विपत्ति और फसह का पर्व

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जब हम सुबह उठकर न्यूज चैनल देखते हैं, तब बहुत सारी विपत्तियों और दुर्घटनाओं की खबरें सुनते हैं। विभिन्न प्रकार की विपत्तियों में से सबसे बड़ी विपत्ति क्या है? परमेश्वर ने किस विपत्ति से हमें बचाने के लिए फसह को मानव जाति के लिए औषधि के रूप में निर्धारित किया है?

चाहे संसार में घटित होने वाली विपत्तियां कितने ही लंबे समय तक क्यों न जारी रहें, लेकिन वे मनुष्य के जीवनकाल से भी अधिक समय तक नहीं घट सकतीं। लेकिन बाइबल में एक विपत्ति है जो युगानुयुग जारी रहती है; भले ही लोग उस विपत्ति की पीड़ा अत्यधिक होने के कारण मरने की लालसा करेंगे, लेकिन मृत्यु उनसे भागेगी। हमें नई वाचा का फसह देने के पीछे परमेश्वर की प्रबल इच्छा है कि वह हमें उस अत्यंत भयानक विपत्ति से बचाएं।

विपत्ति जो युगानुयुग जारी रहेगी

संसार में बहुत लोग अनपेक्षित दुर्घटना या प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित होते हैं। कुछ लोग बीमारियों से पीड़ित होते हैं और कुछ लोग आर्थिक विपन्नता के कारण दुख भोगते हैं। जीवन जीने के दौरान, हम हर प्रकार की छोटी या बड़ी विपत्ति का सामना करते हैं।

परमेश्वर का फसह का सत्य स्थापित करने का आखिरी उद्देश्य हमें सबसे बड़ी विपत्ति की अनन्त पीड़ा से बचाना है। आइए हम देखें कि वह सबसे बड़ी विपत्ति क्या है जिसके बारे में बाइबल कहती है।

वह पशु, और उसके साथ वह झूठा भविष्यद्वक्ता पकड़ा गया जिसने उसके सामने ऐसे चिन्ह दिखाए थे जिनके द्वारा उसने उनको भरमाया जिन पर उस पशु की छाप थी और जो उसकी मूर्ति की पूजा करते थे। ये दोनों जीते जी उस आग की झील में, जो गन्धक से जलती है, डाले गए। शेष लोग उस घोड़े के सवार की तलवार से, जो उसके मुंह से निकलती थी, मार डाले गए; और सब पक्षी उनके मांस से तृप्त हो गए। प्रक 19:20-21

उन का भरमानेवाला शैतान आग और गन्धक की उस झील में, जिसमें वह पशु और झूठा भविष्यद्वक्ता भी होगा, डाल दिया जाएगा; और वे रात दिन युगानुयुग पीड़ा में तड़पते रहेंगे। प्रक 20:10

आसान शब्दों में कहें तो प्रकाशितवाक्य में “गन्धक से जलने वाली आग की झील” नरक है। बाइबल उस स्वर्ग के राज्य के बारे में गवाही देती है जहां बचाए गए लोग युगानुयुग सुख पाएंगे, लेकिन उस नरक के बारे में भी गवाही देती है जहां लोग जिन्होंने उद्धार नहीं पाया, रात दिन युगानुयुग पीड़ा में तड़पते रहेंगे।

हमें नरक की विपत्ति कभी नहीं पानी चाहिए। वह विपत्ति जिसे हम इस संसार में थोड़े समय के लिए सहते हैं, पीड़ाजनक है, और परमेश्वर उस विपत्ति से हमारी रक्षा करते हैं। लेकिन हमारे लिए इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें उस विपत्ति की पीड़ा से बचना चाहिए जो कभी समाप्त न होगी पर युगानुयुग जारी रहेगी। परमेश्वर स्वयं शरीर में होकर इस पृथ्वी पर आए ताकि उनकी संतान अनन्त नरक की भारी विपत्ति न सहें।

नरक के विषय में यीशु की शिक्षा

दो हजार वर्ष पहले, यीशु ने राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते हुए लोगों को आत्मिक दुनिया के सिद्धांतों के बारे में बताया। मसीह की शिक्षाओं में से एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि हमें नरक में कभी नहीं जाना चाहिए।

यदि तेरी दाहिनी आंख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नष्ट हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए। यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाए, तो उस को काटकर फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नष्ट हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाए। मत 5:29-30

… “यदि तेरा हाथ या तेरा पांव तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे काटकर फेंक दे; टुण्डा या लंगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है कि दो हाथ या दो पांव रहते हुए तू अनन्त आग में डाला जाए। यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे; काना होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इससे भला है कि दो आंख रहते हुए तू नरक की आग में डाला जाए।” मत 18:7-9

नरक एक स्थान है जहां लोग अत्यंत पीड़ित होते हैं। हर एक चीज जिसका लोग उस स्थान में सामना करते हैं, अत्यंत भयंकर विपत्ति है। इसलिए परमेश्वर ने हम से बार-बार आग्रहपूर्वक अनुरोध किया है कि हम किसी भी तरह नरक की विपत्ति से बचें।

यदि हम उस मार्ग पर नहीं चलते, जिसकी ओर परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करते हैं, तो हम अनन्त नरक की आग से नहीं बच सकते। दो हजार वर्ष पहले, यीशु ने शास्त्रियों और फरीसियों को झिड़का, क्योंकि उन्होंने ‘हे प्रभु! हे प्रभु!’ कहते हुए बाहरी रूप से परमेश्वर पर विश्वास करने का ढोंग किया, लेकिन उनके मन परमेश्वर से बहुत दूर थे।

“हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो।” मत 23:15

और स्वामी भी न कहलाना, क्योंकि तुम्हारा एक ही स्वामी है, अर्थात् मसीह… “हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो।” मत 23:10-13

उन दिनों में, धार्मिक नेता परमेश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करते और कुकर्म करते थे, और वे न तो स्वयं स्वर्ग में प्रवेश करते थे और न ही उनको प्रवेश करने देते थे जो प्रवेश के लिए प्रयत्न करते थे, और जब वे एक जन को अपने मत में लाते थे, तो वे उसे अपने से दूना नारकीय बना देते थे। यीशु ने उन्हें सख्ती से डांटा और झूठे नबी माना, और चेतावनी दी कि यदि कोई उनका पालन करे तो वह नष्ट होगा और नरक भोगने से नहीं बच जाएगा(मत 7:15-23; 23:33)।

इसी कारण आज हमें बाइबल में बड़ी सावधानी के साथ जांच-पड़ताल करके पता लगाना चाहिए कि इस संसार में असंख्य चर्चों में से कौन सा चर्च सत्य का पालन करता है। परमेश्वर ने अपनी पवित्र देह का बलिदान करके हमें पाप और मृत्यु की जंजीरों से छुड़ा लिया है और नरक की विपत्ति से मुक्त किया है, तो भी हमें दुबारा व्यवस्था का उल्लंघन करके पाप में नहीं फंस जाना चाहिए। जो सत्य का पालन नहीं करते उनका गंतव्य स्थान नरक है जहां वे अवर्णनीय पीड़ा झेलेंगे। इतनी बड़ी विपत्ति को सहने में कौन समर्थ हो सकता है?

नई वाचा का फसह जिससे हम नरक की विपत्ति से बच सकते हैं

इसलिए यीशु ने कहा कि चाहे हमारे शरीर का एक अंग नष्ट ही क्यों न हो जाए, फिर भी हमें नरक में कभी नहीं जाना चाहिए। हमें नरक की विपत्ति से बचाने के लिए परमेश्वर ने नई वाचा का फसह स्थापित किया।

तब अखमीरी रोटी के पर्व का दिन आया, जिसमें फसह का मेम्ना बलि करना आवश्यक था। यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा : “जाकर हमारे खाने के लिये फसह तैयार करो।”… उन्होंने जाकर, जैसा उसने उनसे कहा था, वैसा ही पाया और फसह तैयार किया। जब घड़ी आ पहुंची, तो वह प्रेरितों के साथ भोजन करने बैठा। और उसने उनसे कहा, “मुझे बड़ी लालसा थी कि दु:ख भोगने से पहले यह फसह तुम्हारे साथ खाऊं।” लूक 22:7-15

क्यों यीशु ने फसह खाने की बड़ी लालसा की? यीशु ने खोए हुओं को ढूंढ़ना और उनका उद्धार करना चाहा(लूक 19:10)। बाइबल कहती है कि आत्मा का अनन्त नरक में डाला जाना नाश है और उससे बच जाना उद्धार है। हमें उस भयानक विपत्ति से बचाने के लिए, जो नरक की पीड़ा है, यीशु इस पृथ्वी पर आए और उन्हें फसह का पर्व मनाने की बड़ी लालसा थी।

फिर उसने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उनको यह कहते हुए दी, “यह मेरी देह है जो तुम्हारे लिये दी जाती है : मेरे स्मरण के लिए यही किया करो।” इसी रीति से उसने भोजन के बाद कटोरा भी यह कहते हुए दिया, “यह कटोरा मेरे उस लहू में जो तुम्हारे लिये बहाया जाता है नई वाचा है।” लूक 22:19-20

फसह के पर्व के दिन, यीशु ने अपने चेलों को रोटी और दाखमधु दिए जो यीशु के पवित्र मांस और लहू को दर्शाते हैं, और इसे “नई वाचा” कहा। हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि क्यों यीशु ने फसह के पर्व के दिन नई वाचा स्थापित की। “फसह” शब्द का अर्थ ‘किसी चीज से पार होना’ है। हम किस चीज से पार होते हैं? विपत्ति से।

… वह तो यहोवा का पर्व होगा। क्योंकि उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में होकर जाऊंगा, और मिस्र देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठों को मारूंगा; और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूंगा; मैं यहोवा हूं। और जिन घरों में तुम रहोगे उन पर वह लहू तुम्हारे लिए चिन्ह ठहरेगा; अर्थात् मैं उस लहू को देखकर तुम को छोड़ जाऊंगा, और जब मैं मिस्र देश के लोगों को मारूंगा, तब वह विपत्ति तुम पर न पड़ेगी और तुम नष्ट न होगे। और वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरेगा, और तुम उसको यहोवा के लिये पर्व करके मानना; वह दिन तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि जानकर पर्व माना जाए। निर्ग 12:11-14

फसह के पर्व की शुरुआत 3,500 वर्ष पहले पुराने नियम के समय में हुई। निर्गमन के समय, इस्राएलियों ने प्रत्येक परिवार के लिए एक फसह के मेम्ने को बलि किया और मेम्ने के लहू को अपने घरों के द्वार के अलंगों और चौखट के सिरे पर लगाया। परिणामस्वरूप, परमेश्वर के वादे के अनुसार, नष्ट करने वाला स्वर्गदूत उनके ऊपर से गुजरा जब उसने फसह के मेम्ने का लहू देखा।

इस तरह फसह का अर्थ यह है, ‘विपत्ति से पार होना।’ सबसे बड़ी विपत्ति न तो मिस्र पर हुई दस विपत्तियां हैं, और न ही अंतिम सात विपत्तियां हैं। वह नरक की विपत्ति है। फसह केवल रोटी खाने और दाखमधु पीने की विधि नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी विधि है जिसमें हमें नरक की बड़ी विपत्ति से बचाने के लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञा शामिल है।

इसलिए यीशु को बड़ी लालसा थी कि दुख भोगने से पहले वह चेलों के साथ फसह का पर्व मनाएं। यीशु पहले से जानते थे कि अगले दिन वह क्रूस पर चढ़ाए जाकर दुख सहेंगे और बहुत लोगों के सामने बेहद लज्जित और अपमानित होंगे। जब यीशु ने अपनी आसन्न पीड़ा के बारे में सोचते हुए, गतसमनी नामक एक स्थान में प्रार्थना की, उनका पसीना लहू की बूंदों के समान धरती पर गिरा, हम अनुमान लगा सकते हैं कि उनका दुख कितना अधिक कठोर था(लूक 22:39-44)। परमेश्वर ने ऐसे दुखों को झेलते हुए हमें नरक से छुड़ाया और जीवन के मार्ग की ओर हमारी अगुवाई की। तो फसह के पर्व के मूल्य को कभी कम नहीं आंका जा सकता।

अख़मीरी रोटी के पर्व के पहले दिन, चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे, “तू कहां चाहता है कि हम तेरे लिये फसह खाने की तैयारी करें?” उसने कहा, “नगर में अमुक व्यक्ति के पास जाकर उससे कहो, ‘गुरु कहता है कि मेरा समय निकट है। मैं अपने चेलों के साथ तेरे यहां पर्व मनाऊंगा’।” अत: चेलों ने यीशु की आज्ञा मानी और फसह तैयार किया… जब वे खा रहे थे तो यीशु ने रोटी ली, और आशीष मांगकर तोड़ी, और चेलों को देकर कहा, “लो, खाओ; यह मेरी देह है।” फिर उसने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें देकर कहा, “तुम सब इसमें से पीओ, क्योंकि यह वाचा का मेरा वह लहू है, जो बहुतों के लिये पापों की क्षमा के निमित्त बहाया जाता है।” मत 26:17-19, 26-28

यीशु ने फसह के पर्व में, जिसके द्वारा विपत्ति हमें छोड़कर गुजर जाती है, पापों की क्षमा की आशीष को भी शामिल किया। इसलिए जो फसह का पर्व मनाता है, वह पापों से क्षमा होता है और नरक की विपत्ति से बचकर परमेश्वर के राज्य में जा सकता है। परमेश्वर ने हमें नरक की पीड़ा से बचाने के लिए धरती पर आकर सभी कष्टों को सह लिया, खुद को बलिदान किया और नई वाचा के फसह का पर्व स्थापित किया, तो हम कौन से शब्द से परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह को व्यक्त कर सकेंगे?

अनन्त स्वर्ग की मीरास की प्रतिज्ञा और नई वाचा

फसह का पर्व जिसे आज हम मनाते हैं, केवल ऐसी विधि नहीं है जो सिर्फ हमारे शारीरिक जीवन को बचाती है और हमें सांसारिक विपत्तियों से बचाती है। फसह सत्यों का सत्य है, जिसे परमेश्वर ने हमें सबसे बड़ी विपत्ति, यानी नरक की विपत्ति से बचाने के लिए अपने बहुमूल्य लहू से स्थापित किया है।

यिर्मयाह नबी ने भविष्यवाणी की है कि परमेश्वर अपने लोगों के पापों को क्षमा करने के लिए नई वाचा स्थापित करेंगे।

“फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आनेवाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बांधूंगा… परन्तु जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बांधूंगा, वह यह है: मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, यहोवा की यह वाणी है। तब उन्हें फिर एक दूसरे से यह न कहना पड़ेगा कि यहोवा को जानो, क्योंकि, यहोवा की यह वाणी है, छोटे से लेकर बड़े तक, सब के सब मेरा ज्ञान रखेंगे; क्योंकि मैं उनका अधर्म क्षमा करूंगा, और उनका पाप फिर स्मरण न करूंगा।” यिर्म 31:31-34

भविष्यवाणी के अनुसार यीशु ने फसह के पर्व की शाम को नई वाचा स्थापित की। जब तक नई वाचा की घोषणा नहीं की गई, तब तक उन्होंने बड़ी बेसब्री से इसके पूरा होने का इंतजार किया। परमेश्वर के मांस और लहू से स्थापित की गई नई वाचा के बिना परमेश्वर की संतान कभी भी नरक की विपत्ति से मुक्त नहीं हो सकतीं।

हमें इतनी बड़ी विपत्ति से बचाने के लिए, मसीह ने अपनी देह को अर्पण किया। और नई वाचा के द्वारा हमसे अनन्त स्वर्ग की मीरास की प्रतिज्ञा की। परमेश्वर ने वादा किया है कि वह हमें उस स्वर्ग की ओर ले जाएंगे जहां मृत्यु या विलाप नहीं, केवल खुशी, शांति और अनन्त जीवन है। परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा हम आज एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं(प्रक 21:1-4; 2पत 3:13)।

इसी कारण वह नई वाचा का मध्यस्थ है, ताकि उसकी मृत्यु के द्वारा जो पहली वाचा के समय के अपराधों से छुटकारा पाने के लिये हुई है, बुलाए हुए लोग प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्त मीरास को प्राप्त करें। क्योंकि जहां वाचा बांधी गई है वहां वाचा बांधनेवाले की मृत्यु का समझ लेना भी अवश्य है। क्योंकि ऐसी वाचा मरने पर पक्की होती है, और जब तक वाचा बांधनेवाला जीवित रहता है तब तक वाचा काम की नहीं होती। इसी लिये पहली वाचा भी बिना लहू के नहीं बांधी गई। इब्र 9:15-18

परमेश्वर हमें अनन्त स्वर्ग की मीरास की प्रतिज्ञा देने के लिए स्वयं शरीर धारण करके इस धरती पर आए, और उन्होंने नई वाचा स्थापित की। एक और आत्मा को नरक की ओर खींच कर ले जाने के लिए, शैतान नई वाचा के सत्य को मिटाने का हर संभव यत्न कर रहा है। शैतान जो नई वाचा के फसह को मिटाने की इच्छा रखता है और परमेश्वर जो उसे अपनी संतानों को देने की इच्छा रखते हैं, उन दोनों के बीच हजारों सालों से आत्मिक रूप से बड़ा युद्ध चल रहा है। इस युग में, परमेश्वर दूसरी बार पृथ्वी पर आए ताकि वह नई वाचा के सत्य को पुन:स्थापित करने के अपने उद्धार के कार्य को पूरा कर सकें।

वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा। इब्र 9:28

जब परमेश्वर दूसरी बार आते हैं, वह पवित्र आत्मा और दुल्हिन के रूप में आते हैं(प्रक 22:17)। पवित्र आत्मा और दुल्हिन अब सभी मानव जाति को बुला रहे हैं, और यह कह रहे हैं, “उस स्थान पर मत जाओ जहां विपत्ति आएगी, और जल्दी हमारे पास आकर जीवन का जल लो।”

हमें जीवन का जल देने वाले पवित्र आत्मा और दुल्हिन के पास अवश्य जाना चाहिए। यदि पाप हममें बना रहे, तो हम अनंत जीवन नहीं पा सकते। यदि हम पापों की क्षमा नहीं पाते, तो हम नरक की विपत्ति से कभी मुक्ति नहीं पा सकते। जो पवित्र आत्मा और दुल्हिन के पास जाते हैं, वे नई वाचा के अन्दर पापों की क्षमा पा सकते हैं और अनन्त जीवन, आनंद और आशीर्वाद भोग सकते हैं।

इस संसार में अभी भी बहुत लोग पवित्र आत्मा और दुल्हिन की आवाज न सुन पाने के कारण भटक रहे हैं और अनजाने में विनाश के मार्ग की ओर दौड़ रहे हैं। परमेश्वर ने हमें “नई वाचा के सेवक” बनाया है(2कुर 3:6)। मैं आशा करता हूं कि आप उन लोगों को सही मार्ग की ओर मार्गदर्शित करने में और उन्हें बचाने में और अधिक मेहनत करें और पवित्र आत्मा और दुल्हिन, यानी हमारे परमेश्वर का पूरे संसार में प्रचार करें जिन्होंने नई वाचा के सत्य के द्वारा हमें अनन्त विपत्ति से बचाया है। हम स्वर्गीय पिता और माता को, जिन्होंने हमें नरक की विपत्ति से छुड़ाया और अनन्त स्वर्ग की ओर हमारी अगुवाई की है, अनन्त धन्यवाद, आदर और महिमा चढ़ाते हैं।