आखिर में मुझे सत्य मिला

भारत में नासिक चर्च

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बहन जयश्री एक नर्स है। जब कभी उसे मौका मिलता है, वह मरीजों को, जो अपने अस्पताल में आते हैं, वचन का प्रचार करती है। उनमें से ग्रामीण क्षेत्र के एक पादरी और उसकी पत्नी थी जो अपने बच्चे के बीमार होने पर उसके अस्पताल में आए थे। वे नायडोंगरी से थे, जो नासिक से ट्रेन से चार घंटे की दूरी पर है।

पादरी और उसकी पत्नी परमेश्वर के वचन सुनकर बहुत चौंक गए, और उन्होंने बहन को अपने घर आकर और अधिक वचन बताने के लिए कहा। यह एक सुखद सुझाव था, लेकिन दूरी और परिस्थितियों के कारण तुरन्त उनके पास जाना आसान नहीं था। उनके यहां जाने के लिए हमें एक महीना लगा।

हमने एक छोटी शॉर्ट टर्म मिशन टीम बनाई और भोर पांच बजे हम नायडोंगरी की ओर जा रही एक टे्रन में चढ़ गए। जैसे ही ट्रेन करीब नौ बजे स्टेशन पर पहुंची, टीम के सदस्य बहन जयश्री के साथ एक कागज के टुकड़े पर लिखे पते के द्वारा सीधे पादरी के घर की ओर गए। बार–बार लोगों से रास्ता पूछकर हम रिक्शा में सवार हुए और लगभग 20 मिनट तक यात्रा करके गांव के प्रवेशद्वार पर पहुंचे। वहां हमने एक चर्च देखा जहां क्रूस खड़ा था।

“हम नासिक के चर्च ऑफ गॉड से आए हैं। आपने एक महीने पहले सत्य सुना था, है न?”

जब हमने कहा कि हम वहां क्यों आए हैं, तब पादरी ने जिसका नाम अनिल है, हमारा ऐसे स्वागत किया जैसे वह पहले से ही हमारा इंतजार कर रहा था, और वह हमें अपने घर ले गया।

जैसा कि योजना बनाई गई थी, हमने तुरन्त वचन का अध्ययन करना शुरू किया। हमें एक अलग धार्मिक संस्था के पादरी को सिखाने में थोड़ा सा असहज महसूस हुआ। लेकिन “जो कोई चाहे वह जीवन का जल सेंतमेंत ले(प्रक 22:17),” बाइबल के इन वचनों के अनुसार, हमने उसे एक–एक करके सत्य के वचन समझाए। तब उसे परमेश्वर के वचन मधुभरे छत्ते की तरह मीठा लगा और उसने एक स्पंज की तरह वचन को तुरन्त अवशोषित किया। उसने इस युग के उद्धारकर्ता, दूसरी बार आनेवाले यीशु और स्वर्गीय माता को पहचाना और उसी दिन तुरन्त उद्धार का चिन्ह, यानी बपतिस्मा लिया। उसी दिन के बाद, जब भी हमें समय मिला, हमने भाई अनिल के साथ बाइबल का अध्ययन किया।

एक दिन, जब हम उसके साथ अध्ययन कर रहे थे, तब कुछ लोग उसके पास आए। वे नासिक में प्रोटेस्टैंट चर्च के लोग थे। वे यह सुनकर कि भाई अनिल ने चर्च का द्वार बन्द किया और रविवार की आराधना मनाना भी बन्द कर दिया, उससे पूछताछ करने आए थे।

कई बार चिल्लाने की आवाज सुनाई दी, और हमने उन्हें यह कहते सुना, “अपने सभी सामानों को तुरन्त चर्च से निकालो!” हमें यह जान पड़ा कि उसने नासिक और मुंबई के प्रोटेस्टैंट चर्चों की सहायता से नायडोंगरी में अपनी जमीन पर चर्च की इमारत का निर्माण किया था।

भाई अनिल हमेशा सुशील और शांत था जब उसने हमारे साथ वचन का अध्ययन किया था, लेकिन उस समय उसने ऊंची और साहस भरी आवाज में कहा, “मुझे उनकी जरूरत नहीं है। सब कुछ ले जाओ। आखिर में मुझे सत्य मिला है, इसलिए भले ही मुझे यह घर छोड़ना पड़े, मैं अब आप लोगों की शिक्षाओं का पालन नहीं करूंगा। मैंने 6 वर्षों तक आपका पालन किया, लेकिन वह सब झूठ था, और मैंने आप लोगों से बाइबल का कोई सत्य नहीं सीखा।”

अनपेक्षित रूप से हमने सारी परिस्थिति और उसके मन की बातों को जाना, और इसके लिए हमने पिता और माता को धन्यवाद दिया।

उसके बाद भी, उन लोगों ने लगातार आकर भाई को परेशान किया, लेकिन भाई ने पहले के समान उनके साथ दृढ़तापूर्वक व्यवहार करना जारी रखा। चूंकि उसे यकीन था कि उसने सत्य को खोज लिया है, उसके लिए कुछ भी बाधा नहीं हो सकती थी। फसह के पर्व पर भाई अनिल 19 लोगों के साथ आराधना करने के लिए नासिक सिय्योन में आया। वे नायडोंगरी में बहुत ही जल्दी खोजी गई आत्माएं थीं। भाई अब भी अपने माता–पिता, छोटे भाई और पत्नी, और उन लोगों के पास जाकर जो उसके साथ रविवार की आराधना मनाया करते थे, नई वाचा के सत्य का प्रचार करने में व्यस्त रहता है।

भाई अनिल का सत्य को ग्रहण करना परमेश्वर की योजना थी; वह योजना उसके क्षेत्र के आसपास की स्वर्गीय संतानों को बचाने के लिए थी। उसके घर के नजदीक एक क्षेत्र है जहां बौद्ध धर्म प्रचलित है। भले ही बौद्ध धर्म भारत में शुरू हुआ, लेकिन इन दिनों भारत में बौद्ध धर्म का बल कमजोर है। अजीब बात यह है कि उस क्षेत्र में बौद्ध धर्म इतना मजबूत है कि वहां के प्रोटेस्टैंट चर्चों को अपने चर्चों को बन्द करना पड़ा।

भाई अनिल उस क्षेत्र में रहनेवाले बहुत से ईसाइयों को जानता है, जो यह न जानते हुए कि कहां जाना है, भटक रहे हैं। भाई अनिल और नासिक चर्च के सदस्य सत्य का प्रचार करने के लिए जल्दी वहां जाने की योजना बना रहे हैं। अपने खोए हुए स्वर्गीय परिवार के उन सदस्यों से, जो स्वर्ग तक साथ जाएंगे, मिलने की कल्पना करते हुए हमारे हृदय पहले ही से धड़क रहे हैं।