माता की शिक्षाओं में से दूसरी शिक्षा

"जब हम परमेश्वर को महिमा देते हैं, वह महिमा अंत में हमें दी जाएगी।"

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जब हम प्रचुर फल वाले एक वृक्ष को देखते हैं, तब हम केवल फल और डालियां जैसे दृश्य हिस्सों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और जड़ों की उपेक्षा करते हैं। परन्तु, जड़ों की भूमिका अत्यंत आवश्यक है; वे जब तक वृक्ष अच्छा फल नहीं फलता तब तक पानी और पोषण प्रदान करती हैं। जड़ों के बिना, वृक्ष का अस्तित्व नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त, यदि जड़ें ठीक से काम न करें तो डालियां कितनी भी मोटी और प्रबल होने पर भी वृक्ष स्वयं जीवन बनाए नहीं रख सकता या फल पैदा नहीं कर सकता।

इसी तरह, हर कार्य जो हमने किया, हमारी स्वयं की शक्ति और बुद्धि से की गईं उपलब्धियां जैसा लगता है, परन्तु वह परमेश्वर की सामर्थ्य से पूरा हुआ है, जो जड़ों के समान अदृश्य रूप से कार्य करते हैं। हमें इसे कभी भी भूलना न चाहिए। ‘मैंने स्वयं इसे किया है’— यह एक अति मूर्ख और खतरनाक सोच है। जब बेबीलोन का राजा नबूकदनेस्सर ने परमेश्वर का स्मरण नहीं किया और अहंकारी रूप से सोचा कि उसने स्वयं ही सबकुछ हासिल किया है, तब उसने उसकी पूरी बुद्धि गवां दी और एक पशु के समान जीवन जिया। यदि हम स्वयं को महिमा दें, हम अहंकारी बन जाएंगे और परमेश्वर का पालन करने का मन भी गंवा देंगे। परिणाम स्वरूप, हम परमेश्वर की आशीष खो देंगे। परमेश्वर चाहते हैं कि हम परमेश्वर को महिमा देकर और उन पर निर्भर रहकर आशीषित हो जाएं। इस बात को मन में रखते हुए कि डालियां जड़ों के बिना फल नहीं फल सकती, हमें परमेश्वर की महिमा करनी चाहिए जो हर क्षण हमारे साथ होकर हमारी सहायता करते हैं।

परमेश्वर ने कहा कि जब हम परमेश्वर को महिमा दें, वह महिमा हमारे पास लौटा देंगे। यह स्वाभाविक बात है कि हम परमेश्वर की महिमा दें जो हमारे लिए सबकुछ हासिल कर देते हैं। तथापि, परमेश्वर ने इसके लिए हम से आशीषों की प्रतिज्ञा की है। परमेश्वर की इस प्रतिज्ञा का स्मरण करते हुए, हमें हर चीज में जो हम करते हैं परमेश्वर को महिमा देनी चाहिए, ताकि हम परमेश्वर की बुद्धिमान संतान के रूप में आशीषित किए जा सकें।

पुनर्विचार के लिए प्रश्न
माता की शिक्षाओं में से दूसरी आज्ञा क्या है?
आइए हम उन कारणों के बारे में बात करें कि हमें क्यों परमेश्वर को महिमा देनी चाहिए।