माता को मन में रखकर मैं जागृत हुई

मंडलुयोंग, फिलीपींस से जो मैरी सुपोलो

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दस वर्षों में पहली बार मैंने अपने दादा जी का 80वां जन्मदिन मनाने के लिए अपने गांव का दौरा किया। मेरी याद में दादा जी सख्त और मजबूत थे और वह बहुत मेहनती भी थे, इसलिए वह कटनी के समय के अलावा अपनी फसलों की देखभाल अकेले ही किया करते थे। मुझे यकीन था कि वह बहुत मजबूत और स्वस्थ हैं।

लेकिन दस वर्षों के बाद, मैं उन्हें देखकर चकित हो गई क्योंकि वह बहुत कमजोर हो गए थे। वह मुश्किल से हिल सकते थे और अधिक बात भी नहीं कर सकते थे। वह ज्यादातर समय अपनी दोलन-कुर्सी पर ही रहते थे और सोते थे। और जब उन्हें खड़े होना या बैठना होता था, तब उन्हें सहायता की जरूरत पड़ती थी। मैं उनका कुशल-क्षेम पूछने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकती थी जो मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे थे।

अपने दादा जी को बहुत ही बुरी अवस्था में देखकर, मुझे अचानक किसी की याद आई। वह स्वर्गीय माता थीं। माता इस पृथ्वी पर आई हैं और दर्द और बलिदान सहन कर रही हैं। हमारी वृद्ध माता का परिश्रम और बलिदान सिर्फ तब ही खत्म होगा जब यह सुसमाचार दुनिया भर में प्रचार किया जाएगा। यह सोचकर मुझे अचानक प्रचार करने की अत्यावश्यकता महसूस हुई, और मैंने अपने बिखरे हुए मन को इकट्ठा करने का और आत्मिक रूप से स्वस्थ होने का फैसला किया। उस समय के दौरान मेरा विश्वास मजबूत नहीं था, इसलिए मैं सुसमाचार का कार्य पीछे छोड़कर सिर्फ आराधना मनाने के लिए सिय्योन जाती थी। मैंने अपने दादा जी को देखने के बाद, विश्वास में दृढ़ खड़ी रहने की योजना बनाई। लेकिन मैं नहीं जानती थी कि कैसे उसे शुरू करना है।

उस समय, हमारा सिय्योन दूसरे प्रांत में नया सिय्योन स्थापित करने में व्यस्त था। मैं नए स्थापित हुए सिय्योन में गई और उन सदस्यों को सिखाने में मदद की जिनका नेतृत्व शॉर्ट टर्म मिशन यात्रा के दौरान किया गया था। लेकिन मैं उसी स्थिति को अपने हृदय से तुरन्त स्वीकार नहीं कर सकी। मैं अपने विश्वास की कमी के कारण खेदित होती थी, इसलिए मैंने वहां सुसमाचार के सेवकों से जो पवित्र आत्मा से भरे थे, दूरी बनाए रखी थी। उस रात, मैंने सोने से पहले प्रार्थना की, और मैंने इस पर पश्चाताप किया कि मैं पिछले दिनों में परमेश्वर के द्वारा सौंपे गए अपने मिशन से मुंह फेर लेती थी। जैसे योना परमेश्वर के द्वारा सौंपे गए मिशन से मुंह फेरकर दूर भागा था और उसने मछली के अंदर पश्चाताप किया था, वैसे ही मैंने बहुत आंसू बहाते हुए पापों का अंगीकार किया। परमेश्वर की इच्छानुसार फिर से सुसमाचार का काम करना अच्छा था, लेकिन मुझे अपने आप पर शर्मिंदगी महसूस हुई और अशांति थोड़ी देर मुझमें बनी रही।

उसके बाद, मैंने सैंटा मारिया में शॉर्ट टर्म मिशन में भाग लिया। इस टीम में माता के द्वारा भेजे गए कुछ कोरियाई सदस्य भी थे, इस कारण मुझे बोझ महसूस हुआ। चूंकि मेरे पास विश्वास की कमी थी, इसलिए मैं डरी हुई थी कि मैं शायद पिता और माता की महिमा प्रदर्शित करने में नाकाम हो सकती हूं और शायद फल उत्पन्न नहीं कर सकती हूं। भले ही मैं अपने मन को नहीं संभाल पाती थी, लेकिन मैंने परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा फल उत्पन्न करने की आशीष प्राप्त की।

दूसरे दिन शाम को हम सब अपने दिनचर्या के बारे में सोचने और अगले दिन की योजना बनाने के लिए इकट्ठे हुए। हमने एक मन होकर यह इच्छा रखी कि हम कल 100 लोगों को बपतिस्मा दें। जब सभी सदस्य विश्वास के साथ “आमीन” कह रहे थे, मैंने बहुत धीमी आवाज में “आमीन” कहा। क्योंकि मैंने विश्वास नहीं किया कि वह संभव हो सकता है।

मीटिंग के कुछ मिनट बाद, टीम के लीडर ने अपने फोन को स्पीकर मोड में डाला। हमने फोन पर एक बहुत ही परिचित आवाज सुनी। वह स्वर्गीय माता की आवाज थी। माता की आवाज को अधिक स्पष्ट रूप से सुनने के लिए, हम सब कुछ जो हम कर रहे थे, छोड़ कर लीडर के पास इकट्ठे हुए। मैं पूरी तरह से नहीं समझ सकी कि माता क्या कह रही हैं, लेकिन मैं जानती थी कि वह हमें आशीष दे रही हैं। मैं अपने आंसुओं को नहीं रोक सकी। मुझे महसूस हुआ कि लंबे समय से मेरा मन कितना स्वार्थी और घमण्डी था। उसके बावजूद मुझे माता की आवाज सुनने का मौका दिया गया। मैं बहुत आभारी और खेदित भी थी। उस दिन, मुझे महसूस हुआ कि मैं माता को कितना याद करती थी।

शॉर्ट टर्म मिशन यात्रा के आखिरी दिन हमने फिर से 100 आत्माओं को खोजने का लक्ष्य बनाया, और हम माता की आवाज फिर से सुन सके। मुझे महसूस हुआ कि माता हमें प्रोत्साहित कर रही हैं और आशीष दे रही हैं। मैंने स्वयं उस अनुग्रह का अनुभव किया। हां, वह अनुग्रह था! क्योंकि वह मुझ जैसी व्यक्ति को दिया गया जो एक उड़ाऊ बेटी की तरह थी।

इस शॉर्ट टर्म मिशन यात्रा के दौरान, माता ने एक बहुत ही हंसमुख बहन ग्लोरी लेन को मेरा फल बनने दिया। उसने हमारे साथ सब्त मनाया और अपने सहकर्मी का भी सत्य में नेतृत्व किया। शॉर्ट टर्म मिशन समाप्त होने के बाद हमने सुना कि हमारे वापस चले जाने के बाद भी वह बहन लगातार सिय्योन आ रही है और सुसमाचार के सेवकों के साथ प्रचार करके दूसरे फल उत्पन्न कर रही है। चूंकि वह हमारे क्षेत्र में होने वाले सफाई अभियान में भाग लेने के लिए हमारे सिय्योन में आई, इसलिए मैं उससे फिर से मिली। उसे देखकर जिसका विश्वास दिन-प्रतिदिन विकसित हो रहा था, मुझे दी गई आशीष के बारे में मैं विश्वास नहीं कर सकती थी।

माता की आशीष लगातार मिलती रही। मेरे सत्य को ग्रहण करने के समय से लेकर मेरे विश्वास के बढ़ने तक, एक बहन थी जिसका मुझ पर काफी प्रभाव पड़ा। उसके परिवारवालों ने जो समर्पित कैथोलिक थे, उसका बहुत विरोध किया। इस कारण वह सिय्योन में नहीं आ सकी, और हमसे उसका संपर्क टूट गया था। मैंने उसके लिए प्रार्थना की जो कई सालों से कठिन समय का सामना कर रही है। धन्यवाद की बात घटित हुई; वह विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट होने के बाद सिय्योन में लौट आई। वह मुक्त और बहुत अधिक साहसी हो गई। उसने अपने धीरज और दृढ़ता के परिणाम के रूप में फल उत्पन्न किए, और उसे सदस्यों की देखभाल करने का कार्य सौंपा गया। उसके भाई जिनकी अगुवाई उसने लंबे समय पहले की थी, अब फल उत्पन्न करनेवाले सुसमाचार के सेवक बन गए हैं। और उसके छोटे भाई ने भी अपना मन खोला और सत्य को ग्रहण किया। मैं बहुत आभारी और खुश थी।

इसके अलावा, मेरी मां जो बार्सिलोना सिय्योन में जाती है, मुझे शुभ संदेश सुनाती है। वह अपने रिश्तेदारों के द्वारा सताई जाती है क्योंकि वे उससे अपने चर्च में लौट आने का आग्रह करते हैं। उस परिस्थिति में भी उसने अपने दोस्तों की सिय्योन में अगुवाई की।

मैं कैसे इस प्रकार की आशीष प्राप्त कर सकी? मैं बस एक कमजोर और धीमी गति से बदलने वाली संतान थी। सिर्फ जब मैंने माता को अपने मन में संजाए रखा, तभी मैं अपनी कमजोरी और विश्वास की कमी पर जय पाने के लिए प्रयास कर सकती थी। जैसे पिता ने कहा, सभी चीजों का सामना करने की शक्ति माता पर निर्भर थी। जब मैं माता को भूल गई थी, तब मैं अपनी शक्ति खोकर गिर गई थी। लेकिन जब मैंने महसूस किया कि माता मेरे साथ हैं, तब मैं फिर से खड़ी हो सकी। मैं प्रार्थना करती हूं कि मैं हमेशा माता के प्रेम और बलिदान को अपने मन में अंकित करूं ताकि मैं सभी प्रकार की परीक्षाओं और पीड़ाओं पर जय पा सकूं।

मेरे दादा जी के जन्मदिन पर सभी रिश्तेदार जो पृथ्वी के विपरीत दिशा में रहते हैं, एक साथ इकट्ठे हुए। वे दादा जी के लिए अपने काम से लंबी छुट्टी लेकर और सब दूसरी चीजों को छोड़कर फिलीपींस में आए।

स्वर्गीय संतानों के साथ भी ऐसा ही है। उस दिन की आशा करते हुए कि सभी स्वर्गीय परिवार वाले एक साथ रहेंगे, मैं हमेशा माता को स्मरण करूंगी और माता के साथ चलने वाली संतान बनूंगी।