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यीशु ने क्रूस पर निश्चित रूप से कहा, “पूरा हुआ।” अगर ऐसा हो, तो हमें अब से सब्त का दिन और फसह का पर्व जैसे किसी भी नियम का पालन करने की जरूरत नहीं है, है न?

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यीशु ने क्रूस पर मृत्यु होने से पहले कहा, “पूरा हुआ।”(यूहन्ना 19:30) क्या इस शब्द का अर्थ यह होता है कि हमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है? यीशु के शब्द का अर्थ होता है कि वह कार्य पूरा हुआ, जो “हमें” नहीं, लेकिन “यीशु” को प्रथम आगमन के समय पृथ्वी पर पूरा करना चाहिए था। अगर हम इस पर अध्ययन करें कि यीशु ने क्या पूरा किया, तो हम समझ सकते हैं कि परमेश्वर के लोगों को और अधिक पवित्रता से सब्त और फसह जैसे परमेश्वर के नियमों का पालन करना चाहिए।

बहुतों की छुड़ौती के लिए यीशु बलिदान हो गए

जो यीशु को इस पृथ्वी पर करने चाहिए थे, उन महत्वपूर्ण कार्यों में से एक यह था कि वह पापों के कारण नरक में मृत्युदंड पानेवाले पापियों के लिए छुड़ौती के रूप में अपने प्राण दें। हमारे बजाय, जो मृत्यु के लायक थे, हमारे पवित्र परमेश्वर ने क्रूस पर अपना बलिदान किया, जिससे हमें मौत की सजा से मुक्त कर दिया गया।

“जैसे कि मनुष्य का पुत्र; वह इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।”मत 20:28

बहुत पुराने दिनों में भी, उस व्यक्ति की जान बचाने के क्रम में, जिसे मार डालने के लिए तैयार किया गया था, उसके प्राण के बदले किसी को अपना प्राण देना पड़ता था।(1रा 20:42) इसी तरह, पृथ्वी पर पापियों को बचाने के लिए यीशु को कोडे. से पीटा गया, उनके साथ अत्याचार किया गया, और वह क्रूस पर अंतिम सांस लेने तक अत्यंत पीड़ित हुए।

परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी, कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएं। हम तो सब के सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभों के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया। वह सताया गया, तौभी वह सहता रहा और अपना मुंह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय और भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुंह न खोला। अत्याचार करके और दोष लगाकर वे उसे ले गए; उस समय के लोगों में से किसने इस पर ध्यान दिया कि वह जीवतों के बीच में से उठा लिया गया? मेरे ही लोगों के अपराधों के कारण उस पर मार पड़ी।यश 53:5–8

यीशु के शब्द “पूरा हूआ,” इसका अर्थ यह है कि यीशु ने पुराने नियम के नबियों की उन सभी भविष्यवाणियों को पूरा किया, जिन्हें यीशु को सन्तानों के पापों की क्षमा के लिए पापबलि के रूप में, यानी छुड़ौती के रूप में बलिदान होने की प्रक्रिया में पूरा करना चाहिए था। यीशु ने मरने के आखिरी क्षण तक भी बाइबल की भविष्यवाणी के अनुसार किया।

जब सैनिक यीशु को क्रूस पर चढ़ा चुके, तो उसके कपड़े लेकर चार भाग किए, हर सैनिक के लिए एक भाग, और कुरता भी लिया, परन्तु कुरता बिन सीअन ऊपर से नीचे तक बुना हुआ था। इसलिये उन्होंने आपस में कहा, “हम इसको न फाड़ें, परन्तु इस पर चिट्ठी डालें कि यह किसका होगा।” यह इसलिये हुआ कि पवित्रशास्त्र में जो कहा गया वह पूरा हो, “उन्होंने मेरे कपड़े आपस में बांट लिये और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली।” अत: सैनिकों ने ऐसा ही किया… इसके बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका, इसलिये कि पवित्रशास्त्र में जो कहा गया वह पूरा हो, कहा, “मैं प्यासा हूं।” वहां सिरके से भरा हुआ एक बरतन रखा था, अत: उन्होंने सिरके में भिगोए हुए स्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुंह से लगाया। जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा, “पूरा हुआ”; और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए।यूह 19:23–30

क्रूस के बलिदान के माध्यम से संपूर्ण पापों की क्षमा पूरी की गई

पापबलि के रूप में क्रूस पर बलिदान होने के बाद, पुराने नियम के समय में जानवरों के लहू के द्वारा चढ़ाए गए सभी बलिदानों को समाप्त कर दिया गया। यह इसलिए था क्योंकि सर्वदा के लिए हमें संपूर्ण बनाने वाला बलिदान चढ़ाए जाने तक, पुराने नियम के सभी बलिदान सिर्फ छाया और प्रतिरूप थे, जो मसीह के बलिदान को दर्शाते थे।

क्योंकि व्यवस्था, जिसमें आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है पर उनका असली स्वरूप नहीं, इसलिये उन एक ही प्रकार के बलिदानों के द्वारा जो प्रतिवर्ष अचूक चढ़ाए जाते हैं, पास आनेवालों को कदापि सिद्ध नहीं कर सकती… परन्तु उनके द्वारा प्रति वर्ष पापों का स्मरण हुआ करता है। क्योंकि यह अनहोना है कि बैलों और बकरों का लहू पापों को दूर करे… उसी इच्छा से हम यीशु मसीह की देह के एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं। हर एक याजक तो खड़े होकर प्रतिदिन सेवा करता है, और एक ही प्रकार के बलिदान को जो पापों को कभी भी दूर नहीं कर सकते, बार–बार चढ़ाता है। परन्तु यह व्यक्ति तो पापों के बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिये चढ़ाकर परमेश्वर के दाहिने जा बैठा, और उसी समय से इसकी बाट जोह रहा है, कि उसके बैरी उसके पांवों के नीचे की पीढ़ी बनें। क्योंकि उसने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं, सर्वदा के लिये सिद्ध कर दिया है… और जब इनकी क्षमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा।इब्र 10:1–18

पापों की क्षमा के लिए पापबलि के रूप में पशुओं का बलिदान करने के नियम को समाप्त कर दिया गया, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वो नियम भी, जिसका नए नियम के समय यीशु और प्रेरितों ने पालन किया, गायब हुआ। सब्त का दिन और फसह का पर्व जैसे नियम, जो यीशु ने उदाहरण के रूप में दिखाए और प्रेरितों ने मनाए, नई वाचा की व्यवस्था है, जिसे यीशु के क्रूस पर बलिदान होने के बाद संपूर्ण किया गया। जानवरों के लहू के बलिदानों के माध्यम से, हमारी आत्माएं पापों की पूरी क्षमा नहीं पा सकतीं। लेकिन नई वाचा की व्यवस्था के माध्यम से जिसमें मसीह का लहू शामिल है, हम अंत में स्वर्ग में किए गए पापों से भी पूरी तरह से क्षमा पा सकते हैं और मृत्युदण्ड से छुटकारा पा सकते हैं।

यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि प्राप्त हो सकती(जिसके सहारे लोगों को व्यवस्था मिली थी) तो फिर क्या आवश्यकता थी कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए? क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है, तो व्यवस्था का भी बदलना अवश्य है।इब्र 7:11–12

यीशु ने अपने क्रूस के बलिदान के द्वारा पुराने नियम की व्यवस्था को, जो अपूर्ण थी, नई वाचा की व्यवस्था के रूप में पूरा किया और वसीयत छोड़ी। यीशु की वसीयत उनकी मृत्यु के बाद लागू हुई।

इसी कारण वह नई वाचा का मध्यस्थ है, ताकि उसकी मृत्यु के द्वारा जो पहली वाचा के समय के अपराधों से छुटकारा पाने के लिये हुई है, बुलाए हुए लोग प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्त मीरास को प्राप्त करें। क्योंकि जहां वाचा बांधी गई है वहां वाचा बांधनेवाले की मृत्यु का समझ लेना भी अवश्य है। क्योंकि ऐसी वाचा मरने पर पक्की होती है, और जब तक वाचा बांधनेवाला जीवित रहता है तब तक वाचा काम की नहीं होती।इब्र 9:15–17

प्रेरितों ने सब्त का दिन और फसह का पर्व मनाया

अगर यीशु के क्रूस पर सब कुछ पूरा करने के कारण हमें सब्त और फसह का पर्व मनाने की जरूरत न होती, तो प्रेरितों को भी यीशु की मृत्यु के बाद सब्त और फसह का पर्व मनाना नहीं चाहिए था। लेकिन बाइबल में दर्ज किया गया है कि मसीह के उदाहरण के अनुसार प्रेरितों ने नई वाचा का सब्त और फसह का पर्व मनाया।

पौलुस अपनी रीति के अनुसार उनके पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्र शास्त्रों से उनके साथ वाद–विवाद किया; और उनका अर्थ खोल खोलकर समझाता था कि मसीह को दु:ख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; और “यही यीशु जिसकी मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं, मसीह है।प्रे 17:2–3

वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद–विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को भी समझाता था।”प्रे 18:4

… क्योंकि हमारा भी फसह, जो मसीह है, बलिदान हुआ है। इसलिए आओ, हम उत्सव में आनन्द मनावें…1कुर 5:7–8

क्योंकि यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी कि प्रभु यीशु ने जिस रात वह पकड़वाया गया, रोटी ली, और धन्यवाद करके उसे तोड़ी और कहा, “यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिये है: मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” इसी रीति से उसने बियारी के पीछे कटोरा भी लिया और कहा, “यह कटोरा मेरे लहू में नई वाचा है: जब कभी पीओ, तो मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।”1कुर 11: 23–25

प्रेरितों ने आत्मा और सच्चाई से नई वाचा का सब्त और फसह का पर्व मनाया, ताकि वे उन यीशु के बलिदान को व्यर्थ न जाने दें, जिन्होंने बाइबल की सभी भविष्यवाणियों को पूरा करके पापों की संपूर्ण क्षमा देने के लिए क्रूस पर लहू बहाए।

इसी तरह, जब हम यीशु के क्रूस पर हुए बलिदान के सही अर्थ का एहसास करते हैं, तब हम जान सकेंगे कि वह नई वाचा का नियम कितना बहुमूल्य है, जो यीशु ने अपने बहुमूल्य बलिदान के माध्यम से संपूर्ण बनाया। सब्त का दिन और फसह का पर्व जैसे परमेश्वर के नियम परमेश्वर की अनमोल वसीयत है, जिसे हमें अमल में लाना बिल्कुल आवश्यक है।