हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए?

48,468 बार देखा गया

प्रार्थना परमेश्वर और हमारे बीच एक आत्मिक बातचीत है। हमें परमेश्वर के अस्तित्व पर दृढ़तापूर्वक विश्वास करना चाहिए और इस पर विश्वास करते हुए कि परमेश्वर जो हम मांगते हैं उसे हमें देंगे, अपने पूरे मन और पूरे हृदय से प्रार्थना करनी चाहिए।

आइए हम विस्तार से समझें कि हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए।

1) पहले हमें परमेश्वर के राज्य और उनकी धार्मिकता की खोज करनी चाहिए

यदि हम स्वार्थ सिद्धि के लिए या परमेश्वर की इच्छा के विरोध में प्रार्थना करेंगे, यह एक बच्चे के जैसा है जो बन्दूक या चाकू मांगता है। इसलिए हमें परमेश्वर की इच्छा के अनुसार प्रार्थना करनी चाहिए।

परन्तु तुम पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो। मत 6:33

2) विश्वास करते हुए कि परमेश्वर, जो हम मांगते हैं, उसे हमें देंगे

प्रार्थना जो बिना विश्वास के की जाती है, उसमें कोई शक्ति नहीं होती। चूंकि प्रार्थना परमेश्वर के साथ एक आत्मिक बातचीत है, इसलिए प्रार्थना करते समय, हमें परमेश्वर के अस्तित्व पर दृढ़तापूर्वक विश्वास करना चाहिए। प्रार्थना दो प्रकार की होती है– प्रार्थना जो परमेश्वर के अस्तित्व पर दृढ़ विश्वास करते हुए की जाती है, और प्रार्थना जो संदेह के साथ की जाती है। इन दोनों के बीच में बहुत ही बड़ा अन्तर है। संदेह के साथ प्रार्थना करना ऐसी घंटी बजाने के समान है जो खराब हो गई है। चाहे हम कितनी बार भी वह घंटी बजाते रहें जो खराब हो गई है, पर हम कोई उत्तर नहीं पा सकेंगे, उसी तरह हम संदेह के साथ परमेश्वर से प्रार्थना करें, हमारी प्रार्थना का उत्तर नहीं दिया जा सकता।

पर विश्वास से मांगे और तनिक भी सन्देह न करे, क्योंकि जो सन्देह करता है वह समुद्र की लहर के समान है, जो हवा से उठती और उछलती है। ऐसा मनुष्य यह आशा न रखे कि उसे परमेश्वर से कुछ प्राप्त होगा, क्योंकि दुचित्ता होने के कारण वह अपनी सारी चाल में अस्थिर है। याक 1:6–8

3) पूरे मन से

प्रार्थना बहुत ही महत्वपूर्ण है, और परमेश्वर जिनसे हम प्रार्थना करते हैं, पवित्र हैं। इसलिए हमें परमेश्वर से अपने पूरे मन और पूरे हृदय से प्रार्थना करनी चाहिए।

… वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हार्दिक वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लहू की बड़ी बड़ी बूंदों के समान भूमि पर गिर रहा था। लूक 22:44

हमें निरन्तर प्रार्थना में लगे रहना चाहिए। हमें, जो कुछ भी करते हैं प्रार्थना से शुरू करना चाहिए और प्रार्थना के साथ समाप्त करना चाहिए। परमेश्वर के लोगों के रूप में, जब हम प्रार्थना चढ़ाते हैं जो परमेश्वर के साथ एक आत्मिक बातचीत है, हमें इस पर विश्वास करते हुए कि परमेश्वर निश्चित ही उन्हें सुनेंगे और उत्तर देंगे, अपने पूरे मन और पूरे हृदय से प्रार्थना करनी चाहिए ।

पुनर्विचार के लिए प्रश्न
परमेश्वर के साथ आत्मिक बातचीत क्या है?
हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए?(कृपया तीन बातों के साथ विस्तार से जवाब दीजिए)