इब्रानी भाषा बोलनेवाले और यूनानी भाषा बोलनेवाले

83,534 बार देखा गया

उन दिनों में जब चेलों की संख्या बहुत बढ़ने लगी, तब यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानी भाषा बोलनेवालों पर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रतिदिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती। प्रे 6:1

प्रेरितों के 6वें अध्याय में इब्रानी भाषा बोलनेवाले और यूनानी भाषा बोलनेवाले हैं। आइए हम एक एक करके देखें कि इब्रानी भाषा बोलनेवाले और यूनानी भाषा बोलनेवाले कौन हैं।

इब्रानी भाषा बोलनेवाले वे लोग थे, जो इब्रानी भाषा(प्रथम चर्च के दिनों में अरामी भाषा) का उपयोग करते थे, और यूनानी भाषा बोलनेवाले वे लोग थे, जो यूनानी भाषा का उपयोग करते थे।

अरामी भाषा और यहूदी

करीब 600 ईसा पूर्व में यहूदियों को बेबीलोन में बंदी बनाया गया था, जहां वे 70 वर्ष तक दासत्व में रहे। बेबीलोन में रहने के दौरान वे अपने पूर्वजों की शुद्ध इब्रानी भाषा के बजाय, अरामी भाषा बोलने लगे, जो बेबीलोन साम्राज्य की अधिकारिक भाषा थी। यरूशलेम में लौट आने के बाद भी, उन्होंने अरामी भाषा बोलना जारी रखा, और वह भाषा यीशु के दिनों में भी बोली जाती थी।

यीशु ने यूहन्ना के पुत्र शमौन का नाम “कैफा” रखा, जिसका अर्थ अरामी भाषा में “पत्थर” है। जब यीशु ने गिरासेनियों के देश में आराधनालय के सरदार की पुत्री को बचाया, उन्होंने लड़की का हाथ पकड़कर उससे कहा, “तलीता कूमी!” जिसका अरामी भाषा में अर्थ है, “हे लड़की, मैं तुझ से कहता हूं, उठ!” मरियम मगदलीनी ने यीशु से, जो फिर जी उठे, “रब्बूनी” कहा। यह भी एक अरामी शब्द है, जिसका मतलब है, “हे गुरु” इन शब्दों के अलावा, बहुत से दूसरे अरामी शब्दों का उपयोग किया गया था जैसे कि गतसमनी(तेल–निचोड़ने वाला) और गुलगुता(खोपड़ी का स्थान) जो जगहों के नाम हैं।

यूनानी भाषा और यहूदी

यहूदियों में से, जिन्हें बेबीलोन में बंदी बनाया गया था, बहुत से यहूदी जहां वे रहते थे वहां अन्यजाति के क्षेत्र में ही बसे। वे मुख्य रूप से अरामी भाषा बोलते थे, लेकिन वे तभी यूनानी भाषा का उपयोग करने लगे जब सिकंदर महान के विश्व विजय अभियान के बाद यूनानी भाषा का व्यापक रूप से उपयोग होने लगा।

यहूदियों ने जो अन्यजाति के क्षेत्र में जी रहे थे, अपने विश्वास को बनाए रखने के लिए अपना समुदाय बना लिया। मूसा की व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए और उसे लोगों को सिखाने के लिए वे एक विशिष्ट स्थान में इकट्ठे होने लगे, और बाद में वह एक आराधनालय में विकसित हुआ।

जब उनमें से कुछ अपने पूर्वजों के देश कनान में लौट गए, तब वहां यूनानी भाषा बोलने वाले यहूदी बहुत थोडे. थे, क्योंकि उनमें से ज्यादातर अरामी भाषा बोलते थे।

प्रथम चर्च के दिनों में, चर्च के सदस्यों में से ज्यादातर अरामी भाषा बोलते थे, जबकि उनमें से कम सदस्य यूनानी भाषा बोलते थे।

उस समय चर्च में जरूरतमंद विधवाओं की मदद करने की एक रीति थी। चूंकि वस्तुओं के दैनिक वितरण में यूनानी भाषा बोलनेवाली विधवाओं के साथ उपेक्षा बरती जा रही थी, इसलिए यूनानी भाषा बोलनेवाले सदस्य इस पर कुड़कुड़ाने लगे। यह इसलिए हुआ क्योंकि प्रेरित सुसमाचार का प्रचार करने पर अपना पूरा ध्यान लगाए रखने के कारण, चर्च की वित्तीय स्थिति या वस्तुओं के दैनिक वितरण की अच्छी देखभाल नहीं कर पाए।

इसलिए प्रेरितों ने सदस्यों में से सात सुनाम पुरुषों को, जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण थे, चुना और उन्हें चर्च की वित्तीय कार्यवाही और बाकी सभी काम सौंपे, इससे प्रेरित और भी अधिक लगन और मेहनत से सुसमाचार का प्रचार कर सके।(प्रे 6:1–7)