नई वाचा का सब्त

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परमेश्वर ने हमारे उद्धार के लिए बाइबल की 66 पुस्तकें लिखीं और प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के अंत में चेतावनी दी कि बाइबल के वचनों में न तो कुछ बढ़ाना और न ही उनमें से कुछ निकालना। यह हमें इस बात को समझने देता है कि परमेश्वर के वचन में कितना अधिकार निहित है। केवल वे ही लोग जो एक शब्द भी छोड़े बिना बाइबल के हर एक वचन को महत्व देते हैं परमेश्वर के उद्धार की प्रतिज्ञा प्राप्त कर सकते हैं।

नई वाचा में फसह, सब्त, पर्व, ओढ़नी का नियम, बपतिस्मा इत्यादि जैसे कई नियम हैं। उनमें से, आइए हम सब्त से जुड़ी बाइबल की शिक्षाओं और उनमें समाई हुई परमेश्वर की इच्छा की जांच करें।

सृष्टि के समय स्थापित सब्त

सब्त, जिसकी शुरुआत परमेश्वर के सृष्टि के अपने कार्य से विश्राम लेने के दिन से हुई, वह दिन है जिस दिन हम सृष्टिकर्ता परमेश्वर का स्मरण करते हैं। उत्पत्ति अध्याय 1 में, परमेश्वर ने छह दिन तक सृष्टि का कार्य किया, और उत्पत्ति अध्याय 2 में, परमेश्वर ने सृष्टि के कार्य को सातवें दिन में समाप्त किया। इसी दिन परमेश्वर ने अपने कार्य से विश्राम करके इसे विशेष अर्थ रखा।

यों आकाश और पृथ्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्ति हो गया। और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता था सातवें दिन समाप्त किया, और उसने अपने किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्राम किया। और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उसमें उसने सृष्टि की रचना के अपने सारे काम से विश्राम लिया। उत 2:1-3

कुछ लोग सब्त के दिन को महज पुराने नियम की व्यवस्था के रूप में मानते हैं। लेकिन, व्यवस्था होने से पहले ही जब परमेश्वर ने आदि में सारी वस्तुओं की सृष्टि की तब उन्होंने सब्त के दिन को पवित्र ठहराकर इसे आशीष के दिन के रूप में नियुक्त किया। परमेश्वर ने सब्त के दिन को विशेष रूप से इसीलिए स्थापित किया क्योंकि इसमें हमारे उद्धार के लिए आवश्यक आशीर्वाद है।

सब्त जो सृष्टि के समय में स्थापित हुआ था, बाद में मूसा के समय में व्यवस्था के रूप में संहिताबद्ध हुआ। पुराने नियम की व्यवस्था अर्थात् दस आज्ञाओं की घोषणा करते समय परमेश्वर ने सब्त का विस्तृत विवरण दिया था।

“तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना। छ: दिन तो तू परिश्रम करके अपना सब काम-काज करना; परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्रामदिन है। उसमें न तो तू किसी भांति का काम-काज करना, और न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेशी जो तेरे फाटकों के भीतर हो। क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश, और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उनमें हैं, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रामदिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया।” निर्ग 20:8-11

“तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना।” यह वही शिक्षा है जिसकी घोषणा परमेश्वर ने अपने लोगों के लिए की थी। सब्त का दिन शैतान की रुकावट से बनाया गया मनुष्य का नियम नहीं, बल्कि यह परमेश्वर की आज्ञा है जिसे स्वयं परमेश्वर ने स्थापित किया। परमेश्वर ने अपने लोगों को सातवें दिन, सब्त के दिन को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखने की आज्ञा दी और उन्हें अपनी विधियां, नियम और व्यवस्थाएं दीं।

मूसा की व्यवस्था में यह निर्धारित किया गया है कि सब्त को अपवित्र करनेवाले व्यक्ति को अवश्य मार डाला जाए। पुराने नियम में सब्त ऐसी संपूर्ण व्यवस्था था कि इसे अपवित्र करने वाले की जान नष्ट की जाती थी(निर्ग 31:12-17)। परमेश्वर ने अपने लोगों को यह सिखाने के लिए कि उनके वचनों की अवज्ञा करनेवाली आत्माएं उद्धार नहीं पा सकतीं, पुराने नियम की सारी व्यवस्थाओं को सख्त बनाया।

सब्त जिसे यीशु ने मनाया

सब्त के संहिताबद्ध होने के बाद, यह 1,500 वर्षों के लंबे समय के लिए मनाया जाता था, और नए नियम में, इसे लगातार नई वाचा के सब्त के रूप में मनाया जाता था। यीशु के चले मार्ग से हम पुष्टि कर सकते हैं कि सब्त सत्य की व्यवस्था है जिसे कभी बदला या मिटाया जाना नहीं चाहिए।

फिर वह नासरत में आया, जहां पाला पोसा गया था; और अपनी रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जाकर पढ़ने के लिये खड़ा हुआ। यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक उसे दी गई, और उसने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहां यह लिखा था… लूक 4:16-21

यीशु ने अपनी रीति के अनुसार सब्त मनाया। चूंकि सब्त परमेश्वर की संपूर्ण आज्ञा है, इसलिए यीशु ने स्वयं अपने चेलों को सब्त मनाने का नमूना दिखाया।

पुराने नियम के समय में सब्त का अस्तित्व था और इसे यीशु के समय तक भी लगातार मनाया गया। पुराने नियम के सब्त और नए नियम के सब्त के बीच का अंतर आराधना के तरीके में था। पुराने नियम में, लोग पशुओं को बलि करके सब्त मनाते थे। लेकिन, नए नियम में परमेश्वर के लोग बलि पशुओं की वास्तविकता अर्थात् यीशु मसीह के बहुमूल्य लहू के द्वारा आत्मा और सच्चाई से प्रार्थना और परमेश्वर की स्तुति करते हुए आराधना करते हैं।

“यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूं।” मत 5:17

पुराने नियम का सब्त बलि पशु के लहू से मनाया जाता था। यह इस पृथ्वी पर आने वाले मसीह का प्रतिरूप और प्रतीक के रूप में कार्य करता है। प्रतिरूप खुद में अपूर्ण होता है क्योंकि यह वास्तविकता नहीं है। नई वाचा का सब्त जिसे मसीह जो वास्तविकता हैं, ने आकर स्थापित किया, यही सच्चे विश्राम में प्रवेश करने का चिह्न है। इसलिये यीशु ने कहा कि वह व्यवस्था को लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आए हैं।

पूरी हुई सब्त की व्यवस्था नई वाचा के सब्त को दर्शाती है। जो कोई नई वाचा का सब्त मनाता है, वह पशुओं के लहू के बदले मसीह के बहुमूल्य लहू के द्वारा अनुग्रह प्राप्त कर सकता है। मूलभूत रूप से, आराधना का अनुक्रम और बलिदान नई वाचा से पूरा किया गया। फिर भी, सातवां दिन जिसे परमेश्वर ने सब्त के रूप में नियुक्त किया था, लगातार मनाया जाता रहा।

सब्त जिसे प्रेरितों ने मनाया

आजकल, रविवार के दिन आराधना करनेवाले चर्च अपने सिद्धांत को उचित ठहराने के लिए यह दावा करते हैं, “सब्त मिटा दिया गया क्योंकि यह पुराने नियम की व्यवस्था है,” “क्रूस के बलिदान के बाद सब्त मनाने की आवश्यकता नहीं,” या “सब्त को रविवार में बदल दिया गया है क्योंकि यीशु का पुनरुत्थान रविवार के दिन हुआ था।” वे परमेश्वर की आज्ञा को त्यागने के अपने कार्य को उचित ठहराने के लिए बहाने बनाते हैं। लेकिन, यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने के बाद भी प्रेरितों और प्रथम चर्च के संतों ने सब्त मनाना जारी रखा।

वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था। उन स्त्रियों ने जो उसके साथ गलील से आई थीं, पीछे पीछे जाकर उस कब्र को देखा, और यह भी कि उसका शव किस रीति से रखा गया है। तब उन्होंने लौटकर सुगन्धित वस्तुएं और इत्र तैयार किया; और सब्त के दिन उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया। लूक 23:54-56

उपरोक्त वाक्य में, हम आसानी से समझ सकते हैं कि क्रूस के बाद भी सब्त मनाया जाता था। आइए हम यीशु के पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बाद की स्थिति की जांच करें।

… और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे। सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए कि वहां प्रार्थना करने का स्थान होगा, और बैठकर उन स्त्रियों से जो इकट्ठी हुई थीं, बातें करने लगे। प्रे 16:11-13

… पौलुस अपनी रीति के अनुसार उनके पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्र शास्त्रों से उनके साथ वाद-विवाद किया; और उनका अर्थ खोल खोलकर समझाता था कि मसीह को दु:ख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य था; और “यही यीशु जिसकी मैं तुम्हें कथा सुनाता हूं, मसीह है।” प्रे 17:1-3

यीशु के स्वर्गारोहण के बाद भी, प्रेरितों ने सब्त को अपनी रीति के अनुसार मनाना जारी रखा। प्रेरित पौलुस कोई अपवाद नहीं था। उसने यहूदी धर्म को त्यागकर जिसमें उसका उत्साहपूर्ण विश्वास था, नई वाचा के सत्य को ग्रहण किया, उसके बाद वह जो कुछ भी उद्धार से जुड़ी हुई मसीह की शिक्षा नहीं थी, उसे कूड़ा समझकर बिना किसी हिचकिचाहट के छोड़ देता था। तब, क्या पौलुस के सब्त मनाने का निश्चित कारण नहीं होगा? पौलुस ने मसीह की शिक्षाओं की गवाही देते समय यह कहकर कि “यह बात मुझे प्रभु से पहुंची, और मैं ने तुम्हें भी पहुंचा दी,” समझाया कि वह मसीह की सी चाल चलता है(1कुर 11:1, 23)। इसलिए, पौलुस मसीह के नमूने का पालन करने के लिए सब्त को मनाता था।

सब्त को जगत के अन्त तक मनाया जाना चाहिए

सब्त परमेश्वर की महत्वपूर्ण व्यवस्था है जिसे सृष्टि के समय स्थापित किया गया था। और इसे मूसा के समय से यीशु के समय तक और यीशु के क्रूस पर चढ़ाए जाने के बाद प्रेरितों के युग में भी लगातार मनाया गया था। आइए हम यह जानें कि सब्त को कब तक मनाया जाना चाहिए।

प्रार्थना किया करो कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े। क्योंकि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ और न कभी होगा। यदि वे दिन घटाए न जाते तो कोई प्राणी न बचता, परन्तु चुने हुओं के कारण वे दिन घटाए जाएंगे। मत 24:20-22

“उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ और न कभी होगा।” यह जगत के अंत में होने वाली घटना के बारे में भविष्यवाणी है। यदि क्रूस के बाद सब्त का पालन करने की आवश्यकता नहीं थी, तो यीशु ने अंत के दिनों के बारे में भविष्यवाणी करते समय सब्त का उल्लेख नहीं किया होता। “प्रार्थना किया करो कि तुम्हें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े।” यीशु के इन वचनों में परमेश्वर की ऐसी इच्छा शामिल है कि परमेश्वर के लोगों को अंतिम युग में भी सब्त का स्मरण करके उसे मनाना चाहिए।

परमेश्वर की हर एक आज्ञा में, कुछ निश्चित अर्थ और आशीष है जिसका हमें स्मरण करना चाहिए। यही कारण है कि परमेश्वर ने गंभीरता से हमें युग के अंत तक परमेश्वर की आज्ञा, सब्त को कभी नहीं भूलने के लिए कहा। नई वाचा का सब्त परमेश्वर की व्यवस्था है जो जगत के अंत तक मौजूद है और परमेश्वर की आज्ञा है जिसे कभी बदला नहीं जा सकता।

जो लोग नई वाचा का सब्त मनाते हैं वे परमेश्वर के लोग हैं

नई वाचा का सब्त मनाने पर हम परमेश्वर के पवित्र लोग बन जाते हैं। हमें परमेश्वर के लोग बनने से रोकने के लिए शैतान ने झूठ गढ़े हैं। अनेक आत्माओं को परमेश्वर से दूर कराने के लिए उसने परमेश्वर के नियत समयों और व्यवस्थाओं को मिटा दिया।

… और वह परमप्रधान के विरुद्ध बातें कहेगा, और परमप्रधान के पवित्र लोगों को पीस डालेगा, और समयों और व्यवस्था के बदल देने की आशा करेगा… दान 7:23-25

बाइबल ने भविष्यवाणी की कि शैतान जो परमप्रधान के विरुद्ध बातें कहता है, परमेश्वर के नियत समयों और व्यवस्थाओं को बदल देगा। इस भविष्यवाणी के अनुसार, शैतान की दुष्ट सेनाओं ने परमेश्वर की आराधना करने के पवित्र दिन अर्थात् सातवें दिन सब्त को पहले दिन रविवार में बदल दिया। तब, क्या शैतान की व्यवस्था पर चलनेवाले लोग उद्धार पा सकेंगे?

दुनिया में समुद्र की बालू के समान असंख्य चर्च और ईसाई हैं। वे सब इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि वे परमेश्वर के लोग हैं। लेकिन, न्याय के दिन, परमेश्वर अपने लोगों को उनसे अलग करेंगे जो परमेश्वर के लोग नहीं हैं, और केवल वे ही बचेंगे जिनके हृदय में परमेश्वर की व्यवस्था है।

“हे धर्म के जाननेवालो, जिनके मन में मेरी व्यवस्था है, तुम कान लगाकर मेरी सुनो; मनुष्यों की नामधराई से मत डरो, और उनके निन्दा करने से विस्मित न हो।” यश 51:7

“फिर यहोवा की यह भी वाणी है, सुन, ऐसे दिन आनेवाले हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घरानों से नई वाचा बांधूंगा। वह उस वाचा के समान न होगी जो मैं ने उनके पुरखाओं से उस समय बांधी थी जब मैं उनका हाथ पकड़कर उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया, क्योंकि यद्यपि मैं उनका पति था, तौभी उन्होंने मेरी वह वाचा तोड़ डाली। परन्तु जो वाचा मैं उन दिनों के बाद इस्राएल के घराने से बांधूंगा, वह यह है : मैं अपनी व्यवस्था उनके मन में समवाऊंगा, और उसे उनके हृदय पर लिखूंगा; और मैं उनका परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरी प्रजा ठहरेंगे, यहोवा की यह वाणी है।” यिर्म 31:31-33

जिनके मन में नई वाचा की व्यवस्था है, वे निश्चय ही परमेश्वर के लोग हैं। नई वाचा की शिक्षाओं में से, आइए हम सब्त पर विचार करें। परमेश्वर ने इस दिन को सृष्टि के समय में स्थापित करके मूसा के दिनों में व्यवस्था के रूप में संहिताबद्ध किया था। नए नियम में भी यीशु ने सब्त मनाना जारी रखा, और यीशु के क्रूस पर बलिदान होने के बाद भी प्रेरित इस आज्ञा को अंत तक थामे रहे। इसलिए उन्होंने हमें यह प्रार्थना करने को कहकर कि हमें जाड़े में या सब्त के दिन भागना न पड़े, इस दिन को जगत के अंत तक स्मरण करना सिखाया।

परमेश्वर के लोगों को उनकी व्यवस्था का पालन करना चाहिए। परमेश्वर ने कहा कि जिनके मन में उनकी व्यवस्था है, वे उनके प्रिय लोग हैं जिनका वह उद्धार करेंगे। इस एक व्यवस्था, सब्त से भी हम यह महसूस कर सकते हैं कि हम सच में परमेश्वर की संतान हैं। सिय्योन के लोगों के रूप में, हमें इस तथ्य पर गर्व करना चाहिए और पिता परमेश्वर और नई यरूशलेम स्वर्गीय माता की अनंत प्रशंसा और महिमा करनी चाहिए जिन्होंने हमारे मन में नई वाचा की व्यवस्था लिखी है।

नई वाचा का सब्त परमेश्वर की इच्छा है और स्वर्ग जाने का मार्ग है

परमेश्वर ने हमें स्पष्ट रूप से सिखाया है कि सब्त ऐसी व्यवस्था और विधि है जिसे हमें जगत के अंत तक मानना चाहिए। जो कोई स्वर्ग जाने की लालसा करता है उसे सब्त मनाना चाहिए।

“जो मुझ से, ‘हे प्रभु! हे प्रभु!’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।” मत 7:21

कौन सी शिक्षा पिता की इच्छा है, सब्त की आराधना या रविवार की आराधना? यह बेशक सब्त है। चूंकि यीशु पहले से ही जानते थे कि शैतान द्वारा सब्त बदल दिया जाएगा, इसलिए उन्होंने कहा, “सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश को पहुंचाता है; और बहुत से हैं जो उस से प्रवेश करते हैं। क्योंकि सकेत है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचाता है; और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं”(मत 7:13-14)। उन्होंने स्पष्ट रूप से यह भी कहा, “झूठे भविष्यद्वक्ताओं से सावधान रहो, जो भेड़ों के भेस में तुम्हारे पास आते हैं, परन्तु अन्तर में वे फाड़नेवाले भेड़िए हैं”(मत 7:15)।

इसे सीधे शब्दों में कहें, तो सब्त एक दिशा सूचक बोर्ड है जो हमारा परमेश्वर के राज्य की ओर मार्गदर्शन करता है। परमेश्वर ने हमें अपने राज्य में जाने के मार्ग के विषय में विस्तार से सिखाया है। हमें उस चर्च में जाना चाहिए जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा देता है, सब्त मनाता है और पवित्र आत्मा के नाम अर्थात् यीशु के नए नाम पर विश्वास करता है। हमें इस बात की पुष्टि करनी चाहिए कि हम सिय्योन में आ गए हैं जहां परमेश्वर के पर्व मनाए जाते हैं और जहां पिता परमेश्वर और माता परमेश्वर जो एलोहीम परमेश्वर हैं, निवास करते हैं। केवल तभी हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने की योग्यता हासिल कर सकते हैं।

दुनिया में बहुत से लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं लेकिन स्वर्ग जाने का मार्ग नहीं खोजते। उन्हें उस मार्ग से हटना चाहिए जो बाइबल की शिक्षा के विरुद्ध है। लेकिन, वे गलत मार्ग पर जाने की जिद करते हैं। यदि ऐसी दयनीय आत्माएं हमारे आस-पास हैं तो आइए हम उन्हें पिता की इच्छा को स्पष्ट रूप से बताएं ताकि वे दुष्टता के उन मार्गों को छोड़ सकें जो वे अभी अनुसरण कर रहे हैं, और जल्दी बेबीलोन से निकलकर परमेश्वर के पास लौट आएं(यश 55:6-7; प्रक 18:1-4 संदर्भ)। मुझे आशा है कि सभी लोग पिता की इच्छा पर चलें ताकि हम एक साथ अनंत स्वर्ग जा सकें।

अब, सिय्योन के लोग नई यरूशलेम स्वर्गीय माता की बांहों में कबूतरों के समान उड़कर आ रहे हैं। इस दौरान, हमें परमेश्वर की व्यवस्थाओं और विधियों को अपने मनों में फिर से उत्कीर्ण करके किसी भी परिस्थिति में भी बहुमूल्य मानकर उनका पालन करना चाहिए। जिनके मन में परमेश्वर की व्यवस्था है वे परमेश्वर के लोग हैं। मैं आप सिय्योन के सभी भाई-बहनों से आग्रहपूर्वक कहता हूं कि सत्य की व्यवस्था अर्थात् नई वाचा का पालन करें और इसका प्रचार करें ताकि हम सब अनंत स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकें।