकाम हुई थीं और सिय्योन छोड़कर चली गई थीं, और डीकनेस के बच्चे भी दूसरे प्रांत चले गए थे। शायद इससे डीकनेस का दिल टूट गया होगा, लेकिन उन्होंने आत्मविश्वास से कहा, “मैं अकेली नहीं हूं क्योंकि माता मेरे साथ हैं और मेरे भाई–बहनें मेरे लिए प्रार्थना करते हैं।”

ऐसी कठिन परिस्थिति में भी डीकनेस ने कभी हिम्मत नहीं छोड़ी। एक दिन उन्होंने मुझे फोन किया और ओकिनावा आने के लिए कहा क्योंकि वहां कुछ लोग सत्य ग्रहण करना चाहते थे। जैसे ही उनसे फोन पर बात हुई थी, हमने योजना बनाई और हम मार्च के आरम्भ में ओकिनावा के लिए निकल पड़े। ओकिनावा में शुद्ध हृदय वाली आत्माएं हमारा इंतजार कर रही थीं।

बहन मातायोसी सत्य को ग्रहण करने से पहले मंदिरों में जाना बहुत पसंद करती थी। बाइबल के वचन सुनने के बावजूद, उसने डीकनेस से कहा था कि वह मंदिर में उपासना करने के लिए जाएगी। यह सुनकर डीकनेस का दिल चूर–चूर हो गया था। कुछ दिनों के बाद वह आई, और उसने यह कहकर उन्हें चौंका दिया, “मुझे बपतिस्मा लेना है।”

दरअसल बात यह थी कि परमेश्वर के वचन सुनने के बाद उसे मंदिर में उपासना करना अच्छा नहीं लगा था भले ही वह पहले वहां हमेशा उपासना किया करती थी, इसलिए वह मंदिर के अंदर नहीं गई थी और बस पीछे मुड़ी थी। तब से उसने बपतिस्मा लेने का बड़ी बेसब्री से इंतजार किया था। आखिर में वह बड़े आनन्द से परमेश्वर की संतान के रूप में फिर से जन्मी।

अमेरिका के सैन्य अड्डे में भी दूसरे ऐसे भाई–बहनें थे जिन्होंने उस बहन की तरह नए जीवन की आशीष पाई। चूंकि वहां कोरियाई, जापानी, अमेरिकी इत्यादि लोग थे, इसलिए अच्छे से संवाद करने में उन्हें मुश्किल हुई। लेकिन परमेश्वर की संतान बनने पर उन्होंने एक–दूसरे को बधाई दी। वहां एक त्यौहार जैसा माहौल रहा।

दूसरे दिन हमने कुछ नए भाई–बहनों के साथ बाइबल का अध्ययन किया जो कुछ महीने पहले स्वर्गीय परिवार के सदस्य बने थे। पिछले वर्ष अक्टूबर के आसपास तीन परिवारों को उद्धार की आशीष दी गई थी, और पिछले कुछ महीनों में उनका विश्वास सुंदर रूप से बढ़ गया था।

सारी रात काम करने के बाद वे एक साथ इकट्ठे हुए, मगर रातवाली थकान का उनके चेहरे पर कोई भी चिन्ह शेष नहीं था। उन्होंने चमकदार आंखों से परमेश्वर के वचन का अध्ययन किया। मैं प्रेरित हुआ जब उन्होंने पिता और माता के सुसमाचार के पदचिन्हों को समझकर और उनके पवित्र प्रेम और बलिदान को महसूस करके आंसू बहाए।

ओकिनावा में दिल छू लेनेवाले पलों से भरे दो दिनों के बाद, वापस फुकुओका जाने का समय आया।

“कृपया वापस आइए।”

मैंने उनसे कहा था कि यदि वे स्वर्गीय परिवार के अधिक सदस्यों को खोजेंगे, तो मैं किसी भी समय वापस आऊंगा। तब उन्होंने यह कहते हुए अपना संकल्प दिखाया, “हम यत्न से प्रचार करेंगे और आपको जल्दी बुलाएंगे।”

वह “जल्दी” शब्द बड़ी ही शीघ्रता से आया। ओकिनावा से वापस आने के कुछ दिनों बाद, मेरे पास उनका फोन आया। उन्होंने फोन पर कहा कि मुझे जल्दी फिर से आना चाहिए क्योंकि एक नई बहन कुबोडा का छोटा भाई और उसकी पत्नी और उसके परिवार के तीन सदस्यों ने सत्य को ग्रहण करने का फैसला किया है।

मेरे ओकिनावा से निकलने के अगले दिन से ही बहन ने अपने छोटे भाई को प्रचार किया था। शुरुआत कमजोर थी। लेकिन वह अपने छोटे भाई को प्रचार किए बिना नहीं रह सका था, इसलिए उसने बिना किसी संकोच के प्रचार किया था। लेकिन उसने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। इस पर उसने थोड़ा और अधिक बाइबल का वचन पढ़ा था और बार–बार अपने भाई को प्रचार करना जारी रखा था। आखिर में सिर्फ उसके छोटे भाई ने ही नहीं, बल्कि उसके परिवार के दूसरे सदस्यों ने भी अपना मन खोला।

जल्द ही मैं ओकिनावा का दौरा करूंगा ताकि उन्हें लंबे समय तक इंतजार करना न पड़े। जापान के सबसे दक्षिणी भाग में स्थित एक छोटा द्वीप, यानी ओकिनावा में भी ऐसी सुंदर आत्माओं को इकट्ठा करने के लिए मैं परमेश्वर को बहुत अधिक धन्यवाद देता हूं। पिता और माता, क्यूशू और ओकिनावा में स्वर्गीय माता से मिलने की लालसा करते हुए बड़े यत्न से प्रचार कर रही अपनी संतानों को कृपया अधिक आशीषें दीजिए।