इस्राएल का इतिहास पढ़ने का कारण
हमें इस्राएल का इतिहास इसलिए पढ़ना चाहिए क्योंकि शारीरिक इस्राएलियों के इतिहास में वो चीजें हैं जो हम आत्मिक इस्राएलियों के साथ घटित होंगी।
शारीरिक इस्राएलियों के इतिहास में भविष्यवाणी संबंधी बातों के द्वारा हम पहले ही समझ सकते हैं कि हमारे साथ क्या घटित होगा। इसलिए, आइए हम परमेश्वर की संतान के रूप में हमारे पद और स्थिति को दृढ़ रखें और विश्वास की ऐसी मानसिकता का निर्माण करें जो हमें परमेश्वर के बेटे और बेटियों के रूप में रखनी चाहिए।

इस्राएल का इतिहास निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है:
- आदम से लेकर नूह तक
- नूह से लेकर अब्राहम तक
- अब्राहम से लेकर मूसा तक
- निर्गमन से लेकर कनान में प्रवेश और न्यायियों के समय तक
- राजाओं का समय
- विभाजित राज्य का समय
- बेबीलोन में दासत्व और वापसी
- यरूशलेम का पतन और उसकी पुनस्र्थापना
1. आदम से लेकर नूह तक
सारे मनुष्यों के पूर्वज, आदम से लेकर नूह तक की वंशावली का वर्णन उत्पत्ति के 5 वें अध्याय में लिखा है। जैसे लोगों की संख्या बढ़ी और उनकी दुष्टता बहुत भारी हो गई, तो परमेश्वर ने पानी से उनका न्याय किया। यह न्याय हमारी चेतावनी के लिए जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं, लिखा गया है।
जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। क्योंकि जैसे जल–प्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते–पीते थे, और उनमें विवाह होते थे। और जब तक जल–प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उनको कुछ भी मालूम न पड़ाऌ वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। मत 24:37–39
इसी के कारण उस युग का जगत जल में डूब कर नष्ट हो गया। पर वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिये रखे गए हैं कि जलाए जाएं; और ये भक्तिहीन मनुष्यों के न्याय और नष्ट होने के दिन तक ऐसे ही रखे रहेंगे। 2पत 3:6–7
2. नूह से लेकर अब्राहम तक
नूह के जलप्रलय के बाद, लोगों ने बाबेल का गुम्मट बनाने की कोशिश की ताकि उन्हें सारी पृथ्वी पर फैलना न पड़े। हालांकि, जैसे परमेश्वर ने उनकी भाषा में गड़बड़ी डाली, तो गुम्मट बनाने की उनकी योजना चूर–चूर हो गई और वे सारी पृथ्वी के ऊपर फैल गए।
उसके बाद, परमेश्वर की आशीष अब्राहम को दी गई जो धर्मी मनुष्य था। अब्राहम अपने पिता तेरह के साथ कसदियों के ऊर नामक नगर में रहता था, और फिर हारान को चला गया। उसके बाद, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार कनान की ओर निकला। (उत 11:31–12:35)
3. अब्राहम से लेकर मूसा तक
1) अब्राहम से इसहाक का जन्म हुआ, इसहाक से याकूब का जन्म हुआ, और याकूब से बारह पुत्रों का जन्म हुआ। याकूब के बारह पुत्रों में से ग्यारहवां पुत्र यूसुफ था, जिसे उसके ईष्र्यालु भाइयों ने मिस्र में बेच डाला। (उत 37:1–36)
2) यूसुफ जिसे मिस्र की गुलामी में बेच दिया गया था, उस पर परमेश्वर ने कृपा की, और वह पूरे मिस्र देश का शासक और प्रधान बना। (उत्पत्ति अध्याय 39–41)
3) सात वर्षों के अकाल के कारण, यूसुफ के भाई अनाज लाने के लिए मिस्र गए, और वे यूसुफ से मिले जो मिस्र का शासक बन गया था। याकूब और उसके परिवार ने कनान छोड़ दिया और मिस्र में बस गए। (उत्पत्ति अध्याय 39–47)
4) यूसुफ और उसकी पीढ़ी के सभी लोग मर गए। उसके बाद मिस्र में एक नया राजा आया, जो यूसुफ को नहीं जानता था। फिरौन ने याकूब के वंशजों को गुलाम बनाया और उन पर अत्याचार किया। इस्राएलियों ने गुलामी से आजाद होने के लिए परमेश्वर से गिड़गिड़कर प्रार्थना की। परमेश्वर ने उनकी प्रार्थना सुनी और मूसा का जन्म होने दिया।
* “फिरौन” ग्रीक शब्द फारओ से और हिब्रू शब्द पाराओ से आता है।
फिरौन, जिसका मतलब “बड़ा घराना” है, मूल रूप से शाही महल को दर्शाता था, और प्राचीन मिस्र के हर एक राजा को यह उपाधि मिलती थी, लेकिन कुछ समय के बाद यह उपाधि प्राचीन मिस्र के सभी राजाओं के लिए एक सामान्य नाम के रूप में विकसित हुई।
4. निर्गमन से लेकर कनान में प्रवेश और न्यायियों के समय तक
1) इस्राएल के इतिहास में निर्गमन की घटना बहुत ही महत्वपूर्ण थी: इस्राएलियों ने जिन पर मिस्र में बहुत अत्याचार होता था, फसह के द्वारा परमेश्वर की महान शक्ति का अनुभव किया(निर्ग 12:1–51); वे भयंकर विपत्ति से बचाए गए थे – मिस्रियों के सब पहिलौठों और पशुओं के पहिलौठों को मारने की विपत्ति। तब उन्होंने परमेश्वर की शक्ति से लाल समुद्र पार किया।
उसके बाद, इस्राएलियों ने जंगल में अपनी यात्रा शुरू की। जब वे सीनै पर्वत पर पहुंचे, उन्होंने दस आज्ञाएं प्राप्त कीं और निर्गमन के बाद दूसरे वर्ष के पहले महीने के पहले दिन को मिलापवाला तम्बू खड़ा किया। (निर्गमन अध्याय 19, 20, 35–36, 40)
2) जब इस्राएली कनान देश की सीमा पर पहुंचे, तो उन्होंने 12 भेदियों को कनान देश का भेद लेने के लिए भेजा। यहोशू और कालिब को छोड़, सब भेदियों ने कनान का भेद लेने के बाद बुरी सूचना दी। इसके परिणाम में, इस्राएली चालीस साल तक जंगल में भटकते रहे। (गिनती अध्याय 13, 14)
3) चालीस साल के बाद, इस्राएली जिन्होंने परमेश्वर का पालन किया, वे यहोशू के मार्गदर्शन से कनान देश को जीत सके। (गिनती अध्याय 1–24)
4) कनान में, जब इस्राएली मूर्तियों की पूजा करते थे, तब वे अन्यजातियों से पीड़ित होते थे और पराजित हो जाते थे। जब भी वे ऐसा करते थे, परमेश्वर उनके लिए एक नेता चुनते थे, और उस नेता को “न्यायी” कहा जाता था।
* “न्यायी” यह शब्द हिब्रू शब्द “शफत” से आता है, जिसका मतलब है, “वह जो शासन करता है, मामलों पर फैसला देता है और सुनवाई करता है।” जब इस्राएली खतरे में होते थे, तब परमेश्वर उन्हें छुड़ाने के लिए एक न्यायी भेजते थे और फिर उसे इस्राएल का शासक बनाते थे। न्यायी का पद राजा के पद से भिन्न था, यह आनुवांशिक नहीं था।
5. राजाओं का समय
आखिरी न्यायी शमूएल के समय में, इस्राएलियों ने परमेश्वर से सभी दूसरे देशों की तरह उन पर शासन करने के लिए एक राजा को नियुक्त करने के लिए कहा। तो परमेश्वर ने बिन्यामीन के गोत्र में से इस्राएल पर शासन करने के लिए शाऊल को राजा बनाया। (1शमूएल अध्याय 11–13)
शाऊल 40 वर्ष तक सिंहासन पर था और वह पलिश्तियों के विरुद्ध युद्ध में मर गया। (प्रे 13:21; 1शम 31:1–13) उसके बाद, दाऊद राजा बना, और उसने 40 वर्ष तक इस्राएल पर राज्य किया। (2शम 5:4)
दाऊद की मृत्यु के बाद, सुलैमान अपने पिता के सिंहासन पर बैठा, और उसने भी 40 वर्ष तक राज्य किया। (1रा 11:42)
6. विभाजित राज्य का समय
सुलैमान की मृत्यु के बाद, इस्राएल का राज्य दो भागों में विभाजित हुआ था: दक्षिण में यहूदा(जिसका राजा रहूबियाम था) और उत्तर में इस्राएल(जिसका राजा यारोबाम था)। (लगभग 975 ई.पू. ; 1रा 12:1–24)
1) उत्तर में इस्राएल
इस्राएल शुरुआत से ही मूर्तिपूजा करने लगा और परमेश्वर के क्रोध को भड़काया। इसके परिणाम में, अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने इस्राएल पर चढ़ाई की, और उसकी स्थापना के 255 वर्ष बाद नष्ट हो गया। (721 ई.पू. ; 2रा 17:1–18)
तब इस्राएल के सभी लोगों को बंदी बनाया गया और दूर देश में रहने को विवश किया गया। (2रा 17:6) अश्शूर के राजा ने अपने दूसरे जीते हुए राज्यों में से लोगों को लाकर शोमरोन के नगर में बसा दिया। (2रा 17:24)
2) दक्षिण में यहूदा
यहूदा ने भी परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने की उपेक्षा की, लेकिन यहूदा के लोगों ने हिजकिय्याह के समय में फसह का पर्व मनाया(2रा 18:21–19:37), इसलिए वे परमेश्वर के द्वारा सुंरक्षित किए गए। 100 से अधिक वर्षों के लिए, परमेश्वर के अनुग्रह की दृष्टि उन पर बनी रही।
※ “परमेश्वर का रहस्य और जीवन के जल का स्रोत” शीर्षक सत्य की पुस्तक के 8 वें अध्याय, “फसह के पर्व का रहस्य” से संदर्भ लें।
7. बेबीलोन में दासत्व और वापसी
परमेश्वर की व्यवस्थाओं और आदेशों की उपेक्षा करने के कारण, उत्तर इस्राएल का राज्य नष्ट हो गया, इस तथ्य के बावजूद दक्षिण यहूदा के राज्य ने परमेश्वर की सेवा करने की उपेक्षा की और परमेश्वर की आज्ञाओं को भी तुच्छ जाना। इसलिए परमेश्वर ने यहूदा के लोगों को बेबीलोन के राजा नबूकदनेस्सर के उत्पीड़न के अंतर्गत रखा, ताकि वे परमेश्वर की सच्ची इच्छा को जान सकें।
1) बेबीलोन में बंदी बनाया जाना
जब यहूदा के लोगों को बेबीलोन के तीन आक्रमणों की श्रृंखला के द्वारा बंदी बनाया गया(606 ई.पू. , 597 ई.पू. , और 586 ई.पू.), तब परमेश्वर ने यिर्मयाह नबी के द्वारा भविष्यवाणी की कि वे 70 वर्ष के बाद यहूदा में लौटेंगे।
2) बेबीलोन से छुड़ाया जाना और यरूशलेम में वापसी
परमेश्वर की भविष्यवाणी के अनुसार, बेबीलोन मादी और फारस के द्वारा नष्ट हो गया। बंधुवाई के 70 वर्ष के अंत में, परमेश्वर ने फारस के राजा कुस्रू का मन उभारा ताकि वह समस्त राज्य में प्रचार करे और लिखवा भी दे: “फारस का राजा कुस्रू यों कहता है: स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा ने पृथ्वी भर का राज्य मुझे दिया है, और उसने मुझे आज्ञा दी कि यहूदा के यरूशलेम में मेरा एक भवन बनवा। उसकी समस्त प्रजा के लोगों में से तुम्हारे मध्य जो कोई हो, उसका परमेश्वर उसके साथ रहे, वह यहूदा के यरूशलेम को जाकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का भवन बनाए – जो यरूशलेम में है वही परमेश्वर है।” तब यहूदा के लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर को धन्यवाद और स्तुति दी और अपने देश में लौट गए और परमेश्वर के लिए भवन बनाया। (537 ई.पू. और 457 ई.पू. ; जकर्याह अध्याय 1–3)
3) मादी–फारस के अधीन होने के बाद रोम का उपनिवेश बन जाना
यहूदा का राज्य जो मादी–फारस के वश में था, सिकंदर के पूर्वी अभियान और यूनान के चार अलग अलग राज्यों में विभाजित होने के कारण मिस्र के टालेमी के शासन के अधीन हुआ। उसके बाद, यहूदा को सीरिया के सेल्यूकस के शासन के अधीन रखा गया। उपनिवेशक काल के दौरान, यूनान की बहुत सी मूर्तियों को परमेश्वर के भवन में लाया गया, इसलिए यहूदा गंभीरता से खतरे में पड़ गया, लेकिन उसने अन्त में स्वतंत्रता हासिल की और स्वशासन के अधिकार को सुरक्षित किया।
हालांकि, जब इस्राएल में चले एक गृहयुद्ध में रोम ने हस्तक्षेप किया, तब यहूदियों की स्वतंत्रता खत्म हुई, और अन्त में 63 ई.पू. में इस्राएल रोमन कॉलोनी बन गया। रोम ने यहूदिया के राजा हेरोदेस को नियुक्त किया। राजा हेरोदेस के समय में, यहूदिया के बैतलहम में यीशु का जन्म हुआ।
8. यरूशलेम का पतन और उसकी पुनस्र्थापना
यहूदियों ने मसीह को जो उन्हें बचाने आए थे, ग्रहण करने के बदले क्रूस पर चढ़ाने का पाप किया। इसके अलावा, उन्होंने गंभीर रूप से ईसाइयों को सताया।
उसके बाद, उन्होंने रोम से स्वतंत्रता पाने के लिए रोम के विरुद्ध कई बार दंगा किया, और 70 ई. में रोम की सेना के सेनापति तीतुस के द्वारा उन पर आक्रमण किया गया और वे नष्ट हो गए। 11,00,000 यहूदियों को मार डाला गया और 97,000 को बंदी बनाया गया। जब उन्होंने अपना देश खो दिया, वे आवारा होकर अन्यजातियों में बिखरे हुए। 1948 में, जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ, तब अन्त में इंग्लैंड की मदद से इस्राएल एक स्वतंत्र राज्य बन गया और वह आज के दिन तक स्वतंत्र रहा है। 1,900 वर्षों के बाद मिली इस्राएल की स्वतंत्रता को इतिहासकारों के बीच में एक अभूतपूर्व “चमत्कार” कहा जाता है। दुनिया के इतिहास में इसे स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया है।
इस्राएल की स्वतंत्रता हमें दिखाती है कि यीशु फिर से कब आएंगे, और वह हमें यह महसूस करने में मदद करती है कि वह समय निकट है जब आत्मिक इस्राएली अपने स्वर्गीय घर वापस जाएंगे।