माता की शिक्षाओं में से दसवीं शिक्षा

“जो भी मेमने के द्वारा मार्गदर्शन चाहता है, उसे मेमने से भी छोटा मेमना बनना चाहिए।”

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स्वर्गीय माता ने कहा कि जो कोई मेमने के द्वारा मागदर्शन चाहता है, उसे मेमने से भी छोटा मेमना बनना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि यदि हम मेमने से छोटे नहीं बनते, तो हम जहां कहीं मेम्ना हमारा मार्गदर्शन करता है, वहां हम उसका पालन नहीं कर सकते।जब तक हम मेमने से बड़े रहेंगे, हम कुछ समय के लिए मेमने का पालन कर सकते हैं, जब तक उसका मार्गदर्शन हमारे विचारों के अनुरूप रहेगा। लेकिन, जब उसका नेतृत्व हमारे विचारों के अनुरूप नहीं रहेगा, तब हम अपने अनुसार कार्य करना शुरू कर देंगे। हमें अपने विचारों को दूर करके छोटे मेमने बनना होगा और जहां भी मेम्ना हमें मार्गदर्शन करे, वहां उसका अनुसरण करना होगा।

परमेश्वर, जो मेमना हैं, उनके मार्गदर्शन के तहत स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए, हमें परमेश्वर से छोटा बनना चाहिए। दूसरे शब्दों में, हमें अपने विचारों को छोड़ना चाहिए, परमेश्वर के वचनों को पूर्ण रूप से मानना चाहिए, और केवल उनके वचनों का पालन करना चाहिए। हम कभी-कभी यह नहीं समझ पाते कि परमेश्वर हमें आसान मार्ग के बजाय कठिन मार्ग पर क्यों ले जाते हैं। और कभी-कभी हम सोच सकते हैं कि परमेश्वर के वचन हमारे विचारों से मेल नहीं खाते और हमारे तरीके परमेश्वर के मार्गों से बेहतर लगते हैं।

लेकिन, परमेश्वर के विचार हमारे विचार से अलग हैं(यश 55:8)। हमें स्वयं को नम्र बनाना चाहिए और अपने विचारों को परमेश्वर के मानकों के अनुसार परखना चाहिए क्योंकि परमेश्वर जो कुछ भी करने को कहते हैं, वह हमारी भलाई के लिए होता है। अवज्ञा एक अहंकारी मन से उत्पन्न होती है जो परमेश्वर से बड़ा और ऊंचा बनना चाहता है। हमें माता के वचनों को याद रखना चाहिए कि हम मेमने से भी छोटे मेमने बनें और हर परिस्थिति में परमेश्वर के वचनों का पालन करें ताकि हम परमेश्वर के लोग बन सकें जो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करते हैं।

फिर मैं ने दृष्टि की, और देखो, वह मेम्ना सिय्योन पहाड़ पर खड़ा है, और उसके साथ एक लाख चौवालीस हज़ार जन हैं… जहां कहीं मेम्ना जाता है, वे उसके पीछे हो लेते हैं। प्रक 14:1-4

पुनर्विचार के लिए प्रश्न
माता की शिक्षाओं में से दसवीं शिक्षा क्या है?
क्यों हमें स्वयं को नम्र बनाना चाहिए और अपने विचारों को परमेश्वर के मानकों के अनुसार परखना चाहिए?