माता की शिक्षा
स्वर्गीय माता की तेरह शिक्षाएं। हम प्रेम की शिक्षाओं से स्वर्गीय चरित्र सीखते हैं।
माता की शिक्षाओं में से पहली शिक्षा
"जैसे परमेश्वर हमेशा प्रेम देते हैं, वैसे प्रेम पाने से ज्यादा आशीष, प्रेम देने में है।"
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ऐसा एक पल भी नहीं जिसमें परमेश्वर हमसे प्यार नहीं करते। जब हम स्वर्ग में स्वर्गदूत थे, तब परमेश्वर ने हमेशा प्यार से हमारा लालन पालन किया। यहां तक कि जब हम स्वर्ग में गंभीर पाप करके इस पृथ्वी पर…
माता की शिक्षाओं में से दूसरी शिक्षा
"जब हम परमेश्वर को महिमा देते हैं, वह महिमा अंत में हमें दी जाएगी।"
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जब हम प्रचुर फल वाले एक वृक्ष को देखते हैं, तब हम केवल फल और डालियां जैसे दृश्य हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और जड़ों की उपेक्षा करते हैं। परन्तु, जड़ों की भूमिका अत्यंत आवश्यक है; वे जब तक…
माता की शिक्षाओं में से तीसरी शिक्षा
"सुंदर मन में कोई घृणा नहीं होती और वह एक संपूर्ण प्रेम को जन्म देता है।"
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संसार में कोई भी संपूर्ण नहीं है क्योंकि हम सब पापी हैं। प्रत्येक में खूबियां और कमियां हैं। चाहे किसी का चरित्र कितना भी अच्छा क्यों न लगता हो, उसमें कुछ कमियां होती हैं, और चाहे किसी का चरित्र कितना…
माता की शिक्षाओं में से चौथी शिक्षा
“जैसे अब्राहम ने अपने भतीजे लूत को अच्छी वस्तुएं देने पर अधिक आशीषें प्राप्त कीं, वैसे ही जब हम अपने भाइयों और बहनों को अच्छी वस्तुएं देंगे, तब हम भी बहुतायत में आशीष प्राप्त करेंगे।”
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परमेश्वर ने अब्राहम से कहा कि वह अपने भतीजे लूत के साथ कनान देश में जाए जैसे-जैसे उनकी भेड़-बकरियां और परिवारों की संख्या बढ़ती गई, जहां वे रहते थे वह भूमि दोनों के लिए बहुत छोटी हो गई। तब उनके…
माता की शिक्षाओं में से पांचवीं शिक्षा
“अपेक्षाएं पूरी न होने पर महसूस होनेवाली निराशा, घमंड है।”
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जब किसी व्यक्ति को मिलने वाला व्यवहार या सेवा उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं होती, तब वह निराश महसूस करता है। निराशा की ऐसी भावना उस मन से उत्पन्न होती है जो चाहता है कि दूसरे लोग उसे स्वीकार करें…
माता की शिक्षाओं में से छठी शिक्षा
“भले ही दूसरे काम न करें, आइए हम शिकायत किए बिना ईमानदारी से काम करें। जब हम एक स्वामी के मन से काम करते हैं, तब हम आनंद और शांति से काम कर सकते हैं।”
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हम अक्सर ऐसी स्थिति का सामना करते हैं जब हमें अकेले काम करना पड़ता है, जबकि दूसरे काम नहीं कर रहे होते। हम सोच सकते हैं, “वह काम क्यों नहीं कर रहा है?” या “मैं अकेले ही क्यों काम कर…
माता की शिक्षाओं में से सातवीं शिक्षा
“शिकायत भरे हृदय से घमंड का जन्म होता है। जब हम हमेशा कृतज्ञता भरे हृदय से परमेश्वर की सेवा करेंगे, तब शिकायत और घमंड गायब हो जाएंगे, और हृदय नम्रता से भर जाएगा।”
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शिकायत का मतलब है, हमारे हृदय में असंतोष होना। जो लोग संतोष करना नहीं जानते, वे शिकायत करने लगते हैं। चाहे परमेश्वर कितनी भीअनुकूल परिस्थितियां तैयार करें, वे परमेश्वर को धन्यवाद देने के बजाय हमेशा पहले नकारात्मक पहलुओं को देखते…
माता की शिक्षाओं में से आठवीं शिक्षा
“जब हम अपने भाइयों और बहनों की प्रशंसा करें, वह प्रशंसा हमारे पास लौट आएगी।”
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शब्दों में बड़ी शक्ति होती है और वे गूंज की तरह होते हैं। जब हम दूसरों की प्रशंसा करते हैं, तो वह प्रशंसा हमारे पास लौट आती है। जब हम दूसरों को दोष देते हैं, तो वे भी हमें दोष…
माता की शिक्षाओं में से नौवीं शिक्षा
“जिस प्रकार समुद्र सारी गंदगियों को ले लेता है और उसे साफ करता है, हमारा मन खुला और इतना सुंदर होना चाहिए जिससे हम अपने भाइयों और बहनों की गलतियों को ढंक सकें।”
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स्वर्गीय माता ने हमें बताया है कि समुद्र के समान विशाल मन एक सुंदर मन है। समुद्र के समान विशाल मन भाइयों और बहनों की गलतियों को ढक लेता है। वह आसानी से क्रोधित नहीं होता, बल्कि विनम्रता और दयालुता…
माता की शिक्षाओं में से दसवीं शिक्षा
“जो भी मेमने के द्वारा मार्गदर्शन चाहता है, उसे मेमने से भी छोटा मेमना बनना चाहिए।”
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स्वर्गीय माता ने कहा कि जो कोई मेमने के द्वारा मागदर्शन चाहता है, उसे मेमने से भी छोटा मेमना बनना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि हम मेमने से छोटे नहीं बनते, तो हम जहां कहीं मेम्ना हमारा मार्गदर्शन करता…
माता की शिक्षाओं में से ग्यारहवीं शिक्षा
“महान पात्र बनने की प्रक्रिया में बलिदान की आवश्यकता है।”
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परमेश्वर ने हमारी तुलना पात्रों से की है। हम छोटे पात्र में ज्यादा फल नहीं रख सकते। इसी तरह, भले ही हम कितनी भी आशीषें प्राप्त करना चाहें और महान सुसमाचार सेवकों के रूप में सेवा करना चाहें, यदि हम…
माता की शिक्षाओं में से बारहवीं शिक्षा
“परमेश्वर भी अपनी सेवा करवाने नहीं, परतु सेवा करने के लिए आए। जब हम अपनी सेवा करवाने की चाह रखे बिना, एक दूसरे की सेवा करें, तब परमेश्वर प्रसन्न होंगे।”
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हमारे परमेश्वर ने स्वयं हमें यह दिखाकर कि हमें क्या करना चाहिए, विश्वास का उदाहरण दिखाया। उनमें से एक उदाहरण दूसरों की सेवा करना है। परमेश्वर सबसे सम्मानित और पवित्र हैं, जो पूरे ब्रह्मांड में सभी प्राणियों द्वारा सेवा प्राप्त…
माता की शिक्षाओं में से तेरहवीं शिक्षा
“हमें वर्तमान समय के कष्टों को इसलिए धैर्य से सहना चाहिए क्योंकि स्वर्ग का राज्य हमारा होगा।”
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विश्वास का जीवन जीते समय, हम कठिन और कष्टदायक क्षणों का सामना करते हैं। कभी-कभी हम सत्य के लिए सताए जाते हैं या शैतान द्वारा परखे जाते हैं; हम सिय्योन में भाइयों और बहनों के साथ कठिनाइयों का सामना करते…