माता की शिक्षाओं में से पहली शिक्षा

"जैसे परमेश्वर हमेशा प्रेम देते हैं, वैसे प्रेम पाने से ज्यादा आशीष, प्रेम देने में है।"

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ऐसा एक पल भी नहीं जिसमें परमेश्वर हमसे प्यार नहीं करते। जब हम स्वर्ग में स्वर्गदूत थे, तब परमेश्वर ने हमेशा प्यार से हमारा लालन पालन किया। यहां तक कि जब हम स्वर्ग में गंभीर पाप करके इस पृथ्वी पर गिरा दिए गए, हमारे पापों की क्षमा करने के लिए हमारे बदले परमेश्वर ने क्रूस पर अपना बलिदान किया, जिससे उन्होंने हमारे प्रति अपना प्रेम साबित किया। इस पल भी परमेश्वर हमारे जैसे मनुष्य के रूप में पापियों की भूमि पर निवास करते हुए हमारी देखभाल कर रहे हैं।

इस प्रकार, परमेश्वर हमेशा प्यार देते हैं और कहते हैं, “जैसा मैंने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो”(यूह 13:34)। परमेश्वर चाहते हैं कि जैसे हम परमेश्वर से प्यार पाते हैं वैसे हम दूसरों को प्यार दें, और उन्होंने कहा कि लेने से देना धन्य है।

मैं ने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया कि इस रीति से परिश्रम करते हुए निर्बलों को सम्भालना और प्रभु यीशु के वचन स्मरण रखना अवश्य है, जो उसने आप ही कहा है : ‘लेने से देना धन्य है’।” प्रे 20:35

प्यार देना प्यार पाने से अधिक मुश्किल है; क्योंकि जब हम प्यार देते हैं, हमें दूसरे व्यक्ति की परिस्थिति को समझने और उस व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रयास और बलिदान करने की आवश्यकता है। इसीलिए परमेश्वर ने कहा लेने से देना धन्य है।

परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करते हुए, हमें अपने आस-पास के लोगों के साथ परमेश्वर का प्रेम साझा करना चाहिए। हमें समझने और हमें प्यार देने के लिए उनका इंतजार करने के बजाय, यदि हम पहले उनके करीब जाएं और उनका ख्याल रखकर प्रेम दें, तो परमेश्वर उनके वचन के प्रति हमारी आज्ञाकारिता से प्रसन्न होकर हमें प्रचुर आशीष प्रदान करेंगे।

पुनर्विचार के लिए प्रश्न
माता की शिक्षाओं में से पहली आज्ञा क्या है?
आइए हम उन तरीकों के बारे में बात करें कि हम कैसे उन लोगों को परमेश्वर का प्रेम पहुंचा सकते हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते।