जहां मुझे लौट जाना है

नागोया, जापान से ओइटा, आइ

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अपने तीन बच्चों की परवरिश करते हुए मैं शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद थक गई थी, शायद इसलिए मैं हमेशा बीमार पड़ी थी। चूंकि बहुत रातों तक मैं सो नहीं सकी थी, इसलिए मैं डॉक्टर के पास गई। मुझे पता चला कि मैं विषाद–रोग के शुरुआती दौर में हूं।

डॉक्टर ने उसके इलाज के लिए तरह–तरह की सलाह दी थी, और मैंने विभिन्न चीजें करने का प्रयास किया; मैंने नई चीजों को सीखने का समय लिया, और मैं अपने दोस्तों से मिली और उनके साथ मजेदार बातें कीं और स्वादिष्ट भोजन किया। लेकिन यद्यपि मैंने नई चीजें सीखने, भोजन करने और यात्रा करने इत्यादि में अधिक समय लिया और पैसा गंवाया, फिर भी मेरा दर्द एक जैसा रहा। जैसे ही आनन्द का समय बीत गया, मैं जल्दी ही थक गई, और मेरा मन फिर से अंधकार से ढक गया।

जब कभी मैं रात को बिस्तर पर लेटी और अपनी दिनचर्या के घटनाक्रम को याद किया, तब मेरी आंखों से बेवजह आंसू बह निकले। कभी–कभी न जाने क्यों, मैं बिना जाने–बूझे ही यह कहती थी, “मैं घर जाना चाहती हूं।”

एक दिन, मेरी बड़ी बेटी ने मुझे यह कहते हुए सुना और जिज्ञासु होकर मुझसे पूछा,

“मां, आप अभी घर में हैं। क्या आप नानी के घर की बात कर रही हैं?”

“मैं इस घर की या नानी के घर की बात नहीं कर रही हूं। मैं नहीं जानती कि वह कहां है, लेकिन मैं बस अपने घर जल्दी वापस जाना चाहती हूं।”

मेरे पास ऐसा कहने के सिवा और कोई शब्द नहीं था।

एक दिन मैंने चुपके से अपने आंसुओं को संभालते हुए अपने आप से कहा, “माता, मेरी मदद कीजिए।” मैंने सोचा कि मेरी बड़ी बेटी सो रही है, लेकिन वह सो नहीं रही थी। उसने मुझसे पूछा,

“मां, क्या आप नानी के बारे में बात कर रही हैं?”

“नहीं।”

“तब आप किसके बारे में बात कर रही हैं?”

“मैं सच में नहीं जानती। मगर जब मैं आकाश की ओर देखकर कहती हूं, ‘माता, मेरी मदद कीजिए,’ तब मैं बस खुद को शांत महसूस करती हूं।”

सच में ऐसा होता था। जब भी मैं रात के आकाश को देखते हुए “माता” कहकर पुकारती थी, मुझे बहुत अधिक शांति महसूस होती थी।

कुछ महीनों के बाद, एक पल ऐसा आया जिसे मैं जीवन भर कभी नहीं भूल सकती; मैंने माता को खोज लिया जिन्हें मैं बड़ी उत्सुकता से पुकार रही थी।

उस दौरान जब मैं हर दिन आंसू बहाते हुए सोती थी, एक दिन मैं खुद को तरोताजा करने के लिए अपने घर के बाहर सैर कर रही थी। मैंने अपने घर के पास के चौराहे से गुजरते हुए अनजाने में ही आकाश की ओर देखा और एक साइन बोर्ड देखा जिस पर लिखा था “चर्च ऑफ गॉड।” मैंने सोचा था कि मैं अपने आस–पड़ोस के बारे में सब कुछ जानती हूं, क्योंकि मैं हर समय वहीं आसपास टहलती थी, लेकिन मैंने कभी नहीं जाना था कि वहां चर्च ऑफ गॉड है। मुझे कुछ रहस्यमय भी लगा। अनायास ही मेरे कदम चर्च की ओर बढ़ने लगे।

बिना सूचना दिए ही, मैं चर्च के अन्दर आई, लेकिन चर्च के लोगों ने गर्मजोशी से मेरा इस तरह स्वागत किया जैसे मैं उनके परिवार की एक ऐसी सदस्य हूं जो लंबे समय बाद घर वापस आई है।

उस समय के बाद मैं चर्च जाने लगी और एक–एक करके बाइबल के वचनों का अध्ययन करने लगी। मैंने महसूस किया कि वह घर कहां है जहां मैं जाना चाहती थी, और माता कौन हैं जिन्हें मैं पुकार रही थी। जो मैंने अस्पष्ट तरीके से सोचा था, वह बिल्कुल अर्थहीन नहीं था, और वे बातें भी जो मैंने स्वयं से कही थीं, कुछ अजीब बातें नहीं थीं। मैं महसूस कर सकी कि उस समय स्वर्गीय माता जिन्हें अपनी संतानों के साथ स्वर्गीय घर जाने की बड़ी उत्सुकता थी, मेरा मार्गदर्शन कर रही थीं।

धीरे–धीरे मेरा जीवन खुशी से भरने लगा। आज मैं सोने से पहले यह कहते हुए नहीं रोती, “मैं वापस घर जाना चाहती हूं। कृपया मेरी मदद कीजिए।” हर सब्त के दिन जब मैं अपनी तीन संतानों के साथ हाथ–में–हाथ डालकर आराधना करने और परमेश्वर के वचनों का अध्ययन करने के लिए चर्च जाती हूं, तब मैं बहुत खुशी महसूस करती हूं। उस समय भी जब मैं परमेश्वर के अच्छे वचनों को अभ्यास में लाने की कोशिश करती हूं, मुझे खुशी हासिल होती है। चूंकि मैं नकारात्मक शब्द न कहने का प्रयास कर रही हूं, और मेरे बच्चे भी जो पहले हर रोज आपस में झगड़ा करते थे, बात करने का तरीका बदलने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए हमारा घर हंसी से भरपूर रहता है।

मेरा पति, रिश्तेदार और दोस्त पहले मेरी चिंता किया करते थे, क्योंकि मैं हमेशा अपनी समस्याओं के बारे में बात करती थी, लेकिन अब वे यह देखकर चकित होते हैं कि मैं कितनी उज्ज्वल और आत्मविश्वासी बन गई हूं। उन्हें भी परमेश्वर में दिलचस्पी होने लगी जिनसे मैं मिली हूं, और वे परमेश्वर के बारे में जानना चाहते हैं।

परमेश्वर को जानने से पहले, मैं अंधकार में रहकर कुछ भी नहीं जानती थी और सिर्फ कुछ चीजों की तलाश करती थी जो मैं पकड़ नहीं सकती थी। माता ने लंबे समय तक इंतजार किया कि मैं धीरे–धीरे ज्योति को ढूंढ़ लूं और आखिर ज्योति में आ सकूं।

मैंने उस जगह को ढूंढ़ लिया है जहां सच में मुझे वापस जाना है, और अब मैं दूसरी आशाएं रख रही हूं; मैं चाहती हूं कि परमेश्वर मेरी रक्षा करें ताकि मैं अपने स्वर्गीय घर लौट जाने तक माता की बांहों से छूट न जाऊं, और यह भी चाहती हूं कि परमेश्वर मुझे प्रचार करने का अपना मिशन पूरा करने में मदद करें। इन दो चीजों के लिए मैं हर दिन प्रार्थना कर रही हूं। अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए मैं बाइबल का अध्ययन करती हूं, परमेश्वर के नियमों का पालन करती हूं और परमेश्वर के वचनों के अनुसार सब कुछ करने की कोशिश करती हूं। मैं विश्वास करती हूं कि ये सब मेरी आत्मा को बचाने के लिए परमेश्वर की आशीषें हैं। मैं अपनी अनन्त माता को मुझे वो आशीषें देने के लिए पूरे हृदय से धन्यवाद देती हूं।