वे जो क्षणभर के लिए जीते हैं और वे जो अनन्तकाल के लिए जीते हैं

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बाइबल गवाही देती है कि परमेश्वर की सन्तान, जो उद्धार पाएंगी, वे स्वर्ग के नागरिक हैं।(फिलि 3:20) स्वर्गीय नागरिक होने के तौर पर, हमें अपना मन पृथ्वी की नहीं पर स्वर्ग की बातों पर लगाना चाहिए। परमेश्वर हमें, अपनी सन्तानों को, सिर्फ हमारे शारीरिक जीवन में नहीं फंसाना चाहते। इसलिए परमेश्वर हमें सिखाते हैं कि हमें उन अनन्त चीजों के लिए जीना चाहिए जो हम स्वर्ग में वापस जाकर भोगेंगे।

जिस प्रकार इस पृथ्वी पर सब के पास एक देश के नागरिक होने के नाते कुछ अधिकार और कर्तव्य होते हैं, उसी प्रकार हम सभी के पास स्वर्ग के नागरिक होने के नाते कुछ अधिकार और कर्तव्य होते हैं। आइए हम देखें कि पृथ्वी पर हमारा जीवन हमारे लिए क्या है और जो हम भविष्य में भोगेंगे उस अनन्त जीवन के लिए हमें अभी क्या करना चाहिए।

जो दृश्य है और जो अदृश्य है

इस पृथ्वी पर मनुष्य समय और जगह में सीमित जीवन जी रहे हैंऌ उन्हें पृथ्वी ग्रह पर सीमित कर दिया गया है और उनका जीवन बहुत सीमित है। इसलिए वे इस दृश्य दुनिया को ही असली मानते हैं और सिर्फ अपने पृथ्वी पर के जीवन के लिए ही भागते हैंऌ वे अपना सब कुछ – अपनी युवावस्था, जोश और प्रयत्न – अपने इस पृथ्वी पर के जीवन के लिए लगाते हैं। हालांकि, बाइबल बताती है कि सिर्फ दृश्य दुनिया ही नहीं, पर समय और जगह की सीमाओं के परे एक अदृश्य और अनन्त दुनिया भी है।

इसलिये हम हियाव नहीं छोड़तेऌ यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नष्ट होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता हैऌ और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैंऌ क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं। 2कुर 4:16-18

यह दृश्य दुनिया सिर्फ क्षणिक है। यदि हम सिर्फ जो दिखता है उस पर विश्वास करें और व्यर्थ चीजों के लिए जीएं तो हमारा जीवन हल्का हो जाएगा और समय गुजरने के साथ गायब हो जाएगा, भले ही वह अब सुहावना और चमकीला लगता हो। और अंत में हम ऐसा सोचेंगे कि सब कुछ खाली और व्यर्थ है।

परमेश्वर ने सिखाया है कि अदृश्य दुनिया ही सच्ची और अनन्त दुनिया है। चूंकि हम परमेश्वर की सन्तान हैं, हमें उस अदृश्य दुनिया के बारे में सोचते हुए, परमेश्वर के वचन पर निर्भर रहना चाहिए और अनन्तकाल के लिए जीना चाहिए। हमें अपने आप को जांचना चाहिए कि हम क्षणिक चीजों से मंत्रमुग्ध होकर अनन्त चीजों को खो रहे हैं या अपने जीवन का प्रत्येक क्षण अनन्त जीवन के लिए बिताते हैं।

परमेश्वर ने हमें इस पृथ्वी पर छोटा सा जीवन दिया है, इसका कारण हमें समय में एक बिन्दु के समान हमारे जीवन की व्यर्थता को समझाना, और हमें उन अदृश्य और अनन्त चीजों का सच्चा मूल्य समझाना है, ताकि हम उस अनन्त दुनिया में जा सकें। सभोपदेशक की पुस्तक हमें साफ-साफ सिखाती है कि हमें अपने तुच्छ और व्यर्थ जीवन से फिरकर, अपने हृदयों में अनन्त काल की आशा को रखकर, अनन्त दुनिया के लिए जीना चाहिए।

सब व्यर्थ और मानो वायु को पकड़ना है

जो सम्पत्ति को और सभी चीजों से बढ़कर मानते हैं, वे अपना पूरा जीवन धन बटोरने में लगाएंगे। और जो विद्या को सबसे बढ़कर मानते हैं, वे अपना पूरा जीवन ज्ञान बटोरने में लगाएंगे। लेकिन, सुलैमान ने, जिसने सभोपदेशक की पुस्तक को लिखा, कहा कि वे सब चीजें व्यर्थ हैं क्योंकि वे अनन्त नहीं पर क्षणिक हैं।

दाऊद का पुत्र और इस्राएल का तीसरा राजा, सुलैमान, अपनी बड़ी सम्पत्ति और आदर के साथ-साथ अपने असाधारण ज्ञान और बुद्धि के लिए भी मशहूर था। उसके पास बहुत से सेवक और पशुधन थे और बहुत सी सम्पत्ति थीऌ उसने एक शानदार महल भी बनवाया था और उसकी बहुत सी सुंदर पत्नियां और उपपत्नियां थीं। और जैसा कि उसने कहा है, “जितनी वस्तुओं को देखने की मैंने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रुकाऌ मैंने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका,” उसने जो चाहा वह किया। हालांकि, अपने जीवन के अंत में, वह इस निष्कर्ष पर आया कि जो भी पाने के लिए उसने परिश्रम किया था, वह सब व्यर्थ और थकाऊ हैं, और कहा, “न तो आंखें देखने से तृप्त होती हैं, और न कान सुनने से भरते हैं।”(सभ 2:3-10; 1:8)

यरूशलेम के राजा, दाऊद के पुत्र और उपदेशक के वचन। उपदेशक का यह वचन है, “व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है।” उस सब परिश्रम से जिसे मनुष्य धरती पर करता है, उसको क्या लाभ प्राप्त होता है? … सब बातें परिश्रम से भरी हैंऌ मनुष्य इसका वर्णन नहीं कर सकताऌ न तो आंखें देखने से तृप्त होती हैं, और न कान सुनने से भरते हैं। जो कुछ हुआ था, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगाऌ और सूर्य के नीचे कोई बात नई नहीं है। क्या ऐसी कोई बात है जिसके विषय में लोग कह सकें कि देख यह नई है? यह तो प्राचीन युगों में वर्तमान थी। प्राचीन बातों का कुछ स्मरण नहीं रहा, और होनेवाली बातों का भी स्मरण उनके बाद होनेवालों को न रहेगा। मैं उपदेशक यरूशलेम में इस्राएल का राजा था। मैंने अपना मन लगाया कि जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है, उसका भेद बुद्धि से सोच सोचकर मालूम करूंऌ यह बड़े दु:ख का काम है जो परमेश्वर ने मनुष्यों के लिये ठहराया है कि वे उस में लगें। मैंने उन सब कामों को देखा जो सूर्य के नीचे किए जाते हैंऌ देखो, वे सब व्यर्थ और मानो वायु को पकड़ना है… सभ 1:1-18

सुलैमान ने भी, जिसने एक ऐसा जीवन जिया था जो सभी जीना चाहेंगे, अपने अंतिम वर्षों में यह कहकर कि इस पृथ्वी पर सब कुछ व्यर्थ और तुच्छ है, ऐसा निष्कर्ष किया कि जीवन व्यर्थ है। क्योंकि उसने यह समझ लिया था कि उसने अपने पूरे जीवन में जो भी सम्पत्ति और आदर पाया था वह सब क्षणिक था, और यह भी कि जिस किसी वस्तु के लिए भी उसने काम किया था वह सब कुछ अंत में व्यर्थ था।

मनुष्य एक तीर के समान और एक बन्दूक से निकली गोली के समान तेज़ रफ्तार से ऐसा सोचते हुए कि इस पृथ्वी का जीवन ही सब कुछ है, व्यर्थ और क्षणिक चीजों पर ध्यान लगाए हुए भागते हैं, क्योंकि वे अनन्त दुनिया को नहीं जानते। लेकिन यदि वे अपने अंतिम पल में अपने पिछले समय को देखें, तो वे समझ जाएंगे कि सूर्य के नीचे जो उन्होंने किया वह सारा परिश्रम व्यर्थ है। यदि परमेश्वर ने इस तथ्य के प्रति हमें जागृत नहीं किया होता, तो हमने भी इस संसार के लोगों की तरह, अनन्त दुनिया को न जानते हुए अपने जीवन में अपना बहुमूल्य समय क्षणिक चीजों से संतुष्ट होकर बरबाद कर दिया होता।

हालांकि, परमेश्वर ने हमें सिय्योन में बुलाया है और इस तथ्य के प्रति हमें जागृत किया है कि एक अनन्त दुनिया है जहां हम जिसका पीछा इस पृथ्वी पर करते हैं उससे कई अधिक महान खुशी, शान्ति, आनन्द और सुख भोग सकते हैं। परमेश्वर ने हमें यह भी सिखाया है कि हमें अपना जीवन कैसे सही ढंग से जीना चाहिए, और अब से केवल व्यर्थ चीजों के लिए नहीं पर अनन्त दुनिया के लिए तैयारी करने देकर हमारे जीवन को भी बदल दिया है।

परमेश्वर का भय मानना यही एक मनुष्य का एकमात्र कर्तव्य है

सुलैमान ने अंत में यह समझ लिया कि मनुष्यों को सबसे ऊपर किसे मूल्यवान समझना चाहिए, और इस प्रकार उसका वर्णन सभोपदेशक की पुस्तक के अंतिम भाग में किया:

अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख, इससे पहले कि विपत्ति के दिन और वे वर्ष आएं, जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगता… क्योंकि मनुष्य अपने सदा के घर को जाएगा, और रोने पीटनेवाले सड़क-सड़क फिरेंगे। उस समय चांदी का तार दो टुकड़े हो जाएगा और सोने का कटोरा टूटेगा, और सोते के पास घड़ा फूटेगा, और कुण्ड के पास रहट टूट जाएगा, तब मिट्टी ज्यों की त्यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्मा परमेश्वर के पास जिस ने उसे दिया लौट जाएगी। उपदेशक कहता है, सब व्यर्थ ही व्यर्थऌ सब कुछ व्यर्थ है… सब कुछ सुना गयाऌ अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन करऌ क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कत्र्तव्य यही है। क्योंकि परमेश्वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा। सभ 12:1-14

सभोपदेशक 12 में लिखा है, “… वे वर्ष आएं, जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगता।” यहां, “वे वर्ष” का मतलब अन्तिम अवस्था के वर्ष है। और वहां ऐसा भी लिखा है, “मनुष्य अपने सदा के घर को जाएगा, और रोने पीटनेवाले सड़क-सड़क फिरेंगे।” यह एक मनुष्य के मरने के बारे में है। ऊपर के वचन दिखाते हैं कि हमारे पृथ्वी के जीवन में हमने जो भी पाने के लिए परिश्रम किया है, वह सब मृत्यु के भय में, व्यर्थ, मानो वायु को पकड़ने के समान है।

जीवन कभी कभी लम्बा लगता है या ऐसा लगता है कि वह सदाकाल तक रहता है, लेकिन वह बहुत जल्दी बीत जाता हैऌ मनुष्य का जीवन और कुछ नहीं पर सिर्फ श्वास मात्र है। यदि हम सिर्फ क्षणिक वस्तुओं से बंधे हैं तो हमें एक व्यर्थ और तुच्छ जीवन जीना पड़ेगा। यहां तक कि सिकंदर महान और नेपोलियन जैसे नायकों ने भी सुलैमान के समान अपने जीवन के अंतिम समय में यही शब्द कहेऌ उन्होंने कहा कि चाहे वे अपना पूरा जीवन अपने सपनों और आकांक्षाओं को पाने के लिए दौड़ते रहे, वे अंत में इसी निष्कर्ष पर आए कि सब कुछ निष्फल और निरर्थक है।

जब सिकंदर महान ने अपनी मृत्यु शय्या पर अपने पिछले जीवन को देखा, तो उसे यह एहसास होने के बाद भारी अफसोस हुआ कि चाहे उसने बहुत से लोगों को मार कर और बहुत से देशों को पराजित करके एक बहुत बड़ा साम्राज्य जीत लिया था, जो वह हासिल कर सका वह तो केवल उसकी कब्र के लिए 3.3 वर्ग मीटर की जगह ही थी। इसलिए उसने अपने सेनापतियों से कहा: “जब तुम कब्र तक मेरा ताबूत उठा कर चलो, तब मेरे दोनों हाथ ताबूत के बाहर लटका देना, ताकि मेरे इस दुनिया को छोड़ते समय लोग मेरे खाली हाथ देख सकें।” वह यह दिखाकर कि एक व्यक्ति जिसके हाथ में पूरी दुनिया है, अंत में तो खाली हाथ इस दुनिया को छोड़ रहा है, लोगों से कहना चाहता था कि जीवन सचमें व्यर्थ है।

इस तरह से, इस पृथ्वी पर क्षणिक चीजों के जीवन की व्यर्थता और निष्फलता सिर्फ वे ही गहराई से समझ सकते हैं जो अपने जीवन के अंत में पहुंच गए हैं। हालांकि, इससे पहले कि हमारा जीवन भी ऐसी ही व्यर्थता में समाप्त हो जाए, परमेश्वर ने हमारे हृदयों में अमरत्व बसाया है और हमें इस तथ्य को भी समझने दिया है कि परमेश्वर का भय मानना और उनकी आज्ञाओं का पालन करना ही मनुष्य का एकमात्र कर्तव्य है, और यही अनन्त जीवन पाने का और अनन्त दुनिया में प्रवेश करने का रास्ता है।

परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाला प्रचार

परमेश्वर ने हमें उस अनन्त दुनिया में ले जाने के लिए जहां कुछ भी निष्फल और निरर्थक नहीं है, अनन्त जीवन का एक बहुमूल्य वचन दिया है। और परमेश्वर ने हमें यह भी सिखाया है कि कैसे एक व्यर्थ और निरर्थक जीवन न जीएं – हमें इस पृथ्वी पर कैसा जीवन जीना चाहिए। वह एक ‘सुसमाचार के प्रचारक का जीवन’ है जिसका कर्तव्य परमेश्वर के सिखाए सभी सत्यों का प्रचार करना है।

सुसमाचार का प्रचार करना, यह सिर्फ खुद के लिए नहीं परन्तु दूसरों की सेवा करने और दूसरों के लिए बलिदान करने का कार्य है, वह अनन्त दुनिया के लिए किया जाने वाला कार्य है। जब हमारे पास दूसरों के प्रति सेवा और बलिदान का मन हो, जब हम अपने आप को नीचा करके, परमेश्वर के मन से उनसे प्रेम करते हुए उनके लिए प्रार्थना करें, तब हम कृपालुता से प्रचार कर सकते हैं और एक आत्मा को उद्धार की ओर ले आ सकते हैं। परमेश्वर इस प्रकार के प्रचार से प्रसन्न होते हैं।

क्योंकि हमारा उपदेश न भ्रम से है और न अशुद्धता से, और न छल के साथ हैऌ पर जैसा परमेश्वर ने हमें योग्य ठहराकर सुसमाचार सौंपा, हम वैसा ही वर्णन करते हैंऌ और इस में मनुष्यों को नहीं, परन्तु परमेश्वर को, जो हमारे मनों को जांचता है, प्रसन्न करते हैं। 1थिस 2:3-4

सुसमाचार का प्रचार करना एक ऐसा कार्य है जिससे परमेश्वर प्रसन्न होते हैं। बाइबल कहती है कि सुसमाचार का प्रचार एक ऐसा काम है जो सिर्फ परमेश्वर के द्वारा योग्य ठहराए हुओं को सौंपा जाता है। इसलिए, जो सुसमाचार का प्रचार करते हैं सचमें वे हैं जो अनन्त जीवन के लिए जीते हैं, क्योंकि वे उस अनन्त दुनिया की घोषणा करने का और लोगों को उस दुनिया की ओर ले आने का काम करते हैं।

हमें चूप रहे बिना, अपने आस पास के बहुत से लोगों को सुसमाचार का प्रचार करके क्षणिक नहीं पर अनन्त वस्तुओं के लिए जीना चाहिए। सुसमाचार का प्रचार करते समय, हम अपने आस पास के लोगों के द्वारा सताए और अपमानित किए जा सकते हैं, लेकिन यह सब क्षणिक है। यह तो अंत में जब हम अनन्त स्वर्गीय राज्य में प्रवेश करेंगे तब हमें एक पदक दिलाएगा और यह एक शानदार दौड़ बन जाएगी जो साबित करेगी कि हम परमेश्वर के राज्य के लिए दु:खों में सहभागी हुए थे। भले ही यह हमारे इस पृथ्वी के जीवन का एक छोटा सा समय है, यह भी हमारे लिए एक अच्छा गर्व करने का कारण बनेगा और अनन्त काल तक स्वर्ग के राज्य में हमारी बातों का विषय बनेगा।

इसलिए नबी दानिय्येल ने बाइबल में लिखा है, “जो बहुतों को धर्मी बनाते हैं, वे सर्वदा तारों के समान प्रकाशमान रहेंगे।” परमेश्वर की सन्तान होने के नाते, हमें इन क्षणिक तकलीफों को न सह सकने के कारण सुसमाचार के कार्य को छोड़ देने का मूर्ख विचार छोड़ देना चाहिए, और हमें उस पदक के बारे में सोचते हुए जो हम में से प्रत्येक अनन्त स्वर्ग के राज्य में पाएगा, परमेश्वर की प्रसन्नता में, ईमानदारी से सुसमाचार का प्रचार करना चाहिए।

तब उसने उन से यह दृष्टान्त कहा: “तुम में से कौन है जिसकी सौ भेड़ें हों, और उनमें से एक खो जाए, तो निन्यानबे को जंगल में छोड़कर, उस खोई हुई को जब तक मिल न जाए खोजता न रहे? और जब मिल जाती है, तब वह बड़े आनन्द से उसे कंधे पर उठा लेता हैऌ और घर में आकर मित्रों और पड़ोसियों को इकट्ठा करके कहता है, ‘मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है।’ मैं तुम से कहता हूं कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्यानबे ऐसे धर्मियों के विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं। लूक 15:3-7

यीशु ने कहा कि यदि हम एक पापी को पश्चाताप की ओर ले आएं, तो हम परमेश्वर को इतनी प्रसन्नता दिलाते हैं जितनी निन्यानबे धर्मी भी नहीं दिलाते। प्रत्येक आत्मा को बचाना परमेश्वर को बहुत प्रसन्न करता है और यही अनन्त जीवन के लिए कार्य है।

क्या आप इस पृथ्वी पर क्षणिक सुखों के लिए जीना पसंद करेंगे या उस अनन्त सुख के लिए जीना पसंद करेंगे जो आप परमेश्वर के राज्य में भोगेंगे? यह आपके निर्णय पर निर्भर करता है। हालांकि, आपके निर्णय लेने का क्षण आपके सदा के भविष्य को तय करेगा।

हमारे परिश्रम कभी भी व्यर्थ नहीं हैं

अब हमारे पास आशीर्वाद जमा करने का मौका है, लेकिन यदि हम परमेश्वर के राज्य में वापस जाएं, तो हम कुछ भी बदल नहीं सकते – न इस पृथ्वी पर बिताया हमारा समय और न हमारे निशान जो हमने पीछे छोड़े। परमेश्वर के द्वारा हमें दिए गए इस सुअवसर के समय में, आइए हम परमेश्वर की इच्छा के योग्य निर्णय लें, और क्षणिक चीजों के लिए व्यर्थ और अर्थहीन जीवन नहीं, परन्तु अनन्त जीवन के लिए एक सुंदर जीवन जीएं।

इसलिए हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है। 1कुर 15:58

सुलैमान ने कहा था कि मनुष्य सूूर्य के नीचे जो भी परिश्रम करता है, वह सब व्यर्थ है। हालांकि, प्रेरित पौलुस ने यहां जोर दिया कि परमेश्वर के काम में किया गया हमारा परिश्रम कभी भी व्यर्थ नहीं है।

पहले हम समय की सीमित रेखा में जीते थे। हालांकि, परमेश्वर की कृपा से हम स्वर्ग की ओर देख सकते हैं और उसमें स्थित अनन्त वस्तुओं को देख सकते हैं। परमेश्वर चाहते हैं कि हम इस अनुभूति को दूसरों के साथ उनके और अपने खुद के उद्धार के लिए बांटें और यह भी चाहते हैं कि हम दृढ़ विश्वास के साथ स्वर्ग की ओर हमारा रास्ता बनाते हुए परमेश्वर के कार्य करने में और ज्यादा यत्न करें, ताकि हम सब निश्चित रूप से स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें।

हमारे सिय्योन के सभी भाइयो और बहनो! आइए हम अच्छे सुसमाचार के प्रचारक के रूप में परमेश्वर को प्रसन्न करने के लिए नई यरूशलेम की महिमा और नई वाचा के सुसमाचार का प्रचार पूरे संसार में करते हुए अनन्त जीवन के लिए जीवन जीएं। ऐसी बहुत सी आत्माएं हैं जो अभी भी सिर्फ क्षणिक वस्तुओं के लिए जीवन जी रही हैं, जिस प्रकार हम भी जीते थे जब हम इस दुनिया के थे। परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले गवाह बनकर, आइए हम उन्हें अनन्त स्वर्ग के राज्य के बारे में एहसास करने का सुअवसर दें और अनन्त जीवन के लिए जीएं।