
छलन्क! कर्कश ध्वनि!
एक मोटे लोहे का फाटक धीमी आवाज के साथ खुलता है।
एक डॉक्यूमेन्टरी में महिला कारागार के कैदियों के जीवन को चित्रित किया गया था। ‘उनका जीवन कैसा है?’ मेरा ध्यान टीवी पर केंद्रित हो गया।
व्यायाम के लिए एक दिन में तीस मिनट! केवल यही समय था जब कैदी सूरज को देख सकती थीं। वे हंसती और बात करती थीं। कुछ कैदी व्यायाम करती थीं जबकि अन्य केवल धूप में बैठी रहती थीं। यदि वे यूनिफार्म को नहीं पहनतीं, तो वे कैदियों की तरह नहीं, आम महिलाओं की तरह दिखाई देती थीं।
एक कैदी ने संवाददाता से पूछा कि क्या उसका चेहरा टीवी पर दिखाया जाएगा। उसने इसलिए नहीं पूछा कि उसे इससे एतराज होगा।
“यदि वे मुझे घर वापस भेज दें, तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।”
वह इस बात पर हंसी, लेकिन यह सुनकर बुरा लग रहा था।
सुबह के चार बज रहे थे। उन कैदियों ने कारागार में अपने दिन की शुरुआत की, जिन्हें खाना पकाने की जिम्मेदारी दी गई थी। चूंकि उन्हें 640 से अधिक लोगों के लिए भोजन तैयार करना था, वे बहुत व्यस्त थीं। संवाददाता ने उनमें से एक से पूछा कि क्या वह थक गयी है। उसने कहा, “40 किलो की चावल की बोरी को ढोना कठिन होता है, लेकिन मैं पश्चाताप के मन के साथ खाना पका रही हूं।”
जब भोजन का समय आया, जेल के दरवाजे के नीचे स्थित छोटे छिद्र के माध्यम से प्रत्येक कमरे में भोजन की थाली डाल दी गयी। भोजन खत्म होने के बाद, वे काम करने के लिए चली जाती थीं या उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता था। सन्ध्या समय के आसपास, वे शाम का भोजन करती थीं और उनकी हाजिरी ली जाती थी। फिर जेल में दिन समाप्त हो जाता था।
सीमित स्वतंत्रता के कारण वे अपनी दैनिक दिनचर्या से शायद निराश हुई होंगी, लेकिन उन्होंने किसी को भी दोषी नहीं ठहराया। जब एक कैदी ने कहा कि उसका मौजूदा जीवन उन कर्मों का परिणाम है जो उसने अतीत में किए और वह उसका भुगतान कर रही है, तब उसकी आंखों में आंसू उमड़ आए। उनमें से, एक कैदी जो उम्र कैद की सजा काट रही थी उसे टीवी पर दिखाया गया। उसे एक नेक कैदी के रूप में चुना गया था, और तेरह सालों में पहली बार उसे अपने माता–पिता के साथ एक रात रहने की अनुमति दी गई थी। कारागार के अंदर एक छोटे आवास में, जैसे ही कैदी और उसकी मां आमने–सामने आईं, उन्होंने एक–दूसरे को देखते ही गले लगा लिया। उन्हें और क्या कहने की जरूरत है?
जब वे आवास में चले गए, एक जेल अधिकारी ने उन चीजों की जांच की जो उसके माता–पिता लाए थे और बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। नियम कैदी को दरवाजा बंद किए बिना अंदर रहने की अनुमति नहीं देता है, भले ही वह उस व्यक्ति के साथ हो जो कैदी न हो। उसके माता–पिता कारावास में लगभग कैदियों की तरह ही थे, लेकिन उनका चेहरा पूरी तरह से उज्ज्वल था। उन्हें इस बात की परवाह नहीं थी कि उनके साथ अपराधियों की तरह व्यवहार किया जा रहा है या नहीं। वे अपनी बेटी के साथ रहकर बस खुश दिखाई दे रहे थे।
उनकी प्यारी बेटी के लिए, वे कई दिनों के लिए पर्याप्त उपहार और भोजन ले आए। उसकी मां ने, जो सस्ते कपड़े पहनी हुई थीं, अपनी बेटी को महंगा स्वेटर दिया। उन्होंने कहा कि जो कुछ भी उन्होंने पहना है उसकी उन्हें परवाह नहीं है, लेकिन वह सुनिश्चित करना चाहती थीं कि उनकी बेटी को ठंड न लगे। यह बात सुनकर, बेटी ने कसकर अपनी मां को गले लगा लिया। उसके पिता जो चुपचाप खड़े थे उन्होंने अपने आंसू पोंछे और कहा, “मैं माफी चाहता हूं। ऐसा लगता है, तुम इस कठिनाई से गुजर रही हो क्योंकि मैं निकम्मा हूं। इससे मेरा दिल टूट जाता है।”
कथावाचक ने कहा, “दैनिक जीवन के साधारण पल जैसे कि एक दूसरे के साथ बात करना और एक साथ भोजन करना, बहुत अनमोल है, जो फिर से इस परिवार के साथ होने की संभावना नहीं है।” यह बात सुनकर, मैं रो पड़ी।
मैं टीवी पर प्रसारित उस कैदी की स्थिति में हूं। मैं भी एक कैदी हूं; मैंने स्वर्ग में पाप किया, और अब मैं पृथ्वी पर, अर्थात् शरण नगर में कैद हूं। स्वर्गीय पिता और माता ने इस शरण नगर में मेरी तरह एक पापी का जीवन जिया है। क्या मैं उनके जीवन, उनके प्रेम और इस तथ्य से कि मैं एक पापी हूं, असंवेदनशील नहीं हुई हूं?
उस कैदी की आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही है, जिसने कहा था कि वह कुछ भी कर सकती है यदि वह घर जा सके। मैं भी, इस मानसिकता के साथ जीऊंगी कि मैं कुछ भी करूंगी यदि मैं अपने स्वर्गीय घर वापस जा सकती हूं। स्वर्गीय माता–पिता के बारे में सोचते हुए जो आनंद के भोज की तैयार कर रहे हैं, जहां वे एक ही मेज पर हमारे साथ खाएंगे, मैं कष्टों पर जीत प्राप्त करूंगी जो मेरे पापों की मजदूरी हैं, और पश्चाताप का जीवन जीऊंगी।